रिकार्डो का तुलनात्मक लागत सिद्धांत | रिकार्डो के तुलनात्मक लागत सिद्धांत की मान्यताएं | रिकार्डो के तुलनात्मक लागत सिद्धान्त का रेखीय प्रदर्शन |Ricardo’s Comparative Cost Theory in Hindi | Assumptions of Ricardo’s Comparative Cost Theory in Hindi | Linear Demonstration of Ricardo’s Comparative Cost Theory in Hindi
रिकार्डो का तुलनात्मक लागत सिद्धांत
डेविड रिकार्डो ने 1817 ई. में अपनी महान् साहित्यिक कृति The Principle of Political Economy and Taxation में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सिद्धान्त का अधिक वैज्ञानिक और सही रूप प्रस्तुत किया जिसे ‘तुलनात्मक लागत सिद्धान्त’ के नाम से जानते हैं।
इस सिद्धान्त के विकास का आधार रिकार्डो द्वारा प्रतिपादित ख्यातिप्राप्त ‘मूल्य का श्रम सिद्धान्त’ (Labour Theory of Value) ही था। मूल्य के श्रम सिद्धान्त के अनुसार किसी वस्तु का मूल्य निर्धारण उस वस्तु में निहित श्रम की मात्रा द्वारा होता है। रिकार्डो के शब्दों में ‘श्रम द्वारा उत्पादित वस्तु की तुलनात्मक मात्रा द्वारा श्रम का तुलनात्मक मूल्य भूतकाल में निर्धारित होता था और वर्तमान में होता है। यह सिद्धान्त घरेलू व्यापार के संदर्भ में चरितार्थ होता है किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के संदर्भ में विघटित हो जाता है। रिकार्डों के अनुसार ‘वह नियम जो एक देश में वस्तुओं के मूल्यों को नियमित करता है, वह दो देशों के बीच लागू नहीं होता। पुर्तगाल शराब की जो मात्रा इंगलैंड को कपड़े के बदले निर्यात करता है वह उनमें निहित श्रम की मात्रा के बराबर नहीं होता। ऐसा तब होता जब दोनों ही वस्तुएं एक देश में उत्पन्न होतीं।’
रिकार्डो के तुलनात्मक लागत सिद्धांत की मान्यताएं (Assumptions)
रिकार्डो द्वारा प्रतिपादित तुलनात्मक लाभ (लागत) का सिद्धान्त निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है:
- श्रम ही उत्पादन का एकमात्र साधन है। उत्पादन के अन्य साधनों को श्रम इकाई में परिवर्तित किया जा सकता है।
- समस्त श्रम एक समान होता है।
- उत्पादन के साधन देश के अन्दर पूर्ण रूप से गतिशील हैं किन्तु दो देशों के मध्य पूर्णरूपेण अगतिशील हैं।
- उत्पादन उत्पत्ति समता नियम के अन्तर्गत होता है अर्थात् दो वस्तुओं के मध्य लागत अनुपातों पर उत्पादन की मात्रा का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
- केवल दो देशों और दो वस्तुओं के मध्य व्यापार होने की कल्पना की गयी है।
रिकार्डो के तुलनात्मक लागत सिद्धान्त का रेखीय प्रदर्शन – श्रम स्थिर, उत्पादन परिवर्तनीय
(Diagrammatical Representation of Ricardo’s Theory- Labour Fixed, Production Variable)
रिकार्डो के सिद्धान्त की मूलभूत मान्यता है कि उत्पादन का एक मात्र साधन श्रम है और उत्पादन में समता नियम क्रियाशील होता है। इस प्रकार उत्पादन फलन रेखीय एवं समरूप है। इन मान्यताओं को स्वीकार करते हुये रिकार्डो के सिद्धान्त का रेखीय प्रदर्शन चित्र की सहायता से प्रस्तुत किया गया है।
चित्र के दो भाग A और B हैं। चित्र A वस्तु X तथा चित्र B वस्तु Y का उत्पादन चित्रित करता है। चित्र में Y अक्ष पर वस्तु की मात्रा तथा X अक्ष पर श्रम की उपलब्ध मात्रा को दिखाया गया है। यदि देश में उपलब्ध समस्त श्रम (L2) को X वस्तु के उत्पादन में व्यय किया जाय तो वह X का अधिकतम् उत्पादन X3 कर सकता है। इसी प्रकार यदि समस्त श्रम को Y वस्तु के उत्पादन में लगाया जाय तो अधिकतम Y3 वस्तु का उत्पादन हो सकता है। इसके विपरीत यदि श्रम की L3 मात्रा को X के उत्पादन में तथा शेष L2 L3 श्रम Y वस्तु के उत्पादन में लगाएं तो X की X2 तथा Y की Y2 मात्रा का उत्पादन होगा। X तथा Y वस्तु के उत्पादन के पथ को क्रमशः OR तथा OT द्वारा दर्शाया गया है। चित्र से स्पष्ट है कि दोनों रेखाओं का ढाल क्रमशः a तथा b है जो असमान है। भित्र भिन्न ढाल यह दर्शाता है कि दोनों वस्तुओं के उत्पादन फलन रेखीय तो हैं किन्तु समरूप (Identical) नहीं हैं।
चित्र द्वारा दोनों वस्तुओं के उत्पादन की संभावना रेखा दिखायी गयी है। यदि देश में उपलब्ध श्रम Y वस्तु के उत्पादन में लगाया जाय तो OA के बराबर Y वस्तु का उत्पादन होगा और X वस्तु का उत्पादन शून्य होगा। इसी प्रकार यदि समस्त श्रम को X वस्तु के उत्पादन में लगाया जाय तो X की OB मात्रा का तथा Y की शून्य मात्रा का उत्पादन होगा। AB रेखा दोनों वस्तुओं के विभिन्न संयोगों को दिखाती हैं। उदाहरणार्थ यदि Y की Y3 मात्रा उत्पन्न की जाती है तो में भारत और बंगला देश का उत्पादन बिन्दु B है। इस बिन्दु पर भारत केवल कपास के उत्पादन में तथा बंगलादेश केवल जूट के उत्पादन में विशिष्टीकरण प्राप्त करता है। दोनों देशों के उत्पादन संभावना वक्र AB और CB के बीच तिकोना खुला हुआ भाग BAC है जो प्रभावशाली व्यापारिक क्षेत्र है। व्यापार शर्त इसी क्षेत्र में कहीं स्थित होगी। वास्तविक विनिमय अनुपात की स्थिति प्रतिपूरक मांग की लोच पर निर्भर करती है।
यदि उत्पादन का बिन्दु B है तो भारत केवल कपास के उत्पादन में तथा बंगलादेश केवल जूट के उत्पादन में पूर्ण विशिष्टीकरण प्राप्त करता है। यदि भारत के सम्मुख कोई विकल्प नहीं है तो वह बंगलादेश को प्रतिकूल शर्त पर कपास निर्यात करने को सहमत होगा अर्थात् थोड़े से जूट के बदले पर्याप्त मात्रा में कपास देगा। भारत का प्रतिपूरक मांग वक्र BRE द्वारा प्रदर्शित किया गया है। इसी प्रकार बंगलादेश का प्रतिपूरक मांग वक्र BTF द्वारा दिखलाया गया है। यदि बंगलादेश वास्तव में भारत में अधिक जूट का उपभोग करने को प्रेरित करना चाहता है तो निश्चित रूप से भारत को कपास का अच्छा मूल्य मिलना चाहिए। भारत के लिए सबसे प्रतिकूल व्यापार की शर्त घरेलू विनिमय अनुपात की रेखा होगी। मान लीजिए कि भारत व्यापार न होने की स्थिति में SR जूट तथा OS कपास का उपभोग करता है। व्यापार न होने की स्थिति में कपास और जूट के अनेक संयोगों में से एक संयोग R बिन्दु पर है जो भारत की उत्पादन सम्भावना रेखा AB पर स्थित है। इस प्रकार BRE प्रतिपूरक मांग बक्र का BR भाग पूर्णतः काल्पनिक है। जैसे-जैसे हम RE रेखा के साथ घूमते हैं व्यापार शर्त भारत के अधिक पक्ष में होती जाती है। इसी प्रकार बंगलादेश का प्रतिपूरक मांग वक्र भी ज्ञात किया जा सकता है जो BTF द्वारा प्रदर्शित किया गया है। दोनों देशों के प्रतिपूरक मांग वक्र एक दूसरे को K बिन्दु पर काटते हैं जो यह प्रकट करता है कि एक देश का निर्यात बिल उसके आयात बिल के बराबर है। यदि एक देश की वस्तु के लिए दूसरे देश की मांग में तनिक सा परिवर्तनीय होता है तो व्यापार शर्त परिवर्तित हो जायेगी। जिस देश का प्रति पूरक मांग बक्र जितना ही बेलोचदार होगा व्यापार शर्त उतनी ही उसके पक्ष में होगी। इसके विपरीत प्रति पूरक मांग बन जितना ही लोचदार होगा व्यापार शर्त उतना ही विपक्ष में होगीं।
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