शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विधियाँ | आत्मगत विधियाँ | वस्तुगत विधियाँ | वैज्ञानिक विधियाँ
शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विधियाँ
शिक्षा मनोविज्ञान पानव की शैक्षिक परिस्थितियों के प्रेरणा स्वरूप किए गए अनुभवों एवं व्यवहारों का विधिवत अध्ययन करता है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं, एक तो शिक्षा मनोविज्ञान के विज्ञान-स्वरूप की और दूसरे उसके द्वारा प्रयुक्त अध्ययन विधि की । अध्ययन विधि का तात्पर्य है वह तरीका जिससे विज्ञान अपने तथ्यों का विश्लेषण- व्याख्या-निष्कर्षण आदि करता है। अतएव विधि में एक क्रमबद्ध अध्ययन-योजना पाई जाती है। साधारण अर्थ में विधि तथ्यों की जानकारी का एक तरीका होता है। शिक्षा मनोविज्ञान की विधि या पद्धति अथवा प्रणाली का तात्पर्य है वह तरीका जिससे शैक्षिक व्यवहारों का अध्ययन विश्लेषण या व्याख्या की जाती है।
अध्ययन विधियाँ-
1-आत्मगत विधियाँ
2-वस्तुगत विधियाँ
3-वैज्ञानिक विधियाँ
- आत्मगत विधियाँ- इनको हम दो भागों में बाँटते हैं-(अ) अन्तर्निरीक्षण की विधि और (ब) उपाख्यानक विधि। आत्मगत विधि का तात्पर्य उस तरीके से है जो व्यक्ति अपने आप प्रयोग करता है, जैसे अन्तर्निरीक्षण में व्यक्ति स्वयं अपने व्यवहार का विश्लेषण व्याख्या करता है और उपाख्यानक विधि में वह विभिन्न परिस्थितियों में जो अनुभव करता रहता है उन्हें संचित करता रहता है। वास्तव में यह शक्ति के द्वारा स्वयं एकत्र किया गया घटना-वृत्त है।
- वस्तुगत विधि- वह है जिसमें व्यक्ति स्वयं नहीं बल्कि दूसरों के द्वारा विभिन्न तथ्यों का विभिन्न ढंग से संकलन करता है। इसके अन्तर्गत आधुनिक समय में निम्न विधियों आती हैं-
(अ) निरीक्षण विधि
(आ) तुलनात्मक विधि
(इ) व्यक्ति इतिहास अथवा व्यक्ति अध्ययन विधि
(ई) सांख्यिकीय विधि
(उ) प्रश्नावली विधि
(ऊ) प्रयोगात्मक विधि
(ए) मनोविश्लेषणात्मक विधि
(ऐ) मनोविकृत्यात्मक विधि
(ओ) परीक्षणात्मक विधि
(औ) विकासात्मक विधि
(अं) साक्षात्कार विधि
(अः) समाजमितीय विधि
- वैज्ञानिक विधियाँ- वस्तुगत विधियों में से ही कुछ विधियाँ ऐसी हैं जो ठेठ रूप से वैज्ञानिक मानी जाती हैं अर्थात् जिनसे विज्ञान की तरह अध्ययन करते हैं जैसे प्रयोगात्मक विधि, प्रयोगशाला में इसके लिये यंत्रों की सहायता से शिक्षा देने की व्याख्या की जाती है। भाषा प्रयोगशाला की विधि भी एक ऐसी विधि है।
ऊपर की विभिन्न विधियाँ विभिन्न परिस्थितियों में काम में लाई जाती हैं। अलग- अलग तथा एक साथ भी हम कई विधियों का प्रयोग मानव के शैक्षिक व्यवहारों के अध्ययन करने में करते हैं। इनमें कुछ तो बहुत महत्वपूर्ण एवं प्रमुख कही जाती हैं और कुछ को गौण स्थान दिया जाता है। प्रमुख विधियों में अन्तर्निरीक्षण, प्रयोगात्सक, निरीक्षण, साक्षात्कार, मनोविश्लेषणात्मक, सांख्यिकीय एवं प्रश्नावली विधियाँ हैं। इनका प्रयोग अधिकतर होता है।
वैज्ञानिक विधि का तात्पर्य है ऐसी विधि जिसमें कारण- परिणाम के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है। जैसे कक्षा में कोई छात्र क्यों असफल होता है, इसे जानने में उसकी असफलता के कारणों की जानकारी जरूरी होती है। यह जानकारी व्यवस्थित रूप से अध्ययन होने में वैज्ञानिक विधि का प्रयोग कहा जायेगा। वैज्ञानिक विधि (i) निरीक्षण, प्रयोग तथा अनुभव (ii) निगमनता, विश्लेषण, निष्कर्षण तथा (iii) यथार्थता, शुद्धता, वास्तविकता होती है। वैज्ञानिक विधि इस प्रकार वह विधि है जिसमें तथ्यों व आँकड़ों का संग्रह विश्लेषण, परीक्षण, प्रयोग, विवेचन, निष्कर्षण, नियम निर्धारण और पुनः संग्रह तथा सत्यापन होता है। ऐसी स्थितियों में से वस्तुगत विधियों में से बहुत सी विधियाँ वैज्ञनिक होती हैं, जैसे प्रयोगात्मक विधि, सांख्यिकी विधि, समाजमितीय विधि, प्रमाणीकृत परीक्षण विधि, भाषा प्रयोगशाला विधि ।
इन विधियों में वे सभी गुण उपलब्ध हैं जो वस्तुगत विधियों के सम्बन्ध में पहले ही बताए गए हैं। उनका अध्ययन कर लेना इस प्रसंग में जरूरी है। इसके अलावा यह भी लाभ है व्यावहारिक, प्रत्यक्ष, यांत्रिक अध्ययन होता है। इसीलिए आज वैज्ञानिक पद्धति से शिक्षा देने में इनका प्रयोग दिन-प्रतिदिन प्रत्येक क्षेत्र में होता जा रहा है।
इन विधियों के दोष भी लगभग वे ही हैं जो वस्तुगत विधि के संदर्भ में बताई गए हैं जिनको देखने से प्रत्यक्ष समझ में आ जावे फिर भी वे विधियाँ अत्यन्त तर्कयुक्त एवं यांत्रिक भी होती है। व्यावहारिक न होने से इन्हें सीमित लोग ही प्रयोग करते हैं। शिक्षा मनोविज्ञान में प्रयोगशालीय अध्ययन एवं यांत्रिक प्रदर्शन द्वारा अध्ययन बढ़ रहा है जो सीखने वाले एवं सिखानेवालों को मशीन समझता है। इससे उदार दृष्टिकोण का छात्र स्वाभाविक है | यांत्रिक सामान-सज्जा से यह इतनी खर्चीली है कि शायद ही सभी विद्यालय एवं महाविद्यालय इसे अपनाने में समर्थ हों। ऐसी स्थिति में इसका प्रयोग अत्यन्त संकुचित अपने आप ही हो गया है।
इन विधियों में परस्पर सह-सम्बन्ध- ऊपर कुछ प्रमुख तथा कुछ गौण अध्ययन विधियों के विषय में बताया गया है। लोगों ने इन्हें आत्मगत और वस्तुगत दो भागों में बाँटा है। दोनों प्रकार की विधियों में परस्पर सह-सम्बन्ध पाया जाता है। उदाहरण के लिए अन्तर्निरीक्षण की विधि और बहिर्निरीक्षण तथा प्रयोगात्मक विधि में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। ये तीनों विधियाँ निरीक्षण पर ही आधारित हैं और तीनों में विषयों के कुछ न कुछ तथ्यों को देना ही पड़ता है। अन्तर्निरीक्षण में विषयों के स्वयं सभी तथ्य प्रकट करता है और निरीक्षण में तथा प्रयोग में निरीक्षणकर्ता तथा प्रयोगकर्त्ता के कहने पर तथ्य प्रकट करता है।
आत्मगत विधि तथा वस्तुगत विधि में व्यक्ति के द्वारा कार्य पूरा होता है। बिना विषयों एवं विषयों के बारे में अध्ययन करने वाले की सभी विधियाँ अधूरी ही रहती हैं। अतएव पूर्ण अध्ययन के लिए परस्पर सह-सम्बन्ध होता है।
दोनों प्रकार की विधियों से अलग-अलग प्रकार की सूचनाएँ मिलती हैं। ऐसी दशा में जहाँ सभी बातों का अध्ययन करना जरूरी है वहाँ दोनों प्रकार की विधियों का प्रयोग करना जरूरी है। उदाहरण के लिए किसी छात्र ने दूसरे को मार दिया है। यहाँ हम उसके व्यवहार का अध्ययन अन्तर्निरीक्षण द्वारा, मनोविश्लेषण और साक्षात्कार द्वारा अथवा समाजमितीय तरीके से कर सकते हैं और सही-सही बात की जानकारी कर सकते हैं। अब साफ मालूम होता है कि ये विधियाँ परस्पर एक दूसरे की पूरक हैं। इनमें धनात्मक सह-सम्बन्ध है अर्थात् ये एक-दूसरे की विरोधी नहीं है।
सभी विधियाँ परस्पर एक दूसरे की सहयोगी और पूरक होती हैं। विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न प्रकार के व्यवहारों की जाँच के लिये एक साथ ही एक व्यक्ति के संदर्भ में कई विधियों से काम लिया जाता है। यही इनका पारस्परिक सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है।
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