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ग्रीन के सम्पत्ति पर विचार | ग्रीन के सम्पत्ति पर विचारों पर एक लघु नोट

ग्रीन के सम्पत्ति पर विचार | ग्रीन के सम्पत्ति पर विचारों पर एक लघु नोट

ग्रीन के सम्पत्ति पर विचार

ग्रीन के सम्पत्ति पर विचार, अरस्तू के निजी सम्पत्ति के विचारों से मिलते हैं। अरस्तू का विचार है कि नैतिक इच्छा की पूर्णतया के लिए निजी सम्पत्ति आवश्यक है। ग्रीन के विचार में भी सम्पत्ति के अधिकार का आधार भी वही है। ग्रीन बाकी अधिकारों का वर्णन जैसे करता है, उसी प्रकार सम्पत्ति के आधार को भी मान्यता देता है। सम्पत्ति का मूलाधार यह है कि प्रत्येक व्यक्ति इच्छा की पूर्णता के लिए साधनों को हासिल करने तथा बनाये रखने की शक्ति के सिलसिले में समाज द्वारा सुरक्षित हो जो सम्भवतः सामाजिक भलाई की भी इच्छा है। यह सम्पत्ति के अधिकार के विरुद्ध कोई तर्क नहीं है कि यह अधिकार गलत ढंग से प्रयुक्त होता है क्योंकि ऐसे ही दूसरे अधिकार तथा स्वतन्त्रताएँ गलत ढंग से प्रयुक्त होती हैं।

सम्पत्ति के पक्ष में ग्रीन के विचारों की कुछ विशेषताएं हैं-

पहला ग्रीन इस बात पर बल देता है कि सम्पत्ति सामाजिक भलाई के लिए होनी चाहिए। इसे ग्रीन ने और भी स्पष्ट किया है जब यह कहता है कि , “सम्पत्ति का मूलाधार, जैसा कि हमने देखा, यह है कि अपनी इच्छा की पूर्णता के लिए प्रत्येक व्यक्ति को साधनों को जुटाने की शक्ति के लिए सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। जो सम्भवतः ऐसी इच्छा जो सामाजिक भलाई करती है। चाहे किसी की इच्छा वास्तविक तथा सकारात्मक रूप से इस तरह से निर्देशित नहीं तो भी शक्ति के लिए इसके दावे को प्रभावित नहीं करती। यह शक्ति प्रत्येक व्यक्ति को मिलनी चाहिए चाहे वह उसका वास्तव में किसी भी ढंग से प्रयोग करता हो, क्योंकि कि वह इसे दूसरों के अधिकारों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रयोग नहीं करता, इस आधार पर कि इसका अनियन्त्रित प्रयोग व्यक्ति द्वारा स्वतन्त्र नैतिकता की प्राप्ति की शर्त है, जो उच्चतम भलाई है।”

ग्रीन की स्थिति की दूसरी जानने योग्य विशेषता यह है कि वह सम्पत्ति की असमानता को सुरक्षा देता है।

जैसा कि बेकर (Baker) कहते हैं, सामाजिक भलाई के लिए विभिन्न व्यक्तियों को एक सम्पूर्ण समाज में विभिन्न स्थितियों को भरना होता है। विभिन्न स्थितियों के लिए विभिन्न साधनों की आवश्यकता पड़ती है तथा सम्पत्ति में यह अन्तर सम्भवतः समाज की भलाई के लिए है। अगर व्यक्ति अपनी सम्भावित अच्छे जीवन की धारणा को महसूस करने में स्वतन्त्र है तो इस बात की सीमा निर्धारित करना असम्भव हो. जाता है कि वह कहाँ तक अपनी तथा अपने बच्चों की भलाई की इच्छा करना चाहेगा।

विभिन्न गुणों वाले तथा स्वतन्त्र व्यक्तियों के प्रयत्नों द्वारा प्रकृति विजय का नेतृत्व करते हुए सम्पत्ति तथा वे जिन साधनों से सामाजिक कार्यों को पूर्ण करते हैं, असमान होने ही चाहिए। अगर उस दृष्टि से देखें तो भी यह कम महत्त्वपूर्ण नहीं।

ग्रीन की स्थिति की सम्पत्ति के बारे में तीसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समाज में अपने सदस्यों को सम्पत्ति इकट्ठा करने की आज्ञा नहीं देनी चाहिए यदि यह दूसरों की स्वतन्त्र इच्छा को पूरा करने में रुकावट पैदा करती है। सभी के लिए स्वतन्त्रता की इच्छा की माँग है कि अगर बहुत से व्यक्तियों की समान इच्छा सामने यदि किसी की निरंकुश इच्छा असंगत महसूस होती है तो उस पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। ग्रीन इस तरह की सम्पत्ति की व्यवस्था की निन्दा करता है जिसमें बहुत से लोगों की इच्छा की कीमत पर केवल कुछ व्यक्तियों को अपनी इच्छा पूर्ण करने का अवसर मिलता है।

चौथे, उसने पूँजी के रूप में सम्पत्ति का समर्थन किया है जबकि भूमि के रूप में सम्पत्ति की निन्दा की है। उसके अनुसार जहाँ पूँजी से मजदूरी को वेतन मिलता था तथा साधारण व्यक्ति के प्रयोग के लिए इसका संचालन होता था, वहाँ भूमि सम्पत्ति का ऐसा कोई लाभ नहीं; तथापि उसका विश्वास था कि असमान सम्पत्ति स्वतन्त्र क्रिया का आवश्यक मूल्य है, परन्तु उसने बड़ी स्पष्टता से यह बात स्वीकार की है कि यदि निजी सम्पत्ति की संस्था समाज की सामूहिक भलाई के रास्ते में रुकावट बनती है तो इस तरह की संस्था की निन्दा की जानी चाहिए। बेकर (Baker) के अनुसार, “प्रत्येक इस तरह की सम्पत्ति, जो बहुत से लोगों की इच्छा पूर्ति की कीमत पर केवल एक व्यक्ति की इच्छा पूर्ति करती है, की तत्काल ही निन्दा की जाती है।”

दूसरी समस्या जिसका ग्रीन को सामना करना पड़ा यह थी एक सम्पूर्ण निजी सम्पत्ति या उसका एक हिस्सा समाज के शोषण की उत्तरदायी तथा श्रमदायी श्रेणी की जन्मदाता है। ग्रीन का विचार था कि, यह केवल कुछ हद तक ही उत्तरदायी है अर्थात् केवल भूमि सम्पत्ति ही इस वर्ग-अन्तर को जन्म देती है। बेकर के शब्दों में एक बार फिर, “भूमि-सम्पत्ति की व्यवस्था को ही ग्रीन श्रमजीवी वर्ग के निर्माण का कारण समझता है जिनके पास न तो सम्पत्ति है और न ही अर्जित कर पाते हैं।”

सिद्धान्त की आलोचना-

परन्तु ग्रीन की निजी सम्पत्ति की धारणा की बहुत से लोगों ने आलोचना की है। यह कहा गया है कि ग्रीन यह बात नहीं मानता कि निजी सम्पत्ति के स्वामी अपनी सम्पत्ति को सामाजिक अच्छाई के लिए प्रयोग करें। केवल यही बात पर बार-बार करता है कि इसे सामाजिक अच्छाई के लिए प्रयोग किया जाये। अपने संभाषण में वह स्वयं कहता है, “चाहे किसी की इच्छा वास्तविक रूप में या सकारात्मक रूप से इस तरह चाहती है या नहीं, इससे उसका शक्ति का दावा प्रभावित नहीं होता। यह शक्ति व्यक्ति को मिलनी ही चाहिए। इससे इस बात का कोई सरोकार नहीं कि वह किस प्रकार इसका प्रयोग करता | जब तक वह इसे इस प्रकार प्रयोग नहीं करता कि उससे उसी जैसे किसी दूसरे व्यक्ति की शक्ति को प्रभावित नहीं होती। इस आधार पर कि उसका अनियन्त्रित प्रयोग, व्यक्ति की उस स्वतन्त्र नैतिकता को जो उसकी उच्चतम भलाई है, को प्राप्त करने की शर्त है।”

उसके दर्शन के विरुद्ध जो दूसरी बात उठाई गयी है वह यह कि उसने सम्पत्ति की असमानता का समर्थन करने का प्रयत्न किया है। इस असमानता ने वर्ग-संघर्ष को जन्म दिया है तथा इसके साथ ही अन्य समस्याओं को भी। इसे सामाजिक बुराई का नाम दिया गया है।

इसके अतिरिक्त एक तरफ तो वह विश्वास करता है कि व्यक्ति के लिए निजी सम्पत्ति आवश्यक है तथा दूसरी तरफ उसने यह कहकर विरोधात्मक बात कर दी कि समाज को सम्पत्ति की एकाग्रता को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। वास्तव में वह स्वयं अपने परस्पर विरोधी विचारों में तालमेल नहीं बैठ सका।

इस तरह बेकर ने सम्पत्ति पर ग्रीन के विचारों को संक्षिप्त करते हुए कहा है, “उसने समुदाय को निश्चयपूर्वक नियन्त्रण करने को कहा, परन्तु यह भू-सम्पत्ति के अधिकार पर नियन्त्रण करने में असफल रहा तथा वह प्रार्थना करता है कि ऐसा नियन्त्रण कड़ा होना चाहिए क्योंकि नियन्त्रित की जानी वाली वस्तु बेजोड़ है।” दूसरी तरफ “सरकार की अनर्जित बढ़ोत्तरी” की उचितता का विरोधी करता है। इस आधार पर कि व्यक्तिगत उद्यम को बुरी तरह प्रभावित किये बिना उसके लिए ऐसा कर पाना मुश्किल होगा तथा जो भूमि में सुधार के साथ-साथ समाज की सेवा की ओर मुड़ जायेगा।”

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Pankaja Singh

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