संयुक्त उपक्रम | संयुक्त उपक्रम के कारण | संयुक्त उपक्रम के लाभ | संयुक्त उपक्रम की हानियाँ या सीमाएं | joint venture in Hindi | Due to joint venture in Hindi | Benefits of Joint Venture in Hindi | Disadvantages or Limitations of Joint Venture in Hindi
संयुक्त उपक्रम
Joint Venture
किसी विशेष उद्देश्य के लिए जब दो या दो से अधिक कम्पनियाँ अल्पकालीन साझेदारी करती हैं तो इसे संयुक्त उपक्रम कहा जाता है। जब एक कम्पनी यह अनुभव करती है किसी उद्देश्य को वह अकेले प्राप्त करने में असमर्थ है तो समान उद्देश्य को प्राप्त करने वाली कम्पनी के साथ मिलकर उस उद्देश्य को प्राप्त करने का प्रयत्न करती है। संयुक्त उपक्रम के माध्यम से एक कम्पनी दूसरे देशों के बाजार में भी प्रवेश कर सकती है। संयुक्त उपक्रम प्रायः उद्योग के अन्दर ही किया जाता है। भारतीय व्यवसाय के दृष्टिकोण से निम्न तरीकों से संयुक्त उपक्रम बनाया जाता है-
(i) एक ही उद्योग में दो फर्मों द्वारा बनाया गया संयुक्त उपक्रम।
(ii) अलग-अलग उद्योगों की दो फर्मों के बीच बनाया गया।
(iii) भारत में एक भारतीय फर्म एवं एक विदेशी फर्म के बीच का संयुक्त उपक्रम।
(iv) एक भारतीय फर्म एवं एक विदेशी फर्म के बीच उसी देश में बनाया गया एवं
(v) एक भारतीय फर्म एवं एक विदेशी फर्म द्वारा किसी तीसरे देश में बनाया गया।
कारण
(Reasons for joint Venture) –
संयुक्त उपक्रम व्यूहरचना को अपनाने के निम्न कारण हैं-
(i) इसका महत्वपूर्ण कारण यह है कि जब वैधीकरण बाजार में सफलता पाने एवं जीवित रहने के लिए विशेष संसाधनों एवं योग्यता की आवश्यकता होती है एवं तीव्र गति से बदलती प्रौद्योगिकी के कारण जब फर्म अकेले व्यूहरचनात्मक उद्देश्यों को प्राप्त नहीं कर सकती है, जब संयुक्त उपक्रम व्यूहरचना को अपनाया जाता है।
(ii) बड़ी फर्मे नियन्त्रण या प्रतिस्पर्द्धा को कम करने के लिए एक साधन की तरह संयुक्त उपक्रम का उपयोग करने के उद्देश्य से इस व्यूहरचना को अपना सकती है।
(iii) जब फर्मों द्वारा किए जाने वाले कार्यों को अकेले रहना अमितव्ययी (Uneconomical) हो जाता है तब संयुक्त उपक्रम का निर्णय किया जा सकता है।
(iv) जब किसी नियमित बाजार में फर्म को अकेले प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती है, तब बाजार में प्रवेश करने का तरीका संयुक्त उपक्रम हो सकता है।
(v) उच्च विनियोग में निहित जोखिम को टालने का परीक्षण करने के लिए संयुक्त उपक्रम का प्रयोग एक कर्णधार की तरह किया जा सकता है।
(vi) जब व्यवसाय की जोखिम को कम करने के लिए किसी दूसरी फर्म के साथ इसे बांटना पड़ता है तो संयुक्त उपक्रम की व्यूहरचना को अपनाया जाता है।
लाभ
(Advantages)-
संयुक्त उपक्रम को अपनाने से निम्न लाभ होते हैं-
(i) यह जोखिम को कम करता है।
(ii) यह विदेशी प्रौद्योगिकी तक पहुँच बनाने में मदद करता है।
(iii) यह व्यक्तिगत कम्पनी विनियोग को कम करता है क्योंकि इसमें संयुक्त रूप से विनियोग किया जाता है, अतः विनियोग की जोखिम स्वतः बंट जाती है।
(iv) इसे सरकारी एवं राजनीतिक सहारा प्राप्त होता है।
(v) इससे समता सहभागिता बढ़ जाती है।
(vi) इससे व्यवसाय के नए क्षेत्रों में प्रवेश करने में मदद मिलती है।
(vii) इसमें कम्पनियाँ एक-दूसरे को परस्पर सहयोग करके लाभ उठाती हैं।
हानियाँ या सीमाएं
(Limitations)-
संयुक्त उपक्रम को अपनाने से लाभ की प्राप्ति होती है, वही दूसरी ओर इसकी निम्न हानियाँ भी हैं-
(i) विदेशी विनिमय नियम की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
(ii) समता सहभागिता में कठिनाई होती है।
(iii) सहयोगी फर्मों में समन्वय का अभाव हो जाता है।
(iv) साझेदारों के मतों में भिन्नता उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
(v) सांस्कृतिक एवं व्यावहारिक भिनता उत्पन्न हो जाती है।
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