अर्थशास्त्र

व्यापार की शर्त | व्यापार शर्तों के निर्धारक घटक | व्यापार की शर्तों से सम्बन्धित विभिन्न धारणाओं और इनके महत्व

व्यापार की शर्त | व्यापार शर्तों के निर्धारक घटक | व्यापार की शर्तों से सम्बन्धित विभिन्न धारणाओं और इनके महत्व | Trade Terms in Hindi | Determining Components of Trade Terms in Hindi | Different concepts related to terms of trade and their importance in Hindi

व्यापार की शर्त

व्यापार उस शर्त को बताती है जिस दर पर एक देश की वस्तुओं को दूसरे देश की वस्तुओं से विनिमय होता है। यह दर किसी देश के आयातों के रूप में उस देश के निर्यातों की क्रय शक्ति की माप है और उस देश की निर्यात की कीमतों के बीच संबंध के रूप में व्यक्त की जाती है। सर्वप्रथम जॉन स्टुअर्ट मिल ने ‘वस्तु-व्यापार की शर्तों का उल्लेख किया था। कालान्तर में व्यापार शर्तों की दूसरी अवधारणायें विकसित हुई हैं। वस्तुओं के विनिमय-अनुपांतों से सम्बन्धित व्यापार की शर्तें तीन प्रकार की होती हैं- (i) वस्तु व्यापार की शर्ते तथा निवल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्तें, (ii) सकल वस्तु विनिमय व्यापार की शर्तें तथा (iii) आय-व्यापार की शर्ते। उत्पादठकसंसाधनों के परस्पर आदान-प्रदान से सम्बन्धित व्यापार की शर्तें दो प्रकार की होती हैं- (i) एक साधनात्मक व्यापार की शर्ते तथा (ii) द्विसाधनात्मक व्यापार की शर्ते। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के लाभों की माप तुष्टिगुण-विश्लेषण के सन्दर्भ में करने वाली व्यापार-शर्ते दो प्रकार की होती हैं- (i) वास्तविक लागत व्यापार-शर्ते तथा (ii) तुष्टिगुण व्यापार शर्ते। इस तरह, व्यापार शर्तों की कई अवधारणाएँ (या प्रकार) हैं, जिनका विवेचन निम्न प्रकार है-

(1) निवल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते- निर्यात कीमतों तथा आयात कीमतों के  मध्य जो अनुपात होता है, उसे ‘निवल वस्तु विनिमय व्यापार की शर्तें’ कहा जाता है।

(2) सकल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्ते- ‘सकल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्तें’ किसी देश के कुल आयातों और कुल निर्यातों के मध्य विनिमय अनुपात होती है।

(3) आय व्यापार की शर्ते- व्यापार की शर्तों की यह अवधारणा डोरेन्स (Dorrance) ने प्रस्तुत की है। निवल वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्तों के अन्तर्गत व्यापारिक वस्तुओं के गुण या स्वरूप में उपस्थित परिवर्तनों पर कोई विचार नहीं किया जाता, जबकि विकासशील देशों के लिए व्यावहारिक वस्तुओं के गुण तथा व्यापार के स्वरूप में परिवर्तन का विशेष महत्त्व होता है। आय व्यापार की शर्तों द्वारा निवल (शुद्ध) व्यापार की शर्तों के इसी दोष का निवारण किया गया है। इसीलिए आय व्यापार की शर्तों को कुछ अर्थशास्त्रियों ने व्यापार से निर्यात-लाभ’ की संज्ञा दी है। यदि किसी देश के निर्यातों का मूल्य सूचकांक आयातों के मूल्य सूचकांक से विभाजित कर दिया जाये, तब ‘आय व्यापार की शर्ते ज्ञात की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, यदि निवल वस्तु- विनिमय व्यापार की शर्तों को निर्यातों के मात्रा-सूचकांक से गुणा कर दिया जाये, तब आय व्यापार की शर्तें व्यक्त की जा सकती हैं। सूत्र के रूप में आय व्यापार की शर्तों को निम्न प्रकार दर्शाया जाता है-

1 = N.Qx अथवा 1 = Px x Qx/Pm

इन सूत्रों में 1 आय-व्यापार की शर्तों का, N निवल व्यापार की शर्त का, Qx निर्यात मात्रा सूचकांक का, P मूल्य सूचकांक ( x = निर्यात, m= आयात) का तथा Q मात्रा का प्रतीक है। आय व्यापार शर्तों को किसी देश की ‘आयात क्षमता’ भी कहा जाता है। आय व्यापार की शर्तों में सुधार का अर्थ यह होता है कि देश अपने निर्यातों के बदले आयातों की अधिक मात्रा प्राप्त करने की स्थिति में हो गया है अर्थात् उसकी निर्यातों के सन्दर्भ में आयात क्षमता बढ़ गयी है। आयात-क्षमता बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे-निर्यातों के मूल्य का ऊँचा हो जाना, निर्यातों की मात्रा में वृद्धि, आयातों के मूल्यों में गिरावट आदि।

आय-व्यापार की शर्तों तथा वस्तु-व्यापार की शर्तों का समान दिशा में बदलना अनिवार्य नहीं है। ये एक-दूसरे से विपरीत दिशा में भी बदल सकती हैं। यदि आयात-मूल्य पूर्ववत् बने रहें तथा निर्यात मूल्य गिर जायें किन्तु निर्यातों की मात्रा उनके मूल्यों में आयी गिरावट से अधिक अनुपात में बढ़ जाये, तब आय व्यापार की शर्तों में सुधार हो जायेगा, यद्यपि वस्तु-व्यापार की शर्तों में गिरावट आ जाएगी।

(4) एक-साधनात्मक व्यापार की शर्ते- व्यापार शर्तों की यह धारणा जैकब वाइनर (Jacob Viner) ने प्रस्तुत की है। यह साधनों की उत्पादकता पर आधारित है। उत्पादकता में परिवर्तन का विकासशील देशों के लिए विशेष महत्त्व होता है। यदि किसी देश के निर्यात मूल्य उसके आयात-मूल्यों की तुलना में 10% गिर जाते हैं, किन्तु परिवहन उत्पादकता या निर्यात माल की उत्पादकता 10 प्रतिशत से अधिक बढ़ जाती है, तब इस परिवर्तन का अर्थ यह नहीं होगा कि अमुक देश की व्यापारिक स्थिति या आर्थिक स्थिति या आर्थिक कल्याण के स्तर में गिरावट आ गई है, यद्यपि उसकी वस्तु-व्यापार की शर्तें गिर गयी हैं। कारण यह है कि वस्तु-व्यापार की शर्तों में आयी गिरावट का निराकरण साधनों की उत्पादकता में वृद्धि द्वारा हो गया है। ऐसी स्थिति में वस्तु-व्यापार की शर्तों के स्थान पर एक-साधनात्मक व्यापार की शर्तों का प्रयोग उपयुक्त रहता है, क्योंकि इसके द्वारा मूल्यपरिवर्तनों के साथ-साथ उत्पादकता-परिवर्तन का प्रभाव भी माना जा सकता  है। ये व्यापार की शर्तें निर्यात सूचकांक तथा आयात-मूल्य सूचकांक का अनुपात व्यक्त करती हैं। इनमें निर्यात माल उत्पादन को साधनों की उत्पादकता में उपस्थित परिवर्तनों के अनुसार समायोजित कर दिया जाता है। सूत्र के रूप में एक-साधनात्मक व्यापार की शर्तों को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-

S = NZs अथवा S= Px/Pm = Zx

इन सूत्रों में S एक साधनात्मक व्यापार की शर्तों का, N शुद्ध वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्तों का, Zx निर्यात-उत्पादकता सूचकांक का, Px निर्यात मूल्य-सूचकांक का तथा Pm आयात-मूल्य सूचकांक का प्रतीक है। S में वृद्धि का अर्थ यह है कि निर्यात वस्तुओं के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की उत्पादकता बढ़ गई है। अतः प्रति इकाई अधिक विदेशी साधन प्राप्त हो रहे हैं।

(5) द्विसाधनात्मक व्यापार की शर्ते- एक साधनात्मक व्यापार की शर्तों में निर्यात- वस्तुओं के उत्पादन में प्रयुक्त साधनों की उत्पादकता पर तो विचार किया जाता है, किन्तु आयात- वस्तुओं के उत्पादन की सम्भावित लागत पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इसी दोष के निवारण हेतु जैकब वाइनर ने द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों की धारणा विकसित की है। यह निर्यात वस्तुओं में प्रयुक्त स्वदेशी साधनों का आयात वस्तुओं में प्रयुक्त विदेशी साधनों से विनिमय अनुपात की सूचक होती है। सूत्र के रूप में द्विसाधनात्मक व्यापार की शर्तों को निम्न प्रकार दर्शाया जा सकता है-

D= NZx/Zm अथवा D= Px/Pm x Zx/Zm

इन सूत्रों में D द्विसाधनात्मक व्यापार शर्तों का, N शुद्ध वस्तु-विनिमय व्यापार की शर्तों का, Zx निर्यात-उत्पादकता सूचकांक का, Zm आयात-उत्पादकता सूचकांक का, Px/Pm वस्तु-व्यापार की शर्तों का तथा Zx/Zm निर्यात एवं आयात उत्पादकता अनुपात का प्रतीक है।

(6) वास्तविक लागत व्यापार की शर्ते- व्यापार शर्तों की यह धारणा भी जैकब बाइनर ने प्रतिपादित किया है। वास्तविक लागत व्यापार की शर्तों के अन्तर्गत आयात-निर्यात वस्तुओं की तुलना उनकी उपयोगिता (Utility) के अनुसार की जाती है। आयात-निर्यात वस्तुओं की प्रति इकाई वास्तविक लागत निकाल ली जाती है। इसे ‘वास्तविक लागत व्यापार की शर्ते सूचकांक’ कहा जाता है। यह दर्शाया यह है कि कितनी उपयोगिता का निर्यात (लागत के रूप में त्याग) किया गया है तथा कितनी उपयोगिता आयात से वास्तविक लागत के रूप में प्राप्त हुई है। इन दोनों उपयोगिताओं का अन्तर आर्थिक कल्याण (या अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से वास्तविक लाभ) का सूचक होता है। सूत्र के रूप में वास्तविक लागत व्यापार की शर्तों को निम्न प्राकर दर्शाया जा सकता है

R = S. Rx अथवा Fx/Pm ZxRx

इन सूत्रों में R वास्तविक’ लागत व्यापार की शर्तों का, S एक-साधनात्मक व्यापार की शर्तों का, Rx निर्यात में निहित उपयोगिता के त्याग का, Px/Pm आयात-निर्यात मूल्य सूचकांक का तथा Zx निर्यात-उत्पादकता का प्रतीक है।

व्यापार शर्तों के निर्धारक घटक

व्यापार की शर्तों का निर्धारण पारस्परिक माँग की लोच पर निर्भर करता है जो स्वयं माँग की सापेक्षिकता पर होती है। माँ की सापेक्ष तीव्रता जनसंख्या, आयात व निर्यात की जाने वाली वस्तुओं के स्वभाववतुओं की अनेकता, क्रेताओं की रुचियों तथा क्रय शक्ति क्षमता और सरकारी सतियों पर निर्भर करती है।

(1) प्रशुल्क नीति- सामान्य तौर पर प्रशुल्क का एक बड़ा अनुपात विदेशी निर्यातकर्ता द्वारा वहन किया जाता है, इसलिए अशुल्कों के सहारे देश कम मूल्य पर वस्तुओं का आयात कर सकता है। प्रशुल्क से व्यापार शर्तें किसी देश के अनुकूल एवं प्रतिकूल दोनों ही प्रकार की हो सकती है।

(2) अवमूल्यन- सामान्य तौर पर अवमूल्यन का उद्देश्य प्रतिकूल सन्तुलन को ठीक करना होता है। अवमूल्यन के परिणामस्वरूप विदेशों में नियति सस्ते होने से निर्यात से होने वाला मूल्य बढ़ जाता है जबकि यह हो जाने से कम होने लगते हैं और इस प्रकार व्यापार शर्ते अनुकूल  हो जाती हैं।

निष्कर्ष-

वास्तविक लागत व्यापार की शलों तथा युग (उपयोगिता) व्यापार की शतों का व्यवहारिक महत्त्व नहीं के बराबर है, क्योंकि आयात- निर्यात में निहित उपयोगिता एवं अनुपयोगिता (त्याग) की भाषामा अत्यन्त कालेन है। विकासशील देशों के विचार से वस्तु व्यापार की शर्तों, सकल व्यापार की शर्तो तथा आय व्यापार की शर्तों का ही व्यावहारिक महत्व ठहरता है।

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Pankaja Singh

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