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वायु प्रदूषण के कारण | अशुद्ध वायु का हानिकारक प्रभाव | वायु की अशुद्धियों को दूर करने के उपाय

वायु प्रदूषण के कारण | अशुद्ध वायु का हानिकारक प्रभाव | वायु की अशुद्धियों को दूर करने के उपाय | Causes of air pollution in Hindi | Harmful effects of impure air in Hindi | Ways to remove air impurities in Hindi

वायु प्रदूषण के कारण 

वायु का प्रदूषण निम्नलिखित कारणों से होता है।

(1) श्वांस क्रिया द्वारा (Respiration)-  प्रत्येक प्राणी जीवित रहने के लिए श्वांस  क्रिया द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकालता है। यद्यपि वायु में ऑक्सीजन के साथ-साथ कार्बन डाइऑक्साइड भी सम्मिलित रहती है। लेकिन इसका प्रतिशत बहुत कम होता है। इसके विरीत श्वांस द्वारा विसर्जित श्वांस में कार्बन‍-डाइ-आंक्साइड अधिक  होता है। वायु में कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा केवल 0.3% होती है जबकि मनुष्य द्वारा विसर्जित वायु में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा 4.37% होती है। अतः स्वांस द्वारा निष्कासित वायु से वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता हो जाती है। ऐसे स्थानों पर जहां पर बहुत से व्यक्ति उपस्थित हों और उचित संवातन न हों तो वहां की वायु में कार्बन-डाइ- ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है जिससे व्यक्तियों का दम घुटने लगता है।

(2) जलने की क्रिया से- प्रत्येक वस्तु के ज्वलन से कार्बन- डाइ-ऑक्साइड उत्पन्न होती  है। व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में लकड़ी, कोयला, तेल, पेट्रोल आदि को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करता है। इन वस्तुओं के जलने से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड उत्पन्न होती है। पत्थर के कोयले जलने पर कार्बन मोनो ऑक्साइड गैस उत्पन्न होती है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक है। अतः विभिन्न पदार्थों के ज्वलन से उत्पन्न गैसें वायु को अशुद्ध कर देती है। इसी कारण आद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्ति विभिन्न रोगों से ग्रसित हो जाते हैं।

(3) पदार्थों के सड़ने से- व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में विभिन्न वस्तुओं का उपभोग करता है और व्यर्थ पदार्थों को फेंक देता है। ये वस्तुयें सड़ने लगती हैं। सड़े-गले पदार्थों, कूड़ा- करकट, मृत जीव आदि में विभिन्न रासायनिक परिवर्तनों के फलस्वरूप कुछ गैसें; जैसे- कार्बन-डाइ- ऑक्साइड, अमोनिया तथा हाइड्रोजन सल्फाइड उत्पन्न होती हैं। फलस्वरूप खाद्य पदार्थों में दुर्गन्ध आने लगती है, ये गैसें वायु को अशुद्ध बनाती हैं। सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर वैक्टोरिया भी तीव्रता से वृद्धि करते हैं। यह भी वायु में मिलकर वायु को दूषित कर देते हैं।

(4) धूल के कण- वायुमण्डल में धूल, कोयले, राख, रुई आदि के कण विद्यमान रहते है। श्वांस द्वारा ये कण भी फेफड़ों को हानि पहुंचाते हैं। शुष्क वायु में धूल के कण अधिक मात्रा में रहते हैं।

(5) रोग के जीवाणु- रोग के जीवाणु वायुमण्डल में विद्यमान रहते हैं। रोगी व्यक्ति के मल-मूत्र, थूक-बलगम तथा श्वांस द्वारा ये मिलते रहते हैं। अतः जब व्यक्ति इस प्रकार की वायु में श्वांस लेता है तो रोग के जीवाणु भी श्वांस द्वारा शरीर में पहुंच जाते हैं। तपेदिक, इन्फ्लूएंजा चेचक, खसरा, आदि रोग वायु में फैलने वाले रोग हैं।

(6) कारखानों और मिलों के धुएं द्वारा- धुएं में कई गैसे, जैसे- कार्बन-डाइ- ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड आदि सम्मिलित रहती हैं। कारखानों और मिलों के धुयं द्वारा ये गैसें वायुमण्डल में मिलती रहती हैं जिससे वायु अशुद्ध हो जाती है। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से महान औद्योगिक क्षेत्रों से दूर होना चाहिये।

अशुद्ध वायु का हानिकारक प्रभाव

(1) श्वांस सम्बन्धी रोग विकसित हो जाते हैं।

(2) कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता वाले वातावरण में व्यक्ति का दम घुटने लगता है।

(3) दूषित वायु में उपस्थित विभिन्न रोगों के जीवाणु विभिन्न रोगों को जन्म देते हैं।

(4) रोग अवरोधक क्षमता में कमी।

(5) हृदय गति मन्द हो जाती है।

वायु के तापमान का प्रभाव – यदि वायु का तापमान अधिक होता है तो बाहर का तापमान शरीर के तापमान को कम करने में असमर्थ होता है। इसी कारण गर्मी के मौसम में व्यक्ति बेचैनी का अनुभव करने लगता है।

वायु में नमी का प्रभाव- वायु में यदि नमी की अधिकता होती है तो शरीर से निकलने वाला पसीना नहीं सूखता है। फेफड़ों से जल वाष्प विसर्जित न होने से फेफड़ों की क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। फलस्वरूप रक्त को कम ऑक्सीजन मिलती है और शरीर की क्रियाशीलता में कमी आती है।

वायु की अशुद्धियों को दूर करने के उपाय-

स्वास्थ्य के लिए वायु जितनी आवश्यक है उससे कहीं ज्यादा आवश्यक वायु का शुद्ध होना है। प्राकृतिक रूप से वायु शुद्ध होती है लेकिन बाह्य वातावरण से उसमें  अनेक अशुद्धियां मिल जाती है जो प्राणघातक होती है। अशुद्ध ववायु का निरन्तर सेवन करने स शारीरिक व मानसिक थकावट, सिरदर्द, निद्रा, भारीपन, बेचैनी, घबराहट, हृदय गति में धीमापन आदि लक्षण प्रकट होते हैं। अतः वायु का शुद्धिकरण आवश्यक  है। वायु के शुद्धिकारण के लिए यह जरूरी है कि उन सभी कारणों को समाप्त किया जो बातावरण को दूषित करते हैं। प्रकृति ने वायु के शुद्धीकरण की बहुत सुन्दर प्राकृतिक व्यवस्था की है। एक ओर जहां मनुष्य कार्बन-डाइ-ऑक्साइड को त्याग कर वायु को अशुद्ध करता है, वहीं दूसरी ओर पेड़-पौधे इस कार्बन डाइऑक्साइड को ग्रहण कर अपने लिए भोजन बनाते हैं। अत: वातावरण प्राकृतिक रूप से स्वयं ही स्वच्छ होता रहता है। इसलिए ‘अधिक पेड़ लगाओ’, ‘वन सम्पदा बचाओ’ जैसे नारे लगाये जाते हैं। पेड़ों और वनों का समाप्त होना भी बायु संदूषण का कारण है।

वायु के शुद्धीकारण के प्रमुख दो साधन हैं-

(क) प्राकृतिक साधन,

(ख) कृत्रिम साधन ।

(क) प्राकृतिक साधन- प्राकृतिक रूप से ही वायुमण्डल में कुछ ऐसी क्रियायें होती रहती हैं कि वायु स्वतः ही शुद्ध होती रहती है। वायु को शुद्ध करने के प्राकृतिक साधन निम्नलिखित हैं-

(1) पेड़-पौधे- वनस्पतिक जगत वायु को प्राकृतिक रूप से शुद्ध करता है। पेड़-पौधे वायुमण्डल से कार्बन डाई आक्साइड ग्रहण कर अपना भोजन बनाते हैं और ऑक्सीजन त्यागते हैं। पेड़-पौधों की इस क्रिया से वायु में ऑक्सीजन का सन्तुलन बना रहता है और वातावरण शुद्ध रहता है।

(2) तेज हवायें या आंधियां- तीव्र वायु ही आंधी है। आंधी के समय वायु का फैलाव बढ़ जाता है जिससे आंधी के साथ वातावरण को अशुद्धियां उड़कर मीलों दूर चली जाती हैं और उसका स्थान शुद्ध वायु ले लेती है। अत: तेज हवायें और आंधियां वातावरण को साफ कर देती है।

(3) वर्षा का जल- वर्षा का जल जब पृथ्वी पर आता है तो अपने साथ बहुत सी वातावरणीय अशुद्धियों, जैसे-गैसे, धूल कण, रोग के जीवाणु आदि को भी पृथ्वी पर ले आता है। वर्षा का जल कुछ अशुद्ध गैसों, जैसे- अमोनिया आदि को भी अपने अन्दर सोख लेता है। इस परप्रकार वर्षा के जल से अशुद्धियां नीचे आ जाती हैं। घुलनशील अशुद्धियां तो घुलकर नष्ट हो जाती  हैं और बाकी अशुद्धियां बह जाती हैं।

(4) सूर्य का प्रकाश- सूर्य के प्रकाश में विभिन्न जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती  है जो जीवाणु उबालने से भी नष्ट नहीं होते हैं वे सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से नष्ट हो जाते हैं। सूर्य का प्रकाश जब वायुमण्डल से होता हुआ पृथ्वी पर आता है तो इसको किरणें वायुमण्डल में उपस्थित विभिन्न जीवाणुाओं को नष्ट कर देती हैं। इसीलिए विभिन्न खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाने के लिए धूप में रखा जाता है। अतः उत्तम स्वास्थ्य के लिए शुद्ध वायु और धूप का सेवन अत्यन्त आवश्यक है।

(5) ऑक्सीजन- शुद्ध ऑक्सीजन तीव्र ज्वलनशील होती है। ऑक्सीजन की ज्वलन क्रिया से वायु में उपस्थित जीवाणु जलकर न होने रहते हैं। ओजोन भी ऑक्सीजन का ही रूप है। यह ऑक्सीजन से भी अधिक तीव्र होती है। यह विशेष रूप से तपेदिक के जीवाणुओं को नष्ट  करती है।

(6) गैसों का विसरण गुण- वायुमण्डल में विद्यमान विभिन्न गैसों में विसरण का गुण होता है। ये किसी स्थान पर स्थिर नहीं रहती हैं। शुद्ध वायु भारी होती है अतः यह नीचे रहती है लेकिन जैसे-जैसे यह अशुद्ध होती जाती है जैसे-वैसे हल्की होकर ऊपर उठने लगती है और  उसका स्थान शुद्ध वायु लने लगता है। इस प्रकार गैसों के प्राकृतिक विसरण से वातावरण स्वच्छ होता रहता है। इसीलिए घर के आन्तरिक वातावरण को शुद्ध व स्वच्छ रखने के लिए रोशनदान ऊपर की ओर बनवाये जाते हैं जिससे श्वांस द्वारा छोड़ा गया अशुद्ध वायु ऊपर जाकर आसानी से  निकल सकें। नीचे की ओर खिड़की व दरवाजे शुद्ध वायु के प्रवेश के लिए बनवाये जाते हैं।

(ख) कृत्रिम साधन– वायु के शुद्धीकरण के लिए, कृत्रिम रूप से निम्नलिखित उपाय प्रयोग में लाये जा सकते हैं-

  1. घर-औद्योगिक क्षेत्रों, रेलवे स्टेशनों, पशुशाला आदि से दूर बनवाने चाहिए।
  2. घर के प्रत्येक कक्ष में उचित खिड़की, दरवाजे व रोशनदान होने चाहिए।
  3. रसोईघर में धुंआ निकलने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  4. घर के आस-पास हरियाली तथा वायु की स्वच्छता के लिए वृक्ष लगाने चाहिए।
  5. यदि घर में कोई पशु हो तो उसे मनुष्यों के रहने के स्थान से दूर बांधना चाहिए क्योंकि उनकी श्वांस तथा मल-मूत्र से उत्पन्न गैस घर के वातावरण को दूषित करती हैं।
  6. घर के कूड़ा-करकट, खराब खाद्य पदार्थ तथा अन्य सड़ी-गली वस्तुओं को घर के आस- पास खुला नहीं फेंकना चाहिए।
  7. यदि घर में कोई संक्रामक रोग है तो उसके मल-मूत्र कफ आदि को खुला नहीं छोड़ना चाहिए।
  8. घर में तथा घर के आस-पास नालियों में पानी जमा नहीं होने देना चाहिए।
  9. खुले स्थानों पर थूकना तथा मल-मूत्र नहीं करना चाहिए।
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Pankaja Singh

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