शैक्षिक तकनीकी

उपग्रह शिक्षक संचार प्रणाली | उपग्रह संचार व्यवस्था का शिक्षा में उपयोग | उपग्रह आधारित शिक्षण संचार व्यवस्था

उपग्रह शिक्षक संचार प्रणाली | उपग्रह संचार व्यवस्था का शिक्षा में उपयोग | उपग्रह आधारित शिक्षण संचार व्यवस्था | satellite teacher communication system in Hindi | Use of satellite communication system in education in Hindi | satellite based teaching communication system in Hindi

उपग्रह शिक्षक संचार प्रणाली

Satellite Teaching Communication System

कृत्रिम उपग्रहों के आविष्कार ने पूरे विश्व में एक संचार क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। भारत जैसी भौगोलिक संरचना वाले देशों में दूरस्थ एवं दुर्गम क्षेत्रों तक संचार माध्यम हेतु केबल लाइन ले जा पाना एक दुष्कर कार्य है। अतः ऐसी जगहों पर दूरसंचार की सुविधा उपलब्ध कराने में उपग्रह संचार प्रणाली की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

उपग्रह के माध्यम से संचार में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला उपकरण ट्रान्सपोण्डर’ (Transponder) है। यह ट्रान्सपोण्डर विद्युत चुम्बकीय तरंगों को प्राप्त करता है तथा उनका प्रसंस्करण (Processing) करके आवृत्ति परिवर्तन (Down convert) करता है। इसके बाद ट्रान्सपोण्डर का कार्य इन डाउनलिंक तरंगों को पृथ्वी की दिशा में संचारित करता है। ध्यातव्य है कि तकनीकी कारणों से आप लिंक तरंगों की आवृत्ति क्षमता को डाउनलिंक तरंगों की आवृत्ति क्षमता से कम होना चाहिये।

भारत में उपयोग होने वाले ट्रान्सपोण्डर तीन प्रकार के हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) निम्न आवृत्ति का एक एस-वैण्ड ट्रान्सपोण्डर

(S-Band transponder)

(2) मध्यम आवृत्ति का सी-वंण्ड ट्रान्सपोण्डर

(C-Band transponer)

(3) मध्यम आवृत्ति का केयू-बैण्ड ट्रान्सपोण्डर

(Ku-Band transponder)

ट्रान्सपोण्डर

एस तथा सी-वैण्ड का उपयोग सभी भू-स्थैति (Geo-stationary) उपग्रह में हुआ है। केयू का उपयोग इनसेट-2 सी (INSAT-2C) से आरम्भ हुआ है। केयू बैण्ड ट्रान्सपोण्डर का उपयोग है— उपग्रह के माध्यम से समाचार एकत्रित करना तथा दूरस्थ क्षेत्रों में व्यावसायिक संचार सुविधा उपलब्ध कराना। उपग्रह के माध्यम से अब अचल संचार सेवाएँ भी उपलब्ध करायी जाती हैं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी सेवा देने के लिये कम ऊँचाई (500 किमी) के उपग्रहों का उपयोग किया जा रहा है। चूंकि इन उपग्रहों का ‘फुट प्रिण्ट’ अर्थात् संचार की दृष्टि से उपग्रह द्वारा घेरा गया क्षेत्र अपेक्षाकृत कम होता है अतः सम्पूर्ण विश्व को ऐसी सेवा के क्षेत्र में लाने के लिये बहुत सारे उपग्रहों का उपयोग करना पड़ता है। ऐसी पहली परियोजना इरीडियम (IRIDIUM) है, जो अमेरिकन कम्पनी मोटरोला तथा उसकी सहयोगी कम्पनी द्वारा आरम्भ की गयी है।

भारत द्वारा उपग्रह आधारित मोबाइल संचार प्रणाली तथा व्यापारिक संचार प्रणाली की कार्यक्षमता में पर्याप्त वृद्धि करने के उद्देश्य से मार्च, 2000 में इनसेट-3बी संचार उपग्रह का प्रक्षेपण किया है। इनसेट-3 बी में उपग्रह प्रसारण और दूरसंचार के लिये विशेष तौर पर कुछ अतिरिक्त उपकरणः जैसे-12सी-बैण्ड ट्रान्सपोण्डर, 3 केयू-बैण्ड ट्रान्सपोण्डर तथा एक मोबाइल ट्रान्सपोण्डर लगाये गये हैं। इनसेट नेटवर्क में इस समय 300 से अधिक विभिन्न प्रकार के दूरसंचार टर्मिलन काम कर रहे हैं, जिनमें से 50 टर्मिनल देश के उत्तरी-पूर्वी भाग के ग्रामीण अंचल में बेतार सेवा के लिये प्रयोग हो रहे हैं तथा 166 से अधिक मार्गों पर बातचीत के लिये लगभग 5500 दो तरफा परिपथ हैं। इनसेट उपग्रह के माध्यम से दूरसंचार के अतिरिक्त रेडियो एवं टेलीविजन प्रसारण, भी किया जा रहा है। टेलीविजन के 900 से अधिक ट्रान्सपोण्डर इनसेट से सम्बद्ध हैं, जिसके परिणामस्वरूप इनसेट का टेलीविजन नेटवर्क भारत के 85% से अधिक जनसंख्या तक अपने कार्यक्रमों को पहुँचाता है। इनसेट-2 सी ने भारतीय दूरदर्शन को सीमा पर दूर-दूर तक पहुँचाया है। भारत सरकार का प्रमुख कम्प्यूटर नेटवर्क निक-नेट भी इनसेअ संचार प्रणाली पर ही आधारित है। प्राकृतिक विपदाओं के कारण संचार व्यवस्था भंग होने की स्थिति में इनसेट के माध्यम से ‘ट्रांसपोर्टेबल टर्मिनल’ का प्रयोग करके आपातकालीन संचार सुविधाएँ उपलब्ध करायी जाती हैं ज्ञातव्य है कि उत्तर प्रदेश के सिरोला गाँव में 2 अक्टूबर सन् 1997 को देश का पहला उपग्रह- आधारति ग्रामीण सार्वनिक टेलीफोन स्थापित किया गया इसके अतिरिक्त चित्तौनी (उत्तर प्रदेश) तँगा और कैथिंग (पूर्वोत्तर राज्य) तथा सेलरू (आन्ध्र प्रदेश) में भी सार्वजनिक टेलीफोन टर्मिनलों की स्थापना की जा चुकी है।

उपग्रह संचार व्यवस्था का शिक्षा में उपयोग

Use of Satellite Communication System in Education

वर्ममान समय में उपग्रह का प्रयोग शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक रूप से हो रहा है। उपग्रह के प्रयोग से टेलीकॉन्फ्रेंन्सिंग, वीडियोकॉनफ्रेंन्सिंग, दूरदर्शन एवं इण्टरनेट जैसी सुविधाओं का विकास हुआ है। प्रारम्भ में इन सभी व्यवस्थाओं का उपयोग शिक्षा क्षेत्र में कम होता है परन्तु धीरे-धीरे इनका उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में पूर्ण रूप से होने लगा। शैक्षिक दूरदर्शन पर अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं जो विभिन्न विषयों से सम्बन्धित होते हैं। ज्ञान दर्शन के माध्यम से अनेक प्रकार के विषयः जैसे-विज्ञान, पर्यावरण एवं गणित आदि को सरल एवं प्रभावी ढंग से छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। दूरदर्शन का प्रयोग कक्षा शिक्षण में भी सरलता से किया जाता है। इसी प्रकार टेलीकॉन्फ्रेंन्सिंग एवं वीडियोकॉन्फ्रेंन्सिग भी उपग्रहों की ही देन है। इनमें विभिन्न प्रकार के शैक्षिक विषयों एवं विचारों का आदान-प्रदान सम्भव होता है। इसमें छात्र अपनी जिज्ञासा को शान्त करने के लिये विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों से प्रश्न करके उत्तर प्राप्त कर सकता है। उपग्रह के माध्यम से ही विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के विचारों को अपने घर पर बैठकर छात्र सुन सकता है एवं पढ़ सकता है। उपग्रह के माध्यम से छात्र विश्व के किसी भी कोने में होने वाली शैक्षिक गतिविधि को सरलतापूर्वक देख सकता है।

संचार साधनों का शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक स्तर पर प्रयोग होने का प्रमुख श्रेय उपग्रह व्यवस्था को ही जाता है। क्योंकि प्रमुख रूप से टेलीफोन, इण्टरनेट तथा दूरदर्शन आदि में उपग्रह का प्रयोग प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से अवश्य होता है। उपग्रह व्यवस्था ने पर्यावरणीय शिक्षा एवं छात्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दूरदर्शन एवं रेडियो की पहुँच दुर्गम स्थानों तक है। इसलिये उन स्थानों के नागरिकों को शिक्षा सम्बन्धी व्यवस्थाएँ उपलब्ध कराने में उपग्रह का महत्वपूर्ण स्थान है। आज भारत वर्ष का प्रत्येक बालक एवं बालिका कक्षा शिक्षण के द्वारा या उपग्रह शिक्षण द्वारा किसी न किसी रूप में शिक्षा अवश्य प्राप्त करता है। दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में उपग्रहों का प्रयोग व्यापक स्तर पर किया जाता है। विश्व के किसी भी स्थान पर बैठकर  इण्टरनेट के माध्यम से अपनी आवश्यकता के अनुसार शिक्षण अधिगम सामग्री को प्राप्त किया जा सकता है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि उपग्रह के प्रयोग के अभाव में शिक्षा के सम्पूर्ण उद्देश्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिये यह आवश्यक है कि उनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास किया जाय। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास के लिये उपग्रह व्यवस्था का शिक्षा में प्रयोग अति आवश्यक है। वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में उपग्रह को व्यापक स्तर पर प्रयोग में लाने के कारण शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व सुधार सम्भव सम्भव हुए हैं। उपग्रह के प्रयोग के अभाव में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया अधूरी प्रतीत होती है।

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Pankaja Singh

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