अर्थशास्त्र

अन्तर्वाह विदेशी पूँजी | विदेशी पूँजी के प्रति भारत सरकार की नीति | विदेशी पूँजी अन्तर्वाह

अन्तर्वाह विदेशी पूँजी | विदेशी पूँजी के प्रति भारत सरकार की नीति | विदेशी पूँजी अन्तर्वाह | inflow foreign capital in Hindi | Government of India’s policy towards foreign capital in Hindi | foreign capital inflow in Hindi

अन्तर्वाह विदेशी पूँजी

(Foreign capital Inflow) –

विदेशी पूँजी से आशय किसी उद्योग में विदेशी सरकार, संस्था या समुदाय द्वारा पूँजी निवेशित किये जाने से है। इस पूंजी का स्वरूप विदेशी मुद्रा, विदेशों से आयातित मशीन और विदेशों से आयातित तकनीक भी हो सकता है, किन्तु कुछ विदेशी संस्थाएँ या सरकारें ऋणों के साथ-साथ कुछ अनुदान भी उपलब्ध कराती हैं। इस अनुदान राशि को वापस नहीं लौटाना पड़ता। यह अनुदान भी विदेशी सहायता कहलाता है। यह सहायता वर्गीकृत और अवर्गीकृत दोनों प्रकार की हो सकती है। वर्गीकृत सहायता के अन्तर्गत मिलने वाली राशि किसी विशेष परियोजना के लिए उपलब्ध करायी जाती है और इस राशि को उसी निश्चित परियोजना पर व्यय करना पड़ता है, जबकि अवर्गीकृत श्रेणी में प्राप्त सहायता राशि किसी भी परियोजना के लिए उपयोग में लायी जा सकती है। आधुनिक अर्थव्यवस्था में ‘विदेशी पूँजी’ को सामान्यतया विदेशी सहायता कहकर सम्बोधित किया जाता है। ‘विदेशी सहायता’ शब्द बहुत अधिक व्यापक अर्थ वाला है। इसके अन्तर्गत विदेशी पूँजी, विदेशों से प्राप्त अनुदान सभी कुछ सम्मिलित किये जाते हैं।

(1) भारतीय अर्थव्यवस्था पर विदेशी सहायता का प्रभाव- विदेशी सहायता देश की उत्पादन क्षमता का किस सीमा तक विकास करने में सहायक हो सकती है, यह विदेशी सहायता के विवेकपूर्ण उपयोग तथा प्रापक देश के प्रयास और कुछ विनियोज्य साधनों पर निर्भर करता है। विदेशी सहायता बड़े पैमाने पर वैकल्पिक सम्भावनाएँ भी उत्पन्न करती है। उपभोक्ता वस्तुओं के रूप में प्राप्त सहायता के परिणामस्वरूप पूँजी निर्माण के लिए अन्तदेशीय साधनों के मोचन में सहायता मिल सकती है। अतः सहायता के प्रभाव का ठीक-ठीक अनुमान लगाना कठिन है। फलतः देश की उत्पादन क्षमता की वृद्धि में विदेशी सहायता के योगदान का महत्व निम्नलिखित है-

(2) खाद्य कीमतों को स्थिर रखने तथा कच्चे माल के आयात के लिए सहायता का उपयोग- प्रयुक्त कुल सहायता में से आधे से कुछ कम सहायता वस्तु या खाद्य के रूप में थी, जिसके अधिकांश भाग का उपयोग खाद्यात्र के आयात के लिए किया गया है। इस आयात ने खाद्यान्न की कीमतों को स्थिर करने में महत्त्वपूर्ण सहायता दी है और अकाल का सामना करने की क्षमता प्रदान की है। सहायता का एक अंश कच्चे माल और अतिरिक्त पुर्जो के आयात के लिए, जिनकी देश में कमी थी, प्रयुक्त किया गया है। इसके परिणामस्वरूप देश के उत्पादन में वृद्धि हुई है।

(3) परिवहन विशेषकर रेलवे के विकास के लिए सहायता कुल प्रयुक्त सहायता का बड़ा भाग अर्थात् 14 प्रतिशत परिवहन के विकास पर व्यय हुआ, जिसमें से अकेले रेलवे पर 12 प्रतिशत भाग व्यय किया गया। इसके कारण प्रारम्भिक वर्षो में रेलवे परिवहन को पुनः स्थापित करने तथा रेल के डिब्बों में वृद्धि करने और परिवहन इंजनों की मरम्मत आदि में महत्त्वपूर्ण सहायता मिलती है।

(4) सिंचाई और बिजली क्षमता के विस्तार के लिए सहायता का उपभोग- देश की सिंचाई क्षमता का विस्तार करके विदेशी सहायता ने कृषि उत्पादन की वृद्धि में बहुत अधिक योगदान दिया। डेरी और मत्स्य पालन के क्षेत्र में उत्पादन तकनीकी के आधुनिकीकरण में विदेशी सहायता से लाभ हुआ है। विदेशी सहायता में देश की बिजली क्षमता में काफी वृद्धि की है। यह सहायता विभिन्न स्रोतों में प्राप्त हुई है। इसके कारण हमारा देश मशीनों और उपकरणों का आयात कर सका है, जिनके प्रयोग से 1950-51 में 23 लाख किलोवाट की स्थापित क्षमता 2011- 12 तक बढ़कर 1032 लाख किलोवाट हो गयी। सन् 2022 तक नवीनीकरण ऊर्जा क्षमता 175 लाख मेगावाट तक करने का लक्ष्य रखा गया है।

विदेशी पूँजी के प्रति भारत सरकार की नीति –

(1) औद्योगिक विकास- भारत के औद्योगिक विकास के क्षेत्र में विदेशी पूँजी की भूमिका विशेष गौरवपूर्ण नही रही। हम देश में पहले विदेशी पूँजी अंग्रेजी शासन के काल में आयी थी, जिसका प्रधान उद्देश्य देश का शोषण करना था ब्रिटिश पूँजी का आधारभूत निर्माण उद्योगों के विकास में विशेष योगदान नहीं रहा है।

(2) भारतीय पूँजी- विदेशी पूँजी ने अनेक क्षेत्रों में भारतीय पूंजी के साथ अनुचित प्रतिस्पर्द्धा की। भारतीयों को न तो उद्योग सम्बन्धी तकनीकों में प्रशिक्षित किया गया और न ही उन्हें प्रबन्ध एवं व्यवस्था में कोई ऊंचा पद दिया गया।

(3) विदेशी पूँजी का निवेश- अप्रैल, 1948 ई. में भारत सरकार ने औद्योगिक नीति प्रस्ताव औद्योगिकीकरण के लिए विदेशी पूँजी की उपयोगिता को स्वीकार किया, परन्तु साथ ही इस प्रस्ताव में इस बात पर जोर दिया कि इकाईयों में विदेशी पूँजी के निवेश की अनुमति दी जाय, उनके स्वामित्व और प्रबन्ध में विदेशी हितों की प्रधानता नहीं रहनी चाहिए।

विदेशी निवेश ( Foreign Investment) – विदेशी पूँजी अधोलिखित तीन रूपों में प्राप्त होती है। यथा- 1. रियायती सहायता, 2. गैर रियायती सहायता, 3. विदेशी निवेश भारतीय उद्योगों में विदेशी निवेश के दो संघटक है यथा

वर्तमान भारत में क्षेत्रवार FDI का अन्तर्वाह

(अप्रैल, 2000 से मार्च, 2019 तक)

क्षेत्र

कुल FDI का प्रतिशत

1. सेवा क्षेत्र

17.65

2. कंप्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर

8.87

3. टेलीकम्यूनिकेशन

7.82

4. निर्माण गतिविधियां

5.96

5. ट्रेडिंग

5.48

स्रोत : DPII

(i) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI)

(ii) पोर्टफोलियो निवेश: इसके भी दो उपसंघटक हैं – विदेशी संस्थागत निवेश (FII) और यूरो इक्विटी तथा अन्य।

(i) प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) ( Foreign Direct Investment)- जब उत्पादन के साधनों (भूमि, मशीन, पूँजीगत सामान) में विदेशी निवेशक (व्यक्ति व कम्पनी) प्रत्यक्ष रूप से निवेश करते हैं तो उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की संज्ञा प्रदान की जाती है। सामान्यतः यह अवसंरचनात्मक और दीर्घकालिक उद्यमीय निवेश होता है। इससे घरेलू देश में भौतिक पूंजी निर्माण होता है, जिसका अनुकूल प्रभाव उत्पादन, आय तथा रोजगार पर होता है। इसमें ‘पूँजी पलायन’ (Capital Flight) का भय नहीं होता है। भारत में एफडीआई आने के दो रास्ते हैं- स्वचालित (Automatic) तथा सरकार (Government) द्वारा प्राप्त अनुमति का रास्ता। स्वचालित मार्ग के द्वारा FDI में सरकार द्वारा अनुमति की आवश्यकता नहीं होती है। इसका प्रबंधन RBI द्वारा किया जाता है जबकि सरकार द्वारा अनुमति का रास्ता विदेशी विनियोग प्रोत्साहन बोर्ड (FDI) द्वारा स्वीकृत किया जाता है। उल्लेखनीय है कि प्रत्यक्ष निवेश नीति निर्धारित करने की प्रमुख सरकारी संस्था ‘डिपार्टमेंट ऑफ इन्वेस्टमेंट पॉलिसी एंड प्रमोशन’ (DIPP) है। किसी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संबंध में विभिन्न एजेंसियाँ जैसे प्रवर्तन निदेशालय, सीबीआई तथा आरबीआई की सहमति लेकर एफआईपीबी (FIPB) उसका अनुमोदन करती है। ध्यातव्य है, कि विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (FIPB) द्वारा FDI आवेदनों की आनलाइन प्रक्रिया ई-फाइलिंग के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन के साथ सरकार ने वर्ष 2017-18 के केन्द्रीय बजट में FIPB को समाप्त करने की घोषणा की थी।

(1) पिछले तीन वर्षो में, सरकार ने कई सुधार जैसे, बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार नीति (IPR) की घोषणा, वस्तु एवं सेवा कर का क्रियान्वयन एवं व्यवसाय को सुगम बनाना आदि सुधार किए है। इन सुधारों के स्तर का पता इस तथ्य से लगाया जा सकता है, कि इस अवधि के दौरान, सेवा कार्यकलापों को भी शामिल करते हुए कुल 25 क्षेत्रों में और FDI नीति के 100 क्षेत्रों को कवर किया गया है। ध्यातव्य है कि वर्तमान में 90 प्रतिशत से भी अधिक FDI अन्तर्वाह स्वतः मार्ग के जरिए आते है।

(2) क्षेत्र जिसमें FDI की अनुमति नहीं है। यथा

(i) परमाणु ऊर्जा तथा रेलवे परिवहन

(ii) लॉटरी व्यापार

(iii) सट्टा बाजार और जुआ

(iv) चिट फण्ड व्यापार

(v) निधि कम्पनी

(vi) ट्रांसफरेबल डेवेलपमेन्ट्स राइट्स व्यापार

(vii) रियल एस्टेट कारोबार या फार्म हाउस का निर्माण

(3) अप्रैल, 2000 से मार्च 2019 के मध्य तक देश में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आधार पर मॉरिशस के बाद 19.76 फीसदी योगदान के साथ सिंगापुर का द्वितीय स्थान था। सिंगापुर ने पिछले 19 वर्ष में भारत में 82.9 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश किया था। जापान का 7.21 फीसदी योगदान के साथ तीसरा स्थान था। जापान ने इस दौरान 30.27 अरब डॉलर निवेश किया जबकि 27.35 अरब डॉलर FDI के साथ नीदरलैण्ड्स चौथे स्थान पर था। कुल FDI में नीदरलैण्ड का योगदान 6.51 फीसदी था। यू.के. से 26.78 अरब डॉलर का निवेश हुआ था, जो कुल इक्विटी निवेश में 6.38 फीसदी योगदान के साथ यह पांचवे स्थान पर था। कुल प्रवाह में 6.08 फीसदी योगदान और 25.55 अरब डॉलर निवेश के साथ यू.एस.ए. छठे स्थान पर था।

(4) इन 19 वर्षो में क्षेत्रवार सबसे ज्यादा 17.56 फीसदी FDI निवेश वित्त, बैंकिंग, बीमा जैसे सेवा क्षेत्रों में आया। दूसरा स्थान 8.87 फीसदी के साथ कम्प्यूटर साफ्टवेयर और हार्डवेयर का था तीसरा स्थान टेलीकम्यूनीकेशन क्षेत्र का था 7.82 प्रतिशत FDI आया था। निर्माण परियोजना क्षेत्र का चौथा स्थान (5.96%) था। ट्रेडिंग उद्योग में 5.48 फीसदी FDI निवेश हुआ और पाँचवें स्थान पर था।

पोर्टफोलियो निवेश- इस श्रेणी में वे विनियोग आते हैं जो किसी विदेशी द्वारा समता व अंशों के रूप में रखे जाते हैं। इसकी प्रकृति अस्थायी होती है। इस विनियोग पर एक निश्चित ब्याज व लाभांश की गारंटी दी जाती है। इस प्रकार के विनियोगकर्ता कोई जोखिम नही उठाते हैं। बाज़ार में उथल-पुथल की स्थिति में इसमें पूँजी पलायन का भय बना रहता है। इसमें कम्पनी का स्वामित्व और नियंत्रण भारतीयों के पास छोड़ दिया जाता है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में पोर्टफोलियों विनियोग के अन्तर्गत प्रमुखतः सार्वभौमी न्यासी रसीदों (Global Depository Receipts- GDR), अमेरिकी न्यासी रसीदों (American Depositary Receipts ADR) और विदेशी संस्थागत निवेश (FII) आदि गम्मिलित होते हैं। वर्ष 2015-16 में पोर्टफोलियो निवेश ऋणात्मक (-26206 करोड़ रुपये) रहा। ध्यातव्य है, कि वर्ष 2008 की वैश्विक मंदी के पश्चात् ऐसा पहली बार हुआ था।

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Pankaja Singh

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