अर्थशास्त्र

भारत की व्यापार की दिशा | भारत में निर्यात सम्वर्द्धन सम्बन्धी प्रयत्न | आयात प्रतिस्थापन के सुधार के लिए सुझाव | भारत की विदेशी व्यापार नीति के प्रमुख तत्व

भारत की व्यापार की दिशा | भारत में निर्यात सम्वर्द्धन सम्बन्धी प्रयत्न | आयात प्रतिस्थापन के सुधार के लिए सुझाव | भारत की विदेशी व्यापार नीति के प्रमुख तत्व | India’s business direction in Hindi | Efforts related to export promotion in India in Hindi | Suggestions for Improvement of Import Substitution in Hindi | Key Elements of India’s Foreign Trade Policy in Hindi

भारत की व्यापार की दिशा-

गत 39 वर्षो में भारत की व्यापार की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं जिन्हें निम्न शीर्षक के अन्तर्गत समझा जा सकता है-

(क) निर्यात की दिशा में परिवर्तन,

(ख) आयात की दिशा में परिवर्तन।

(क) निर्यात की दिशा में पपरिवर्त- भारत की निर्यातों की दशा में अग्रलिखित महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।

(1) 1965-75 में सोवियत संघ रूस तथा अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों के साथ निर्यात व्यापार में वृद्धि हुई है। तृतीय योजनाकाल से रूस तथा अन्य देशों के साथ किये जाने वाले मेरी यादों में वृद्धि संभव हो सकी है। सन् 1950-51 में इन देशों को किया जाने वाला निर्यात नगण्य था जबकि वर्तमान समय में यह बढ़कर लंगभग 10 प्रतिशत हो गया है।

(2) विगत वर्षों में भारत से ब्रिटेन और अमेरिका को किये जाने वाले निर्यातों में कमी हुई है। सन् 1950-51 में भारत के कुल निर्यातों का लगभग 40 प्रतिशत भाग इन दोनों देशों को निर्यात किया जाता था लेकिन वर्तमान समय में यह योगदान घटकर 23 प्रतिशत रह गया है। लेकिन अभी भी अमेरिका सबसे बड़ा आयातकर्ता देश बना हुआ है।

(3) भारत के निर्यात में अधिक विविधता आ गयी है। जो देश 1950-51 में भारत के विदेशी व्यापार में सम्मिलित नहीं थे वे अब प्रमुख आयातकर्त्ता देश बन गये हैं। उदाहरण के लिये 1950-51 में भारत के कुल निर्यातों का लगभग 1 प्रतिशत भाग जापान को निर्यात किया जाता था। लेकिन अब यह योगदान बढ़कर लगभग 10 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी जर्मनी, नीदरलैण्ड, फ्रांस और इटली भारतीय सामान के प्रमुख आयातकर्ताओं के रूप में उभरकर सामने आये हैं।

(ख) आयात की दिशा में परिवर्तन- आयात की दिशा में एक अर्थव्यवस्था की विकास सम्बन्धी आवश्यकताओं पर निर्भर करती है। भारत के आर्थिक विकास के प्रारम्भिक चरण में विकास आवश्यकताओं की वित्त सम्बन्धी पूर्ति विदेशी सहायता प्रदान करने वाले देशों से ही भारत ने वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया था। उदाहरण के लिए 1965-66 में भारत के कुल आयातों का लगभग 35 प्रतिशत भाग अमेरिका से आयात किया गया था। यद्यपि अब भी भारत अमेरिका से आयात करता है, परन्तु इसकी प्रतिशतता में कमी आयी है। विगत वर्षो में भारत ने बेल्जियम, फ्रांस, कनाडा, जापान तथा पश्चिमी जर्मनी के साथ आयात व्यापार के सम्बन्ध स्थापित किये थे। विगत वर्षों में भारत को तेल उत्पादक देशों से बड़ी मात्रा में आयात करना पड़ा था इसका कारण पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में असाधारण वृद्धि है।

भारत में निर्यात सम्वर्द्धन सम्बन्धी प्रयत्न-

भारत में निर्यात संबर्द्धन सम्बन्धी निम्न प्रयत्न किये गये हैं-

(अ) जाँच समितियों की स्थापना –

(1) सन् 1948 में ए.डी. गोरवाला की अध्यक्षता में एक जाँच समिति का गठन किया गया। इस समिति द्वारा कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ाने तथा आन्तरिक उपभोग में कमी करके निर्यात बढ़ाने सम्बन्धी कार्यों को बढ़ाने के अनेक महत्वपूर्ण दिये थे।

(2) सन् 1957 में डीसूजा समिति का गठन किया गया। इस समिति द्वारा कृषि क्षेत्र में उत्पादन वृद्धि करने, घरेलू उपभोग में कमी करके निर्यात में वृद्धि करने तथा व्यापार की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने सम्बन्धी कुछ सुझाव दिये।

(3) सन् 1961 में मुदालियर समिति का गठन किया गया। इस समिति द्वारा प्राथमिकता के आधार पर कच्चा माल देने, मशीनों को निर्मित करने हेतु विदेशी मुद्रा उपलब्ध करने सम्बन्धी अनेक महत्वपूर्ण सुक्षाव दिये गये।

(ब) निर्यात सम्बर्द्धन संगठनों की स्थापना-

भारत सरकार द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में निर्यात सम्बर्द्धन संगठनों की स्थापना की गई। इनमें निम्नलिखित संगठनों की नियुक्ति उल्लेखनीय है-

  1. व्यापार मण्डल का गठन- इस संगठन का गठन सन् 1962 में किया गया। इस संगठन में राष्ट्र के प्रतिष्ठावान अर्थशास्त्री, प्रसिद्ध उद्योगपति तथा सरकार के व्यापार प्रतिनिधि सम्मिलित किये गये। यह संगठन निर्यात सम्बर्द्धन सम्बन्धी मामलों पर सरकार को सलाह देता है।
  2. क्षेत्रीय आयात सलाहकार समितियाँ- ये समितियाँ भारत में विभिन्न क्षेत्रों में विदेशों से मशीनें व अन्य आवश्यक उपकरण उपलब्ध करने तथा उनके प्रयेग द्वारा निर्यात में वृद्धि करने सम्बन्धी कार्यों पर सरकार को समय-समय पर समुचित सलाह देती है। देश में औद्योगिक क्षेत्रों के निर्माण के सम्बन्ध में इन समितियों की संरचना सराहनीय रही है।
  3. निर्यात सम्बर्द्धन परिषदें – भारत सरकार द्वारा विभिन्न वस्तुओं के निर्यात के सम्बन्ध में निर्यात परिषदों की स्थापना की गयी है। ये परिषदें विभिन्न वस्तुओं के निर्यात के सम्बन्ध में सरकार को समय-समय पर समुचित राय देती हैं।
  4. सरकारी व्यापार निगमों की स्थापना- भारत द्वारा साम्यवादी राष्ट्रों के साथ व्यापार बढ़ाने हेतु सन् 1956 में भारतीय कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत राज्य व्यापार निगम की स्थापना की गयी। इन निगमों के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं

(अ) निर्मित वस्तुओं के निर्यात को अधिकाधिक प्रोत्साहन प्रदान करना, (ब) देश में पूँजीगत वस्तुओं के आयात की व्यवस्था करना, (स) आयात-निर्यात की असमानता को दूर कर अनुकूल व्यापारिक तथा भुगतान संतुलन की स्थिति उत्पन्न करना, (द) देश के विभिन्न राज्यों में ये निगम कार्यरत हैं तथा इनके द्वारा निर्यात व्यापार को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।

  1. निर्यात-सम्बर्द्धन निदेशालय- इन निदेशालय की स्थापना सन् 1947 में की गयी थी। यह निदेशालय देश की अनेक व्यापारिक संस्थाओं को निर्यात सम्बन्धी सलाह देता है। यह सरकार द्वारा निर्धारित नियमों व निर्देशों को कार्य रूप में परिवर्तित कराता है।
  2. संयुक्त व्यापार समझौता कार्यक्रम- इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत सरकार द्वारा अविकसित राष्ट्रों के साथ संयुक्त व्यापार समझौते किये जाते हैं तथा आपसी हितों में वृद्धि हेतु विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन प्रदान किया जाता है।
  3. व्यापारिक सूचना निदेशालय- भारत सरकार द्वारा कलकत्ता में केन्द्रीय स्तर पर एक व्यापारिक सूचना निदेशालय की स्थापना की गयी है।
  4. निर्यात गृह- भारत सरकार द्वारा निर्यात व्यापार को प्रोत्साहन प्रदान करने के उद्देश्य से भारत में अनेक स्थानों पर निर्यात गृहों की स्थापना की गयी है। इन निर्यात गृहों को निर्यात वृद्धि की विशेष सुविधा दी गयी है।
  5. निर्यात प्रोत्साहन परिषदें- भारत में निर्यात व्यापार को प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु निर्यात प्रोत्साहन परिषदों की स्थापना की गयी है। ये परिषदें विदेशों में भारतीय माल की प्रदर्शनी कक खोज करती हैं।
  6. निर्यात सम्बर्द्धन निदेशालय – सन् 1957 में भारत सरकार द्वारा केन्द्रीय स्तर पर एक निर्यात सम्बर्द्धन निदेशालय की स्थापना की गयी। यह निदेशालय भारत में निर्यात व्यापार में वृद्धि करता है।
  7. विदेशी व्यापार मण्डल- जुलाई, सन् 1957 में इस मण्डल की स्थापना की गयी। यह मण्डल विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु विभिन्न उद्योगों में एकीकरण की व्यवस्था करता है।
  8. राष्ट्रीय उत्पादन समिति तथा विदेशी व्यापार समिति- सन् 1967 में श्री बी.टी. दहेजिया की अध्यक्षता में राष्ट्रीय उत्पादन समिति एवं विदेशी व्यापार समिति का गठन किया गया। इस समिति द्वारा विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित करने हेतु अनेक महत्वपूर्ण सुझाव दिये गये हैं, जिनके फलस्वरूप विदेशी व्यापार में तीव्र गति से उन्नति होने की सम्भावना है। इस समिति द्वारा भारत में निर्यातकों को अपनी निर्यात योग्य वस्तु में करों में छूट तथा आर्थिक सहायता प्रदान की जायेगी।

आयात प्रतिस्थापन के सुधार के लिए सुझाव-

आयात प्रतिस्थापन की योजना को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक है कि –

  1. उत्पादन क्षेत्रों में आयात प्रतिस्थापन के प्रति जनजागरण तथा आकर्षण उत्पन्न करने के लिये उज्जवल मैद्रिक एवं आर्थिक नीतियां अपनायी जायें।
  2. आयात प्रतिस्थापन के क्षेत्र में निरुत्साह उत्पन्न करने वाले आयात कर समाप्त किये जाये।
  3. आयात प्रतिस्थापन के लिये वैज्ञानिक नीतियों का निर्माण करने व सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने के लिये उच्च स्तरीय संस्था की स्थापना की जाये।
  4. प्रावैगिक एवं तकनीकी ज्ञान का विकास व प्रसार किया जाये।
  5. जिन कलपुर्जों का स्वदेशी उत्पादन होता है उनके आयातों पर रोक लगायी जाये।
  6. आयात प्रतिस्थापन के लिये एक मनोवैज्ञानिक एवं औद्योगिक वातावरण तैयार किया जाय।
  7. न्यून प्राथमिकता वाली अनावश्यक एवं विलास वस्तुओं के प्रयोग को बन्द करना या घटा देना तथा इनके लिये स्वदेशी प्रतिस्थापन खोजना।
  8. आधुनिक मशीनों और साज सामानों के प्रयोग तथा कुशल प्रबन्ध द्वारा दुर्लभ सामग्रियों का अपव्यय रोकना या कम करना।
  9. महंगे आयातों का वैकल्पिक आयातों से जो कि सस्ते हों, प्रतिस्थापन करना।
  10. कच्चे मालों, स्पेयर्स, निर्मित वस्तुओं आदि का अधिकतम प्रमापीकरण करना जिससे परस्पर परिवर्तन सम्भव हो जाये।
  11. नयी क्षमतायें उत्पन्न करने के बजाय विद्यमान क्षमता का पूर्णतया प्रयोग करना और जहाँ जहाँ सम्भव हो वहां विद्यमान प्लांटों को बढ़ाना।
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Pankaja Singh

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