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भारत में प्रमुख कृषक आन्दोलन | उत्तर प्रदेश के कृषक आन्दोलन

भारत में प्रमुख कृषक आन्दोलन | उत्तर प्रदेश के कृषक आन्दोलन | Major Peasant Movements in India in Hindi | Peasant Movements of Uttar Pradesh in Hindi

भारत में प्रमुख कृषक आन्दोलन

(Major Peasant Movements in India)

भारत के अधिकतर हिस्सों में किसानों की कठिनाइयाँ लगभग एक समान होने के बाद भी वहाँ कि सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक और राजनीतिक संरचना में ज्यादा मित्रता देखने को मिलती है। यही वजह है कि भारत में कृषक आन्दोलन की प्रकृति को समझने के लिए विभिन्न राज्यों में होने वाले कृषक आन्दोलनों की पृष्ठभूमि और कारणों को समझना आवश्यक है।

उत्तर प्रदेश के कृषक आन्दोलन

(Peasant Movements of Uttar Pradesh)

भारत में उत्तर प्रदेश सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला कृषि प्रधान राज्य है। स्वतन्त्रता से पहले और स्वतन्त्रता के बाद इस राज्य में आन्दोलनों का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता के बाद इस राज्य में आन्दोलनों का अपना एक अलग ही इतिहास रहा है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन, छात्र आन्दोलन, श्रमिक आन्दोलन राजनीतिक आन्दोलन, माहेला आन्दोलन, कृषक आन्दोलन आदि सभी में उत्तर प्रदेश की अग्रणी भूमिका रही है। कृषक आन्दोलनों में भी उत्तर प्रदेश का महत्त्वपूर्ण स्थान है। उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है लेकिन यहां के किसानों की स्थिति अत्यन्त दुखद रही है। इसके उपरान्त भी उत्तर प्रदेश में कृषक आन्दोलनों का प्रारम्भ काफी देर से हुआ। ऐतिहासिक तथ्यों से ज्ञात होता है कि सर्वप्रथम सन् 1920 ई0 में आगरा और अवध क्षेत्र के कृषकों ने अपनी परेशानियों के लिए आन्दोलन किया था। सन् 1920 ई0 में आगरा-अवध के किसानों के साथ कुछ सामाजिक कार्यकत्ताओं ने भी इस आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। देश में महात्मा गाँधी द्वारा जब ‘असहयोग आन्दोलन’ के माध्यम से स्वतन्त्रता की अलख जगाई जा रही थी, तब इसी आन्दोलन को मुख्य आधार बनाकर कृषकों ने भी मूल्य वृद्धि, बेगार, कर, जुर्माना और नजराने के खिलाफ आन्दोलन करना शुरू किया। इस आन्दोलन की विशेषता यह थी कि इसमें सभी तरह के जाति-भेद, को भूलकर कृषकों ने स्वयं को संगठित करके सरकार और जमींदारों का प्रखर विरोध किया और आंशिक रूप से इसमें उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई।

आगरा में कृषकों द्वारा सन् 1920 ई0 में किये गये निरोध से प्रभावित होकर सन् 1921-22 में उत्तर प्रदेश में ‘एका कृषक आन्दोलन’ हुआ। इस अवधि में उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के पास चोरा-चौरी स्थान में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जमींदार और कृषक सम्मिलित रूप से विरोध कर रहे थे, वहीं एका आन्दोलन के माध्यम से कृषकों ने संगठित होकर बेगार, नजराना, वेदखली, कम श्रम-सूल्य के विरोध में आन्दोलन शुरू किया।

आगरा ओर अवध में बँटाईदार किसानों ने सन् 1930-32 ई० में भूपतियों के खिलाफ पुनः एक बार संगठित होकर आन्दोलन किया। इस अन्दोलन में समाज के सभी वर्गों ने किसानों वाराणसी के शास्त्री उपाधिधारक स्तनातकों की प्रमुख भूमिका रही। उत्तर प्रदेश के इस कृषक आन्दोलन में गांधी और सरदार पटेल की विचारधारा का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

उत्तर प्रदेश के कृषक आन्दोलन में एक मुख्य आन्दोलन बस्ती जिले का सन् 1936 ई0 का “निजाई बोल आन्दोलन है। उत्तर प्रदेश में पहली बार कृषक मजदूरों ने अपने मालिकों के खिलाफ भू-स्वामित्व के लिए आन्दोलन किया था। बाद में यह आन्दोलन बहुत अधिक हिंसक हो गया। इसमें बहुत से हमीदार और किसान आगजरी, लूटमार और अत्यचा के शिकार हुए थे। बस्ती का निजाई बोल आन्दोलन वर्षों से उत्तर प्रदेश के शोषित किसानों को आक्रोश था जो अपने सब्र का तोड़ चुका था। सन् 1936 ई0 में शुरू हुए इस आन्दोलन का स्वरूप सामान्य था लेकिन सन् 1937 ई0 में बस्ती के जमींदारों द्वारा अहीर, कुर्मी और चमार आतियों के किसानों का बेगार के नाम पर प्रताड़ित करने और आधी मजदूरी देने के कारण यह हिंसक हो गया। खेतिहर मजदूरों के विरोध करने पर जमींदारों ने शारीरिक यातना से लेकर कृषकों की झोपड़ियाँ जलाना और महिलाओं को अपमानित करना शुरू कर दिया जिससे आन्दोलन बहुत तीव्र और हिंसक होगया। उत्तर प्रदेश के निजाई बोल आन्दोलन में पहली बार सामान्य कृषकों की चेतना भी बेगार और मालिकाना के नाम पर हो रहे आर्थिक शोषण, स्वेतिहर श्रमिक महिलाओं पर बलात्कार, सवर्ण मालिकों द्वारा निम्न जाति की स्त्रियों को रखैल बनाने की परम्परा आदि के खिलाफ जाग्रत हुई। इस आन्दोलन में कृषकों को राजनीतिक सहयोग भी मिला। निजाई बोल आन्दोलन धीरे-धीरे उग्र रूप धारण करने लगा  जिसके परिणामस्वरूप सन् 1939 ई0 में भू-स्वामियों और बटाई मजदूरों में लगान की दर को लेकर  खेतों में ही लाठी-बल्लम चलने लगे जिसमें पहली बार एक भू-स्वामी हत्या हुई। इस झगड़े में पचास से अधिक व्यक्ति जख्मी हुए थे। उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में शुरू हुए निजाई बोल आन्दोलन ने बाद में जन्म उम्र रूप धारण कर लिया तो जमींदारों और सवर्ण जातियों द्वारा आन्दोलन को रोकने और किसानों पर अपना दबदवा बनाये रखने के लिए गांव के कुओं और तालाबों से पानीलेने से किसानों को रोका जाने लगा।

निजाई बोल आन्दोलन की विवेचना करते हुए प्रो0 राजेन्द्र सिंह लिखते हैं कि “मालिकाना लगान, बेगार, हथियाही (जमींदार को हाथी खरीदने के लिए पैसा जुआना) और बियाहू (जमींदारी की पुत्री के विवाह का प्रबन्ध) जैसे जये करों को न चूका सकने का कारण किसानों की फसल खत्म होने लगी। इसीलिए बस्ती के सभी किसानों ने योजनाबद्ध रूप से हिंसक आन्दोलन किया। इसमें किसानों ने अपने साथियों को आम के बाग में छुपाकर प्रतिबन्धित तालाब से पानी लेना आरम्भ किया। इस पर जमीदार और उनके साथियों ने किसानों को रोकने का प्रयास किया तो चतुराई का प्रदर्शन करते हुए किसान मालिकों के हाथ जोड़कर पैर छूने लगे। यह वास्तव में माफीनामा नहीं बल्कि एक संकेत था और तभी आम के बाग में छिपे अन्य किसानों ने हमला कर दिया। इस समय किसानों ने मालिक के पैर  कसकर पकड़ लिए जिससे वे भाग न सकें अचानक हुए इस हमले में मालिक और उनके बहुस-से समर्थक मारे गये। मालिक की लाश को उसकी हवेली के पुाटक पर फेंककर कृषकों ने धमी दी कि अगर अब किसी ने हथियाही, बियाहू या मालिकाना हक माँगा तो उसका भी हाल होगा। करों के अतिरिक्त हमींदार वर्ग द्वारा किये जा रहे धार्मिक शोषण के कारण यह आन्दोलन भी उग्र हुआ।” उदाहरण के लिए, सन् 1944 ई0 में बस्ती का एक जमींदार अपने बंटाईगर के हाथों मारा गया क्योंकिहिन्दू जमींदार मुस्लिम बँटाईदार से हिन्दू देवती-देवता के नाम बुलवाता था और ऐसा न करने पर उस पर सुअर का मल-मूत्र फेंकता था। इस्लाम में सुअर के मांस का धार्मिक निषेध है, अतः बँटाईदार ने मानसिक पीड़ा से परेशान होकर इसका विरोध किया मुस्लिम जमींदारों द्वारा भी कुछ इसी तरह हिन्दू गरीब किसानों को प्रताड़ित किया जाता था। हिन्दू गरीब किसान अपनी फसल नहीं काट सकते थे, सब्जी-दूध नहीं बेच सकते थे। इस तरह धार्मिक रूप से प्रताहित होने पर सभी किसानों ने जमींदार को घेर कर और फरसे से मार-मार कर उसकी  लाश के टुकड़े-टुकड़े कर दिये। इस तरह निजाई बोल आन्दोलन में अनेक जमीदारों और कृषकों की हत्याएं भी हुई। यह सन् 1936 ई0 से 1953 ई0 तक चला।

उत्तर प्रदेश में निजाई बोल आन्दोलन के बाद सन् 1970 ई० में बस्ती में पुनः एक नये प्रकार का कृषक आन्दोलन शुरू हुआ। सन् 1970 ई0 में बस्ती में कृषकों ने भूमि हथियाओं आन्दोलन शुरू किया। निजाई बाल आन्दोलन जहाँ कृषकों की शोषण के खिलाफ लड़ाई को बताता है, वहीं सन् 1970 ई0 का भूमि हथियाओं आन्दोलन का उद्देश्य किसानों द्वारा आर्थिक लाभ और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना था। भूमि हथियाओं आन्दोलन द्वारा बरती के मुस्लिम और अस्पृश्य हिन्दू किसानों ने संगठित और शासन भी इस आन्दोलन के कारण यह आन्दोलन दबा देने के कारण पूर्णतः असफल हो गया। बस्ती के बाहर भी इस आन्दोलन का प्रारम्भ हुआ लेकिन यह कहीं भी सफल नहीं हो सका।

उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण र्हि तथा चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने भी 80 के दशक में, विशेषकर गन्ने के समर्थन मूल्य और बिजली बिल माफी को लेकर उम्र किसानों आन्दोलन किये। चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत ने तो मेरठ और बागपत के हजारों किसानों का नई दिल्ली के बोट क्लब  में स्थाई रूप से धरना-प्रदर्शन करके केवल राज्य सरकार को ही नहीं बल्कि केन्द्र सरकार को भी झुकने के लिए मजबूर किया।

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Pankaja Singh

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