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युवा सक्रियता | असन्तोष का तात्पर्य | युवा सक्रियता के कारण | असन्तोष के कारण

युवा सक्रियता | असन्तोष का तात्पर्य | युवा सक्रियता के कारण | असन्तोष के कारण

युवा सक्रियता या असन्तोष का तात्पर्य

युवा वर्ग का मौजूदा व्यवस्था से असन्तुष्ट होना। विश्वविद्यालय द्वारा विद्यार्थी असन्तोष की समस्या का अध्ययन करने हेतु सन् 1960 में बनायी गयी कमेटी ने विद्यार्थी अनुशासनहीनता को परिभाषित करते हुए बतलाया है, “जनसमूह का नैतिक पतन एवं सत्ता का सामूहिक उल्लंघन तथा वास्तविक या काल्पनिक शिकायतों को दूर कराने के लिए ऐसे तरीकों का उपयोग जो विद्यार्थियों के लिए उचित नहीं है।”

अस्थाना एवं सूमा चिटनिस के अनुसार, किसी संगठन में अनुशासन उसके नियमों, विधि-विधानों तथा परम्पराओं के प्रति आदर तथा उसके पालन में निहित है। इनके उल्लंघन को ही अनुशासनहीनता कहा जाता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि युवा सक्रियता या असन्तोष वह स्थिति है जिसमें युवा वर्ग समाज के आदर्श नियमों की परवाह नहीं करते, हुए आन्दोलनात्मक प्रवृत्ति अपना लेता है और वह सब कुछ करने लगता है जिसकी उससे अपेक्षा नहीं की जाती। शिक्षा के सन्दर्भ में इसे ही छात्र अनुशासनहीनता या छात्र अस्नतोष के नाम से जाना जाता है।

युवा सक्रियता या असन्तोष के कारण

(Causes of Youth activism or unrest)

युवा सक्रियता या असन्तोष के प्रमुख कारणों का उल्लेख हम इस प्रकार कर सकते हैं।

(1) शैक्षिणिक कारक (Educational Factors)- युवा सक्रियता या असन्तोष के लिए शिक्षण व्यवस्था से सम्बन्धित कई कारक उत्तरदायी हैं, उनमें से प्रमुख इस प्रकार हैं-

(क) छात्र एवं अध्यापकों के सम्बन्धों में दूरी- आज छात्र एवं अध्यापकों के बीच सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। छात्रों की संख्या बढ़ जाने के कारण यह सम्भव नहीं है कि अध्यापक प्रत्येक छात्र से आत्मीय एवं घनिष्ठ सम्बन्ध बना सके, उसकी समस्याओं को जानकर उन्हें हल करने के लिए प्रयास कर सके। छात्र-शिक्षक अनुपात बढ़ जाने के कारण अध्यापकों का छात्रों पर नियन्त्रण शिथिल हुआ है और उनमें स्वच्छन्द प्रकृति पनपी है, वे अध्ययन में रुचि न लेकर बाह्य गतिविधियों में संलग्न रहते हैं। कई बार शिक्षक वे व्यक्ति बनते हैं जिन्हें अन्य क्षेत्रों में रोजगार की सुविधा नहीं मिलती। ऐसे व्यक्तियों का छात्रों एवं संस्था के प्रति कोई लगाव नहीं होता। अदक्ष एवं अनुभवहीन अध्यापक भी सफल नहीं होते। अध्यापक का प्रमुख कार्य छात्रों का सही नेतृत्व, प्रोत्साहन एवं मार्ग-दर्शन करना है जो योग्य एवं निष्ठावान अध्यापक ही कर सकते है। छात्र अध्यापकों के निकट सम्पर्क से कई बातें सीखता है, किन्तु आज की बदली परिस्थितियों में अध्यापक छात्र के आदर्श नहीं रहे हैं। उनमें सामाजिक एवं मानसिक दूरी इतनी बढ़ गयी है कि कई बार छात्रों की उचित मांगों पर तब तक ध्यान नहीं दिया जाता जब तक वे आन्दोलन पर उतारू नहीं हो जाते।

(ख) दोषपूर्ण एवं अनुपयोगी शिक्षा- वर्तमान शिक्षा प्रणाली में अनेक दोष हैं। यह हमें आजीविका के लिए तैयार नहीं करती। इस शिक्षा प्रणाली का प्रचलन अंग्रेजों ने अपने लिए बाबू पैदा करने के लिए किया था। दासत्व काल में हमने बड़ी-बड़ी कल्पनाएं की थीं कि स्वतन्त्रता के बाद शिक्षा में आमूलचूल परिवर्तन करेंगे, आदर्श पाठ्यक्रम बनायेंगे व निरक्षरता मिटायेंगे। हमारे शिक्षा संस्थान क्लर्क व बाबू पैदा करने वाली फैक्ट्रियां नहीं, वरन् राष्ट्र की भावी आशा व आकांक्षाओं के वाहक एवं विश्व नागरिक निर्माण करने वाले विद्यापीठ होंगे। परन्तु सदियों की पराधीनता ने हमें इतना प्रमादी बना दिया कि शिक्षा के नये प्रयोगों के इतने संकल्प- विकल्पों के पश्चात् भी हम जहां के तहां खड़े हैं। अस्थाना तथा सूभा चिटनिस ने बतलाया है कि कॉलेज शिक्षा का महत्व केवल इसलिए है क्योंकि उससे डिग्री प्राप्त होती है, इसके अतिरिक्त भविष्य निर्माण की दृष्टि से इस शिक्षा का विद्यार्थियों के लिए कोई महत्व नहीं है।

(2) आदर्श-नियमों, निर्देशों, मूल्यों तथा प्रवृत्तियों में परिवर्तन-अनुशासन की दृष्टि से परिणाम (Change in Norms, Sanctions, Values and Attitudes-Consqeunces to Discipline) – पहले उद्दण्ड छात्र को कॉलेज से निकाल दिया जाता था, शरारती छात्र को डांट-फटकार या कक्षा से बाहर कर दिया जाता था। कर्तव्यनिष्ठ छात्र को उसके साथियों एवं अध्यापकों द्वारा आदर दिया जाता था। अध्यापकों का अध्यापन प्रेरणादायक होता था और कक्षा में उपस्थित होना छात्र अपने लिए लाभदायक समझते थे। प्राध्यापक पूर्ण कुशल होते थे और उन्हें विद्वता के कारण काफी सम्मान मिलता था।

(3) पारिवारिक कारक (Familial Factors) –  छात्र असन्तोष के लिए पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं परिस्थितियां भी उत्तरदायी हैं। वर्तमान में भारत में संयुक्त परिवार का विघटन हो रहा है। एकाकी परिवारों में वृद्धि हो रही है। व्यक्ति पर परिवार का नियन्त्रण शिथिल होता जा रहा है और बच्चों के समाजीकरण में उसकी अहं भूमिका में कमी आ रही है। फलस्वरूप बच्चों में तनाव, असन्तोष एवं स्वच्छन्दता पनपी है। संयुक्त परिवार की संरचना इस प्रकार की थी कि सदस्य सत्ता के प्रति आदर एवं व्यवस्था के प्रति आस्था रखते थे। परिवार का अधिनायकवादी प्रतिमान बाल्यावस्था से ही अनुशासन के प्रति निष्ठा जागृत करता था। उस समय बाल-विवाह के कारण किशोरावस्था एवं स्वतन्त्रता का काल नहीं था। पिछले 50 वर्षों में स्थिति काफी बदली है। परिवार का अधिनायकवादी रूप बदल गया है।

(4) पर्यावरण सम्बन्धी कारक (Environment Factors) –  छात्र असन्तोष कोई आसमान से टपकी हुई वस्तु नहीं है, वरन् सामाजिक पर्यावरण के प्रभाव का ही परिणाम है। वर्तमान में भारतीय समाज का आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिवेश बदल रहा है, वह संक्रमण की स्थिति में है।

(5) आर्थिक कारक (Economic Factors) –  भारतीय समाज में पायी जाने वाली आर्थिक परिस्थितियां भी छात्र असन्तोष के लिए उत्तरदी हैं। भारत में गरीबी एवं बेकारी काफी विस्तृत रूप में पायी जाती है। नौकरी चाहने वाले शिक्षित व्यक्तियों और उपलब्ध रोजगार के अवसरों के अनुपात में काफी अन्तर है। परिणामस्वरूप शिक्षितों में बेकारी की गम्भीर समस्या पायी जाती है। जिस देश के अधिकांश लोग निर्धन हों, जहां उच्च शिक्षा प्राप्त करने पर भी भविष्य के प्रति आर्थिक सुरक्षा न हो, वहां के युवकों व छात्रों में असन्तोष पाया जाना स्वाभाविक है। बढ़ती हुई महंगाई, महंगी शिक्षा, फीस बढ़ाना, छात्रवृत्ति कम होना और उसका पक्षपातपूर्ण तरीकों से वितरण, आदि छात्र असन्तोष के लिए उत्तरदायी हैं।

(9) राजनीतिक कारक (Political Factors)-  छात्र असन्तोष के लिए राजनीतिक कारक भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। आज का युवक देश और विदेश में घटित होने वाली घटनाओं से अप्रभावित नहीं रह सकता। छात्र आन्दोलन एक विश्वव्यापी घटना है। विकसित और अविकसित, प्रजातन्त्रात्मक, एकतन्त्रात्मक एवं साम्यवादी सभी देशा में किसी-न-किसी रूप में छात्र-आन्दोलन हुए हैं। कहीं सत्ता के विरुद्ध और सरकारों को बदलने के लिए आन्दोलन हुए हैं तो कहीं अधिकारों की मांग को लेकर प्रचण्ड प्रदर्शन। सन् 1947 के पूर्व भारतीय विद्यार्थियों ने स्वतन्त्रता प्राप्ति हेतु राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लिया। उस समय उनका यह आन्दोलन देश- भक्तिपूर्ण था, परन्तु ज्योंही स्वतन्त्रता प्राप्त हो गयी, छात्र आन्दोलन का रूप बदल गया। राजनीतिज्ञों ने इस देश में युवकों और छात्रों की आकांक्षाओं को काफी उभार दिया, परन्तु उन्हें पूरा नहीं किया है जिससे असन्तोष बढ़ा है। राजनीति और छात्र असन्तोष के मध्य गहरा सम्बन्ध पाया जाता है।

आज का युवक व विद्यार्थी राजनीतिज्ञों-लोकसभा, विधानसभाओं तथा नगर परिषदों, आदि के सदस्यों के जीवन को देखता है। वह उन लोगों में पाये जाने वाले प्रष्टाचार, भाई- भतीजावाद, कुर्सी से चिपके रहने की भूख और स्वार्थपरता को देखता है। राजनीतिज्ञों के जीवन में अनुशासनहीनता पायी जाती है तो विद्यार्थी उससे अछूते कैसे रह सकते हैं?

जहां शिक्षण संस्था में विद्यार्थियों से कठिन परिश्रम कराने पर जितना अधिक जोर दिया जायेगा, वहां विद्यार्थियों के राजनीति में भाग लेने और अनुशासनहीनता की सम्भावना उतनी ही कम रहेगी। जहां शिक्षक योग्य, परिश्रमी, विद्यार्थियों से कठोर कार्य कराने और उनके कल्याण डॉ. योगेश अटल ने बताया है कि आज विद्यार्थी वर्ग का सन्दर्भ समूह (Reference group) शिक्षक न होकर राजनीतिज्ञ, प्रशासक एवं फिल्मी स्टार होते हैं। आज का विद्यार्थी महापुरुषों, शिक्षकों एवं माता-पिताओं से प्रेरणा प्राप्त नहीं करके इन उपर्युक्त व्यक्तियों से प्रेरणा प्राप्त करता है। चित्ता रंजन (Chitta Ranjan) ने बताया है कि जब नेतृत्व के बहुत बड़े भाग में चरित्र और समर्पण का अभाव पाया जाता हो, जब जन-सेवा के स्थान पर शक्ति और सम्पत्ति-प्राप्ति का प्रयत्न सर्वोपरि हो, तब भी वह असन्तोष को जन्म देती है।

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Pankaja Singh

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