अर्थशास्त्र

स्थिर एवं परिवर्तनशील लागत | स्थिर लागत | परिवर्तन लागत

स्थिर एवं परिवर्तनशील लागत

स्थिर एवं परिवर्तनशील लागत | स्थिर लागत | परिवर्तन लागत | Fixed and Variable Costs in Hindi | Fixed cost in Hindi | Conversion cost in Hindi

स्थिर एवं परिवर्तनशील लागत –

किसी दी हुई उत्पादन मात्रा का उत्पादन करने में जो व्यय होता है, उसे कुल लागत कहते हैं। कुल लागत में निम्न दो लागते सम्मिलित रहती हैं-

(अ)  स्थिर या पूरक लागत(Fixed Costs or Supplementary Cost) एवं

(ब) परिवर्तनशील या प्रमुख लागत (Variable or Prime Cost)

(अ) स्थिर या पूरक लागत

स्थित लागत का तात्पर्य उन व्ययों से है जिनको प्रत्येक अवस्था में व्यय करना पड़ता है, चाहे उत्पादन की क्रिया बंद हो या चालू, अधिक हो या कम। स्थिर लागत उत्पादन के आकार के साथ नहीं बदलती।

प्रो. बेन के अनुसार, “स्थिर लागत वह लागत है,जिसकी कुल राशि अल्पकाल में उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर पूर्णतया अपरिवर्तित रहती है।” गणित की भाषा में, “यदि उत्पादन की मात्रा शून्य है,तब भी स्थिर लागत धनात्मक होती है अर्थात उत्पादन कार्य बंद हो जाने पर भी, फर्म की स्थिर लागत पूर्ववत रहती है।”

स्थिर लागत मैं सामान्यतया निम्नलिखित व्यय सम्मिलित रहते हैं- (क) प्रारंभिक खर्चे, (ख) स्थाई पूंजी की व्यय,(ग) व्यवस्थापकओं के वेतन,(घ) ऋण-पत्रों पर ब्याज,(ड.) मशीनों पर हास्य, (च) अग्नि बीमा का प्रीमियम तथा (छ) बिजली इत्यादि पर व्यय। सामान्य लाभ को भी स्थिर लागत में जोड़ा जाता है।

नीचे साड़ी में वन कुल स्थिर लागत कोई स्पष्ट किया गया है-

सारणी 1- कुल स्थिर लागत

वस्तु की इकाइयाँ

स्थिर लागत (रु में)

0

200

1

200

2

200

3

200

4

200

5

200

 

चित्र 1में TFC रेखा स्थिर लागत को बताती है। TFC रेखा OX के समांतर है, जिसका अर्थ है कि उत्पादन चाहे जितना भी हो, स्थिर लागत आ परिवर्तनशील है।

(ब) परिवर्तनशील या प्रमुख लागत

मार्शल ने इसे प्रमुख लागत (Prime Cost) कहां है। कुछ परिवर्तनशील लागत या प्रधान लागत, उत्पादन का वह अंग है जो उत्पादन की मात्रा के साथ घटता- बढ़ताहाय अर्थात उत्पादन के बढ़ जाने से परिवर्तनशील लागत बढ़ जाती है और उत्पादन के घट जाने से परिवर्तनशील लागत घट जाती है। यदि किसी कारण बस कारखाना बंद कर दिया जाता है तो परिवर्तनशील लागत शुन्य हो जाती है प्रोफेसर बेन के अनुसार, “परिवर्तनशील लागत व लागत है, जिसकी राशि उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर परिवर्तित होती है।” गणित की भाषा में, “यदि उत्पादन की मात्रा शून्य है, तब लागत भी सोने की बराबर होती है।” परिवर्तनशील लागत में सामान्यतया ये व्यय सम्मिलित रहते हैं, यथा-(क) श्रमिकों की मजदूरी, (ख) कच्चा माल, (ग) इंधन, (घ) शक्ति आदि।

कुल परिवर्तनशील लागत की वृद्धि पर उत्पत्ति के नियमों से प्रभावित होती है। उत्पादन की आरंभिक अवस्था मैं उत्पत्ति वृद्धि नियम (लागत हास्य नियम) लागू होता है, तब कुल परिवर्तनशील लागत घटती हुई दर्पण बढ़ती है, मध्यवर्ती अवस्था में स्थिर दर पर पड़ती है और अंतिम अवस्था में जब की उत्पत्ति हास्य नियम (लागत वृद्धि नियम) लागू होता है, कुछ परिवर्तनशील लागत बुद्धिमान दर पर बढ़ती है। सारणी में कुल परिवर्तनशील लागत कोई स्पष्ट किया गया है।

सारणी 2- कुल परिवर्तनशील लागत

वस्तु की इकाइयाँ

कुल परिवर्तनशील लागत (रु में)

0

0

1

40

2

60

3

80

4

120

5

180

उपर्युक्त सारणी व रेखा चित्र से स्पष्ट है कि वस्तु के साथ-साथ परिवर्तनशील उत्पादन लागत में वृद्धि होती है। फुल परिवर्तनशील लागत वक्र (TVC Curve)का बाएं से दाएं ऊपर की ओर से जाना यह प्रकट करता है कि उत्पादन के बढ़ने से लागत भी बढ़ती है परंतु इनके बढ़ने की दर में परिवर्तन होता जाता है, अतः वक्र सरल रेखा ना होकर एक वक्र की तरह होती है।

कुल लागत (Total Cost)- पुलिस तीर तथा कुल परिवर्तनशील लागत ओं का योग ही कुल लागत होती है।

TC = TFC + TVC

कुल लागत कुली स्थिर लागत तथा कुल लागत तथा कुल परिवर्तनशील लागत का योग होती है। अतः शून्य उत्पादन पर कुल लागत केबल कुली स्थिर लागत के बराबर होती है क्योंकि शून्य उत्पादन पर कुल परिवर्तनशील लागत शुन्य होती है तथा केवल स्थिर लागत ही लागत है। इसके बाद वह कुल परिवर्तनशील लागत के अनुसार बढ़ती रहती है।

कुल लागत (TC), कुल स्थित लागत (TFC) तथा कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) म संबंध (Relation between Total Fixed Variable Costs)-

अल्पकाल में किसी फर्म की कुल लागत (TC), उसकी कुल स्थिर लागत (TFC) तथा कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) का योग हुआ करती है।

कुछ लागतो की इन तीनों धारणाओं का अध्ययन हम एक उदाहरण द्वारा कर सकते हैं। माना कि एक उत्पादक किसी वस्तु का उत्पादन करता है, उसके उत्पादन की विभिन्न कुल लागते सारणी 3 में दर्शाई गई-

सारणी 3-कुल स्थित लागत, कुल परिवर्तनशील लागत व कुल लागत

वस्तु की इकाइयाँ

कुल स्थिर लागत (रु में)

कुल परिवर्तनशील लागत (रु में)

कुल लागत (रु में)

0

200

0

200

1

200

40

240

2

200

60

260

3

200

80

280

4

200

120

320

5

200

180

380

उपर्युक्त सारणी में 3 से कुल स्थिर लागत वाले कॉलम (2) को देखने से स्पष्ट है कि शून्य उत्पादन पर भी वह लागत 200 रुपये है। इस बात के तीन अर्थ हैं-

  • यह लागत उत्पादन के प्रारंभ होने से पहले प्रारंभ हो जाती है तथा
  • यदि उत्पादन को अचानक बंद (शून्य)करना पड़े तो भी अल्पकाल में यह लागत बनी ही रहेगी। इसी कालम से पता चलता है कि उत्पादन की सभी इकाइयों के लिए यह लागत स्थिर है अर्थात उत्पादन के बढ़ने या घटने से यह बदलती नहीं। इसी कारण इसे बंधी लागत भी कहते हैं।
  • सारणी के कुल परिवर्तन लागत वाले कॉलम (3)से पता चलता है कि जब तक उत्पादन शुरू नहीं होता, तब तक परिवर्तनशील लागत शून्य होती है किंतु उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ यह बढ़ती है।

रेखा चित्र द्वारा स्पष्टीकरण (Diagrammatic Representation)-

इन तीनों प्रकार की लागतो को नीचे के रेखा चित्रों की सहायता से स्पष्ट किया गया है।

  • चित्र 3 में स्थिर लागत को पड़ी रेखा TFC द्वारा दिखाया गया है,जो इस बात का प्रतीक है कि उत्पादन की मात्रा में परिवर्तन होने पर भी स्थित लागत में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
  • कुल लागत रेखा (TC) और कुल फिर लागत (TFC) रेखा के बीच का अंतर ही परिवर्तनशील लागत का द्योतक है।

  • मान लीजिए, जब उत्पादन शून्य है, तब स्थिर लागत OF तथा परिवर्तनशील लागत शून्य है। अतः ऐसी स्थिति में TFC ही TC मानी जाएगी लेकिन जब उत्पादन की मात्रा OM है, तब स्थिर लागत MB (OF =MB) तथा परिवर्तनशील लागत AB हो जाती है और कुल लागत =MB +AB =AM।
  • इसी प्रकार जब उत्पादन बढ़कर ON हो जाता है, तब स्थिर लागत ND अर्थात वही बनी रहती है (क्योंकि OF =MB =ND लेकिन परिवर्तनशील लागत बढ़कर CD हो जाती है, जिससे कुल लागत भी बढ़ कर ND +CD =CN।

स्पष्ट है कि उत्पादन की प्रत्येक वृद्धि के साथ-साथ परिवर्तनशील लागत तो बढ़ती है (क्योंकि CO >AB), जबकि स्थिर लागत (OF =MB =ND) बनी रहती है। इसका अर्थ यहवाकी अल्पकाल में कुछ लागत मुख्य रूप से परिवर्तनशील लागत पर निर्भर करती है ना कि स्थिर लागत पर।

आप चित्र 4 में-

  • इसमें TFC वक्र X-अक्ष के समांतर है लेकिन इसे Y-अक्ष के F बिंदु से खींचा गया है जिसका अर्थ यह है कि भले ही फर्म का उत्पादन सुन्न हो तो भी उसे कुली स्थिर लागत तो बहन ही करनी पड़ेगी। इसके विपरीत, कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) वक्र ऊपर की और उठता हुआ है जो इस बात को स्पष्ट करता है कि जैसे-जैसे उत्पादन की मात्रा बढ़ाई जाती है, वैसे- वैसे TVC भी बढ़ने लगती है।
  • कोई परिवर्तनशील लागत वक्र का मूल बिंदु 0 से आरंभ होने का सीधा-सा अर्थ यह है कि उत्पादन के शून्य होने पर, परिवर्तनशील लागत भी सुनी होगी।

स्थिर एवं परिवर्तनशील लागत में अंतर

अंतर का आधार

स्थिर लागत

परिवर्तन लागत

उत्पादन की मात्रा

इस पर उत्पादन की मात्रा का कोइ प्रभाव नहीं होता।

यह उत्पादन की मात्रा से प्रभावित होता है।

शून्य लागत

यह उत्त्पादन बंद कर देने पर भी शून्य नहीं होता।

उत्त्पादन बंद कर देने पर यह शून्य हो जता है।

प्रकृति

उत्त्पादन में वृद्धि के साथ साथ यह लागत घटती जाती है।

यह लागत प्रारम्भ में घटती है और एक सीमा के बाद बढना आरम्भ हो जाती है।

सम्बन्ध

इसका सम्बन्ध स्थिर साधनों से होता है।

इसका सम्बन्ध परिवर्तनशील साधनों से होता है।

अल्पकाल

अल्पकाल में एक उत्पादक स्थिर लागतों की हानि उठाकर उत्पादन जारी रख सकता है।

अल्पकाल में कीमत परिवर्तनशील लागत के बराबर अवश्य मिलनी चाहिये अन्यथा उत्पादक उत्पादन बंद कर देगा।

अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!