शिक्षाशास्त्र

शिक्षा मनोविज्ञान | शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ | शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा | शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप | शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य | शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व

शिक्षा मनोविज्ञान | शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ | शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा | शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप | शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य | शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व

शिक्षा मनोविज्ञान   

शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ

शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है-शिक्षा और मनोविज्ञान । साधारण रूप से इसका अर्थ हुआ “शिक्षा की क्रिया का मनोविज्ञान” | शिक्षा का तात्पर्य सीखना है अर्थात् अपने चारों ओर हम क्या देखते-सुनते हैं और तदनुकूल हम क्या करें, इस प्रकार की सम्पूर्ण प्रक्रिया ही शिक्षा है। अंग्रेजी में ‘एजुकेशन’ शब्द का मूलतः अर्थ है अन्दर की शक्तियों के बाहर के वातावरण में प्रकट करने की क्रिया जिससे हम उस वातावरण से पूर्णरूप से परिचित हो जावें और फलस्वरूप आगे बढ़ सकें। शिक्षा सीखना है, आन्तरिक शक्तियों का प्रकाशन है और उनका विकास हो ।

मनुष्य के पास ‘मन’ और ‘शरीर’ होता है। मन से वह सोचता-विचारता है और शरीर से क्रिया करता है। मनुष्य जब मन से सोचता-विचारता और शरीर से क्रिया करता है तो उसे उसका ‘व्यवहार’ कहते हैं? ‘व्यवहार‘ की जानकारी हमें कैसे होती है? इसके लिए एक विशेष विषय है जिसे ‘मनोविज्ञान’, अर्थात् मन का विज्ञान या विशेष ज्ञान ‘देने वाला विषय’ कहते हैं। हर एक व्यवहार का अध्ययन मनोविज्ञान या शिक्षा मनोविज्ञान करता है। शिक्षा भी मनुष्य के मन और शरीर की एक विशिष्ट क्रिया है और इसका अध्ययन भी मनोविज्ञान करता है, परन्तु उसे केवल मनोविज्ञान न कहकर शिक्षा मनोविज्ञान’ कहा जाता है।।

“शिक्षा मनोविज्ञान का अर्थ उस विषय से होता है जो मनुष्य को सीखने-सिखाने की मन तथा शरीर से की गई क्रिया का विशेष या व्यवस्थित ढंग से अध्ययन करता है।”

शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषा

(अ) प्रो० ट्रो-“शिक्षा मनोविज्ञान में शैक्षिक परिस्थतियों के मनोवैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन होता है।”

(आ) प्रो० सी० ई० स्किनर-“शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षणिक परिस्थितियों में मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है, इसका तात्पर्य है कि शिक्षा मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार के अध्ययन से या मानवीय व्यक्तित्व-उसकी अभिवृद्धि, उसके विकास तथा शिक्षा की सामाजिक प्रक्रिया के अन्तर्गत निर्देशन से सम्बन्ध रखता है।”

(इ) प्रो क्रो और क्रो-“शिक्षा मनोविज्ञान जन्म से बुढ़ापे तक व्यक्ति के सीखने से सम्बन्धित अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।”

(ई) प्रो० कश्यप एवं पुरी-“शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थियों की क्रियाओं का या व्यक्तियों के शैक्षिक पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया का अध्ययन है।”

(उ) प्रो० स्टीफेन्स-“शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक अभिवृद्धि और विकास का क्रमबद्ध अध्ययन है।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम अपनी परिभाषा दे सकते हैं-

“शिक्षा मनोविज्ञान विद्यार्थियों और अन्य व्यक्तियों की पर्यावरण के प्रति की गई अनुक्रिया के फलस्वरूप सीखने का क्रमबद्ध या वैज्ञानिक अध्ययन है।”

शिक्षा मनोविज्ञान का स्वरूप

ऊपर की परिभाषाओं के आधार पर हमें निम्नलिखित बातें शिक्षा मनोविज्ञान के स्वरूप के सम्बन्ध में ज्ञात होती हैं-

(अ) शिक्षा मनोविज्ञान एक क्रमबद्ध अध्ययन या विज्ञान है। यह बालक और अन्य शिक्षा लेने वाले व्यक्तियों के शिक्षा सम्बन्धी व्यवहार का अध्ययन है।

(आ) शैक्षिक क्रिया या व्यवहार व्यक्ति की वातावरण के प्रति की गई वह अनुक्रिया है जो वह सीखने या अनुभव-ज्ञान ग्रहण करने के विचार से करता है।

(इ) शिक्षा मनोविज्ञान जिस शैक्षिक परिस्थितियों का अध्ययन करता है उसमें विद्यालय, शिक्षक, प्रबन्धक, प्रशासक, क्रीडा-प्रांगण, कक्षा, पुस्तक और अन्य सामग्री, विद्यालय के कर्मचारी, विद्यालय की कार्यविधि सीखनेवालों की समस्त मानसिक एवं शारीरिक क्रियाएँ होती हैं।

(ई) शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षार्थी, शिक्षक, सीखना आदि का वैज्ञानिक विश्लेषण व्याख्या करता है।

(उ) शिक्षा मनोविज्ञान हर एक विद्यार्थी के सीखने से सम्बन्धित अनुभवों की व्याख्या करता है जो विद्यालय में और उसके बाहर भी होते हैं।

(ऊ) शिक्षा विद्यार्थी, शिक्षक एवं पाठ्यक्रम में होनेवाले परिवर्तनों को भी प्रकट करती है जिससे कि उसे अभिवृति एवं विकास कहा जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान इस परिवर्तन और विकास की भी जानकारी कराता है।

(ए) शिक्षा परिवर्तन चूँकि केवल व्याख्या और विश्लेषण करने वाला अध्ययन है, इसलिए इसे निश्चयात्मक या विधायक विज्ञान कहा जाता है।

(ऐ) शिक्षा मनोविज्ञान विद्यालय की शैक्षिक स्थितियों में छात्र-व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।

(ओ) शिक्षा मनोविज्ञान कुछ विशिष्ट विधियों का प्रयोग करता है। इस प्रकार उसका अपना एक विशेष स्थान और क्षेत्र है।

शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य

शिक्षा मनोविज्ञान के उद्देश्य निम्न है-

  1. सीखने वाले विद्यार्थी की दृष्टि से उद्देश्य-(i) शिक्षा मनोविज्ञान छात्र को अपनी योग्यता, क्षमता और शक्ति को जानने में सहायता करता है। (ii) इराके अलावा किस ढंग से किस परिस्थिति में वह व्यवहार करे इसमें भी शिक्षा मनोविज्ञान छात्र की सहायता करता है। (iii) अन्त में शिक्षा मनोविज्ञान छात्र को विकास की ओर अग्रसर करने में सहायता देता है जिससे कि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्थ होता है।
  2. सिखाने वाले अध्यापक की दृष्टि से उद्देश्य-(i) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को अपने विद्यार्थियों को समझने में सहायता देता है जिससे कि वह उनकी विशिष्टता को समझकर शिक्षा देता है। (ii) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को अपनी निजी शक्तियों को समझने में प्रयोग करने में सहायता देता है। (iii) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता करता है जिससे वह विद्यार्थी एवं सामाजिक परिस्थिति के अनुकूल पाठ्यक्रम बनाने में सफल होता है। (iv) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को निर्देशन एवं अध्यापन में सहायता देता है। शैक्षिक, व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत सभी प्रकार के निर्देशन वह देता है। (v) शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की उपयुक्त शिक्षा विधि के चुनाव में सहायता देता है जिससे प्रभावशाली ढंग से वह शिक्षण कार्य करता है। (vi) कक्षा तथा विद्यालयों में अनुशासन स्थापित करने के विचार से भी शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक की सहायता करता है। यह भी इसके अध्ययन का एक उद्देश्य होता है। (vii) शिक्षा सम्बन्धी एवं व्यवहार सम्बन्धी सभी समस्याओं को हल करने का उद्देश्य शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक के दृष्टिकोण से रखता है (viii) शिक्षा मनोविज्ञान का एक उद्देश्य विद्यार्थियों की विभिन्न परिस्थितियों में अच्छी तरह से समायोजन करने के योग्य बनाना है। (ix) शिक्षण कार्य में सहायता देने वाली सामग्रियों के रचना, पयोग, नियोजन आदि की दृष्टि से भी शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन होता है।
  3. शोधकर्ता की दृष्टि से उद्देश्य- (i) शिक्षा विधि के क्षेत्र में तथा अन्य क्षेत्रों में भी शोध करने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का उद्देश्य होता है। इससे शिक्षा कार्य भी ठीक- ठीक ढंग से आगे बढ़ता है। (ii) शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा संबंधी विभिन्न तथ्यों की खोज करता है और उसे शोध की कसौटी पर रखता है (iii) शिक्षा की नई बातों को आगे रखना होता है।
  4. प्रशासक और शिक्षा के अधिकारियों की दृष्टि से उद्देश्य-(i) विद्यालय की स्थापना उसे ठीक से चलाने और अन्य ढंग से व्यवस्था करने का उद्देश्य है। (ii) पाठ्यक्रम की योजना निर्माण तथा कार्यान्वित करने का उद्देश्य है। (iii) मनोविज्ञान की सहायता से शैक्षिक वातावरण तैयार करते और अनुशासन कायम करते हैं। (iv) छात्रों का पूर्णरूप से मूल्यांकन करने में वे सहायता लेते हैं।
  5. अभिभावक, माता-पिता की दृष्टि से उद्देश्य-(i) बालकों के बारे में अभिभावकों को ज्ञान देना, (ii) बालकों की गृहशिक्षा की व्यवस्था करने में भी अभिभावकों को सहायता देना, (iii) अभिभावकों को छात्रों के व्यवहारों को बताना तथा उसे सुधारना जितनी भी समस्याओं के समाधान में सहायता करना (iv) अभिभावक अपने आपको अपने उत्तरदायित्व को भी समझते हैं (v) सामान्य मनुष्यों में अपने आप सीखने की प्रेरणा, शक्ति, इच्छा आदि का विकास है। (vi) सामान्य लोगों को शिक्षा, शिक्षा की व्यवस्था, शिक्षा के सुधार, उसके गुण-दोष की व्याख्या विश्लेषण पर चिन्तन- मनन करना ये भी शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन लक्ष्य हैं।

शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व

शिक्षा, मनोविज्ञान तथा शिक्षा मनोविज्ञान तीनों सह-सम्बन्धित हैं। शिक्षा के क्षेत्र में पहले शिक्षा मनोविज्ञान का अभाव रहा है, परन्तु आज स्थिति दूसरी है। पेस्तोलॉजी ने लिखा है, “शिक्षक को बालक के मस्तिष्क का अच्छा ज्ञान अवश्य होना चाहिये ।” इनके शिष्य हरबार्ट ने लिखा है, “शिक्षा के सिद्धान्त का आधार मनोविज्ञानिक होना चाहिये।” मॉन्टेसरी ने भी संकेत किया है, “शिक्षक जितना ही अधिक प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का ज्ञान रखता है उतना ही अधिक यह जानता है कि कैसे पढ़ाया जाय ।” डीवी का बिचार है कि “बिना मनोविज्ञान के शिक्षा की क्रिया चल नहीं सकती है।” इन कथनों तया कई कारणों से शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व बताया जाता है।

(i) “शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है’-प्रो०स्किनर

(ii) “शिक्षा की प्रक्रिया बिना मनोविज्ञान के नहीं होती है”-प्रो० झा

(iii) “शिक्षा की समस्या का समाधान मनोविज्ञान से होता है”-प्रो० जेम्स ड्रेवर

(iv) “अध्यापक-अभिभावक-चालक के बीच शिक्षा मनोविज्ञान सम्बन्ध स्थापित करता है”

-प्रो० रायबर्न

(v) बालक को शिक्षा देने में मनोविज्ञान के द्वारा अध्यापक काम करता है।

(vi) समाज के जीवन को विकासशील और उन्नतिशील बनाने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व पाया जाता है। इस सम्बन्ध में दो बातें ध्यान में रखनी चाहिए-एक तो शिक्षा समाजीकरण की प्रक्रिया है और दूसरी बात है शिक्षा मनोविज्ञान का सम्बन्ध समाज में रहने वाले मानव के व्यवहारों से होता है। अतएव समाज में रहने वालों का विकास और उनकी उन्नति, उनकी संस्कृति को समझाना तथा बढ़ाना मनोविज्ञान की सहायता से होता है।

(vii) प्रत्येक बालक के व्यक्तित्व के जनतांत्रिक विकास में इसका महत्त्व है।

(viii) मनुष्य की यांत्रिक, गणितीय, शाब्दिक, कल्पनात्मक शक्तियों का ज्ञान और विकास होता है।

(ix) शिक्षा की क्रिया में योगदान की दृष्टि से इसका महत्त्व होता है।

(x) शिक्षा की विधि, शिक्षा के पाठ्यक्रम निर्माण एवं शिक्षण विधान व व्यवस्था की दृष्टि से शिक्षामनोविज्ञान अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं लाभकारी कहा जाता है।

शिक्षा और मनोविज्ञान

शिक्षा मनोविज्ञान के स्वरूप को बताने में कुछ शिक्षा मनोविज्ञानी इसे शिक्षा और मनोविज्ञान का मिश्रित रूप मानते हैं। शिक्षा और मनोविज्ञान का मिश्रित रूप वह है जिसमें शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार शिक्षा मनोविज्ञान का एक प्रयुक्त रूप है। ऐसी धारणा अब पुरानी हो गई है।

शिक्षा मनोविज्ञान के स्वरूप को बताने में कुछ मनोविज्ञानी मनोविज्ञान को शिक्षा का आधार कहते हैं। वास्तव में शिक्षा मनुष्य के सीखने-सिखाने की प्रक्रिया है। वह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य अपने पर्यावरण और परिस्थिति के साथ समायोजन करने का प्रयास करता है। ऐसे प्रयास में मनुष्य के द्वारा विभिन्न प्रकार की शारीरिक, मानसिक और भावात्मक क्रियाओं और व्यवहारों की अभिव्यक्ति होती है। इन सभी व्यवहारों की अभिव्यक्ति का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से मनोविज्ञान करता है। अतः शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले व्यवहारों का विश्लेषण मनोविज्ञान करता है, इसी से वह शिक्षा का आधार है। यह धारणा भी अब बदल गई है।

शिक्षा का आधार मनोविज्ञान को मान लेने पर दोनों में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध कहा जाता है। इसे प्रकट करते हुये प्रो० क्रो और क्रो ने लिखा है कि मनोविज्ञान सीखने से सम्बन्धित मानवीय विकास कैसे होता है, इसकी व्याख्या करता है और सीखना क्या है शिक्षा बताती है। इससे स्पष्ट है कि सीखने का केन्द्र शिक्षा और मनोविज्ञान दोनों में होता है। शिक्षा-सीखना-मनोविज्ञान। इससे शिक्षा और मनोविज्ञान का अटूट एवं पूरक सम्बन्ध प्रकट होता है।

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Pankaja Singh

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