शिक्षाशास्त्र

शैक्षिक तकनीकी | तकनीकी क्या है | शैक्षिक तकनीकी का अर्थ | शिक्षा तकनीकी की अवधारणायें | शैक्षिक तकनीकी की परिभाषाएँ

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शैक्षिक तकनीकी

शैक्षिक तकनीकी दो शब्दों से मिलकर बना है- शिक्षा+तकनीकी शिक्षा क्या है ? महात्मा गाँधी के अनुसार, शिक्षा से तात्पर्य बालक और मनुष्य में अन्तर्निहित सर्वांगीण शक्तियों को बाहर निकाल कर सर्वोत्तम को विकसित करना है।’ दूसरे शब्दों में शिक्षा एक विकास सम्बन्धी प्रक्रिया है। शिक्षा बालक को नये-नये अनुभव प्रदान कर इस योग्य बनाती है कि वह अपने वातावरण से समायोजन कर अपनी निहित शक्तियों का विकास करते हुए अपनी योग्यतानुसार परिवार, समाज और राष्ट्र के विकास में योगदान दे सके। सामान्य अर्थों में शिक्षा का अर्थ है- पढ़ना-लिखना, एक क्रम से एक सही ढंग से ज्ञान देना।

तकनीकी क्या है ?

तकनीकों से तात्पर्य है दैनिक जीवन में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग करने की विधि। दूसरे शब्दों में, जब वैज्ञानिक या क्रमबद्ध ज्ञान को व्यावहारिक कार्यों में प्रयोग किया जाता है तो उसे तकनीकी कहते हैं। सामान्यतया ‘तकनीको’ शब्द को अधिकतर मशीन से जोड़ा जाता है, किन्तु यह आवश्यक नहीं कि तकनीकों में मशीन का हमेशा प्रयोग हो। इसका तो साधारण सा तात्पर्य किसी भी ऐसे प्रयोगात्मक कार्य से है जिसमें वैज्ञानिक या क्रमबद्ध ज्ञान का प्रयोग किया जाय। साधारण शब्दों में तकनीकी का अर्थ है-शिल्पकला कि क्रिया. शिल्पज्ञान प्रणाली, ढंग अथवा विधि।

शिक्षा एवं तकनीकी परस्पर घनिष्ठ रूप से एक-दूसरे से सम्बन्धित है। शिक्षा बालक की मूल प्रवृत्तियों में शोधन और परिमार्जन कर उनके व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाती है। जब तकनीकी मूल प्रवृत्तियों में शोधन और परिमार्जन कर उनके व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए दिशा निर्देश प्रक्रिया, प्रणाली, ढंग या विधि प्रदान करता है। सामान्य शब्दों में शैक्षिक तकनीकी को इस प्रकार समझा जा सकता है-शिल्पकला की विधि को शिक्षा के क्षेत्र में लागू शिक्षा का क्रमबद्ध करना, शिक्षा के प्रत्येक कदम को अलग-अलग करके उसे सही विधि में  रखना। इसमें मशीनों का प्रयोग हो भी सकता है और नहीं भो। वास्तव में तकनीको हर प्रक्रिया को छोटे-छोटे भागों में विभाजित करके उन भागों को क्रमबद्ध करती है। अतः शैक्षिक तकनीकों का अर्थ है-शिक्षा के अलग-अलग भागों को सही रूप में सुसंगठित करना। इन अलग-अलग भागों में एक भाग ऐसा भी हो सकता है जिसमें मशीनों का प्रयोग हो।

शैक्षिक तकनीकी का अर्थ-

शैक्षिक तकनीकी में मुख्यतः दो बिन्दु निहित है:

(1) शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति कराना तथा (2) शिक्षण की क्रियाओं का यांत्रिकीकरण करना।

‘शैक्षिक तकनीकी’ शिक्षण उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप देते हुए विभिन्न विधियों एवं प्रविधियों को जन्म देती है। यदि उद्देश्यों की प्राप्ति एक प्रकार की विधियों एवं प्रविधियों के प्रयोग से नहीं हो पाती, तब शिक्षण की विधियों एवं प्रविधियों में परिवर्तन कर पुनः उद्देश्य प्राप्ति हेतु प्रयत्न किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा तकनोको’ शिक्षा-सिद्धान्त, शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षा-दर्शन, शिक्षा-मापन एवं मूल्यांकन आदि की भाँति शिक्षा विषय का एक नया क्षेत्र है। यह मॉण्टेसरी, किडरगार्टन, प्रायोजना आदि शिक्षण पद्धतियों की भाँति कोई शिक्षण पद्धति नहीं है, वरन् यह एक ऐसा विज्ञान है जिसके आधार पर शिक्षा के विशिष्ट उद्देश्यों की अधिकतम प्राप्ति के लिए विभिन्न शिक्षण की व्यूह रचनाओं का विकास किया जा सकता है। शैक्षिक तकनीकी  उचित रूप से निर्मित सीखने की दशाओं को प्रदान कराती है। शैक्षिक तकनीकी में तीन प्रक्रियायें निहित होती हैं वे हैं।

(1) शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का कार्यात्मक विश्लेषण करना, शिक्षक उन तारे तत्वों को देखता है जिन्हें अदा (Input) द्वारा लगाया जाता है तथा जो प्रदा (Output) द्वारा प्रकाश में आते हैं।

(2) अदा (Input) तथा प्रदा (output) के बीच शिक्षण अधिगम प्राक्रिया में प्रयोग किये जाने वाले तत्वों की अलग अथवा संयुक्त खोज और विश्लेषण करना।

(3) प्राप्त किये गये सीखने के अनुभवों को अनुसन्धान के परिणामों के रूप में प्रस्तुत करना।

इस प्रकार शैक्षिक तकनीकी परम्परागत शिक्षण कला के विचार को नया रूप प्रस्तुत करते हुए ऐसी व्यावहारिक तकनीकी है, जो शैक्षिक प्रभावों को उन सभी प्रतिकारकों द्वारा नियन्त्रित करती है जिनका प्रयोग शिक्षण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

शैक्षिक तकनीकी ने शिक्षण की क्रियाओं का यान्त्रिकीकरण करना प्रारम्भ कर दिया है, जैसे-जैसे वैज्ञानिक युग में मशीनों का आविष्कार हुआ, वैसे-वैसे उनका प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में भी किया जाने लगा। इन मशीनों का शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग मुख्यतः तीन रूपों में दृष्टिगत होता है :

(अ) ज्ञान को संचित करना- वैज्ञानिक युग में छपाई मशीनों का आविष्कार हुआ, इससे पूर्व प्रत्येक विषय की सामग्री को संचित कर सुरक्षित रूप से रखना कठिन था। अधिकांश ज्ञान कंठस्थ ही करवाया जाता था, परन्तु मशीनों के प्रयोग से ज्ञान को पुस्तक का रूप प्रदान किया गया तथा पुस्तकालयों में सुरक्षित रखा जाने लगा। टेपरिकॉर्डर, वीडियो फिल्म्स के माध्यम से हावभाव सहित शिक्षक की भाषा-शैली व विषयवस्तु को संचित किया जाने लगा है, जिसका उपयोग आवश्यकतानुसार किया जा सकता है।

(ब) ज्ञान का प्रसार करना- शिक्षण मशीनों, रेडियो, दूरदर्शन, पत्राचार-पाठ्यक्रमों के माध्यम से आज खुले विश्वविद्यालयों व विद्यालयों के सहयोग से जन-जन तक दूर-दराज के क्षेत्रों में भी  शिक्षा का प्रसार किया जा रहा है। शिक्षा तकनाका’ ने भाषा प्रयोगशाला, कम्यूटर पर आधारित अनुदेशन तथा शिक्षण मशीनों के प्रयोग से सभी छात्रों को अपने ढंग से सीखने का अवसर प्रदान किया है।

(स) ज्ञान का विकास करना- आआधुनिक युग में वैज्ञानिक शोध कार्यों को अधिक महत् दिया जा रहा है। शोध कार्यों में आंकड़ों का संकलन तथा उनका विश्लेषण करना मुख्य कार्य है। इसके लिए कम्प्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक कैलकुलेटर तथा बिजली की मशीनों का प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार फोटोस्टेट की मशीनों के आविष्कार से शोधकर्त्ता को विभिन्न पुस्तकों से विषय एकत्रित करने में सुविधा होती है।

कुछ शिक्षाशास्त्री शिक्षा उद्देश्यों को व्यावहारिक रूप में लिखना और उनकी प्राप्ति हेतु दृश्य-श्रव्य उपकरणों का प्रयोग करने को ही ‘शैक्षिक तकनीकी’ कहते हैं तथा अन्य शिक्षण मशीनों तथा अभिक्रमित अनुदेशन को ही शैक्षिक तकनीकी स्वीकार करते हैं।

शिक्षा तकनीकी की अवधारणायें

(Assumptions)

शिक्षा तकनीकी की परिभाषा प्रस्तुत करने से पहले उसकी बुनियादी अवधारणाओं (Basic assumptions) का उल्लेख करना आवश्यक होता है। मुख्य अवधारणायें निम्नलिखित हैं-

(1) मानव व्यवहार को समझने के लिये सम्प्रेषण (Communication) का विषय-क्षेत्र का जानना अत्यन्त आवश्यक है। वास्तव में मनुष्य सम्प्रेषण विधि की जैविकीय प्रणाली है।

(2) मनुष्य जब अपने सम्प्रेषण के विस्तार के लिये अपनो जैविकीय प्रणाली से भिन्न बाहरी अन्य तत्वों या भौतिक वस्तुओं जैसे- दूरदर्शन, रेडियो, फिल्म, टेपरिकार्डर, कम्प्यूटर लेसर किरणें स्पूतनिक, या अन्य युक्तियाँ आदि का उपयोग करता है, तब इन युक्तियों को ‘सम्प्रेषण-माध्यम’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। इस प्रकार के माध्यम को प्रसारण-माध्यम (Extension Media) एवं व्यक्ति के विस्तार के रूप में जाना जाता है।

(3) यह अधिक नये इलेक्ट्रॉनिक माध्यम बुनियादी शिक्षा समस्याओं के समाधान के लिये उपयोगी सिद्ध हुए हैं और इन्हें समस्याओं के लिये एक उपचार (Panacea) समझा जाता है परन्तु इनके प्रयोग के फलस्वरूप जहाँ समस्याओं का समाधान होता है वहाँ अनेकों समस्याओं‌ का जन्म भी हो रहा है। अतएव यह तात्कालिक आवश्यकता है कि इन नये शिक्षा सम्प्रेषण के माध्यमों तथा विधियों का नियोजन, कार्यान्वयन, विश्लेषण और मूल्यांकन सही ढंग से किया जाना है।

(4) प्रभावशाली शिक्षकों को प्रशिक्षण संस्थाओं द्वारा तैयार किया जा है। शिक्षण का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सकता है। शिक्षण के स्वरूपों का अधिगम के स्वरूपों से समन्वय स्थापित किया जा सकता है, और शिक्षण-सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जा सकता है।

शैक्षिक तकनीकी: परिभाषाएँ

(Educational Technology: Definitions)

विभिन्न मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने शैक्षिक तकनीकी की विभिन्न परिभाषाएँ दी हैं। प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित है :

(1) ई० एम० बूटर (E.M. Buter) के शब्दों में– “ज्ञान के व्यवहार में विनियोग की प्रक्रिया ही शैक्षिक तकनीकी है।”

(2) जी० ओ० एम० लीथ (G.O.M.Lelth) के अनुसार- ‘शैक्षिक तकनीको अधिगम एवं अधिगम की दिशाओं में वैज्ञानिक ज्ञान का प्रयोग है जिसके द्वारा शिक्षण एवं प्रक्रिया को भावपूर्णता एवं दक्षता में विकास एवं सुधार लाया जाता है।”

(3) मैथिम के अनुसार- शैक्षिक तकनीकी, विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्था के रूप में  व्यवस्थित शिक्षण विधियों, विद्यालय में ज्ञान के व्यावहारिक रूप के निर्माण, नियमन एवं परीक्षण की ओर संकेत करता है।”

(4) डब्ल्यू० केनिथ रिचमण्ड के अनुसार- शैक्षिक तकनीकी सीखने की उन परिस्थितियों की समुचित व्यवस्था के प्रस्तुत करने से सम्बन्धित है जो शैक्षिक एवं परीक्षण के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर अनुदेशन को सौखने का उत्तम साधन बनाती है।”

(5) तकाशी सेकामाटो ने शैक्षिक तकनीकी की विस्तृत व्याख्या इन शब्दों में दी है। इसके अनुसार- शैक्षिक तकनीकी वह व्यावहारिक या प्रयोगात्मक अध्ययन है जिसका उद्देश्य कुछ आवश्यक

तत्वों; बैसे- शैक्षिक उद्देश्य, शैक्षिक परिवेश, छात्रों, निर्देशकों का व्यवहार एवं उनकआवश्य होने वाली अन्तः प्रक्रिया को नियन्त्रित करके शैक्षिक प्रभाव को अधिक शक्तिशाली बनाना है।”

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