शैक्षिक तकनीकी का विकास | Development Of Educational Technology in Hindi
शैक्षिक तकनीकी का विकास
(DEVELOPMENT OF EDUCATIONAL TECHNOLOGY)
शैक्षिक तकनीकी के विकास की कथा ज्यादा पुरानी नहीं है। 19वीं शताब्दी में खेल-खेल में शिक्षा की युक्ति लोकप्रिय होने लगी थी सन् 1926 में सर्वप्रथम अमेस्विष्ट की ओहियों (Ohio) स्टेट यूनीवर्सिटी में सिडनी प्रौसी (Sidney Pressey) ने शिक्षण के क्षेत्र में सर्वेप्रक्षण शिक्षण मशीन (Teaching Machine) का प्रयोग किया।
तत्पश्चत् लम्सडेन तथा ग्लेजर (Teaching Machine) आदि ने सन् 1930 से 1940 के मध्य तथा कुछ विशिष्ट प्रकृति की प्रकृति की पुस्तकों (Scrambled Books) का उपयोग करके शिक्षण के यन्त्रीकरण की ओर व्यवसिति प्रयात किये।
शिक्षा तकनीकी के क्षेत्र में सर्वप्रथम सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य सन् 1950 में श्री. बी. एफ. स्किनर (B.F. Skinner) ने किया। उन्होंने विभिन्न जीवों पर परीक्षण कर उनका उपयोग शैक्षिक सिद्धान्तों तथा अधिगम को प्रभावशाली बनाने के लिये किया। स्किनर महोदय का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान ‘अभिक्रमित-अध्ययन’ (Programmed Learning) Instruction) की पद्धति है, जिसमें छात्रों को उद्देश्युक्त शिक्षा, उनकी अधिगम गति के आधार पर प्राप्त होती है। उनसे प्रेरणा मिलने पर इस पद्धति के आधार पर अनेक शिक्षण प्रकरणों पर ‘अभिक्रमित-अधिगम’ तैयार किये गये। उनकी विश्वसनीयता, उपयोगिता तथा वैधता के अनेक परीक्षण हुये, जिनके फलस्वरूप अभिक्रमित अध्ययनों की प्रभावशीलता सिद्ध हुयी।
अन 1950 में ही श्री ब्राइनमोर (Brynmor) महोदय ने भी इंग्लैण्ड में शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किये।
विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति के फलस्वरूप तथा विश्व में आयी औद्योगिक क्रान्ति एवं वैज्ञानिक तथा तकनीकी में उन्नतता के कारण, शिक्षाशास्त्री शिक्षण के क्षेत्र को तकनीकी प्रभाव से अलग न रख सके। परिणामस्वरूप 1950 के पश्चात् ‘शैक्षिक-तकनीकी’ विषय का विकास होता चला गया, जिसका विशाल वृक्ष आज पल्लवित तथा पुष्पित दुष्टिगोचर से रहा है।
आज अनेक राष्ट्रों में यह विषय शिक्षा के क्षेत्र में अपने पैर मजबूती से जमाता चला जा रहा है।
शिक्षण में अब श्रव्य-दृश्य साधनों जैसे रेडियों, टेप रिकार्डर, कम्प्यूटर, सी. सी. टी. वी. (C.C.T.V.) इलैक्ट्रोनिक वीडियों टेप रिकार्डर तथा प्लेयर (VCP & VCR) आदि अनेक साधनों के आविष्कार तथा प्रणयन के कारण शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में अनेक ज्वलन्त परिवर्तन आने लगे है। और आज शिक्षा- तकनीकी के प्रयोग के बिना शिक्षण की कल्पना करना असम्भव-सा रही है।
वैज्ञानिक शोधों, प्रयोगों व अन्वेषणों पर आधारित वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहार तकनीकी (Behaviour Technology), शिक्षण तकनीकी (Teaching Technology) तथा शैक्षिक तकनीकी (Educational Technology) के क्षेत्रों में अनेक शिक्षण-अधिगम सिद्धान्तों पतिमानों (Models) तथा डिजाइनों (Designs) तथा शैक्षिक नियोजन एवं प्रबन्ध की अनेक तकनीकीयों का प्रतिपादन एवं प्रयोग होने लगा है। इस प्रकार से शिक्षा के क्षेत्र में मानवीय ज्ञान के साथ-साथ यात्रिंकता का गुण भी समावेशित होते लगा है।
भातरवर्ष में 1966 में भारतीय अभिक्रमित अनुदेशन संगठन (IAPL) की स्थापना की गयी, जिसने भारत में शिक्षण तकनीकी को स्थापित करने में सराहनीय प्रयास किये।
19070 में एन. सीत्र ई. आर. टी. (NCERT) तथा उच्च संस्थान बड़ौदा, मेरठ व शिमला विश्वविद्यालयों ने शैक्षिक तकनीकी को बढ़ावा देने के अभूतपूर्व प्रयत्त किये। 1970 के प्रश्चात् एम. ए. (शिक्षा), एम. एड. फिल. तथा डाक्टरोट स्तर पर शैक्षिक तकनीकी के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान कार्य सारे भारत में प्रारम्भ हा गय।
एन. सी. ई. आर. टी. के अन्तर्गक एक शिक्षा तकनीकी केन्द्र (Centre for Educating) ने शैक्षिक तकनीकी के ज्ञान के प्रसार तथा शोध कार्यों के माध्यम से देश में अपनी एक अलग एक पहचान बनाई।
यूनेस्को (UNESCO) ने 1978 में एक (Seminar for the Training of Experts in Educational Technology) का आयोजन किया। इस सेमीनार मे शैक्षिक तकनीकी के विकास के तीन स्तरों पर चर्चा की गयी। 1967 तक का समय श्रव्य-दृश्य सामग्री के रूप में चर्चित रहा। 1961 से 1975 तक की अवधि को विधियाँ सामाग्रियों तथा तकनीकियों (Methods Materials & Techniques) की संज्ञा दी गयी तथा 1978 को प्रणाली विश्लेषण का समय बताया गया। इस सेमीना में स्पष्ट रूप से शैक्षिक तकनीकी के विकास के सन्दर्भ में कहा गया।
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