समाज शास्‍त्र

सामाजिक संरचना का अर्थ | सामाजिक वर्ग का अर्थ | सामाजिक वर्ग की प्रमुख विशेषतायें

सामाजिक संरचना का अर्थ | सामाजिक वर्ग का अर्थ | सामाजिक वर्ग की प्रमुख विशेषतायें | Meaning of social structure in Hindi | Meaning of social class in Hindi | Main characteristics of social class in Hindi

सामाजिक संरचना या सामाजिक वर्ग का अर्थ

सामाजिक वग्र सामाजिक स्तरीकरण का ही एक स्वरूप है। यह मुख्यतः आर्थिक समानताओं एंव समान जीवन के अवसरों पर आधारित समूह है। दूसरों शब्दों में सामाजिक वर्ग व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जिसके सदस्यों की आर्थिक स्थिति, जीवनयापन हेतु उपलब्ध आवसर एवं अन्य विशेषतायें समान होती हैं तथा जिनके सदस्यों में अपने समूह के प्रति चेतना पाई जाती है।

प्रमुख समाजशास्त्रियों ने सामाजिक वर्ग की भिन्न-भिन्न परिभाषायें दी हैं-

  1. मैकाइवर एवं पेज के अनुसार- “सामाजिक वर्ग एक समुदाय का वह भाग है जो सामाजिक स्थिति के आधार पर शेष भाग से पृथक् दृष्टिगोचर होता है।”
  2. आगबर्न एवं निमकाफ के अनुसार-“एक निश्चित समाज में मुख्य रूप से एक ही पद वाले व्यक्तियों के समूह को सामाजिक वग्र कहा जाता है।”
  3. बाटोमोर के अनुसार-“सामाजिक वर्ग तथ्यतः कानूनी एवं धार्मिक रूप से परिभाषित एवं मान्य समूह होते हैं जो कि बन्द नहीं है अपितु खुले हैं। इनका आधार निर्विवाद रूप से आर्थिक है लेकिन वे आर्थिक समूहों से अधिक होते हैं।”
  4. जिसबर्ट के अनुसार-“एक सामाजिक वर्ग व्यक्तियों का समूह अथवा विशेष श्रेणी है, जिसका समाज में एक विशेष पद होता है। यह विशेष पद ही अन्य समूहों से उनके सम्बन्धों को स्थायी रूप से निर्धारित करता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सामाजिक वर्ग एक समान स्थिति वाले व्यक्तियों का एक समूह है। इससे इभिप्राय सामाजिक संस्तरण की उस मुक्त व्यवस्था से हे जो योग्यता, शिक्षा तथा आर्थिक स्थिति पर आधारित हो सकती है।

सामाजिक वर्ग की प्रमुख विशेषतायें

सामाजिक वर्ग की परिभाषाओं से इसकी अनेक विशेषतायें स्पष्ट होती हैं जो कि निम्नलिखित हैं-

  1. निश्चित संस्तरण- वर्ग व्यवस्था में व्यक्ति कुछ श्रेणियों में विभाजित होते हैं। यद्यपि वर्गों की संख्याओं के सम्बन्ध में विद्वानों में सहमति नहीं है लेकिन यह निश्चित है कि कुछ वर्गों का स्थान ऊँचा और कुछ का नीचा होता है।
  2. वर्ग चेतना- वर्ग चेतना के कारणवर्ग-विशेष के सदस्यों में समानता की भावना प्रोत्साहित होती है वह उस वर्ग को स्थायित्व प्राप्त होता है। कार्लमार्क्स श ने वर्ग चेतना को वर्ग के निर्माण की एक अनिवार्य विशेषता माना है क्योंकि केवल समान आर्थिक स्थिति ही वर्ग के निर्धारण में पर्याप्त नहीं हैं
  3. मुक्त व्यवस्था- वर्ग जाति की तरह बन्द व्यवस्था न होकर मुक्त व्यवस्था है। किसी व्यक्ति का वर्ग उसको परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित भी हो सकता है। इस गतिशीलता के कारण वर्ग को मुक्त व्यवस्था कहा गया है।
  4. सर्वव्यापकता- मार्क्स के अनुसार एवर्ग व्यवस्था प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल में भी किसी-न-किसी रूप में सदैव रही है। यद्यपि इन्होंने वर्ग विहीन समाज कल्पना की थी, परन्तु अधिकांश विद्वान वर्ग विहीन समाज को केवल काल्पनिक मानते हैं क्योंकि मानव जीवन में इसकी उपलब्धि सम्भव नहीं है।
  5. अर्जित सदस्यता- वर्ग की सदस्यता जन्म द्वारा निर्धारित न होकर योगयता और कुशलता द्वारा र्जित होती है। व्यक्ति अपनी क्षमता और योगयता से वप की सदस्यता प्राप्त कर सकता है!
  6. सीमित सम्बन्ध – प्रत्येक वर्ग के सदस्य अपने ही वर्ग के सदस्यों से सम्बन्ध रखते हैं। सामान्यता उच्च वर्ग के निम्न वर्ग के सदस्यों से सम्वन्ध स्थापित करने में सम्मान की हानि समझते हैं अर्थात् उच्चता की भावना से ग्रसित होते हैं। इसलिये उनके सीमित सम्बन्ध होते हैं।
  7. आर्थिक आधार- वर्ग निर्माण में आर्थिक आधार को प्रधानता दी जाती है मान्यतः समाज उच्च, मध्यम और निम्न वन में विभक्त होता है।
  8. सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण- वर्ग सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण करता है। व्यक्ति जिस वर्ग का सदस्य होता है उसी वर्ग के अनुरूप समजा में उसकी प्रस्थिति निर्धारित हो जाती है। परन्तु यह प्रस्थिति स्थायी नहीं है, क्योंकि मुक्त व्यवस्था होने के कारण स्वयं वर्ग की सदस्यता व्यक्ति की योगयता के आधार पर परिवर्तित हो सकती है।
  9. सामान्य जीवन- प्रत्येक वर्ग के सदस्य को किसी भी प्रकार के जीवन यापन की स्वतन्त्रता होती है, फिर भी वर्ग के दस्यों से यह आशा की जाती है कि जिस प्रकार का वर्ग हो उसी के अनुरूप सदस्य जीवन-यापन करें।
समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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