अर्थशास्त्र

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति से आशय | भारत की जनसंख्या नीति | 1977 की संशोधित राष्ट्रीय नीति की प्रमुख विशेषताएँ | राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के प्रमुख उद्देश्य

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति से आशय | भारत की जनसंख्या नीति | 1977 की संशोधित राष्ट्रीय नीति की प्रमुख विशेषताएँ | राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के प्रमुख उद्देश्य | Meaning of National Population Policy in Hindi | Population Policy of India in Hindi | Salient Features of the Revised National Policy of 1977 in Hindi | Main Objectives of National Population Policy in Hindi

राष्ट्रीय जनसंख्या नीति से आशय

(Meaning national population policy)

जनसंख्या नीति ऐसी नीति होती हैं जिससे किसी राष्ट्र की जनसंख्या की वृद्धि दर कम होने लगती हैं। इनके अन्तर्गत वे सभी प्रयास एवं उपाय शामिल होते हैं जिनसे देश में जनसंख्या की वृद्धि पर नियन्त्रण लगता हो तथा जो विद्यमान जनसंख्या के उत्पादकीय गुणों में वृद्धि करते हैं। संक्षेप में, जनसंख्या नीति से तात्पर्य ऐसी नीति से हैं जिसके द्वारा ऐच्छिक एंव वैज्ञानिक उपायों को अपनाकर नियोजित ढंग से जनसंख्या को नियन्त्रित किया जाता हैं।

भारत की जनसंख्या नीति

देश में जनसंख्या को कम करने के लिए राष्ट्रीय संसाधनों के मध्य समन्वय स्थापित करके आर्थिक विकास एवं न्याय प्राप्त करने की दिशा में 16 अप्रैल, सन् 1976 को भारत सरकार ने एक जनसंख्या नीति की घोषणा की। इस नीति को 28 अप्रैल, 1977 को संशोधित किया गया।

संशोधित जनसंख्या नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. इस नीति के तहत परिवार नियोजन को पूर्णतः स्वैच्छिक कार्यक्रम घोषित किया गया।
  2. विवाह के समय लड़के की आयु 21 वर्ष तथा लड़की की आयु 18 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
  3. नीति में घोषणा की गयी कि केन्द्र सरकार अनिवार्य नसबन्दी कानून नहीं बनाना चाहती हैं, परन्तु राज्य सरकारों को इस सम्बन्ध में कानून बनाने की छूट दी गयी।
  4. केन्द्र द्वारा राज्य सरकारों को दी जाने वाली केन्द्रीय सहायता का 8% भाग विशेष रूप से परिवार कल्याण कार्यों की सफलता के आधार पर दिया जायगा।
  5. इस नीति में लड़कियों को शिक्षा पर विशेष बल दिया गया हैं।
  6. इस नीति में परिवार कल्याण से सम्बन्धित चिकित्सा सेवाओं की निः शुल्क व्यवस्था की गयी हैं।
  7. कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए ऐच्छिक संगठनों द्वारा दी गयी आर्थिक सहायता को आयकर से मुक्त रखा गया हैं।
  8. प्रत्येक नागरिक की प्रतिष्ठ एवं अपने परिवार के आकार के विषय में निर्णय करने के उसके अधिकार को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना गया हैं।
  9. परिवार नियोजन कार्यक्रम का पूरे देश में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में व्यापक रूप से प्रचार किया जाएगा।

1977 की संशोधित राष्ट्रीय नीति की प्रमुख विशेषताएँ

(1) परिवार नियोजन कार्यक्रम को परिवार कल्याण कार्यक्रम नाम दिया गया। (2) स्त्रियों के शिक्षा स्तर में सुधार करना तथा छोटे परिवार का तेजी से प्रचार करना। (3) संतति निग्रह के उपायों को बढ़ाना तथा शिक्षण की सुविधाओं में वृद्धि करना। (4) पंचायत, मजदूर संघ, सहकारी संस्था एवं युवा संगठन आदि को परिवार कल्याण कार्यक्रम में लगाना। (5) 1977 में नसबन्दी के लिए मौद्रिक सहायता के अन्तर्गत भेदभाव समाप्त करके पुरुष बन्ध्याकरण की दशा में रु100 तथा महिला बन्ध्याकरण की दशा में रु120 भुगतान निर्धारित किया गया।

जनसंख्या नीति, 1994

जनसंख्या पर राष्ट्रीय विकास परिषद् समिति की सिफारिशों के अनुरूप दीर्घकालीन राष्ट्रीय जनसंख्या नीति का प्रारूप तैयार करने के लिए जुलाई, 1993 में डॉ० एम० एस० स्वामीनाथन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति गठित की गयी। इस समिति ने जनसंख्या नीति का प्रारूप मई, 1994 में स्वास्थ एवं परिवार कल्याण विभाग को सौंप दिया। इस प्रारूप के अनुसार प्रस्तावित राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के प्रमुख बिन्दु निम्नानुसार हैं-

  1. प्रजनन-दर- सन् 2010 तक जनसंख्या के स्थिरीकरण हेतु कुल प्रजनन-दर को 2.1 के स्तर पर लाना होगा तथा इसके लिए एक शक्तिशाली वातावरण एवं संरचना सृजित करनी होगी।
  2. उचित वातावरण का सृजन-ऐसा वातावरण सृजित करना होगा जिसमें सभी लोग स्वस्थ एवं उत्पादक जीवन व्यतीत कर सकें। इस प्रकार के वातावरण के निर्माण हेतु न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रमों को त्वरित एवं प्रभावी तरीके से लागू करना होगा।
  3. परिवार का आकार- परिवार के आकार को सीमित करने का दायित्व समान रूप से पति एवं पत्नी दोनों पर ही होगा।
  4. लोकतान्त्रिक संस्थाओंके की भूमिका- ग्राम पंचायतों एवं स्थानीय निकाय संस्थाओं को प्रत्येक गाँव या शहर के लिए एक ऐसा सामाजिक जनांकिकीय चार्टर तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जायगा जिसमें जनसंख्या को स्थिर करने वाले विशिष्ट लक्ष्य दिये होंगे। जिला एवं राज्य स्तर पर विस्तृत आधार वाली जनसंख्या एवं सामाजिक विकास समितियों की जायगी। राष्ट्रीय स्तर पर विकेन्द्रित, लोकतान्त्रिक आयोजनात्मक संरचना वाला परिवार कल्याण कार्यक्रम लागू किया जायेगा।
  5. मातृ एवं शिशु कल्याण सेवाएँ- मातृ एवं शिशु कल्याण सेवाएँ स्वास्थ्य विभाग में मिला दी जायेगी। इसका अर्थ यह हैं कि अब यह कार्यक्रम मातृत्व एवं बाल स्वास्थ्य की देखभाल और परिवार कल्याण की सेवाओं तक ही सीमित न रहकर स्त्री रोगों एवं यौन समस्याओं के निराकरण, सुरक्षित गर्भ समापन एवं पुनरुत्पादन, स्वास्थ्य शिक्षा और एड्स जैसी समस्याओं पर भी ध्यान देंगे।
  6. लक्ष्य निर्धारित नहीं- पुरुष एवं महिला नसबन्दी के कर्मचारीवार या संस्थावार कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किये जायेंगे।
  7. आर्थिक लाभ देना बन्द-परिवार नियोजन अपनाने वालों अभिप्रेरकों तथा उपलब्धियों के आधार पर संस्थाओं एवं राज्यों को प्रदान किये जाने वाले सभी आर्थिक लाभ बन्द कर दिये जायेंगे। इससे जो धनराशि बचेगी उसे नवसृजित जनसंख्या एवं सामाजिक विकास निधि‌ में जमा किया जायगा।
  8. जनसंख्या एवं सामाजिक विकास आयोग की स्थापना-जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए एक जनसंख्या एवं सामाजिक विकास आयोग की स्थापना की जायगी। इसका स्वरूप परमाणु ऊर्जा आयोग एवं अन्तरिक्ष आयोग जैसा होगा।
  9. मूल्यांकन- कार्यक्रम का मूल्यांकन मानव विकास सूचकों के आधार पर योजना आयोग एवं प्रस्तावित जनसंख्या एवं सामाजिक विकास आयोग द्वारा संयुक्त रूप से किया जायेगा।
  10. सन् 2010 के लिए निर्धारित लक्ष्य- ये निम्नानुसार हैं- (I) 18 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के विवाह होने की दर को शून्य स्तर पर लाना, (II) शत-प्रतिशत प्रसव प्रशिक्षित परिकाओं द्वारा करवाना, (III) मातृत्व मृत्यु दर को 100 प्रति एक लाख जीवित जन्म से कम स्तर पर लाना, (IV) क्षय रोग, पोलियो, गलाघोंटू, काली खाँस, टिटनेस एवं खसरा जैसे जानलेवा रोगों के विरुद्ध सार्वभौमिक टीकाकरण तथा अतिसार एवं श्वास रोगों की घटनाओं में कमी लाना, (V) शिशु मृत्युदर 30 प्रति एक हजार जीवित जन्म के स्तर पर लाना, (VI) बाल (1-4 वर्ष) मृत्यु दर में प्रभावी रूप से कमी लाना, (VII) जन्म के समय कम जन्म भार वाले नवजात शिशुओं की संख्या में कमी लाना, (VIII) सभी व्यक्तियों को जन्म सीमित करने की विधियों के बारे में सूचना की पहुँच सुनिश्चित करना, (IX) कुल प्रजनन दर को के स्तर पर लाने के लिए गुणात्मक गर्भ निरोधकों की सेवाएं सभी को समान रूप से उपलब्ध कराना, (X) एड्स एवं यौनजनित रोगों पर रोक लगाना।

नवीन जनसंख्या नीति, 2000

सरकार ने 15 फरवरी, 2000 को ‘राष्ट्रीय जनसंख्या नीति, 2000’ की घोषणा की। 11 मई, 2000 को देश में एक अरबवें बच्चे ने जन्म ले लिया और विश्व की जनसंख्या में भारत की जनसंख्या 16 प्रतिशत हो गयी। अत 2045 तक भारत की जनसंख्या की वृद्धि को स्थिर करने के उद्देश्य से इस नवीन जनसंख्या नीति की घोषणा की गयी हैं। इस नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-

  1. दो बच्चों के परिवार के नियम के अन्तर्गत 2045 तक देश की जनसंख्या को स्थिर करना।
  2. लोकसभा की सीटों का पुनर्सीमन 2026 तक टाल दिया गया हैं। पूर्व में यह 2001 की जनगणना के आधार पर होना था, परन्तु अब यह 2021 की जनगणना के आधार पर होगा। इसका उद्देश्य जनसंख्या पर अंकुश न लगाने वाले राज्यों को हतोत्साहितत करना है।
  3. जनसंख्या वृद्धि पर 2010 तक 2.1% के आदर्श स्तर पर लाकर पुनर्स्थापना दर एक करना।
  4. छोटे परिवार की नीतियों को आगे बढ़ाने वाली पंचायतों, जिला परिषदों को प्रोत्साहन दिया जायेगा।
  5. छोटे परिवार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परिवार नियोजन कार्यक्रमों को स्वास्थ्य बीमा योजना, बालिका समृद्धि योजना, मातृत्व लाभ योजना जैसे कार्यक्रमों से जोड़ा जायेगा।
  6. छोटे परिवार के सिद्धान्त का पालन करने वाले परिवारों के लिए 16 प्रोत्साहन तथा प्रेरक उपायों की घोषणा की गयी हैं।
  7. जनसंख्या नीति के सफल क्रियान्वयन हेतु प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग के गठन का निर्णय लिया गया हैं।

जनसंख्या नियन्त्रण कार्यक्रम : मिली-जुली सफलता

देश में 40 वर्षों से चल रहे परिवार नियोजन एवं कल्याण कार्यक्रमों को मिली-जुली सफलता मिली है। सकारात्मक धरातल पर भारत में जन्म दर जो 1951 में 41.7 प्रति हजार थी, 1981-91 में कम होकर 32.5 तथा 1994-95 में 28.3 रह गयी। गोवा, तमिलनाडू तथा केरल जैसे राज्यों में यह कार्यक्रम विशेष रूप से सफल रहा हैं, यहाँ जन्म दर घटकर क्रमशः 15.8, 21.6 तथा 19.6 हो गयी हैं। अनुमाने हैं कि इस कार्यक्रम के प्रारम्भ होने के बाद 13 करोड़ जन्मों को रोकने में सफलता मिली हैं। किन्तु फिर भी देश की जनसंख्या बढ़ रही हैं और शताब्दी के अन्त तक 100 करोड़ तक पहुँच जाने की सम्भावना हैं।

अनिवार्य रोग प्रतिरक्षण कार्यक्रम तथा अन्य मातृ एवं शिशु कल्याण कार्यक्रमों से शिशु मृत्यु दर में काफी कमी आयी हैं। 1971-81 में शिशु मृत्यु दर 15 प्रति हजार थी। वर्ष 1983 में जन टीकाकरण रोग प्रतिरक्षण कार्यक्रम को समूचे देश में अनिवार्य किया गया जिससे यह दर 1981-91 में घटकर 11.4 प्रति हजार तथा 2011-12 में घटकर 7.1 प्रति हजार तक आ गयी। सबसे अधिक महत्व की बात यह हैं कि परिवार कल्याण कार्यक्रम के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा उपकेन्द्र जैसी स्वास्थ्य सेवाओं की व्यवस्था हो गयी हैं, जिनके माध्यम से समाज के अति दुर्बल वर्गों को परिवार नियोजन सुविधाओं के साथ-साथ बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएँ भी उपलब्ध हो गयी हैं। किन्तु इस दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना हैं।

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Pankaja Singh

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