शिक्षाशास्त्र

पर्यावरण शिक्षा का स्वरूप | पर्यावरण शिक्षा एवं भविष्यगत सम्भावनाएं | प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम | प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का निर्धारण | शिक्षक प्रशिक्षण स्तर पर पर्यावरण शिक्षा की सम्भावनाएं

पर्यावरण शिक्षा का स्वरूप | पर्यावरण शिक्षा एवं भविष्यगत सम्भावनाएं | प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम | प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का निर्धारण | शिक्षक प्रशिक्षण स्तर पर पर्यावरण शिक्षा की सम्भावनाएं | Nature of environmental education in Hindi | Environmental education and future prospects in Hindi | Curriculum of environmental education at elementary level in Hindi | Determination of environmental education at the elementary level in Hindi | Prospects of environmental education at teacher training level in Hindi

पर्यावरण शिक्षा का स्वरूप

मानव सभ्यता एवं संस्कृति के विकास की कहानी पर्यावरण के साथ उसके पारस्परिक अन्तः प्रक्रिया का परिणाम है। मानव एक विवेकशील सामाजिक प्राणी है, इसीलिये एक और तो वह पर्यावरण के अनुसार अपने आप को ढालता है तो दूसरी ओर पर्यावरण पर अधिकार जमा लेने की भी चेष्टा करता है। इस शाश्वत ऊहापोह पर गम्भीर विचार करना ही पयावरण शिक्षा के स्वरूप पर कुछ प्रकाश डाल सकता है।

पर्यावरण एक व्यापक प्रत्यय है। यह सम्पूर्ण पृथ्वी, समस्त प्राणियों, वनस्पतियों तथा अपनी समग्र जीवित अजीवित सम्पत्ति के साथ हमारे पर्यावरण का निर्माण करती हैं। इस पर्यावरण में अन्तत: वैविध्य है। पर्यावरण को बदलने तथा उस पर विजय प्राप्त करने को सतत् संघर्षशील मानव ने अनेकानेक भौतिक सुविधाओं का सृजन कर लिया है। नहरें, सड़कें, गगनचुम्बी इमारतें, कल-कारखाने, विशाल उद्योग एवं नगर, मानवीय सम्बन्ध, पारस्परिक प्रेम, सामाजिक संस्थाएं, आर्थिक उपक्रम आदि सभी इसी पर्यावरण के घटक हैं।

आज की बढ़ती जनसंख्या को अनेकानेक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु, औद्योगीकरण तथा आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से पर्यावरण का अविवेकपूर्ण दोहन किया गया है, वह अभी भी जारी है। इसके विध्वंस के फलस्वरूप पर्यावरण असंतुलन बढ़ता ही  जा रहा है। अतः आज पर्यावरण संरक्षण एवं विकास हेतु बहुमुखी प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

यह नि:संदेह सत्य है कि इन प्रयासों में शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है। वास्तव में पर्यावरण शिक्षा द्वारा छात्रों में प्रारम्भ से ही पर्यावरण संरक्षण की भावना तथा अभिवृत्ति को विकसित करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नोति, 1986 ने पर्यावरण शिक्षा के दस घटकों में महत्तवपूर्ण स्थान दिया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने शीर्षक शिक्षा एवं पर्यावरण के अन्तर्गत संस्तुति की है-

पर्यावरण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने हेतु सभी आवश्यक प्रयास करने चाहिए ताकि यह जागरूकता बच्चों से लेकर समाज के सभी आयु वर्गों एवं क्षेत्रों तक पहुंच सके।

पर्यावरण शिक्षा एवं भविष्यगत सम्भावनाएं-

पर्यावरण शिक्षा को जिस द्रुत गति से प्रेरणा एवं आन्दोलन के रूप में भारत में लागू किया गया है उससे तो भविष्य की सुन्दर कल्पनाएं ही साकार होती प्रतीत होती हैं, किन्तु समस्त प्रयत्नों के बावजूद निरक्षर जनमानस इस योजना के फलीभूत होने में बाधक है। फिर भी भारत सरकार ने राज्य सरकारों को जो प्रोत्साहन एवं प्रेरणा प्रदान की है उससे उज्ज्वल पर्यावरण की आशाएं बंधी हैं। यहां पर हम उत्तर प्रदेश राज्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे निर्धारित पाठ्यक्रम पर संक्षिप्त दृष्टिपात करते हुए इस तथ्य की पुष्टि करने का प्रयास करेंगे।

प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम-

वर्तमान समय में कक्षा-1. कक्षा- 2 में पर्यावरण अध्ययन एकीकृत अध्ययन के रूप में रखा गया है जबकि कक्षा-3, तथा कक्षा- 4 में पर्यावरण अध्ययन (प्राकृतिक) तथा पर्यावरण अध्ययन (सामाजिक) दो खण्डों में बांटा गया है। कक्षा एक से पांच तक के पाठ्यक्रम में पर्यावरण का सामान्य परिचय तथा क्षेत्र-भरातल, जल, वायु प्रदूषण, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक पर्यावरण, गांव, जनपद, तहसील, प्रदूषण के कारण, संरक्षण के उपाय निर्धारित किये गये हैं। इस स्तर पर पर्यावरण शिक्षा के सामान्य उद्देश्य निम्नलिखित निर्धारित किये गये हैं-

  1. बालक-बालिकाओं में अवलोकन एवं अन्वेषण द्वारा प्रकृति तथा मानव में स्थित परस्पर निर्भरता का समझना तथा सम्बन्धित क्षमता का विकास करना।
  2. बालकों में अपनी शारीरिक प्रक्रियाओं को समझने की क्षमताओं का विकास करना।
  3. बालक-बालिका अपने पर्यावरण को जीव जगत का अभिन्न अंग मानते हुए उसको प्रशंसा कर सकें।

इस स्तर पर शिक्षण हेतु निम्नलिखित प्रविधियों का सहारा लिया जायेगा-

(1) प्रेक्षण तथा अवलोकन

(2) प्रायोगिक कार्य

(3) प्रयोग-प्रदर्शन

(4) सृजनात्मक कौशल

प्रारम्भिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का निर्धारण-

कक्षा-6 से 10 तक पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा स्वतन्त्र विषय के रूप में सही है पर सामान्य विज्ञान में इसका ज्ञान विभिन्न अध्यायों के माध्यामें से दिया गया है। जैसे-

  1. पेड़-पौधों की संरचना
  2. पेड़-पौधों के अंगों के कार्य
  3. पेड़-पौधों को उपयोगिता
  4. जल के स्रोत
  5. प्रदूषण फैलाने वाले घटक
  6. प्रदूषण मुक्ति के उपाय
  7. प्रदूषित करने वाले तत्व
  8. वायु प्रदूषण के कारण
  9. ध्वनि प्रदूषण एवं कारण
  10. मृदा प्रदूषण

इसी प्रकार कक्षा-7 एवं 10 की पाठ्य-पुस्तकों में सामाजिक विषय के अन्तर्गत सामाजिक पर्यावरण के पाठों को रखा गया है; जैसे-

  1. विज्ञान और सामाजिक विज्ञान में सम्बन्ध
  2. समाज, संस्कृति एवं रूढ़ि आदि।

इस स्तर पर पर्यावरण शिक्षा प्रदान करने हेतु निम्नलिखित कार्यक्रमों को संस्तुति को गयी है।

1.भौगोलिक एवं ऐतिहासिक पर्यटन योजनाएँ

  1. राष्ट्रीय एवं आर्थिक त्यौहारों का आयोजन
  2. पर्यावरण सम्बन्धी प्रदर्शनियों का आयोजन
  3. क्षेत्र की जनसंख्या, भूमि, पशु, व्यवसाय, यातायात के साधनों सम्बन्धी परियोजनाए
  4. पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी वार्तालाप, चर्चा तथा वाद-विवाद
  5. निबन्ध, लेख, अत्याक्षरी प्रतियोगिताएं।

शिक्षक प्रशिक्षण स्तर पर पर्यावरण शिक्षा की सम्भावनाएं-

उत्तर प्रदेश में प्रचलित बी०टी० सी० पाठ्यक्रम के तहत पंचम प्रश्न पाठशाला प्रबन्ध, सामुदायिक तथा स्वास्थ्य सेवाएं, आदि के अन्तर्गत पर्यावरण शिक्षा के प्रमुख बिन्दुओं को जोड़ा गया है। किन्तु आधुनिक समय में पर्यावरण शिक्षा को नैतिक शिक्षा से जोड़ने की अति आवश्यकता है। छात्राध्यापकों को पर्यावरण शिक्षा पर कम-से-कम 5 पाठ पढ़ाना अनिवार्य होना चाहिए। शिक्षा विभाग द्वारा संचालित एल० टी० (सामान्य) पाठ्यक्रम के तृतीय प्रश्न-पत्र विद्यालय संगठन, स्वास्थ्य शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा जनुसंख्या को विद्यालय संगठन, स्वास्थ्य शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा तथा पर्यावरण शिक्षा नाम से पुकारा जाता है। इसी प्रकार बॉ० एड० के पाठ्यक्रम में भी विभिन्न विश्वविद्यालयों ने कतिपय परिवर्तन करके पर्यावरण शिक्षा को अलग-अलग महत्त्व प्रदान किया है। कुछ विश्वविद्यालयों में तो इसे अनिवार्य तथा आंशिक (ऐच्छिक) प्रश्न-पत्र के रूप में भी पढ़ाया जाने लगा है। वृहद संवारत् प्रशिक्षक प्रशिक्षणों में भी पर्यावरण शिक्षा को महत्त्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाना आवश्यक है।

अब राष्ट्रीय सेवा योजनाओं, एन० सी० सी० के क्रियाकलापों में भी पर्यावरण शिक्षा को जोड़ दिया गया है। इसके अतिरिक्त इसे अन्य पाठ्यक्रमों के अन्तर्गत भी स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर आवश्यक महत्त्व दिया जाना आवश्यक है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद यद्यपि पर्यावरण चेतना का स्वरूप भारत में सुनिश्चित हुआ है, लोगों में जागरूकता आई है, उनमें संवेदी हलचल दृष्टिगोचर हुई। इसमें बहुत बड़ा कार्य राष्ट्रीय योजनाओं के लागू होने का भी परिणाम है, जैसे-

  • गंगा-शुद्धिकरण परियोजना
  • वाटर मिशन
  • चिपको आन्दोलन
  • बांध रोको परियोजनाएं आदि।

अन्ततः बदलती हुई परिस्थितियों में अब यह अत्यन्त आवश्यक हो गया है कि पर्यावरण शिक्षा का केवल ज्ञान प्रदान करना हो लाभप्रद सिद्ध नहीं होगा किन्तु इसे तो मनमानस में रचा बसा देना होगा।”

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Pankaja Singh

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