अर्थशास्त्र

भारत में बेरोजगारी | बेरोजगारी का अर्थ | भारत में बेरोजगारी के प्रकार | भारत में बेरोजगारी की प्रकृति एवं कारण

भारत में बेरोजगारी | बेरोजगारी का अर्थ | भारत में बेरोजगारी के प्रकार | भारत में बेरोजगारी की प्रकृति एवं कारण | Unemployment in India in Hindi | Meaning of unemployment in Hindi | Types of Unemployment in India in Hindi | Nature and causes of unemployment in India in Hindi

भारत में बेरोजगारी

भारत में ग्रामीण बेरोजगारी की समस्या अत्यन्त भीषण हैं। इस कृषि- प्रधान देश में बेरोजगारी से भी अधिक जटिल समस्या अल्प-रोजगार अथवा छिपी हुई बेरोजगारी की हैं। विशेषतया कृषि में स्वयं रोजगार (Self-employment) की स्थिति होती हैं। खेती पर पारिवारिक श्रम प्रयुक्त होता हैं।

बेरोजगारी का तात्पर्य जब एक व्यक्ति को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए कोई रोजगार नहीं मिलता हैं, तो इसे हम बेरोजगार व्यक्ति कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जब कोई व्यक्ति कार्य करने के लिए इच्छुक हो, शारीरिक रूप में समर्थ हो, लेकिन उसे कोई कार्य नहीं मिलता हो, तो इसे बेरोजगारी की समस्या कहते हैं। प्रायः सभी देशों में सम्पूर्ण कार्य चाहने वाली जनसंख्या रोजगार में नहीं लगी होती हैं बल्कि उनका कुछ हिस्सा बेरोजगार होता हैं। बेरोजगारी प्राय: उन देशों में अधिक होती हैं, जो अल्पविकसित हैं और जहाँ जनसंख्या तीव्रगति से बढ़ रही हो। बेरोजगारी की समस्या भारत में अत्यन्त गम्भीर हैं। भारत में बेकारी की समस्या से न केवल वे ही व्यक्ति प्रभावित हैं जो बेकार हैं, अपितु समूचे देश पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा हैं, इससे देश का आर्थिक विकास रुक जाता हैं और देश में नाना प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा नैतिक बुराइयाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

बेरोजगारी का अर्थ-

बेरोजगारी वह स्थिति हैं जिसमें देश के स्वस्थ, योग्य कार्य करने के लिए उपयुक्त अवस्था वाले व्यक्ति प्रचलित मजदूरी की दर पर कार्य करना चाहते हैं, किन्तु कार्य पाने में वे असमर्थ हैं। वे व्यक्ति बेकार नहीं माने जाते जो शारीरिक, मानसिक दृष्टि से कार्य के अयोग्य हैं या जो स्वेच्छा से कार्य नहीं करना चाहते। इस प्रकार बालक, वृद्ध, रोगी तथा अन्य प्रकार से कार्य करने के लिए अयोग्य व्यक्ति तथा काम न करने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति बेकार नहीं समझे जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति ऐसा हैं जिसे दिन में केवल कुछ ही घण्टे कार्य प्राप्त हैं या योग्यतानुसार कार्य नहीं हैं, तो उसमें आंशिक बेकारी वर्तमान हैं। यदि कहीं दस  व्यक्तियों की कार्य पर आवश्यकता है और वहाँ ग्यारह व्यक्ति कार्य करते हैं, तो प्रत्यक्ष रूप से तो कोई बेकार नहीं है, किन्तु वास्तव में अदृश्य बेरोजगारी विद्यमान हैं।

भारत में बेरोजगारी के प्रकार

  1. मौसम बेरोजगारी- भारत में कुछ उद्योग वर्ष भर नहीं चलते, ऐसे उद्योगों में श्रमिकों के पास तभी तक कार्य रहता हैं जब कि उत्पादन कार्य चलता रहता है। लगभग सभी देशों में कृषि मौसमी उद्योग हैं। अत मौसमी बेरोजगारी पायी जाती हैं। भारत में बर्फ एवं चीनी उद्योग में कार्य करने वाले श्रमिकों के समक्ष मौसमी बेकारी की समस्या रहती हैं।
  2. अदृश्य बेरोजगारी- गाँवों में खेती पारिवारिक हुआ करती हैं। परिवार के सभी व्यक्ति कृषि कार्य में लगे हुए हैं चाहे उतनी संख्या में व्यक्तियों के लिए कार्य रहे या न रहे। यदि कार्य कम भी रहता हैं, तो भी परिवार के सभी सदस्य उसे बाँट लेते हैं। इस प्रकार देखने में तो सभी व्यक्ति कार्यरत हैं, किन्तु ऐसी स्थिति को अदृश्य बेरोजगारी कहते हैं।
  3. व्यापार चक्रीय बेरोजगारी- व्यापार चक्रीय बेरोजगारी उद्योगों में मन्दी स्थिति में उत्पन्न होती हैं। भारत में औद्योगिक मन्दी 1967 के प्रारम्भ में हो जाने के कारण कुछ उद्योगों में चक्रीय बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी।
  4. स्वैच्छिक बेरोजगारी- डिलार्ड के अनुसार स्वैच्छि बेरोजगारी उस समय होती हैं जब सम्भाव्य श्रमजीवी प्रचलित मजदूरी या प्रचलित मजदूरी से कुछ कम स्वीकार करने के लिए तत्पर नहीं होते। प्राय श्रमिक मजदूरी की प्रचलित दर से सन्तुष्ट नहीं होते और उसमें वृद्धि के लिए हड़ताल करते हैं। हड़ताली श्रमिक स्वैच्छिक बेरोजगार समझे जाते हैं।
  5. संघर्ष बेरोजगारी- संघर्ष बेरोजगारी उस समय उत्पन्न होती हैं जबकि किसी परिवर्तन के कारण कुछ दिनों के लिए लोग बेकार हो जाते हैं। प्राविधिक विकास के कारण श्रमिकों को प्राचीन उत्पादन प्रणाली को त्याग कर नवीन यन्त्रों तथा प्रणालियों को अपनाना पड़ता है। इस समायोजन में समय लगता है और इस अवधि में श्रमिक बेकार रहते हैं। इसकी अल्पकालीन बेरोजगारी को संघर्ष बेरोजगारी कहते हैं।
  6. अस्थायी बेरोजगारी- सभी उद्योगों में श्रम की मांग सदैव समान रूप से नहीं बनी रहती। जब किसी उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग कम हो जाती हैं तो उसमें लगे श्रमिकों को कम करना आवश्यक हो जाता हैं। इसलिए उद्योग विशेष में अल्पकाल के लिए बेरोजगारी उत्पन्न हो जाती हैं, इसे अस्थायी बेरोजगारी कहा जा सकता हैं।
  7. खुली बेरोजगारी- जब व्यक्ति कार्य करने के योग्य हो और कार्य करना चाहता हो, लेकिन उसे बिल्कुल काम नहीं मिल पाता हैं तो उसे खुली बेरोजगारी कहते हैं। इस प्रकार की बेरोजगारी वर्तमान समय में विद्यमान हैं, क्योंकि लाखों पढ़े-लिखे व्यक्ति काम चाहते हैं, परन्तु उन्हें कोई काम नहीं मिलता हैं।
  8. शिक्षित बेरोजगारी- शिक्षित व्यक्ति जब काम नहीं पाते हैं और बेरोजगार रहते हैं, तो इसे शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता हैं। कुछ शिक्षित व्यक्ति अल्प रोजगार की भी स्थिति में होते हैं अर्थात् अपनी योग्यता एवं क्षमता के अनुसार काम नहीं पाते हैं, कुछ शिक्षित व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जिन्हें बिल्कुल ही कोई काम नहीं मिल पाता हैं अर्थात् वे खुले रूप में बेरोजगार होते हैं। आज भारत में शिक्षित बेरोजगारी की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं। अत उनके समाधान के लिए किसी विशेष कार्यक्रम को चलाना अति आवश्यक हैं।
  9. रोजगार की कमी से उत्पन्न खुली बेरोजगारी- खुली बेरोजगारी से तात्पर्य हैं कि प्रतिवर्ष रोजगार के उतने अवसर सुलभ नहीं हो पाते जितना कि लोग चाहते हैं। भारत में खुली बेरोजगारी की स्थिति वर्तमान समय में विद्यमान हैं। देश में शिक्षित, तकनीकी, गैर-तकनीकी तथा ग्रामीण एवं शहरी सभी व्यक्तियों में ऐसी बेरोजगारी विद्यमान हैं।
अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!