प्राकृतिक अधिकारों पर लॉक के विचार | सम्प्रभुता पर हॉब्स और लॉक के विचारों की तुलना | सामजिक संविदा के विचारकों के रूप में हॉस और लॉक के विचारों की तुलना | प्राकृतिक अवस्था और सामाजिक समझौते के सम्बन्ध में हॉब्स और लॉक के विचारों की तुलना | प्राकृतिक अधिकारों और क्रान्ति पर हॉब्स और लॉक के विचारों की तुलना
प्राकृतिक अधिकारों पर लॉक के विचार
हॉब्स और लॉक दोनों अनुबन्धवादी विचारक थे। दोनों ने राज्य की उत्पत्ति के समझौता- सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है। परन्तु दोनों के विचारों में बड़ी भारी भिन्नता है। प्राकृतिक अवस्था, समझौता एवं सम्प्रभुता के सम्बन्ध में दोनों ने भिन्न मतों का प्रतिपादन किया है। यदि हॉब्स निरंकुशवाद का समर्थक है तो लॉक सीमित राजतन्त्र की वकालत करता है। इनके विचारों की तुलना निम्न प्रकार से की जा सकती है।
(1) मानव स्वभाव सम्बन्धी अन्तर-
हॉस और लॉक के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों में भिन्नता है। हॉब्स के अनुसार मानव स्वभाव नैसर्गिक अहंभाव, प्रतिस्पर्धा, संघर्ष, असहयोग, स्वार्थपरता का प्रतीक है। उसमें आत्म संरक्षण की भावना ही प्रधान है।
लॉक के अनुसार मानव विवेकशील प्राणी है। उसमें संवेदनशीलता, न्याय, सत्य, नैतिकता जैसे गुण विद्यमान हैं। उसमें परस्पर सहयोग एवं सामाजिकता की भावना है। लास्की के शब्दों में, “लॉक की प्राकृतिक अवस्था राज्यहीन अवश्य थी परन्तु समाजहीन नहीं। इस अवस्था में मनुष्य संघर्षों को कम करने के लिये जिस विवेक का प्रयोग करता था, वह प्राकृतिक विधियाँ कहलाती थीं।”
(2) प्राकृतिक अधिकार सम्बन्धी अन्तर-
हॉब्स के दर्शन में प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति को एक ही अधिकार प्राप्त था, वह था जिसकी लाठी उसकी भैंस । लॉक की प्राकृतिक अवस्था में भी प्राकृतिक अधिकार थे। लॉक का यह भी कहना था कि प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य समान थे। यह समानता जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की थी। वह कहता है कि सभी को जीवित रहने का समान अधिकार है। सभी को बोलने और आने-जाने की स्वतन्त्रता है और स्वअर्जित सम्पत्ति रखने का अधिकार है। लॉक की सामाजिक अवस्था में मनुष्य शान्तिपूर्वक रहता है। प्राकृतिक अवस्था में लॉक ने तीन अधिकारों को माना है: (1) जीवन रक्षा का अधिकार, (2) सम्पत्ति का अधिकार, (3) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार। ये अधिकार शाश्वत् एवं सार्वभौमिक थे।
‘लॉक के मतानुसार प्राकृतिक दशा में मनुष्य बुद्धिपूर्वक प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए एक दूसरे के इन तीनों अधिकारों का सम्मान करते थे। अतः यह अवस्था हॉब्स की प्राकृतिक अवस्था से मौलिक रूप से भिन्न थी। हॉब्स के अनुसार इस अवस्था में मनुष्य अपने स्वार्थ में अन्धा रहता है। वह अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग न करते हुए एक-दूसरे का उन्मूलन हिंसा और हत्या का प्रयत्न करते हुए युद्ध की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं। उस समय कोई सामाजिक जीवन नहीं था। इसके विपरीत लॉक की प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य अपने विवेक के अनुसार प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए शान्तिपूर्वक सभ्य समाज में रहते हैं। किन्तु कुछ असुविधाओं के कारण इन्होंने राज्य की स्थापना की।
(3) प्राकृतिक अवस्था सम्बन्धी अन्तर-
हॉब्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य का जीवन एकाकी, निर्धन, कुत्सित, पशुतुल्य तथा अल्प था। यह एकाकी इसीलिये है कि इस अवस्था में सब एक दूसरे के शत्रु हैं और अन्य व्यक्तियों को आशंका, भय और अविश्वास की दृष्टि से देखते हैं। इस दशा में उनमें किसी प्रकार का कोई सहयोग नहीं है। इसलिए उन्हें एकाकी जीवन व्यतीत करना पड़ता है। वाणिज्य, व्यवसाय, कला और उद्योग-धन्धों का विकास न होने के कारण चारों ओर निर्धनता व्याप्त थी । यह कुत्तित इसलिये थी कि इसमें युद्ध मार- काट, हिंसा और हत्या का बोलबाला था। यह जीवन पशुतुल्य इसलिये था कि मनुष्य आपस में जंगली पशुओं जैसा व्यवहार करते थे। मृत्यु का भय सदैव बना रहता था इसलिये जीवन अल्प था।
लॉक के अनुसार मनुष्य स्वभाव से हिसक नहीं है। वह शान्ति का प्रेमी है। यही कारण है कि वह प्राकृतिक अवस्था में शान्ति से रहता है तथा अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग से रहता अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक के विरुद्ध ‘युद्धरत’ नहीं रहता वरन् प्रेम और शान्ति का जीवन व्यतीत करता है। लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में शान्ति, सद्भावना और समृद्धि थी। इसमें शान्ति, सद्भावना परस्पर सहयोग एवं सुरक्षा विद्यमान थी। इस प्रकार लॉक के प्राकृतिक अवस्था सम्बन्धी विचार हॉब्स के विचारों के विपरीत हैं।
(4) प्राकृतिक अवस्था की असुविधाओं सम्बन्धी अन्तर-
हॉब्स के अनुसार सामाजिक समझौता इसलिये हुआ कि प्राकृतिक अवस्था में जीवन दयनीय, कठिन और जंगलीपन का था। अनवरत संघर्ष, युद्ध, कलह और अशान्ति का वातावरण छोड़कर लोग सामाजिक समझौते के लिये तैयार हुये थे। इस प्रकार हॉब्स के सामाजिक समझौते में प्रत्येक का सबके साथ-साथ समझौता हुआ और सबका प्रत्येक के साथ।
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इसके विपरीत लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में कोई स्वतन्त्र न्यायपालिका की संस्था नहीं थी जो व्यक्ति के नैसर्गिक अधिकारों की व्याख्या कर सके । प्राकृतिक अवस्था में शक्तिशाली कार्यपालिका का अभाव था, स्वतन्त्र न्यायधीश नहीं थे; अतः इन असुविधाओं को दूर करने के लिये मनुष्यों ने सामाजिक समझौता किया था। सामाजिक समझौता सभी के साथ हुआ, उसमे दबाव या शक्ति का प्रयोग नहीं किया गया था। इन समझौतों में पहला सामाजिक इकरारनामा हुआ और दूसरा राजनीतिक समझौता हुआ जिससे राज्य का जन्म हुआ। लॉक का विश्वास था कि समाज सम्प्रभु है। लॉक के शब्दों में, “सरकार की संस्था बन जाने पर भी सर्वोच्च सत्ता जनता में ही निहित रहती है।”
(5) समझौता सम्बन्धी अन्तर-
हॉब्स के दर्शन में एक सामाजिक समझौता हुआ है। लॉक ने दो समझौते करवाये हैं-एक सामाजिक समझौता और दूसरा राजनीतिक समझौता। पहले व्यक्तियों ने नागरिक समाज की रचना की, फिर बाद में सरकार बनाई। पहले समझौते से प्राकृतिक अवस्था का अन्त होता है और समाज की रचना होती है। सब मनुष्यों के समान होने के कारण यह समझौता समाज के सब व्यक्तियों का सब व्यक्तियों के साथ किया जाने वाला समझौता था; अतः इसे सामाजिक समझौता कहते हैं। इस समझौते का उद्देश्य जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति के अधिकारों की आन्तरिक तथा बाह्य संकटों से रक्षा करना था। इस समझौते में प्रत्येक व्यक्ति स्वयमेव प्राकृतिक नियम को लागू करने तथा इसके अनुसार दूसरों को दण्ड देने के अधिकार त्याग देता है। इस समझौते से मनुष्य ने केवल इस एक अधिकार का त्याग किया। लेकिन हॉब्स के अनुसार उसने अपने सभी अधिकारों का त्याग नहीं किया।
(6) समझौते के बाद की स्थिति का अन्तर-
हॉब्स के अनुबन्ध द्वारा प्राकृतिक दशा (State of Nature) तथा प्राकृतिक नियम (Natural Law) का अन्तर हो जाता है। किन्तु लॉक के अनुसार समझौते से केवल प्राकृतिक अवस्था का अन्त है। परन्तु इस समझौते के बाद भी प्राकृतिक कानून का पालन करने के लिये मनुष्य उसी प्रकार बाध्य है, जैसा वह इससे पहले था। लॉक के अपने शब्दों में, “प्राकृतिक विधि के बन्धनों का राजनीतिक समाज में अन्त नहीं होता।”
(7) प्रभुसत्ता सम्बन्धी अन्तर-
हॉब्स ने सम्प्रभु को असीमित अधिकार दिये थे। वह निरपेक्ष निरंकुशवाद में विश्वास करता था । वास्तव में हॉब्स स्टुअर्ट राजाओं के निरंकुश राज्य के औचित्य को सिद्ध करना चाहता था। हॉब्स का विचार कानूनी प्रभुसत्ता का सिद्धांत निर्मित करना था। हॉब्स के सामाजिक समझौते के परिणामस्वरूप जिस सम्प्रभु का जन्म होता है, वह असीम अधिकारों वाला, सर्वशक्तिमान, सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नप्रभु होता है। लॉक के समझौते से बनने वाले शासक को इस प्रकार के असीमित और अमर्यादित अधिकार प्राप्त नहीं होते। वह केवल प्राकृतिक नियम के विरुद्ध अपराधों के निर्धारण और अपराधियों को दण्ड देने का कार्य करता है। इससे अधिक उसे अन्य कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। इस समझौते द्वारा उत्पन्न समुदाय या राज्य मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों के विरोध में कोई कार्य नहीं कर सकता। इस प्रकार हम देखते हैं कि लॉक का सम्प्रभु सीमित अधिकारों वाला है। राज्य एक ट्रस्टी है। इस प्रकार लॉक ने संवैधानिक राजतन्त्र का समर्थन किया है। लॉक इंग्लैण्ड की रक्तहीन क्रान्ति के औचित्य को सिद्ध करना चाहता था। लॉक ने व्यक्ति की प्रभुसत्ता पर बल दिया है। वास्तव में वह लोकप्रिय प्रभुसत्ता का समर्थक है।
हॉब्स के समझौते से सारी प्रभुसत्ता शासक को मिल जाती है, जनता सब अधिकारों से वंचित हो जाती है। लॉक के मतानुसार समझौते के बाद भी जनता की प्रभुसत्ता (Sovereignty) बनी रहती है। डनिंग के कथनानुसार, “लॉक के सामाजिक समझौते के विचार में कोई ऐसी बात नहीं है, जिसका प्रतिपादन उससे पहले के दार्शनिकों ने न किया हो। हॉब्स ने सरकार की सत्ता को निरंकुश बनाया था, किन्तु लॉक ने इसी सिद्धान्त से उस पर अनेक सीमायें और प्रतिबन्ध लगाये तथा इसका प्रधान उद्देश्य व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षित करना स्वीकार किया।” इस सम्बन्ध में गिलक्राइस्ट ने लिखा है:-
“हॉब्स ने व्यक्तियों के मध्य में जिस समझौते की कल्पना की है उससे निरंकुश शासक की उत्पत्ति होती है। सभी व्यक्ति उसे अपने समस्त प्राकृतिक अधिकार जो उन्हें पूर्व सामाजिक तथा पूर्व राजनीतिक अवस्था में प्राप्त थे, सौंप देते हैं। परिणामस्वरूप समझौते से उत्पन्न शासक सम्प्रभु तथा निरंकुश होता है तथा शेष व्यक्ति उसकी प्रजा होते हैं। सम्प्रभु अथवा शासक को अपनी प्रजा पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है। प्रजा उसके आदेशों का पालन अनिवार्य रूप से करती है।”
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