शिक्षाशास्त्र

शैक्षिक तकनीकी के प्रकार | कठोर उपागम | कोमल उपागम | प्रणाली विश्लेषण

शैक्षिक तकनीकी के प्रकार | कठोर उपागम | कोमल उपागम | प्रणाली विश्लेषण | Types of Educational Technology in Hindi | Hard approach in Hindi | Soft approach in Hindi | System analysis in Hindi

शैक्षिक तकनीकी के प्रकार

(Types of Educational Technology)

आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में “तकनीकी” का प्रयोग बड़ी तेजी से किया जा रहा है। चाहे वह सुरक्षा हो, वाणिज्य हो, कृषि हो, या विज्ञान अथवा अन्य क्षेत्र हो। इसी क्रम में इसका विकास शिक्षा के क्षेत्र में भी हो रहा है। यही कारण है इसके प्रकार भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। अध्ययन की सुगमण एवं सुस्पष्टता की दृष्टि से “शैक्षिक तकनीकी” के प्रकारों को मोटे तौर पर दो भागों में बाँट सकते हैं-

(अ) उपागम के अनुसार (According to Approach)

(i) हार्ड वेयर उपागम (Hardware Approach)

(ii) साफ्ट वेयर उपागम (Soft ware Approach)

(iii) प्रणाली विश्लेषण उपागम (System Analysis Approach)

(ब) अवधारणाओं के अनुसार (According to Assumptions)

(i) शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology)

(ii) अनुदेशनात्मक तकनीक (Instructional Technology)

(iii) व्यावहारिक तकनीकी (Behavioral Technological)

(iv) अनुदेशनात्मक रूपरेखा (Instructions of Designs)

उपागम के अनुसार (According to Approach) इसके अनुसार शैक्षिक तकनीकी के तीन प्रकार बताये गये हैं-

(1) शैक्षिक तकनीकी- प्रथम या हार्डवेयर अप्रोच (कठोर उपागम)

(Educational Technology-I or Hardware Approach)

(2) शैक्षिक तकनीकी-द्वितीय या सोफ्टवेयर अप्रोच (कोमल उपागम)

(Educational Technology-II or Software Approach)

(3) शैक्षिक तकनीकी-तृतीय या सिस्टम एनालिसिस (प्रणाली विश्लेषण)

(Educational Technology-III or System Analysis)

  1. शैक्षिक तकनीकी-प्रथम या हार्डवेयर अप्रोच (कठोर उपागम)

(Educational Technology-I or Hardware Approach)

शैक्षिक तकनीकी-1 या हार्डवेयर अप्रोच के प्रादुर्भाव का मुख्य आधार भौतिक विज्ञान अथवा इसकी सहगामी अभियन्त्रण विज्ञान का प्रयोग है। इस अप्रोच या उपागम के अनुसार यह माना जाता है कि शिक्षण को अधिक प्रभावशाली बनाना है तो हमें उसमें अधिक-से-अधिक दृश्य-श्रव्य सामग्री या तकनीकी मशीनों का प्रयोग करना चाहिए। बालक के सीखने में जितनी अधिक ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग होगा, शिक्षण उतना ही अधिक स्थायी एवं प्रभावशाली होगा अर्थात् ज्ञान उतना ही अधिक स्थिर होगा। इस उपागम के अन्तर्गत दृश्य-श्रव्य साममी के उपयोग के कारण हो इसे ‘दृश्य-श्रव्य उपागम’ के नाम से जाना जाता है। शिक्षण प्रणाली में भौतिक विज्ञान एवं अभियान्त्रिकी के इस उपयोग से शिक्षण की सम्पूर्ण प्रक्रिया का यन्त्रीकरण कर दिया है। इस यन्त्रीकरण के द्वारा आज कम से कम समय में अधिक-से-अधिक छात्रों को कम धन के आधार पर शिक्षण या प्रशिक्षित किया जाना सम्भव हो सका है। शैक्षिक तकनीकी-I के अन्तर्गत रेडियो, ट्रांजिस्टर, चलचित्र, दूरदर्शन, टेपरिकॉर्डर, टेप-स्लाइड, प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर, बन्द परिपथ दूरदर्शन, इलेक्ट्रोनिक वीडियो टेप, भाषा प्रयोगशाला. शिक्षण मशीनें आदि सभी का उपयोग शिक्षण रूप में पाठ्य-वस्तु को प्रभावशाली बनाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार शिक्षण की प्रक्रिया के इस यन्त्रीकरण को शैक्षिक तकनीकी प्रथम अथवा हार्डवेयर उपागम कहते हैं।क्षसिल्वरमैन ने इस तकनीकी को ‘सापेक्षिक शैक्षिक तकनीकी’ (Relative Educational Technology) को संज्ञा दी है।

  1. शैक्षिक तकनीकी-द्वितीय अथवा सोफ्टवेयर अप्रोच (कोमल उपागम)

(Educational Technology II or Software Approach)

इस शैक्षिक तकनीकी-II के प्रादुर्भाव का मुख्य आधार शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Teaching Learning Process) में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग है। शिक्षण में मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के इस प्रयोग से छात्र के व्यवहार में वांछित परिवर्तन का प्रयास किया जाता है। इस उपागम को अनुदेशन तकनीको (Instructional Technology), शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology) तथा व्यवहार तकनीकी (Behaviour Technology) की संज्ञा भी दी जाती है। सिल्वरमैन ने इसे रचनात्मक शैक्षिक तकनीकी (Constructive Educational Technology) की संज्ञा दी है। शैक्षिक तकनीकी प्रथम में एक ओर जहाँ मशीनों का उपयोग, पाठ्य-वस्तु के प्रस्तुतीकरण को अधिक प्रभावशाली बनाने पर बल दिया जाता है, वहीं शैक्षिक तकनीकी-द्वितीय में दूसरी ओर उद्देश्यों के व्यावहारिक परिवर्तनों, कार्य-विश्लेषण, लेखक, उद्देश्यों का संक्षिप्तीकरण, वांछित अधिगम कौशलों का चुनाव, पुनर्बलन एवं पृष्ठपोषण प्रणालियों एवं मूल्यांकन पर अधिक बल दिया है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शैक्षिक तकनीकी-I का तात्पर्य शिक्षण मशीनों का प्रयोग करना है, जबकि शैक्षिक तकनीकी-II का तात्पर्य शिक्षण एवं अधिगम के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का उपयोग करना है। इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी-प्रथम एवं शैक्षिक तकनीकी-द्वितीय एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।

  1. शैक्षिक तकनीकी-तृतीय या सिस्टम एनालिसिस (प्रणाली विश्लेषण)

(Educational Technology-III or System Analysis)

द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् एक नवीन विचारधारा ‘प्रबन्ध तकनीकी’ का प्रादुर्भाव हुआ जिसने प्रशासन, प्रबन्ध एवं अन्य अनेक समस्याओं के विषय में निर्णय के लिए वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत किया। शिक्षा के क्षेत्र में भी शिक्षा प्रशासन एवं प्रबन्ध सम्बन्धी अनेक समस्याओं का वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन किया गया तथा उसका समाधान किया गया। यही वैज्ञानिक आधार शैक्षिक तकनीको-तृतीय या प्रणाली विश्लेषण कहलाता है। शिक्षा प्रशासन एवं प्रबन्ध को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने से इसे अधिक प्रभावशाली एवं सुदृढ़ बनाया जाना सम्भव है। संक्षेप में शैक्षिक तकनीकी तृतीय के प्रयोग से आज शैक्षिक प्रणाली प्रशासन एवं प्रबन्ध को वैज्ञानिक आधार प्रदान कर अधिक प्रभावशाली एवं कम खर्चीला बनाया जा सकता है। इस प्रणाली की सहायता से आज शिक्षा प्रशासन एवं प्रबन्ध की जटिल-से-जटिल समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक विधि से किया जा सकता है।

अन्य प्रकार

(Other Types of Educational Technology)

(1) मनो-तकनीकी (Psycho-Technology)- चूँकि शैक्षिक तकनीकी का प्रमुख आधार ‘सीखने के नियम एवं सिद्धान्त” है। अतः इसमें यह माना गया है कि कक्षा के प्रत्येक बालक की क्षमता, रुचि, अभिरुचि एवं दक्षता में अन्तर होता है। इसलिए उसे उसी आधार पर शिक्षण दिया जाना चाहिए साथ ही साथ उसी प्रकार की प्रेरणा, पुनगर्ठन, प्रतिपुष्टि एवं शिक्षण मुक्तियाँ  भी बनायी जानी चाहिए। यह शिक्षण तकनीकी ‘स्किनल के क्रिया-प्रसूत’ (operant conditioning of Skinner) पर आधारित है। इसलिए वर्तमान समय में अनेकानेक शिक्षण नवाचार’ का निर्माण किया जा रहा है-टीम-टीचिंग, प्रोग्राम लर्निंग, माइकोटीचिंग, भाषा प्रयोगशाला एवं प्रोग्राम इन्सट्रक्शन आदि इसी के प्रतिफल हैं।

(2) प्रतिवन्य तकनीकी (Management Technology)- शिक्षण से सम्बन्धित ये सभी तत्व इसमें आते हैं, जो शिक्षण-अधिगम के प्रबन्धन में सहायक होते हैं। शिक्षण-अधिगम की योजना बनाना, नियोजन करना, बजट बनाना, निर्णय लेना आदि इसके अन्तर्गत आते हैं। इसी  के आधार पर शिक्षण-मॉडल का भी निर्माण किया जाता है साथ ही साथ इन्फोर्मेशन सिस्टम एवं आर्गनाइजेशनल प्योरी फॉर मैन-मशीन सिस्टम’ बनाया जाता है। अतः यह एक प्रकार से नवीनतम  शिक्षण तकनीकी का आधार तैयार करती है।

(3) शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology)- शिक्षण एक सामाजिक प्रकिया है इसीलिए इसे कला एवं विज्ञान दोनों रूपों में देखा जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य बालक का पूर्ण विकास करना है। किसी सिद्धान्त के आधार पर उद्देश्य प्राप्त करना शैक्षिक तकनीक कहलाता है। इसके विकास में गेने, गेज एवं बूनर आदि ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

इसके अन्तर्गत पाठ्यवस्तु नियोजन, शिक्षण नियोजन शिक्षण व्यवस्था एवं शिक्षण नियन्त्रण आता है। इसको प्रमुख विशेषता बालक को ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों को प्राप्ति कराना है। दार्शनिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रयोग सेवारत अध्यापकों के लिये अत्यन्त आवश्यक होता है। इसका सम्बन्ध आदान (Input) प्रक्रिया (Process) एवं प्रदान (Output) तीनों पक्षों से होता है।

(4) अनुदेशात्मक तकनीकी (Instructional Technology)-या अनुदेशन में महत्व- इस तकनीकी के प्रणेता के रूप में ग्लेशर, स्किनर एवं गिलबर्ट आदि को जाना जाता है। चूँकि शिक्षण मानव समाज से जुड़ा है इसलिए अनुदेशन भी उसमें स्वतः हो निहित रहता है। अनुदेशात्मक से तात्पर्य उन क्रियाओं से होता है जो सीखने में असुविधा अथवा मदद करती है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि छात्र एवं अध्यापक आपस में अन्तःक्रिया करें। इसमें वैयक्तिक भिन्नता पर आधारित छोटे-छोटे इकाई पाठों में बाँटकर अध्ययन कराने का प्रयास किया जाता है। इसका प्रमुख आधार अधिगम परिस्थितियाँ उत्पन्न करता एवं समुचित पुनर्गठन देना है। इसमें सिद्धान्तों एवं अधिनियमों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

(5) व्यावहारिक तकनीका (Behavioral Technology)- शिक्षा एवं मनोविज्ञान दोनों ने अपना सारा प्रयोग जीवों पर किया है। वो एफ स्किनर ने शिक्षण अधिगम का प्रमुख उद्देश्य चालक में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन हो माना है। इस प्रकार के शिक्षण व्यवहार के सुधार एवं परिवर्तन में प्रयुक्त ज्ञान को व्यावहारिक तकनीको कहा जाता है।

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Pankaja Singh

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