उद्यमिता और लघु व्यवसाय

उद्योग एवं वातावरण के मध्य परस्पर अन्तर्सम्बद्धता | उद्यमीय वातावरण के अध्ययन के महत्व | Interrelationship between industry and environment in Hindi | Importance of Studying the Entrepreneurial Environment in Hindi

उद्योग एवं वातावरण के मध्य परस्पर अन्तर्सम्बद्धता | उद्यमीय वातावरण के अध्ययन के महत्व | Interrelationship between industry and environment in Hindi | Importance of Studying the Entrepreneurial Environment in Hindi

उद्योग और वातावरण के मध्य परस्पर अन्तर्सम्बद्धता-

उद्योग और वातावरण के मध्य परस्पर अन्तर्सम्बद्धता के गुण पाये जाते हैं। इन्हीं प्रकृति व परस्पर व्यवहार सुनिश्चित किये जाते हैं। इन्हें निम्न बिन्दुओं के आधार पर अध्ययन किया जा सकता है-

  1. उद्योग की आन्तरिक व बाह्य क्रियाएँ, स्वतः समग्र वातावरण में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, प्रशासनिक व तकनीकी घटकों से प्रभावित होकर परस्पर अन्तर्सम्बन्धों का निर्धारण करती है।
  2. उद्योग समग्र वातावरण की एक सूक्ष्म व विशिष्ट इकाई है जो अपनी भूमिका निर्वाह व समस्याओं के समाधान में अपने योगदान के परिणामस्वरूप अपनी छवि व पहचान बनाता है।
  3. उद्योग व बाह्य वातावरण प्रायः उद्यमियों के नियन्त्रण से बाहर होता है। अतः इनके लिए ऐसे वातावरण का उचित विश्लेषण व मूल्यांकन कर इनके साथ अनुकूलन स्थापित करना सम्भव नहीं होता है। ऐसी अनियन्त्रित स्थिति में उद्यमियों की अनिश्चिताओं व जोखिम वहनीय क्षमताएँ ही परस्पर अन्तर्सम्बन्धों का निर्धारण करती हैं।
  4. समग्र समाज अपने विचारों, दृष्टिकोणों, सिद्धान्तों, जीवन शैलियों एवं व्यवहारों से ओतप्रोत होता है जो प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में व्यवसाय उद्योग के कार्य निष्पादन को प्रभावित करते हैं, साथ ही, उद्यमीय प्रवृत्तियाँ व व्यवहार भी समग्र वातावरण को विविध रूपों में प्रभावित कर नये आधारों का निर्माण करती।
  5. समाज द्वारा प्रदत्त वातावरण के समुचित अध्ययन व मूल्यांकन करने एवं इसमें आत्मसात करते हुए इसी में रहकर अनुभूति करते हुए उद्योग से सम्बद्ध विभिन्न समस्याओं व चुनौतियों का निदान किया जा सकता है।
  6. समाज का बाह्य वातावरण उद्योग को वे समस्त मान्यताएँ, सुविधाएँ व प्रेरणाएँ प्रदान करते हैं जो उद्यमशीलता को बढ़ावा देती हो, जबकि इन सभी का प्रभावी उपयोग उद्यमियों के व्यवहारों व कार्यों तथा उनकी क्षमताओं पर निर्भर करता है।
  7. औद्योगिक समाज से सम्बद्ध होने वाले नवीनतम परिवर्तनों, प्रणालियों, तकनीकों, कार्य प्रणालियों व ज्ञान के विस्तारों का उद्योग व समन वातावरण के मध्य आदान-प्रदान हेतु परस्पर संवाद एवं हस्तान्तरण प्रक्रिया प्रभावी संचार व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी निर्भर करता है। ऐसी संचार व्यवस्था इन अन्तर्सम्बन्धों को नया रूप प्रदान करती है।

उद्यमीय वातावरण के अध्ययन की आवश्यकता व महत्व-

उद्यमीय वातावरण के अध्ययन की महत्ता निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट की जा सकती है-

  1. नवप्रवर्तन (Innovation)- नवप्रवर्तन आधुनिक व्यवसाय एवं उद्यमशील प्रवृत्तियों की सफलता का मूल मन्त्र है। नवप्रवर्तन से ही व्यावसायिक क्रियाओं की प्रगति एवं विकास की गति को सुनिश्चित किया जा सकता है। किन्तु नवप्रवर्तन तभी सफल माने जायेंगे जबकि वे वातावरणीय घटकों की अपेक्षाओं एवं आवश्यकताओं के अनुरूप हो। अतः ऐसा सुनिश्चित करने के लिए उद्यमीय वातावरण का अध्ययन आवश्यक है।
  2. दीर्घकालीन नियोजन हेतु (For Long Term Planning)- किसी भी संस्था के दीर्घकालीन नियोजन के निर्धारण व इस सम्बन्ध में व्यूह रचनाओं के बनाने के लिए भी उद्यमीय वातावरण का अध्ययन आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध में बाह्य वातावरण का संस्थागत वातावरण के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन व विश्लेषण कर संस्था की दीर्घकालीन योजनाओं का निर्धारण किया जा सकता है। इसी क्रम में, संस्था के उद्देश्यों व लक्ष्यों का वातावरणीय घटकों के साथ सामंजस्य करते हुए दीर्घकालीन नियोजन का निर्माण किया जा सकता है।
  3. सुदृढ़ निर्णयन हेतु (For Sound Decision)- बाह्य वातावरण की अपेक्षाओं एवं उद्योग की परिस्थितियों के अनुरूप लिये गये विवेकशील निर्णयों की महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है। अतः प्रबन्धकों व उद्यमियों द्वारा अपनी संस्था के हित में सुदृढ़ व श्रेष्ठ निर्णय लेने के ध्येय से भी उद्यमीय वातावरण का अध्ययन किया जाना आवश्यक है।
  4. व्यक्तिगत कौशलता (Personal Skills)- एक सफल उद्यमी में व्यावसायिक, तकनीकी, प्रबन्धकीय एवं मानवीय आदि कौशल पाये जाते हैं। कुछ कौशल उपक्रम की परियोजना निर्माण, क्रियान्वयन, प्रबन्धन, संचालन, संगठन, संरचना, विपणन व्यूहरचना आदि से सम्बन्धित होते हैं जो महत्वपूर्ण माने जाते हैं। उद्यमियों की ऐसी व्यक्तिगत कौशलताओं के मूल्यांकन, निर्माण व विकास के लिए पर्याप्त उद्यमीय वातावरण सृजन एवं उसका अध्ययन किया जाना आवश्यक है।
  5. प्रबन्ध विज्ञान के ज्ञान हेतु (For the Knowledge of Management Science) – उद्यमियों को अपने क्रियाकलापों को सुव्यवस्थित व व्यापक रूप देने के लिए प्रबन्ध विज्ञान का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है। प्रबन्ध विज्ञान ने अपनी प्रविधियों प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं के माध्यम से उद्यमीय वातावरण में व्यापक परिवर्तन व सुधार किये हैं। अतः उद्यमियों को अपने प्रबन्ध ज्ञान, कौशलता व व्यवहारों को समुन्नत करने के लिए उद्यमीय वातावरण का अध्ययन करना आवश्यक होता है।
  6. व्यक्तिगत प्रभावोत्वादकता (Personal Efficiency)- उद्यमियों की व्यक्तिगत प्रभावोत्पादकता कुछ शारीरिक क्षमताओं, निर्णयन क्षमताओं, पहलपन की योग्यता, सफल कार्य परिणामों एवं संघर्षशील कार्यों से प्रेरित होने की क्षमता पर निर्भर करती है। अतः ऐसी प्रभावोत्पादकता के मूल्यांकन, औचित्यता, परिणामों व उद्यमिता विकास पर पड़ने वाले प्रभावों के अध्ययन के लिए उद्यमीय वातावरण का अध्ययन आवश्यक है।
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Pankaja Singh

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