पाठ्यक्रम निर्माण की प्रक्रिया | पाठशाला शिक्षा के विभिन्न विषयों में जनसंख्या शिक्षा का स्थान | Curriculum Development Process in Hindi | Place of population education in different subjects of school education in Hindi
पाठ्यक्रम निर्माण की प्रक्रिया
सर्वप्रथम किसी भी पाठ्यक्रम निर्माण की प्रक्रिया में अनेक तत्व सम्मिलित रहते हैं। यह उपयोगी होगा कि निम्न बातों के सम्बन्ध में तथ्य एकत्रित किये जायं तथा इनकी पृष्ठभूमि में पाठ्यक्रम निर्माण किया जाये।
(1) जनसंख्या शिक्षा के लक्ष्य हैं। इन लक्ष्यों की प्राप्ति शाला शिक्षा के साथ-साथ जनसंख्या शिक्षा की बातों को जोड़कर किस प्रकार सम्भव है?
(2) जनसंख्या शिक्षा सम्बन्धी किन-किन तथ्यों और अनुभवों को सीखने वालों को बताया जाना उपयोगी होगा।
(3) इन तथ्यों और अनुभवों को किस प्रकार बताया जाना उपयोगी होगा?
(4) वर्तमान शाला पाठ्यक्रम में जोड़ना या परिवर्तन करना किस प्रकार सम्भव है। इसके लिये कौन सी रणनीति अपनाना उचित होगा?
इनके साथ-साथ यह भी निश्चित करना उपयोगी होगा कि कौन-कौन सी बातें जनसंख्या शिक्षा का अंग बन सकती हैं।
जनसंख्या शिक्षा राष्ट्र के विकास का एक महत्वपूर्ण सशक्त साधन है। यदि जनसंख्या शिक्षा को राष्ट्र के जीवन और आकांक्षाओं से सम्बन्धित कर दिया जाय तो यह राष्ट्र के लोगों में उचित मूल्य और प्रवृत्तियों का विकास करके राष्ट्र की समस्याओं को हल करने तथा चुनौतियों का प्रभावी ढंग से सामना करने हेतु बहुत प्रभावी भूमिका अदा कर सकती है। कुशल और अकुशल मानव- शक्ति आवश्यकताओं, राष्ट्र की साधन क्षमता और जनसंख्या विकास में तालमेल बैठाना किसी भी राष्ट्र के उचित नियोजित विकास हेतु आवश्यक है। अत: यह आवश्यक और उचित होगा कि देश की शिक्षा व्यवस्था में जनसंख्या शिक्षा को समुचित महत्व दिया जायें। भारत में शाला एवं कालेज जाने वाले छात्र छात्राओं की संख्या काफी है। विज्ञान और तकनीकी विकास, स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा आदि के कारण सामान्य मानव की जीवन आयु में वृद्धि हुई हैं। बाल मृत्यु दर में भी काफी कमी हो गयी है। फलस्वरूप बालक बलिकाओं तथा बढ़ती आयु के व्यक्तियों की संख्या की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी होती जा रही है। अतः यह उचित होगा कि इन भावी नागरिकों तथा वर्तमान नागरिकों को जनसंख्या की वृद्धि से होने वाली हानियों का ज्ञान कराया जाये तथा यह भी स्पष्ट किया जाये कि उत्तम जीवन स्तर के लिए छोटा कुटुम्ब और कम जनसंख्या अधिक प्रभावी औरउपाय है। आज के बालक बलिकायें कल के समाज के उत्पादक अंग होंगे। अतः इन्हें यह ज्ञान अवश्य कराया जाना चाहिए कि जनसंख्या को सीमित रखने के क्या क्या लाभ है, जनसंख्या कैसे सीमित हो सकती है तथा जीवन स्तर को ऊँचा बनाना क्यों आवश्यक है? परन्तु जनसंख्या शिक्षा बच्चों जवाना और बूढ़ो सभी को दी जानी आवश्यक है।
पाठशाला शिक्षा के विभिन्न विषयों में जनसंख्या शिक्षा का स्थान
शिक्षा का उद्देश्य बालक में ऐसी निपुणता, सामर्थ्य तथा दृष्टिकोण विकसित करना है जो समाज में प्रभावी जीवन जीने के लिये आवश्यक है। शालायें समाज के ऐसे अपरिपक एवं अनुभवहीन वर्ग के साथ अनवरत कर्म करती है जो वयस्क होकर अपनी भूमिका का निर्वाह करेंगे परन्तु अभी इनकी आयु तथा अनुभव इस दायित्व को समझने में सक्षम नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि शिक्षा के द्वारा बच्चों को भावी परिवारिक दायित्व के योग्य बनाने का कार्य शालायें करती हैं। इसी उद्देश्य से बच्चों को भाषा, गणित, विज्ञान, हस्तकार्य, भूगोल, इतिहास, अर्धशास्त्र या अन्य विषयों को पढ़ाया जाता है। बच्चों को वर्तमान तथा भावी जीवन जीने में सहायक विषय शाला पाठ्यक्रम के महत्वपूर्ण अंग होने है। चूंकि जनसंख्या वृद्धि बालक के व्यक्तिगत, पारिवारिक, राष्ट्रीय तथा सम्पूर्ण संसार के मानवीय जीवन को सीधे तथा परोक्ष रूप में प्रभावित करती है, अतः जनसंख्या शिक्षा को शालेय शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिये। श्रमइसे भी अन्य विषयों, जैसे-भाषा, गणित, भूगोल, विज्ञान, आदि के समान महत्व देकर उचित परिप्रेक्ष्य में पढ़ाया जाना चाहिये। साथ ही इसे प्राथमिक शिक्षा से ही प्रारम्भ किया जाना चाहिये। फिलिप एम० हौसर (Philip M. Hauser) का कथन है कि “संसार के विभिन्न संगठनों तथा समूहों की समुचित रुचि जनसंख्या समस्याओं की ओर बढ़ती ही जा रही है परन्तु अभी भी शाला पाठ्यक्रम में इसका प्रभाव कम है।” वे तो यहाँ तक कहते हैं कि बालक की शिक्षा में जनसंख्या परिवर्तन के परिणामों का उल्लेख बहुत ही कम या उपेक्षापूर्ण ही अधिक है। उन्होंने सुझाव दिया है कि जनसंख्या शिक्षा बालक की सामान्य शिक्षा का अभिन्न और महत्वपूर्ण भाग या अंग होना चाहिए। 1970 के बाद अवश्य संसार के विभिन्न देशों में शिक्षा में जनसंख्या शिक्षा का एकअधिकाधिक सम्मिलित करने के प्रयास किये गये है। परन्तु यह अमेरिका, भारत इंग्लैण्ड आदि देशों को कुछ शालाओं में हो सम्भव हो पाया है। 1970 से यूनेस्को संस्था जनसंख्या शिक्षा को भीबहुत महत्त्व दे रही है। सितम्बर 1979 में बैंकाक में जनसंख्या शिक्षा पर जो कार्यगोष्ठी हुई थी उसका प्रतिवेदन जनसंख्या शिक्षा पर उत्पन्न प्रामाणिक तथा महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। एशिया के तथा अन्य देशों पर इसका बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है तथा भारत में इसके बाद अनेक राज्यों को शाला पाठ्यक्रमों में जनसंख्या शिक्षा को सम्मिलित किया गया है। भारत, फिलीपीन्स, ताइवान तथा कोरिया ने इस दिशा में विशेष उल्लेखनीय कार्य किये हैं।
वारेन एस०थामसन तथा फिलीप एम० हौसर प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने जनसंख्या शिक्षा की शाला पाठ्यक्रम में जोड़ने पर बल दिया। स्क्रीन वेलैण्ड महोदय ने भी इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया है। स्क्रीन वेलैण्ड महोदय की बहुत अधिक रुचि “जनसंख्या शिक्षा” की शाला शिक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराने की ओर रही है तथा ” यौन शिक्षा” या ” पारिवारिक जीवन शिक्षा के स्थान पर “जनसंख्या शिक्षा” नामकरण इन्हीं का दिया हुआ है। वे जनसंख्या अध्ययन को “यौन शिक्षा” या ” पारिवारिक जीवन शिक्षा” इसीलिये नहीं कहना चाहते थे क्योंकि इन नामों में जनसंख्या अध्ययन का झुकाव अन्य ऐसी बातों से होता है जो बाल जीवन तथा उनके अनुभवों से बहुत भिन्न एवं असम्बद्ध है “जनसंख्या शिक्षा” विषय की शिक्षा से उनका तात्पर्य ऐसी बातों की शिक्षा से था जो बालक को यह बताये कि परिवार सीमित रखने से उसे, उसके परिवार, समाज व राष्ट्र को क्या लाभ है। परिवार नियोजन सम्भव है तथा आवश्यक भी हैं, परिवार की संख्या या समाज को जनसंख्या या उसके तथा राष्ट्र के सामाजिक, आर्थिक या अन्य विकास कार्यक्रमों से क्या सम्बन्ध है, जनसंख्या इन्हें किन रूपों में तथा किस प्रकार प्रभावित करती है, जीवन स्तर उन्नत करने में जनसंख्या नियंत्रण कैसे सहायक होता है: आदि। वेलैण्ड महोदय तो बालक को मानव पुनरूत्पादन क्रिया का ज्ञान देना भी उपयोगी समझते थे। नोइल डेविड बर्ल्सन (Noel David Burison) ने “जनसंख्या शिक्षा” को “जनसंख्या जागृति”(Population awareness) कहा है तथा शाला पाठ्यक्रम में इसके समावेश पर बल दिया है। परन्तु यूनेस्की तो ” जनसंख्या तथा परिवार शिक्षा” कहें या “जनसंख्या तथा परिवार शिक्षा “या “जनसंख्या जागृति” आवश्यक यह है कि इस विषय को शाला शिक्षा पाठ्यक्रम में सम्मिलित करके महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिये।
जब हम उपरोक्त प्रश्नों पर विचार करते है तब स्पष्ट रूप से जनसंख्या की विषय-वस्तु और पाठ्यक्रम की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट होता है। जनसंख्या शिक्षा की विषय वस्तु और पाठ्यक्रम कुछ ऐसे होना चाहिये कि उससे जनसंख्या विकास से होने वाले हानिकारक प्रभावों को ज्ञान कराया जा सके तथा साथ ही कुछ ऐसी बातें भी बताई जा सके कि जनसंख्या कैसे सीमित की जा सकती है। जब हम जनसंख्या सोमित करने की तकनीक की बात करते है तो यह स्पष्ट ध्यान में रखना उचित होगा कि इसका अर्थ यौन-शिक्षा से ही नहीं है। जनसंख्या सीमित करना जनसंख्या के प्रति उचित दृष्टिकोण, देर से शादी करना, एक या दो बच्चों के जन्म के बाद नसबन्दी का आपरेशन या अन्य विधि से जनसंख्या न बढ़ने देने आदि विधियों से सम्भव है। कहने का तात्पर्य यह है कि यौन शिक्षा तकनीकी की ओर ध्यान न देकर भी संतति उत्पादन कम करने की उचित प्रवृत्तियों का विकास किया जा सकता है। वास्तव में जनसंख्या शिक्षा परिवार नियोजन, यौन शिक्षा या परिवार जोवन शिक्षा से अधिक हो है। जनसंख्या शिक्षा के अन्तर्गत वे सभी बातें समष्टि है जो जनसंख्या विकास की समस्याओं तथा जनसंख्या विकास से व्यक्ति, परिवार और राष्ट्र की प्रगति के बाधक स्वरूप की जानकारी कराने में सहायक हो। राष्ट्र के साधन एवं जनसंख्या विकास के कारण उत्पन्न असन्तुलन के कारण ही आवश्यक है कि जनसंख्या शिक्षा दी जाये। साधन और जनसंख्या के मध्य जो खाई विकसित हो रही है उसे कम से कम करना हो जनसंख्या शिक्षा का उद्देश्य है। इस दृष्टि से जनसंख्या शिक्षा के अन्तर्गत वे सभी बातें आ जाती है जो समाज में जनसंख्या की वृद्धि की ओर सजगता विकसित करने में सहायक होती है।
जनसंख्या शिक्षा के पाठ्यवस्तु या पाठ्यक्रम पर विचार करते समय हमें यह भी सोचना पड़ेगा कि इसमें प्रवृतियों और ज्ञान दोनों के विकास के लिये पाठ्यवस्तु हो। जनसंख्या शिक्षा का पाठ्यक्रम संगठन दो प्रकार से किया जा सकता है- (1) प्रचलित पाठ्यक्रम के विषयों के साथ जनसंख्या शिक्षा तथा (2) पाठ्यक्रम में विशेष के रूप में। दोनों ही प्रकार विचारों के पक्ष विपक्ष में तर्क दिये जा सकते हैं। दोनों विधियों से पाठ्यक्रम विकास की सीमायें है। अतः उचित तो यह होगा कि दोनों का समन्वित या मिला-जुड़ा का रूप उपयोग में लाया जाये। मुख्य बात है बढ़ती जनसंख्या के प्रति समाज को सजग करके जनसंख्या नियंत्रण हेतु जन मानस को जागृत किया जाये। साथ ही इस बात पर भी बल दिया जाये कि जनसंख्या नियन्त्रण जीवन स्तर को उच्च बनाने तथा पारिवारिक सुख-समृद्धि का प्रभावी कारक और साधन है।
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