समाज शास्‍त्र

राष्ट्रीय जीवन में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का योगदान

राष्ट्रीय जीवन में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का योगदान

राष्ट्रीय जीवन में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का योगदान

(Contribution of Scheduled Cases and Scheduled Tribes in National Life)

यद्यपि सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक रूप से अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का शोषण होता रहा है, परन्तु फिर भी राष्ट्रीय जीवन में अनुसूचित जातियाँ तथा जनजातियों के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। उनके इस योगदान को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) भारतीय राजनीति में भागीदारी- अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लोग भारतीय राजनीति में बढ़-चढ़कर भाग ले रहे हैं। संसद तथा राज्य विधान मण्डलों में उन्हें स्थान मिला है। उच्च राजनीतिक पदो पर भी नकी नियुक्तियाँ होने लगी हैं। इससे यह स्पष्ट है कि देश के राष्ट्रीय जीवन में इनकी सहभागिता तेजी से बढ़ रही है।

(2) सामाजिक राजनैतिक क्षेत्र में जागरूकता- अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के उत्थान हेतु किये जा रहे सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरूप सामाजिक तथा राजनीतिक क्षेत्र में इन लोगों में जागरूकता उत्पन्न हो रही है। विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ मिलने के लिए अब ये लोग महत्त्वाकांक्षी होते जा रहे हैं तथा उच्च जाति के लोगों से प्रतिस्पर्धा करने का साहस करते हुए देश के प्रगति मार्ग पर अग्रसर हैं।

(3) आम चुनावों में अहम् भूमिका- देश के आम चुनावों में भी अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लोग अहम् भूमिका निभाते हैं। देश में इनकी संख्या 20.60 करोड़ है। ऐसा माना जाता है कि विभिन्न आम चुनावों के कांग्रेस के विजयी होने का तथा सत्ता में आने का मुख्य कारण अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का समर्थन है। ये राजनैतिक दलों के रूप में संगठित होकर राष्ट्रीय जीवन में अपना विशिष्ट योगदान देते हैं।

(4) राजनीति में सन्तुलनकर्ता की भूमिका- ये अनुसूचित जातियाँ एवं जनजातियाँ भारतीय राजनीति में सन्तुलनकर्ता की भूमिका निभाती हैं। देश में इनकी कुल जनसंख्या 1991 की जनगणना के अनुसार 20.60 करोड़ है जो देश की जनसंख्या का 24.65 प्रतिशत है। जिस राजनैतिक पार्टी को इनका समर्थन प्राप्त होता है। उसकी राजनैतिक स्थिति काफी मजबूत हो जाती हैं। कांग्रेस के लगातार सत्तारूढ़ रहने का (विशेष परिस्थितियों को छोड़कर) कारण अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों से प्राप्त समर्थन है।

(5) स्वतन्त्रता आन्दोलन में योगदान- अनुसूचित जाति एवं जनजाति के अनेक लोगों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। महात्मा गाँधी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन में उनकी भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। यही कारण है कि गाँधी जी जैसे अनेकों राष्ट्रीय नेता इनके उत्थान के लिए प्रयासरत रहे।

(6) सामाजिक स्थिति में सुधार- सरकार द्वारा नौकरियों आदि में संरक्षण आदि दिये जाने के कारण अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोग भी उच्च पदों पर आसीन हो रहे हैं जिससे उनकी अर्जित प्रस्थिति में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। वर्तमान में केन्द्र सरकार की विभिन्न सेवाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों की कुल संख्या क्रमशः लगभग 3,93,819 तथा 1,23,664 है। इस प्रकार स्पष्टतया राष्ट्रीय जीवन में उनका योगदान बढ़ा है।

(7) आर्थिक विकास में योगदान- देश के आर्थिक क्षेत्र में भी अनुसूचित जाति तथा जनजाति के लोगों का योगदान सराहनीय है। चाय के बागानों, खानों एवं कृषि आदि में इन जातियों के लोग उत्पादन कार्य में विशेष सहयोग करते हैं। ये लोग मेहनतकश होते हैं तथा अब वर्तमान में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो व्यापारियों के रूप में आगे बढ़ रहे हैं।

(8) राजनैतिक महत्त्वाकांक्षाओं में वृद्धि- संस्कार द्वारा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों को दिये गये आरक्षण एवं अन्य संवैधानिक सुविधाओं के कारण इनके नेता हर क्षेत्र में आगे बढ़ कर सवर्ण जातियों से होड़ करने लगे हैं। इन नेताओं की राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा एवं प्रभाव बढ़ता जा रहा है। परिणामस्वरूप जो आरक्षण स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय 10 वर्षों के लिए किया गया था। उसकी अवधि जनजातियों के नेताओं के प्रयास से सन् 2000 तक हो गई है। इन जातियों एवं जनजातियों के संगठन जिला स्तर से राष्ट्रीय स्तर तक पाये जाते हैं।

(9) राष्ट्रीय सामाजिक जीवन के उत्थान में सहायक- शिक्षा के प्रचार व प्रसार से तथा शिक्षा के क्षेत्र में मिली उन तमाम सुविधाओं के कारण अनुसूचित जातियों व जनजातियों के छात्रों को आगे बढ़ने तथा अपनी योग्यतायें बढ़ाने के तमाम अवसर प्राप्त हुए हैं जिनके कारण  वे समाज में अपनी प्रस्थिति को उन्नत करने में सफल रहे हैं जिसका प्रभाव राष्ट्रीय सामाजिक जीवन पर भी पड़ा है।

इस प्रकार अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का वर्तमान राष्ट्रीय जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। इनके विकास एवं प्रगति के कारण देश भर में व्याप्त आर्थिक एवं सामाजिक विषमतायें एवं असमानतायें दूर होती जा रही हैं और ये सामान्य नागरिक के रूप में जीवनयापन करने की दिशा में अग्रसर है।

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Pankaja Singh

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