
परिवर्तनशील लागत नियम | परिवर्तनशील अनुपात नियम की परिभाषा | परिवर्तनशील अनुपात नियम की मान्यताएं
परिवर्तनशील लागत नियम
परिवर्तनशील लागतें वे लगतें होती हैंजो कि परिवर्तनशील साधनों को काम पर लगाने पर उठाई जाती है और जिन्हें अल्पकाल में बदला जा सकता है। इसका तात्पर्य है कि कुल परिवर्तनशील लगतें अल्पकाल में उत्पादन में परिवर्तन के फल स्वरूप बदल जाती है अर्थात जब उत्पादन में वृद्धि होती है तो यह लगतें बढ़ जाती है और उत्पादन में कमी होती है तो यह लगतें भी बढ़ जाती है।यदि किसी भी कारण से उत्पादन बंद भी हो जाता है तो परिवर्तनशील लागत शुन्य हो जाती है। प्रोफ़ेसर बैन के अनुसार, “परिवर्तनशील लागत वे लागत हैं जिनकी राशि उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर परिवर्तित होती है।”
परिवर्तनशील अनुपात नियम की परिभाषा
यह परिवर्तनशील उत्पत्ति के साधनों की भौतिक मात्राओं और उत्पादन की भौतिक मात्राओं के बीच संबंध बताने वाला तकनीकी नियम है, जिसे विभिन्न वास्तु शास्त्रियों ने विभिन्न शब्दों में परिभाषा किया है।
श्रीमती जान रॉबिंसन के मतानुसार, “परिवर्तनशील अनुपातों का नियम अथवा उत्पत्ति हास्य नियम, जैसा किसे बनाया गया है,बतलाता है की उत्पत्ति के किसी एक साधन की स्थिर मात्रा के साथ उत्पत्ति के अन्य मात्रा को उत्तरोत्तर बढ़ाने से 1 बिंदु के बाद, उत्पादन में घटती हुई दर से वृद्धि होगी।”
बेन्हम के शब्दों में, “साधनों के संयोग में जैसे-जैसे एक साधन का अनुपात बढ़ाया जाता है, एक बिंदु के बाद, उस साधन की सीमांत एवं आवश्यक उत्पत्ति घटती जाती है।”
सेम्युलसन के शब्दों में, “किसी अपेक्षाकृत स्थिर निविष्टि के साथ अन्य निविष्टियोंमैं वृद्धि करने पर उत्पादन बढ़ेगा किंतु एक बिंदु के बाद निविष्टिकी उतनी ही वृद्धि के परिणाम स्वरुप अतिरिक्त उत्पादन कम और कम होता जाएगा। अतिरिक्त प्रतिफल में यह गिरावट आना इस तथ्य का परिणाम है कि परिवर्तन से साधनों की नई ‘निविष्टियों’की कार्य के संदर्भ में स्थिर साधन उत्तरोत्तर पड़ने लगते हैं।”
परिवर्तनशील अनुपात नियम की मान्यताएं
परिवर्तनशील अनुपातों का नियम निम्न मान्यताओं पर आधारित है-
(1) इस नियम में उत्पादन की तकनीकी दी हुई है। उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।
(2) साधनों के अनुपात में इच्छानुसार परिवर्तन किया जा सकता है।
(3) यह नियम तभी लागू होगा, जबकि एक साधन को स्थिर रखकर अन्य साधनों के अनुपात में वृद्धि की जाती है,अथवा ने साधनों को स्थिर रखकर एक साधन की मात्रा में वृद्धि भी की जाती है अर्थात दोनों ही दशाओं के अपनाने पर भी यह नियम लागू होता है।
(4) इस नियम में परिवर्तनशील इकाइयों का समरूप मान लिया गया है।
(5) नियम का संबंध वस्तु के मूल्य से न होकर उसकी भौतिक मात्रा से है।
(6) उत्पादन के पैमाने को स्थिर मान लिया गया है, इसलिए उत्पादन के पैमाने की मितव्यताएं भी प्राप्त हो जाती है।
परिवर्तनशील अनुपातों के नियम के नाम
प्रोफ़ेसर मार्शल द्वारा प्रतिपादित उत्पत्ति हास्य नियम में अनेक त्रुटियां आ जाने के कारण आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने इस नियम को अस्वीकार किया है। आधुनिक विचारधारा के अनुसार, ‘उत्पत्ति हास्य नियम’ केवल कृषि में ही नहीं,बल्कि उत्पादन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू होता है। आधुनिक अर्थशास्त्री इस नियम को परिवर्तनशील अनुपातों का नियम कह कर पुकारते हैं। इसके अतिरिक्त इस नियम को अन्य नामों जैसे ‘अनुपात का नियम’, ‘प्रतिफल का नियम’, असमान-अनुपाती प्रतिफल का नियम, ‘सीमांत उत्पादकता हास्य नियम’, ‘हास्य मान प्रतिफल नियम’आदि नामों से भी पुकारा जाता है।
आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने मार्शल ने उत्पत्ति हास्य नियम के संबंध में मत
आधुनिक अर्थशास्त्रियों का मत है कि उत्पत्ति हास्य नियम केवल कृषि में ही लागू नहीं होता है। मार्शल ने इस नियम को केवल कृषि संबंधी नियम बताया है।इससे यह भ्रम पैदा होता है कि यह नियम अन्य निर्माण उद्योगों में लागू नहीं होता। परंतु ऐसी बात नहीं है। आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार,यह नियम उद्योग तथा उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में उसी प्रकार लागू होता है जिस प्रकार कृषि में। यदि किसी भी एक साधन (भूमि, श्रम, पूंजी अथवा प्रबंध)को स्थिर रखा जाए तथा अन्य साधनों को बढ़ाया जाए तो उत्पत्ति हास नियम लागू होगा। जब उत्पादन के एक (या कुछ) साधन कोई स्थित रखकर अन्य साधनों की मात्रा बढ़ातें हैं, तू साधन संयोग में साधनों का अनुपात परिवर्तित होता है, अतः इस नियम का आधुनिक नाम ‘परिवर्तनशील अनुपातों का नियम’ है।
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