अर्थशास्त्र

व्यापार में देशों का कल्याण | व्यापार में विश्व कल्याण | व्यापार में व्यक्तिगत देशों का कल्याण

व्यापार में देशों का कल्याण | व्यापार में विश्व कल्याण | व्यापार में व्यक्तिगत देशों का कल्याण | Welfare of countries in trade in Hindi | World Welfare in Business in Hindi | welfare of individual countries in trade in Hindi

व्यापार में देशों का कल्याण

यदि विभिन्न देशों तथा व्यक्तियों को व्यापार से लाभ प्राप्त न हो तो उन्हें व्यापार करने की कोई प्रेरणा नहीं मिलेगी। वास्तव में, देश आभार प्रदर्शन हेतु व्यापार नहीं करते वरन् वे व्यापार इसलिए करते हैं कि उन्हें व्यापार से लाभ प्राप्त होता है। संक्षेप में, विभिन्न देशों को एक-दूसरे के साथ व्यापार करने पर जो लाभ प्राप्त होता है उनमें ही व्यापार के प्रमुख कारण निहित हैं।

जब किसी समय विशेष पर लाभ की माप करते हैं तो प्रथम दोनों विधियां समरूप होंगी। लाभ की किसी विशिष्ट मात्रा को या तो वास्तविक आय की प्रति इकाई लागत में कमी के रूप में अथवा लागत पर प्रति इकाई वास्तविक आय में वृद्धि के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इन दोनों विधियों के लिए बहुत सी सूचनाओं की आवश्यकता होती है जिनको एकत्रित करना सरल नहीं हैं। यदि किसी तरह आवश्यक सूचनायें प्राप्त भी हो जाये तो इनकी गणना करने में बहुत श्रम की आवश्यकता होती है। परिणामस्वरूप, किसी दिए समय पर व्यापार से निरपेक्ष लाभों के मापन के अतिरिक्त अर्थशास्त्री उस लाभ के परिवर्तन की दिशा से अनुमान लगाकर संतुष्ट होते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु वे व्यापार से प्राप्त लाभ को माप करने के लिए तृतीय विधि का चयन करते हैं।

अर्राष्ट्रीय व्यापार सिद्धांत में कल्याणकारी अर्थशास्त्र के श्रीगणेश ने कुल कल्याण में वृद्धि के रूप में व्यापार से लाभ की माप को संभव बना दिया है। सर्वप्रथम हम व्यक्तिगत देशों पर बिना ध्यान दिए हुए विश्व के कल्याण पर व्यापार के प्रभावों का पता चलायेंगे; तत्पश्चात् हम व्यक्तिगत देशों के कल्याण पर व्यापार के प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

व्यापार में विश्व कल्याण

(World Welfare)

स्वतंत्र अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार से विश्व के उत्पादक साधनों का अधिक कुशलतापूर्वक आबंटन होता है। साधनों के कुशलतम उपयोग से समग्र उत्पादन अधिकतम होता है जिससे सम्पूर्ण विश्व के कल्याण में वृद्धि होती है। इसके प्रदर्शन हेतु हम यह मान लेते है कि विश्व में केवल दो ही देश- A तथा-B हैं जो विश्व में केवल दो ही वस्तुओं-गेहूं तथा कपड़े-का उत्पादन कर रहे हैं। चित्र 2 में Ox (OY) अक्ष पर गेहूं तथा OY (OX) अक्ष पर कपड़े का मापन किया गया है।

देश A के उत्पादन संभावना वक्र को AA, रेखा द्वारा प्रदर्शित किया गया है। देश A.P बिन्दु पर उपभोग तथा उत्पादन करता है। देश A गेहूं की OW मात्रा तथा कपड़े की OC मात्रा का उत्पादन तथा उपभोग कर रहा है। देश A के समान ही देश B की उत्पादन सीमा BB, को खींचा गया है तथा प्रारम्भिक चित्र के ऊपर उल्टा कर दिया गया है। इस स्थिति में देश B का उपभोग तथा उत्पादन बिन्दु देश A के उत्पादन तथा उपभोग बिन्दु P से मिल जाता है। देश B कपड़े की C1O मात्रा तथा गेहूं की W1O मात्रा का उत्पादन तथा उपभोग कर रहा है। विश्व में गेहूं तथा कपड़े का कुल उत्पादन क्रमशः YO’ (CP + PC1) तथा OX (WP + PW1) है। दोनों देश एक साथ संयुक्त कल्याण स्तर को प्राप्त कर सकते हैं, जिसे विश्व के समुदाय तटस्थता वक्र CIC2 जो बिन्दु 0 बिन्दु को स्पर्श कर रहा है, द्वारा इंगित किया गया है।

P बिन्दु पर दोनों देशों के रूपान्तरण की सीमांत दर समान नहीं है। परिणामस्वरूप, विश्व के साधनों का आबंटन इष्टतम नहीं है। इष्टतम साधन आवंटन के लिए दोनों देशों के उत्पादन संभावना वक्र एक-दूसरे को स्पर्श करेंगे। साधनों के इष्टतम आबंटन की स्थिति को देश B के उत्पादन संभावना वक्र BB1 को इस प्रकार खिसकाकर प्राप्त किया जा सकता है कि वह देश A के उत्पादन संभावना वक्र AA1 को स्पर्श करे तथा दोनों देशों की समन्वित प्रणालियाँ एक-दूसरे के सदैव समानान्तर रहें। ऐसी ही एक स्थिति को चित्र 1 में प्रदर्शित किया गया है जहाँ दोनों उत्पादन संभावना वक्र एक-दूसरे को P2 बिन्दु पर स्पर्श करते हैं। इस स्थिति में गेहूं तथा कपड़े का कुल उत्पादन क्रमशः Y1O1 तथा O1X1 होगा। स्पष्टतः दोनों वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि हो जाती है। विश्व का नवीन समुदाय तटस्थता वक्र CIC1 है जो विश्व के प्रारम्भिक समुदाय तटस्थता वक्र CIC2 की अपेक्षा विश्व के अधिक कल्याण को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार, स्वतंत्र व्यापार से व्यापार की अनुपस्थिति की अपेक्षा विश्व का अधिक कल्याण होता है। परन्तु यदि दोनों उत्पादन संभावना वक्र पहले से ही एक-दूसरे को स्पर्श करते हैं तो व्यापार नहीं होगा क्योंकि दोनों देशों में घरेलू मूल्य-अनुपात समान होंगे।

व्यापार में व्यक्तिगत देशों का कल्याण

(Welfare of Individual Countries)

इस प्रदर्शन से कि अर्राष्ट्रीय व्यापार से समस्त विश्व के सामूहिक कल्याण में वृद्धि होती है। यह आवश्यक रूप से निश्चित नहीं हो पाता है कि किसी व्यक्तिगत देश के कुल कल्याण में भी वृद्धि होगी अथवा नहीं। यह संभव हो सकता कि एक देश को व्यापार के फलस्वरूप समस्त लाभ प्राप्त हो जाये तथा दूसरे देश में ऐसी स्थिति हो जैसे वहाँ व्यापार हुआ ही न हो अथवा कुछ स्थितियों में तो व्यापार से पूर्व की स्थिति से भी खराब स्थिति हो जाती है। परन्तु साधारणतया ऐसा नहीं होता है। कोई भी देश, चाहे वह बड़ा हो अथवा छोटा, कुछ लाभ व्यापार शर्तों के अधिक अनुकूल होने के कारण तथा कुछ लाभ अपने उत्पादक साधनों के विशिष्टीकरण के कारण प्राप्त करता है। इस संभाव्य कल्याण की माप आयात या निर्यात किसी भी वस्तु के रूप में की जा सकती है जैसा कि चित्र 10.6 द्वारा दिखलाया गया चित्र 10 में व्यापार से पूर्व घरेलू विनिमय अनुपात की रेखा Y4X5 है। व्यापार के बाद वस्तुओं की तुलनात्मक मूल्य रेखा Y5X4 है।

यदि हम आयात वस्तु को मानक (Numeraire) के रूप में स्वीकार करें तो ज्ञात होता है। कि उस वस्तु के रूप में आय में वृद्धि होती है। साथ ही निर्यात का तुलनात्मक मूल्य भी बढ़ता है। प्रथम (आय में वृद्धि) के कारण अर्थव्यवस्था में उत्पादकों की आय बढ़ती है द्वितीय (निर्यात मूल्य में वृद्धि) के कारण उपभोक्ता की आय में ह्रास होता है। यदि दोनों को जोड़ दें तो शुद्ध लाभ प्राप्त होता है। यदि आयात वस्तु को Y के रूप में मापा जाय तो उत्पादक की आय Y से बढ़कर Y5 हो जाती है किन्तु उपभोक्ता को अपने पहले वाले कल्याण के स्तर को स्थिर बानये रखने के लिए Y4 Y अतिरिक्त आय की आवश्यकता होती है, इस प्रकार शुद्ध लाभ केवल Y’Y5 (Y4Y5 – Y4YI) के बराबर है। यदि निर्यात वस्तु को मानक के रूप में स्वीकार करे तो ज्ञात होता है कि व्यापार के कारण उत्पादन मूल्य में हास होता है और उपभोक्ता की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है; किन्तु समुदाय को शुद्ध लाभ होता है।

X वस्तु को निर्यात वस्तु मानने पर उपभोक्ता पूर्वत् कल्याण स्तर बनाये रखने में X4X5 की बचत करता है परन्तु उत्पादक को X5X4 के बराबर हानि होती है और समुदाय को X’X4 =Y’Y5 के बराबर शुद्ध लाभ होता है। इस प्रकार आयात वस्तु को मानक मानने पर उत्पादक की अतिरिक्त आय उपभोक्ता की अतिरिक्त हानि से अधिक है और निर्यात वस्तु के मानक मानने पर ठीक इसके विपरीत होता है।

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Pankaja Singh

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