अर्थशास्त्र

पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं? । पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का उदाहरण देकर संक्षेप में वर्णन

पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं? । पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का उदाहरण देकर संक्षेप में वर्णन | What do you understand by returns to scale in Hindi | Summarize with the example of increasing returns to scale in Hindi

पैमाने के प्रतिफल से आप क्या समझते हैं?

पैमाने के प्रतिफल की समस्या यह है कि दीर्घकाल में उत्पादन के सभी साधन परिवर्तनशील होते हैं। इसके अंतर्गत हम यह अध्ययन करते हैं कि यदि उत्पादन के सभी साधन में एक ही अनुपात में वृद्धि की जाए तो उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अर्थशास्त्रियों की धारणा यह है कि ऐसी स्थिति में उत्पादन की वृद्धि पैमाने के वर्तमान प्रतिफल,पैमाने के समान प्रतिफल और पैमाने के घटते प्रतिफल को दर्शाए की।

पैमाने के वर्धमान प्रतिफल का उदाहरण देकर संक्षेप में वर्णन

यदि उत्पादन के सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाए और उसके परिणाम स्वरूप यदि उत्पादन उस अनुपात से अधिक मात्रा में बढ़ता है तो पैमाने के वर्तमान प्रतिफल की स्थिति होगी। उदाहरणार्थ,मान लीजिए कि साधन बढ़ाए जाने से पूर्व उत्पादन के साधनों को निम्न संयोग में लाया जाता था-

2 भूमि (एकडों में) +10 पूंजी (इकाइयों में) + 7 श्रमिक + 1 प्रबंधक =100 उत्पादन और इन साधनों को दोगुना करने पर स्थित निम्न होगी-

4 भूमि + 20 पूंजी + 14 श्रमिक + 2 प्रबंधक = उत्पादन।

उपर्युक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि जब उत्पादन के सभी साधनों की मात्रा दोगुनी कर दी जाती है तो उत्पादन दोगुने से अधिक बढ़ जाता है। उसे ही पैमाने के वर्तमान प्रतिफल की स्थिति कहते हैं।

पैमाने के प्रतिफल की धारणा में अविभाज्य की स्थिति

उत्पादन में अधिक अनुपात मैं वृद्धि होने का दूसरा कारण पूंजीगत वस्तुओं का अविभाज्यता है। अविभाज्यता का अर्थ हैकि साधन कुछ निश्चित आकारों में ही उपलब्ध होते हैं। उत्पादन के पैमाने में ज्यों-ज्यों विस्तार किया जाता है,त्यों-त्यों अविभाज्य साधनों का उपयोग अधिक होने लगता है और उत्पादन लागत प्रति इकाई कम होने लगती है। उदाहरणार्थ, मान लीजिए, बल्ब बनाने की एक मशीन है जो दिन भर में 50 बल्ब बना सकती है। यदि बल्बों की मांग बढ़ जाती है तो उस मशीन से 300 बल्ब बनाएंगे अर्थात उत्पादन 6 गुना बढ़ जाएगा, इससे प्रति बल्ब उत्पादन की लागत पहले से कम होती जाएगी। अविभाज्य था केवल मशीनों एवं संयंत्रों से ही संबंधित नहीं होती है बल्कि अविभाज्यता का प्रश्न श्रम, प्रबंध वित्त और यहां तक की अनुसंधान एवं विज्ञान में भी उत्पन्न होता है। उदाहरणार्थ, श्रम पूर्णतया अविभाज्य नहीं है। इस विशेषता के कारण ही एक बड़े पैमाने के उद्योग एक छोटे पैमाने के उद्योग की अपेक्षा अधिक लाभ की स्थिति में होता है; जैसे-एक प्रबंधक सरलता पूर्वक 100 मजदूरों पर नियंत्रण कर सकता है। यदि उसे 50 मजदूरों को ही देखना पड़ता है तो चुकी मैनेजर एक अविभाज्य इकाई है इसलिए प्रति मजदूर लागत अधिक आएगी, परंतु 50 से जितने भी अधिक मजदूर बढ़ते जाएंगे,लागत कम होती जाएगी क्योंकि वही मैनेजर उन मजदूरों को भी देखेगा और 100 मजदूरों पर लागत न्यूनतम होगी। इस प्रकार उत्पादन की मात्रा में ज्यों-ज्यों वृद्धि की जाती है, अविभाज्य साधनों का त्यों- त्यों अधिक उपभोग उन्हें लगता है अतः  उत्पादन लागत प्रति इकाई कम होने लगती है।

पैमाने के घटते प्रतिफल की स्थिति

“यदि उत्पादन के सभी साधनों को एक निश्चित अनुपात में बढ़ाया जाता है और उसके परिणाम स्वरूप कुल उत्पादन यदि वह संवाद से कम मात्रा में बढ़ता है तो पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की स्थिति होगी।” उदाहरणार्थ, मान लीजिए कि उत्पादन के सभी साधन 20% से बढ़ाए जाते हैं लेकिन उत्पादन में वृद्धि केवल 10% से होती है तो हम यह कहेंगे कि बनाने के घटते हुए प्रतिफल की प्रवृत्ति लागू हो रही है।

जिस समय पैमाने के घटते हुए प्रतिफल की प्रवृत्ति क्रियाशील होती है तो दीर्घकालीन औसत लागत बढ़ती हुई प्रतीत होती है जिसे आग्रह तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है-

उत्पादन के साधनों का संयोग

कुल उत्पादन

कुल लागत

औसत लागत

सीमांत लागत

(2 भूं + 10 पूं + 7 श्र + प्रबंध)

100

500

5

2 (2 भूं + 10 पूं + 7 श्र + प्रबंध)

160

1000

6.25

8.3

4 (2 भूं + 10 पूं + 7 श्र + प्रबंध)

260

2000

7.69

10.0

उपर्युक्त तालिका में जब उत्पादन के साधनों को दोगुना किया जाता है तो उत्पादन दोगुना नहीं होता परिणाम स्वरुप औसत लागत में वृद्धि होती है और सीमांत लागत, अवसर लागत से अधिक होती है।

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Pankaja Singh

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