अर्थशास्त्र

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के उद्देश्य | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का संगठन | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की सदस्यता | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का अभ्यंश | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कार्य

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के उद्देश्य | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का संगठन | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की सदस्यता | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का अभ्यंश | अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कार्य | International Monetary Fund in Hindi | Objectives of the International Monetary Fund in Hindi | Organization of the International Monetary Fund in Hindi | Membership of the International Monetary Fund in Hindi | Account of the International Monetary Fund in Hindi | Functions of the International Monetary Fund in Hindi

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष

द्वितीय युद्ध (1945) के पश्चात अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग की व्यापक योजनाएं कार्यरूप में परिणत करने हेतु तैयार की गयीं, कीन्स ने ब्रिटेन में एक योजना तैयार की जिसे ‘कीन्स योजना’ के नाम से जाना जाता है तथा अमरीकी विशेषज्ञ हेरी डेक्सटर व्हाइट (H.D. White) ने एक योजना तैयार की जिसे ‘व्हाइट योजना’ के नाम से जाना जाता है। कीन्स तथा व्हाइट की योजनाओं के आधारभूत तथ्यों को एक सामान्य योजना में परिणित करने के लिए जुलाई 1944 में ब्रटेनवुड्स, न्यू हैम्पशायर नामक स्थान पर 44 राष्ट्रों का एक संयुक्त सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन की कार्यवाही के फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तथा अन्तर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक का जन्म हुआ।

सम्मेलन के अनुसार युद्धोपरान्त अवधि में मुख्यतया तीन आर्थिक समस्याओं का प्रभुत्व था। प्रथम, उन देशों की मौद्रिक प्रणालियों में पुनः स्थापित्व स्थापित करना आवश्यक था जिन्हें बाध्य होकर स्वर्णमान की मौद्रिक पद्धति के परम्परागत नियमों का परित्याग करना पड़ा था। द्वितीय, यूरोपियन देशों की युद्ध जर्जित अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण के लिए प्रभावशाली उपायों को ढूंढना आवश्यक था। तृतीय, यह अनुभव किया गया कि ऐसे विश्व में कभी भी शांति स्थापित नहीं की जा सकती जिसमें विकसित राष्ट्र, एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमरीका के अर्द्धविकसित तथा अविकसित देशों के विशाल मानव समुदाय की अकथनीय कठिनाइयों से पृथक हों। एफ्रो- एशियन राष्ट्रों को संसार में रहने योग्य अच्छा स्थान बनाना था। ऐसा केवल तभी संभव हो सकता था जबकि विश्व के साधनों का स्थान परिर्वतन करके उन्हें एफ्रो-एशियन देशों की अर्थव्यवस्थाओं के विकास में लगाया जाय। विश्व अर्थव्यवस्था को सुरक्षित करने तथा व्यापार एवं विनिमय प्रतिबन्धों, जिनका प्रयोग पिछली दशाब्दि में किया गया था प्रभावशाली ढंग से समाप्त करने तथा बहपक्षीय व्यापार प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना की। गयी। जबकि विश्व बैंक की स्थापना पुनर्निर्माण तथा विकास की विकट समस्याओं का समाधान करने हेतु की गयी।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के उद्देश्य

(Purposes)

कोष के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग में वृद्धि करना : कोष के सदस्यों के मध्य अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग में वृद्धि करना ताकि बहुपक्षीय भुगतान प्रणाली की स्थापना की जा सके।

बहुपक्षीय व्यापार का विकास एवं विस्तार करना: विभेदरहित बहुपक्षीय व्यापार के विस्तार एवं सन्तुलित विकास की सुविधा उपलब्ध कराना ताकि सदस्य देशों में रोजगार तथा आय के उच्च स्तर को प्राप्त किया जा सके तथा उसे बनाये रखा जा सके।

विनिमय स्थायित्व को बढ़ावा देना: चूंकि विदेशी विनिमय दरों में उच्चावचनों से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में बाधा उत्पन्न होती है अतः कोष का लक्ष्य अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का संतुलित विकास करने हेतु विदेशी विनिमय दरों में स्थायित्व लाना है। ऐसा होने पर भी वहाँ विनिमय दर स्थायित्व की नीति के विषय में कोई कठोर नियम नहीं है।

भुगतान शेष के अस्थायी घाटे को समाप्त करने के लिए अल्पकालीन मौद्रिक सहायता प्रदान करना: मुद्राकोष सदस्यों को उनके कोषों को प्रदान करके उनके भुगतान-शेष में अस्थायी असंतुलन की सीमा को दूर करता है तथा उसकी अवधि को कम करता है। कोष सदस्यों को उनके भुगतान-शेष के आधारभूत असंतुलन को ठीक करने के लिए उधार नहीं देता है, वह केवल सदस्यों के भुगतान-शेष में अस्थायी घाटे को ठीक करने के लिए ही उनकी सहायता करता है।

मुद्राओं के प्रतियोगी ह्रास को रोकना : विदेशी विनिमय प्रतिबन्धों तथा सदस्यों द्वारा अपनी मुद्राओं के प्रतियोगी हास को हतोत्साहित करना। यह विदेशी विनिमय प्रतिबन्धों को हटाने का प्रयत्न करता है। कोई भी सदस्य कोष की अनुमति के बिना वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के लिए हस्तांतरणों तथा भुगतानों पर प्रतिबन्ध नहीं लगा सकता। परन्तु कोष किसी भी सदस्य देश को देश से पूंजी के बहिर्गमन को रोकने के लिए प्रतिबन्ध लगाने की अनुमति दे सकता है बशर्ते कि सक्रिय व्यापार तथा वर्तमान लेन-देन पर पूंजी गतियों में बाधा उपस्थित न हो।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष का संगठन, सदस्यता एवं अभ्यंश

(Organization, Membership and Quotas)

कोष के प्रबन्धन के लिए एक प्रशासक मण्डल, कार्यकारी संचालन मण्डल, प्रबन्ध संचालक तथा कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। गवर्नर मण्डल में प्रत्येक सदस्य देश का एक गवर्नर नियुक्त किया जाता है। कार्यकारी संचालन मण्डल में 24 सदस्य हैं जिनमें से पांच की नियुक्ति पांच सर्वाधिक अभ्यंश वाले राष्ट्रों द्वारा की जाती है। पाँच सर्वाधिक अभ्यंश वाले देश हैं-अमरीका, ब्रिटेन, जापान, जर्मनी और फ्रांस । कार्यकारी संचालक मण्डल के एक सदस्य की नियुक्ति सऊदी अरब द्वारा की जाती है क्योंकि मुद्राकोष को विशेष ऋण देने वाले देशों में वह सबसे बड़ा देश है और बसे बड़े ऋणदाता देश को यह अधिकार प्राप्त है। कार्यकारी संचालक मण्डल के अन्य 18 सदस्यों का चयन समस्त सदस्य देशों द्वारा 2 वर्षों के लिए किया जाता है। कार्यकारी संचालक मण्डल का संचालन एक प्रबन्ध निदेशक करता है जो कोष के कार्यकारी संचालक मण्डल का अध्यक्ष होता है। कोष की कुल पूंजी सदस्य देशों के कुल अभ्यंशों के योग के बराबर होती है।

1 मार्च, 1947 को कोष के कुल 40 सदस्य थे तथा उनके कुल अभ्यंश की राशि 7.5 बिलियन डालर थी। 30 अप्रैल 1995 को कोष के सदस्यों की संख्या 179 थी और समस्त पूंजी 145 बिलियन एस.डी.आर. थी। वर्ष 2006 में सदस्यों की संख्या बढ़कर 184 हो गयी और समस्त अभ्यंश पूंजी 213.5 बिलियन एस.डी.आर. थी। वित्तीय वर्ष 1991-92 में विश्व स्तर पर सदस्यों की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई और 20 से अधिक देश इसके सदस्य बने जिसमें सोवियत यूनियन के 15 देश सम्मिलित हैं। 30 अप्रैल 2012 को सदस्य देशों की संख्या 187  थी। सदस्य देश का मुद्राकोष में अभ्यंश ही निर्धारित करता है कि नियमित तथा विशेष ऋण में उसका अंश क्या होगा? एस.डी.आर. के आवंटन में उसका अंश क्या होगा? उसे कितना मत देने का अधिकार होगा? प्रत्येक सदस्य देश को 250 मूल मत प्राप्त हैं तथा 1 लाख एस.डी.आर. पर एक मत देने का अधिकार और मिलता है। मुद्राकोष के 5 बड़े अंशधारी-अमरीका, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस हैं। सबसे अधिक अंश अमरीका का है जो 17.46 प्र.श. है। अमरीका को सबसे अधिक मत देने का अधिकार भी है जो 17.08 प्रतिशत है। सबसे कम अंश प्लाऊ (Palau) का है जो 0.001 श.प्र. है। भारत को मत देने का अधिकार 1.93 प्र.श. है। चीन को 2.95 प्रतिशत मताधिकार प्राप्त है जबकि भारत, श्रीलंका भूटान और बांग्लादेश को सम्मिलित रूप से 2.39 प्र. श. ही मताधिकार प्राप्त हैं। कोष के स्वर्ण निक्षेपागार, सदस्य जहां कोष को स्वर्ण में भुगतान कर सकते हैं, फेडरल रिजर्व बैंक ऑफ फ्रांस और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया हैं।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कार्य

(Operation of the Fund)

कोष के कार्यों के प्रारंभिक वर्षों में यह समझा जाता था कि सदस्य देशों के भुगतान-शेष में युद्धोपरान्त घाटे को समाप्त करने के लिए कोष के साधन अपर्याप्त होंगे। अधिकांश देशों को डालर की कमी तथा उनके बाह्य भुगतान-शेष में वर्तमान घाटे का सामना करने में कोष सहायता प्रदान नहीं कर सका। परिणामस्वरूप इन देशों ने या तो अमरीका से अपने आयातों को बन्द कर दिया अथवा कोष का बिना कोई ध्यान दिये हुए अमरीका से पृथक समझौता कर लिया जिससे वे अपने भुगतान-शेष के घाटे को ठीक करने के लिए अमरीका से कुछ सहायता अथवा ऋण प्राप्त कर सकें। यह द्वितीय विकल्प था जिसका अनुसरण 1948 के पश्चात उस समय किया किया गया जब मार्शल सहायता (Marshall Aid) से अनेक पश्चिमी यूरोपियन देशों की सहायता हुई थी। कोष सदस्यों को सीमित मात्रा में ही विदेशी मुद्राओं को प्राप्त करने में सहायता कर सकता है। यदि बहुत-से देश एक साथ एक ही देश की मुद्रा की मांग करते हैं और यदि यह मांग बहुत अधिक मात्रा में की जाती है तो कोष इस संबंध में उनकी कुछ भी सहायता नहीं कर सकता।

मूल्यांकन

(Evaluation)

यद्यपि कोष विभिन्न सीमाओं के कारण अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में पूर्णतया सफल नहीं हुआ है जिससे अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग पर आधारित समस्त अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को हानि उठानी पड़ी है, फिर भी कोष ने सदस्यों की विभिन्न प्रकार की अनेक समस्याओं का समाधान किया है। कोष से सदस्यों को उनके भुगतान-शेष के घाटे को समाप्त करने हेतु समय-समय पर सहायता प्राप्त होने से उनके मध्य मौद्रिक अनुशासन में दृढ़ता आयी है। राजकोषीय तथा मौद्रिक नीतियों से सम्बन्धित तकनीकी बातों में सदस्यों की सहायता की जाती है। कोष के सदस्यों में मौद्रिक अनुशासन की संहिता नियमावली को लागू करने में कोष के महत्व को श्री पर जेकोब्सन (Mr. Per Jacobsson) ने निम्न शब्दों में व्यक्त किया है।

“यदि अब हम परीक्षण करना चाहें कि वास्तव में कोष ने किस प्रकार कार्य किया है तो मैं सोचता हूँ कि यह कहना उचित होगा कि कोष ने लगातार मौद्रिक अनुशासन को कमजोर नहीं बल्कि सबल बनाने वाले घटक के रूप में कार्य किया है। निःसंदेह काष उसी दशा में आर्थिक सहायता प्रदान करता है जब देश अपनी समस्याओं के लिए स्वयं प्रयास कर रहे हों और वास्ताविक  विनिमय दरों पर दीर्घकालीन स्थिरता को बनाये रखने की आशा से कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहे हों, वास्तव में कोष के साधनों तक केवल पहुंच की सम्भावना ही, चाहे वास्तविक निकासी भले ही न हो, देशों के भुगतान-शेष के असन्तुलन को ठीक करने के लिए किये गये प्रयास के प्रति आश्वस्त बनाती है और वास्तव में अपने साधनों की उपलब्धि के अतिरिक्त कोष के साधन तक पहुंच मात्र से ही देश अधिक कठोर कदम उठाने के लिए प्रेरित होते हैं।”

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Pankaja Singh

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