आधुनिक शिक्षा पर रूसो का प्रभाव | Rousseau’s influence on modern education in Hindi
आधुनिक शिक्षा पर रूसो का प्रभाव
रूसो के शैक्षिक विचारों में उपर्युक्त दोषों के होते हुए भी उसमें अनेक गुण भी पाये जाते हैं। अपने इन्हीं गुणों के कारण आज शिक्षा के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में उसका व्यापक प्रभाव दिखलाई पड़ता है। यह प्रभाव प्रमुख रूप से निम्नलिखित तीन प्रवृत्तियों के रूप में दिखाई पड़ता है-
(1) शिक्षा में मनोवैज्ञानिकता का समावेश- आधुनिक शिक्षा पूर्णतया मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों पर आधारित है। इसका संपूर्ण श्रेय रूसो को है। उसी के विचारों के परिणामस्वरूप शिक्षा के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति का प्रवेश हुआ। रूसो ने शिक्षा को एक नवीन अर्थ प्रदान किया। उसने शिक्षा को ‘प्राकृतिक प्रक्रिया’ बतलाया और इस बात पर बल दिया कि बालक की शिक्षा उसकी रुचि, योग्यता, अभिक्षमता, शक्ति और आवश्यकता के अनुसार होनी चाहिए। उसके इसी विचार का परिणाम है कि आज शिक्षा शिक्षक अथवा पाठ्यक्रम पर केन्द्रित न होकर ‘बाल केन्द्रित’ हो गई है। मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण ही आज बालक की शिक्षा में स्वतन्त्रता का सिद्धांत और स्वानुभव एवं क्रिया द्वारा सोखने के सिद्धान्त को विशेष स्थान प्राप्त है। आज बालक को विद्यालय में किसी प्रकार का दंड नहीं दिया जाता; यह भी उसी के विचारों का प्रभाव है।
(2) शिक्षा में वैज्ञानिकता का समावेश- शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति का प्रवेश भी रूसो की ही विचारधारा का परिणाम है। रूसो ने पुस्तकीय शिक्षा का विरोध किया और प्रकृति में मौजूद विभिन्न वस्तुओं के प्रत्यक्ष निरीक्षण द्वारा ज्ञान प्राप्त करने पर जोर दिया। उसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे विद्यालयों में प्राकृतिक विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और जीव विज्ञान आदि विषयों की शिक्षा का प्रारम्भ हुआ और आज यह ज्ञान और शिक्षा प्रगति के पथ पर अग्रसर है। रूसो के ही विचारों से हरबार्ट स्पेंसर और हक्सले आदि शिक्षाशास्त्रियों ने प्रेरणा ली और शिक्षा में वैज्ञानिक प्रवृत्ति को आगे बढ़ाया।
(3) शिक्षा में सामाजिकता का समावेश- रूसो व्यक्तिवादी विचारधारा का पोषक था। उसकी इस विचारधारा के परिणामस्वरूप बालक के स्वतन्त्र व्यक्तित्व को विशेष महत्व दिया गया और उसकी शिक्षा वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर होने लगी। शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तिगत शक्तियों का विकास माना जाने लगा और इस प्रकार शिक्षा में ‘व्यक्तिवाद’ की नींव पड़ी। परन्तु रूसो के विचारों में सामाजिक भावनाओं के विकास में भी काफी बल मिला। उसके शैक्षिक विचारों में मानव कल्याण की भावना निहित है। उसने मानव कल्याण के लिए ही मानवता को कुचलने वाले उस समय के अत्याचारों का विरोध किया। उसने मानव को स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व-जैसे अमूल्य गुणों को प्रदान किया। उसने ‘एमील’ में सामाजिक कुशलता, सहयोग, सहकारिता और सहानुभूति आदि गुणों को विकसित किया है। आज शिक्षा में हम जिन सामाजिक विचारों और व्यवहारों को देखते हैं उनकी नींव ‘एमील’ में रूसो ने पहले से ही डाल रखी थी।
(4) शिक्षा एवं विधि-पाठ्यक्रम पर प्रभाव- उपर्युक्त बातों के अतिरिक्त रूसो का प्रभाव शिक्षा-विधियों, पाठ्यक्रम या पाठ्य-विषय आदि पर भी दिखाई पड़ता है। उसने बालक की प्रकृति का अध्ययन करके शिक्षा देने को कहा। इसके साथ ही साथ उसने यह भी बतलाया कि बालक का पाठ्यक्रम उसकी विकास की अवस्थाओं के अनुकूल हो तथा उसे क्रिया, स्वानुभव, निरीक्षण और अन्वेषण द्वारा सीखने का अवसर दिया जाय। उसके इन्हीं विचारों का परिणाम है जो आज शिक्षा में विभिन्न अवस्थाओं के लिए भिन्न-भिन्न पाठ्यक्रम है, जिन्हें बालक अपनी रुचि और योग्यता तथा आवश्यकतानुसार चुन सकते हैं। उसने शिक्षण- विधि के क्षेत्र में जिन सिद्धान्तों-क्रिया, स्वानुभव, निरीक्षण, अन्वेषण, स्वतन्त्रता आदि को स्थान दिया वही सिद्धान्त आगे शिक्षाशास्त्रियों के लिए प्रेरणा के स्रोत बने और नवीन मनोवैज्ञानिक शिक्षण-विधियों-माण्टेसरी, दिंडरगार्टन, योजना-पद्धति, डाल्टन-प्रणाली, ह्युरिस्टिक मेथड आदि का जन्म हुआ।
(5) औद्योगिक शिक्षा पर बल- आज शिक्षा में औद्योगिक शिक्षा को जितना महत्व किया जा रहा है और उसके विकास पर जितना बल दिया जा रहा है इसके सूत्रपात का भी श्रेय रूसो को प्राप्त है; क्योंकि इसकी नींव उसने ‘एमील’ में डाल दी थी। उसने ‘एमील’ को औद्यौगिक कार्य में निपुण बनाने का प्रयास किया है, जिससे वह अपनी जीविकोपार्जन कर सके। इसके समर्थन में प्रैब्स महोदय ने लिखा है-“आज की शिक्षा में नैतिक उद्देश्य, सामाजिक मूल्यों तथा औद्योगिक शिक्षा के विकास पर जो बल दिया जाता है उसकी कुछ जड़ें ‘एमील’ में मिलती हैं।” रूसो का प्रभाव आज शिक्षा के समस्त क्षेत्रों में व्याप्त है। उसने शिक्षा को एक नवीन दिशा दी है।
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