अर्थशास्त्र

अनुकूलतम साधन संयोग का अर्थ | उत्पादन के संतुलन की व्याख्या

अनुकूलतम साधन संयोग का अर्थ | उत्पादन के संतुलन की व्याख्या | Meaning of optimum resource combination in Hindi | Explanation of Equilibrium of Production in Hindi

अनुकूलतम साधन संयोग का अर्थ

एक उत्पादक का उद्देश्य संतुलन स्थिति को प्राप्त कर अधिकतम लाभ कमाना होता है और इसके लिए उसे एक महत्वपूर्ण निर्णय यह लेना होता है कि उत्पादन के लिए साधनों के ऐसे कौन- से संयोग को चुना जाए ताकि उसे अपनी सीमाओं के अंतर्गत रहते हुए अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो सके। साधनों के उपयोग की दृष्टि से एक उत्पादक उस समय संतुलन में होता है जब वह उत्पादन की एक निश्चित मात्रा को न्यूनतम लागत पर उत्पादित कर सके और साधनों का यही सहयोग कहलाता है।

एक उत्पादक को संतुलन स्थिति को प्राप्त करने अथवा न्यूनतम लागत संयोग प्राप्त करने की दृष्टि से दो उपकरणों की आवश्यकता होती है- 1. समोत्पाद मानचित्र, 2. सम लागत रेखा

  1. सम उत्पाद मानचित्र- जिस प्रकार एक उपभोक्ता के लिए यह एक से अधिक तटस्थता वक्र हो सकते हैं ठीक उसी प्रकार एक उत्पादक के लिए भी अनेक सम उत्पाद दिखाएं या वक्र हो सकते हैं और प्रत्येक समोत्पाद वक्त ने भिन्न-भिन्न उत्पादन की मात्राओं को व्यक्त करता है। जब विभिन्न अथवा एक से अधिक सम उत्पाद वक्रों को एक ही चित्र के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तो इसे सम उत्पाद या समोत्पादमानचित्र कहते हैं। क्षेत्र में एक समूह उत्पाद मानचित्र उत्पाद मानचित्र को दर्शाया गया है-

चित्र में विभिन्न समोत्पाद वक्र दर्शाए गए हैं- IP1, IP 2, IP 3, IP 4 यह विभिन्न समोत्पाद वक्र उत्पादन की भिन्न-भिन्न ने   को दर्शाते हैं। जैसे- IP 1से 400 kg. IP 2 से 500 kg .IP 3 से 600 kg तथा IP 4 से700 kg उत्पादन प्राप्त होता है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि एक समोत्पाद वक्र पर दो साधनों के कितने ही संयोग क्यों नहीं स्थिर हों वे सभी संयोग उत्पादन की समान मात्रा को ही दर्शाते हैं। और नीचे वाला समोत्पाद वक्र उत्पादन की कम माता को तथा ऊंचा समोत्पाद वक्र उत्पादन की अधिक मात्रा को दर्शाता है।

साधनों का अनुकूलतम (न्यूनतम लागत) संयोग या उत्पादक का संतुलन

एक उत्पादक दो साधनों का प्रयोग करते हुए संतुलन या साम्य में की स्थिति में तब होगा जब वह उपलब्ध साधनों का अनुकूलतम प्रयोग करते हुए अथवा न्यूनतम लागत संयोग का लाभ उठाते हुए अपने लाभ को अधिकतम कर सके। एक उत्पादक के अधिकतम लाभ का बिंदु निम्न दो तत्वों से निर्धारित होता है-

  1. साधनों की भौतिक उत्पादकता जिसे समोत्पाद वक्र द्वारा दर्शाया जाता है।
  2. साधनों की कीमतें जिन्हें साधन कीमत रेखा या सम लागत रेखा द्वारा दर्शाया जाता है। और साधनों के न्यूनतम लागत संयोग या उत्पादक के संतुलन का अध्ययन हम निम्नलिखित दो दृष्टिकोण से कर सकते हैं।
  3. लागत को न्यूनतम करना, जबकि उत्पादन की मात्रा दी हुई हो,
  4. उत्पादन को अधिकतम करना, जबकि लागत व्यय दिया हुआ हो।

1. लागत को न्यूनतम करना जबकि उत्पादन की मात्रा दी हो

जब उत्पादन की एक निश्चित मात्रा दी हुई होती है तो इस निश्चित उत्पादन मात्रा को उत्पादित करने में उत्पादक के लाभ तभी अधिकतम होते हैं जब यह उत्पादन न्यूनतम लागत पर हो। और इसके लिए एक उत्पादक को साधनों का ऐसा संयोग चुनना होता है जिससे उत्पादन लागत न्यूनतम हो अर्थात सबसे कम हो। ऐसा साधनों का संयोग ही न्यूनतम लागत संयोग कहलाता है। इसे संलग्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है-

चित्र में IP समोत्पाद वस्त्र उत्पादन को 500इकाइयों के उत्पादन मात्रा को दर्शाता है। इन 500 इकाइयों का उत्पादन समोत्पाद वक्र IP परिस्थिति किसी साधन संयोग जैसे- Q,R,S द्वारा किया जा सकता है। किंतु Q,R और S संयोंगों मैं से R संयोग ही ऐसा संयोग है अथवा ऐसा बिंदु है जिस पर समोत्पाद वक्र IP लागत रेखा A 1 B 1 को स्पर्श करता है और R संयोग के प्रयोग से ही उत्पादन लागत न्यूनतम होगी। अतः R बिंदु ही उत्पादक का न्यूनतम लागत संयोग होगा। किंतु यदि उत्पादक IP‌ समोत्पादक वाटर के किसी अन्य संयोग जैसे-Qया S को चुनता हो तो इन संयोगों को प्राप्त करने की लागत अधिक होगी क्योंकि ये दोनों संयोग ऊंची सम लागत रेखा A 2 B 2 पर स्थिर है। अर्थात A 2 B 2 सम लागत रेखा पर कोई भी समझदार एवं विवेकशील उत्पादक बिंदु R या Q संयोग को छोड़कर उपर्युक्त दोनों संयोग Q या S को नहीं सुनेगा क्योंकि यह दोनों ही संयोग R के बराबर ही उत्पादन मात्रा (500 इकाइयां) प्रदान करते हैं। अतः R बिंदु ही उत्पादक के संतुलन का बिंदु होगा, जिस पर समोत्पाद वक्र IP और सम लागत रेखा A 1 B 1की ढालें आपस में बराबर हैं। चित्र से स्पष्ट है कि R बिंदु पर सम लागत रेखा A  1 B 1 समोत्पाद वक्र IP‌ कोई स्पर्श करती है। अतः एक सम़ोत्पाद वक्र एक सम लागत रेखा का स्पर्श बिंदु साधनों के न्यूनतम लागत संयोग को दर्शाता है। उपर्युक्त चित्र में R बिंदु ही साम्य का बिंदु है जिस पर साधन श्रम की OQ 1  तथा साधन पूंजी की ON मात्रा का प्रयोग करके 500 इकाइयों का उत्पादन किया जाता है।

  1. उत्पादन को अधिकतम करना, जबकि लागत व्यय दिया हुआ हो

ब उत्पादक के लिए साधन कीमत रेखा या सम लागत रेखा दी हुई होती है तो इसका अर्थ है कि उसके लिए लागत में व्यय दिया हुआ है। ऐसी स्थिति में उत्पादक के सामने यह समस्या होती है कि वह अपने उत्पादन को अधिकतम करें। ऐसी स्थिति में वह समोत्पाद मानचित्र के सबसे ऊंचे समोत्पाद वक्र नीचे समोत्पाद वक्र से अधिक उत्पादन की मात्रा प्रदान करता है। अतः उत्पादक निचले समोत्पाद वक्र से ऊंचे समोत्पाद वक्र की ओरतब तक बढ़ता जाएगा जब तक सम लागत रेखा हिना की अनुमति दें। उत्पादन का यह उच्चतम बिंदु दी हुई सम लागत रेखा के साथ तभी प्राप्त होगा जब‌ दी हुई सम लागत रेखा या साधन कीमत रेखा समोत्पादवक्र को किसी बिंदु या स्पर्श करके इसे संलग्न चित्र के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

चित्र में E बिंदु अधिकतम उत्पादन का बिंदु है जो कि समोत्पाद वक्र IP 2 पर स्थिर है। इस बिंदु पर सम लागत रेखा (जोकि उत्पादक की दी हुई हो) AB समोत्पादक वक्र IP 2 कोई स्पर्श करती है। चित्र में संयोग E के अतिरिक्त दो अन्य संयोग F और  G भी दिखाए गए हैं जो कि निचले समोत्पाद वक्र। IP 1 पर स्थिर है। अतः है यह दोनों संयोग E संयोग की तुलना में उत्पादन की कम मात्रा को दर्शाते हैं। अतः उत्पादक दी गई सम लागत रेखा AB के साथ IP 1 समोत्पाद वक्र IP 2 पर चला जाता है। चित्र में और ऊंचा समोत्पादक वक्र IP 3 भी दिया हुआ है जो कि उत्पादन की और अधिक मात्रा (300) को दर्शाता है। किंतु दी गई सम लागत रेखा इसे स्पर्श नहीं करती अतः उत्पादक इस ऊंचे समोत्पादक वक्र पर संतुलन बिंदु को प्राप्त नहीं कर सकता अर्थात ऊंचे उत्पादन स्तर को प्राप्त नहीं कर सकता।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि उत्पादक के लिए संतुलन बिंदु पर होने के लिए आवश्यक है कि समोत्पाद वाक्य सम लागत रेखा कोई स्पर्श करें। पूर्व पृष्ठांकित चित्र में E बिंदु ही उत्पादक के संतुलन का बिंदु है जिस पर समोत्पाद वक्र का ढाल =सम लागत रेखा का ढाल

या MRTS xy =PX/PY

अतः E संतुलन बिंदु पर, साधनों की कीमतों का अनुपात साधनों की सीमांत प्रतिस्थापन दर के बराबर है। ध्यान देने योग्य बात यह है कि सम लागत रेखा साधनों की कीमतों के अनुपात को प्रकट करती है तथा समोत्पाद वक्र साधनों के बीच सीमांत प्रतिस्थापन की दर को प्रकट करता है। अतः E ही संतुलन बिंदु या न्यूनतम लागत संवेग का बिंदु है जिसे निम्न प्रकार भी समझाया जा सकता है-

MRTS xy = MPx/MPy

अर्थात तकनीकी प्रतिस्थापन की सीमांत दर दो साधनों X और Y की सीमांत

उत्पादकता के अनुपात MPx/MPy के बराबर होती है।

अतः न्यूनतम लागत संयोग के लिए,

MRTS xy = PX/PY = MPx/MPy

जहां,MPX-साधन X की सीमांत उत्पादकता

MPY- साधन Y की सीमांत उत्पादकता

अन्य शब्दों में, न्यूनतम लागत संयोग का बिंदु अथवा अनुकूलतम संतुलन का बिंदु उस बिंदु पर प्राप्त होगा जहां साधन X की सीमांत उत्पादकता एवं उसकी कीमत का अनुपात दूसरे साधन Y की सीमांत उत्पादकता एवं उसकी कीमत अनुपात के बराबर हो जाए।

इस प्रकार एक उत्पादक संतुलन की स्थिति में उस समय होता है। जबकि

(1) समोत्पाद वक्र सम लागत रेखा कोई स्पर्श करता है।

(2) साधनों की कीमतों का अनुपात, साधनों की सीमांत प्रतिस्थापन दर के बराबर हो पूर्णिया

(3) संतुलन बिंदु पर एक साधन की सीमांत उत्पादकता और उसकी कीमत का अनुपात दूसरे साधन की सीमांत उत्पादकता एवं सीमांत कीमत के अनुपात के बराबर हो।

(4) संतुलन बिंदु पर, समोत्पाद वक्र मूल बिंदु की और उन्नतोदर हो अर्थात साधनों के बीच सीमांत प्रतिस्थापन की दर घटती हुई हो।

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Pankaja Singh

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