अर्थशास्त्र

उत्पादन फलन का अर्थ | उत्पादन फलन की प्रकृति | Meaning of production function in Hindi | Nature of production function in Hindi

उत्पादन फलन का अर्थ | उत्पादन फलन की प्रकृति | Meaning of production function in Hindi | Nature of production function in Hindi

उत्पादन फलन का अर्थ

उत्पादन फलन का अर्थ–  फलन’ एक गणितीय शब्द है, जब दो चर ऐसे हों कि उनमें से एक का मूल्य दूसरे पर निर्भर रहता है, तो कहेंगे कि पहला चर दूसरे का फलन है जैसे- यदि y निर्भर करता है x पर, तो कहेंगे कि y फलन है x का। इस संबंध को एक समीकरण के रूप में निम्न प्रकार रख सकते हैं- y = f (x)। यहां f का मतलब फलन से है। यदि x को कोई मूल्य दें, तो उसके अनुरूप y का मूल्य मालूम कर सकते हैं।

अर्थशास्त्र में अनेक फनात्मक संबंध पाए जाते हैं, जैसे- D = f (p) अर्थात यदि अन्य बातें समान रहे तो वस्तु की मांग उसकी कीमत पर निर्भर करती है। इसी प्रकार C = f (y) का आशय है कि कुल उपभोग (c) पर निर्भर करता है कुल आय (y) पर। इसे ‘उपभोग फंक्शन’ कहते हैं।

इसी प्रकार उत्पादन फंक्शन है जो किसी फर्म की भौतिक आ-दाओं और भौतिक प्र-दाओंके बीच संबंध को व्यक्त करता है। उत्पादन फलन की एक औपचारिक परिभाषा निम्न प्रकार दी जा सकती है- “प्रबंध योग्यता और प्रावैधानिक ज्ञान की एक दी हुई स्थिति में और एक दी हुई समयावधि में (या प्रति इकाई समय में) किसी फर्म का उत्पादन फलन आ-दाओं के सभी संभव संयोगों और प्रत्येक संयोग से प्राप्त होने वाले उत्पादन (अर्थात अधिकतम उत्पादन) के बीच संबंध को प्रदर्शित करता है। संक्षेप में, उत्पादन फंक्शन उत्पादन संभावनाओं की सूची है।”

उत्पादन फलन को एक गणितीय समीकरण के रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है, क्योंकि प्रदा का मूल्य आ-दाओं पर निर्भर होता है, p = f (a,b,c…………..n), जिसमें

P = दी हुई वस्तु की प्रदा- दर a,b,c………….n = विभिन्न साधन सेवाएं हैं जो कि एक दी हुई समयावधि में प्रयोग की जाती है। एक सूती वस्त्र कारखाने के उत्पादन फलन (p) से आशय कपड़े की अधिकतम मित्रों से हैं, चीनी का उत्पादन कपास, बिजली, श्रम, रंगो, धरातल, यंत्र समय आदि की दी हुई मात्राओं से, एक दी हुई समयावधि व तकनीकी दशा के संदर्भ में, किया जा सकता है। स्मरण रहे कि प्रत्येक फर्म का, अपनी प्रबंध योग्यता और प्रावैधिक

ज्ञान की स्थिति के अनुसार,अपना ही उत्पादन फलन होता है। यदि उसकी प्रबंध योग्यता एवं प्रावैधिक ज्ञान में परिवर्तन हो जाए, तो पुराने के स्थान में नया उत्पादन फलन बन जाएगा, जिसके अनुसार, पहले जितनी inputs से अब अधिक  Output प्राप्त होने लगेगी या पहले जितनी output के लिए कम inputs की आवश्यकता होगी। दूसरी ओर, यदि इस बीच फर्म की भौतिक संपत्ति घिस- पिट जाती है, तो नए उत्पादन फलन के अनुसार, पहले जितनी inputs से कम outputs प्राप्त होगी।

उत्पादन फलन का स्वभाव या प्रकृति

  • यह साधनों की भौतिक मात्रा और उत्पादन की भौतिक मात्रा के संबंध को व्यक्त करता है। अतः उत्पादन फलन का बनना अर्थशास्त्री का काम नहीं वरन ‘उत्पादन इंजीनियर’ का काम है।
  • उत्पादन फलन की कोई मौद्रिक विशेषता नहीं होती, वह,आ-दाओं और प्रदा दोनों कीमतों से स्वतंत्र या असंबंध होता है।किंतु यह कीमतें ही फर्म के इस निर्णय को प्रभावित करती है कि यह किस वस्तु का और कितनी मात्रा में उत्पादन करें। इस प्रकार उत्पादन इंजीनियर की तो साधन के भौतिक पक्ष में रुचि होती है जबकि अर्थशास्त्री या व्यापारी की इनके मौद्रिक पक्षों में।
  • एक उत्पादन फलन एक दिए हुए समय में एक दी हुई तकनीकी ज्ञान स्थिति के संदर्भ में परिभाषित किया जाता है।अर्थात भर्ती फर्म का उत्पादन फलन तकनीकी की स्थिति के द्वारा निर्धारित होता है। यदि तकनीकी में सुधार हो जाए, तो एक नया उत्पादन फंक्शन प्राप्त हो जाएगा,जिसका आशय है कि साधनों की पहली मात्रा से ही अधिक मात्रा में उत्पत्ति प्राप्त होगी। अथवा, उत्पत्ति की पहले के बराबर मात्रा की प्राप्ति के लिए अधिक मात्रा में साधन प्रयोग करने होंगे।
  • एक उत्पादन फंक्शन एक दिए हुए समय की अवधि पर प्रति समय इकाई के संदर्भ में रहता है। मान लीजिए कि पूजी की 20, श्रम की 5 और भूमि की 4 इकाइयों के संयोग में 4 घंटे में किसी वस्तु की 100 इकाइयां उत्पन्न की जाती है। यह उत्पादन फंक्शन 4 घंटे के संदर्भ में है।

साधन की मात्राओं में परिवर्तन करना

उत्पादन में परिवर्तन हेतु साधनों की मात्राओं में परिवर्तन करना पड़ता है-किया तो सभी साधनों की मात्राओं को बढ़ाया जा सकता है अथवा कुछ कोई स्थित रखकर केवल कुछ को परिवर्तित किया जा सकता है अथवा ही एक साधन की मात्रा को स्थिर रखकर आने को परिवर्तित किया जाता हाय। स्थिर मात्रा वाले साधन को ‘स्थिर साधन’ और परिवर्तन की गई मात्रा वाले को परिवर्तनशील साधन कहते हैं।

किसी साधन की मात्रा को उसके कार्य करने के समय की लंबाई के संदर्भ में मापा जाता है, जैसे- अमुक श्रम घंटिया इतने मशीन घंटे। फर्म एक श्रमिक को आधा या तीन-चौथाई प्रयोग नहीं कर सकती, उसे पूरे रूप में ही प्रयोग कर सकती हैं। यही बात एक मशीन के बारे में है। हां, इतना कर सकती हैं कि प्रयोग के समय को घटा-बढ़ा दें और इस प्रकार उस साधन की मात्रा में परिवर्तन कर दें।

किंतु किसी भी साधन के कार्य करने के समय को, एक बिंदु के बाद, एक न्यूनतम से घटाने में कठिनाई होती है। ओवरटाइम या आंशिक समय काम करने वाले श्रमिकों को छोड़कर अन्य श्रमिकों को कार्य करने के एक न्यूनतम इकाई (जैसे- 4 घंटे प्रतिदिन या 1 सप्ताह या 1 माह) के बराबर रोजगार देना होगा। यदि कम रोजगार दिया जाता है तो मजदूरी पूरे कार्य- इकाई के बराबर देनी होगी। इसी प्रकार, एक धमन भट्टी को एक तकनीकी कारणों वश एक न्यूनतम आकार से नहीं घटाया जा सकता है। ऐसे साधन जिन की मात्रा कोई एक न्यूनतम आकार से नीचे न घटाया जा सकता हो, अविभाज्य इकाइयों वाले साधन कहा जाता है और ऐसे साधन जो कि छोटी किसी भी मात्रा में प्राप्त हो ‘पूर्णतया विभाज्य’ कहलाते हैं।

साधनों की उक्त विशेषताएं

  • स्थिरता अथवा परिवर्तनशील ता, तथा
  • विभाज्यता अथवा अविभाज्यता, उत्पादन फलन के स्वभाव को निर्धारित करने में (और इसलिए यह निर्णय करने में उत्पादन के विभिन्न स्तरों पर साधनों की भौतिक उत्पादकताएं क्या होंगी) सहायक होती हैं।
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Pankaja Singh

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