साक्षात्कार विधि | समाजमितीय विधि
साक्षात्कार विधि-
आधुनिक समय में व्यक्तिगत सम्पर्क एवं प्रत्यक्ष वार्तालाप के द्वारा भी मनोविज्ञानी अध्ययन करते हैं। इसे ही साक्षात्कार का नाम दिया गया है। इस विधि में प्रशिक्षित एवं योग्य मनोवैज्ञानिक एवं अध्यापक या विशेष व्यक्ति प्रश्नों एवं बातचीत के द्वारा व्यक्ति के ज्ञान, बुद्धि, व्यवहार और अन्य विशेषताओं की जाँच करते है। व्यक्तित्व के बारे में भी जानकारी की जाती है। साक्षात्कार से प्रायः व्यक्ति के झुकाव, रुचि, क्रिया के लिए योग्यता आदि को जानने की चेष्टा की जाती है। साक्षात्कार लेने वाले दूरदर्शी, चतुर, व्यावहारिक, खोजपूर्ण होते हैं, तभी सब बातें ज्ञात की जाती हैं।
इसमें साक्षात्कार करने वाला और साक्षात्कार किए जाने वाला दोनों हमें परस्पर बातचीत के द्वारा किसी विशेष प्रसंग में सूचना की जाती है। साक्षात्कार विधि वह तकनीक है जिससे दो व्यक्ति परस्पर प्रश्नोत्तर या साधारण वार्तालाप के रूप में विशेष प्रसंग के बारे में सूचना एकत्र करते हैं।
(क) गुण- (i) व्यक्तिगत रूप से अध्ययन करने का एक वैज्ञानिक तरीका है क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से सूचनाएँ मिलती हैं।
(ii) यह विधि विश्वसनीय है क्योंकि विषयों के द्वारा दिए गए के आधार पर अध्ययन किया जाता है।
(iii) यह विधि व्यापक रूप से सूचना संकलित करती है क्योंकि साक्षात्कार के पूर्व भी विषयों के सम्बन्धियों, माता-पिता, अध्यापकों, साधियों, दोस्तों अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करते हैं।
(iv) प्रश्नों के उत्तर से सीधे अथवा घुमा-फिराकर विषयों की मानसिक प्रतिक्रियाओं, कल्पना एवं चिन्तन की सहायता से उसका सही व्यक्तित्व जाना जाता है। विभिन्न प्रसंगों का पूर्ण विवेचन करके तत्सम्बन्धी सभी सूचना साक्षात्कार से मिलती है।
(v) इस विधि से मनुष्य के गुण-दोष, इच्छाएँ, लक्ष्य आदि मालूम करके उसकी शिक्षा-व्यवस्था भी की जा सकती है।
(ख) दोष- (i) यह एक प्रमाणीकृत साधन नहीं है, ऐसा विचार प्रो० स्किनर का है।
(ii) यह एक जटिल विधि है और साक्षात्कार लेने वाले की कुशलता पर सफलता निर्भर करती है, ऐसा विचार प्रो० आलपोर्ट का है।
(iii) इसके लिए दक्ष व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है जो प्रश्नों का निर्माण भली भाँति करे।
(iv) साक्षात्कार लेने वाले की ओर से पक्षपात की सम्भावना हुआ करती है। दोष है फिर भी शैक्षिक एवं सामाजिक दृष्टि से यह एक उपयोगी विधि है। “साक्षात्कार अधिगम की एक परिस्थिति है” जिसमें व्यक्ति निजी तौर पर सन्तोषप्रद तथा सामाजिक तौर पर वाञ्छनीय ढंग से अपना सुधार करता है।
समाजमितीय विधि-
शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया के रूप में आज स्वीकार की गई है। फलस्वरूप उसको सामाजिक परिप्रेक्ष्य में देखने का प्रयत्न किया जाता है। शिक्षा मनोविज्ञान शैक्षिक स्थिति में विद्यार्थी के सभी व्यवहारों का अध्ययन करता है। यहाँ हमें समाजमितीय विधि का प्रयोग करना पड़ता है। समाजमितीय आधुनिक समय में एक प्रकार का व्यक्तियों के परस्पर के सम्बन्धों का अध्ययन होता है। समाज के लोगों के पारस्परिक सम्बन्धों के अध्ययन की विधि को ही समाजमितीय विधि कहते हैं।
कक्षा में, विद्यालय में, खेल के मैदान में तथा आगे चलकर बड़े समाज में विद्यार्थी को परस्पर व्यवहार करना जरूरी होता है और वह समूह के दूसरे लोगों से परस्पर सम्बन्ध स्थापित करता है तथा सामूहिक व्यवहार करता है और सामूहिक क्रिया-कलाप में भाग लेता है। इसकी जानकारी के लिए हम समाजमितीय विधि का प्रयोग करते हैं। समाजमितीय विधि के द्वारा हमें ज्ञात होता है कि इनमें कैसा सम्बन्ध है, वे कहाँ तक एक-दूसरे के सहायक, मित्र, विपरीत अथवा उदासीन हैं।
(क) गुण- (1) समूह-व्यवहार की जटिलताओं को समझने के लिए यह विधि उपयोगी है।
(ii) समाज के नेतृत्व करने वालों की पहचान भी इस विधि से होती है और उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है।
(iii) इससे सामाजिक योग्यता का ज्ञान होता है और तदनुसार छात्रों को समाजोपयोगी नागरिक बनाने में सहायता ली जा सकती है।
(iv) जनतंत्रीय व्यवस्था में शिक्षा के द्वारा समाजीकरण के विचार से यह विधि उपयोगी होती है।
(ख) दोष- (i) यह विधि समूह-अध्ययन के लिए उपयोगी होती है, व्यक्तिगत रूप से कम प्रभावकारी है।
(ii) सामाजिक व्यवहार का अध्ययन केवल निरीक्षण तथा रिपोर्ट के आधार पर किया जाता है। इसके कारण पूर्ण अध्ययन करना सम्भव नहीं होता है |
(iii) इसका प्रयोग समाजशास्त्र में शिक्षा मनोविज्ञान की अपेक्षा अधिक होता है। इसलिए शिक्षा मनोविज्ञान की दृष्टि से यह कम उपयोगी होती है।
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