उद्यमिता और लघु व्यवसाय

आन्तरिक पर्यावरण | आन्तरिक पर्यावरण के आवश्यक घटक | आन्तरिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले घटक

आन्तरिक पर्यावरण | आन्तरिक पर्यावरण के आवश्यक घटक | आन्तरिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले घटक | internal environment in Hindi | Essential components of internal environment in Hindi | Factors affecting internal environment in Hindi 

आन्तरिक पर्यावरण

(Internal Environment)

व्यावसायिक उपक्रम को स्वयं की कमजोरियों (Weaknesses) तथा शक्तियों (Strengths) को पहचानना होता है, जो आन्तरिक पर्यावरण के महत्वपूर्ण घटक के रूप में उपक्रम में ही विद्यमान होते हैं। प्रायः व्यावसायिक उपक्रम के ये आन्तरिक घटक उपक्रम के प्रबन्ध के नियन्त्रण में होते हैं, इसलिये इन्हें नियन्त्रणीय घटक (Controllable factors) भी कहा जाता है। प्रबन्ध इन घटकों में परिवर्तन अथवा संशोधन कर सकता है- मानवीय व भौतिक संसाधनों के समुचित और पर्यावरणीय रूप से उपयुक्त प्रयोग द्वारा उत्पाद मिश्रण, विपणन आदि नीतियों में परिवर्तन या संशोधन किया जा सकता है।

आन्तरिक पर्यावरण के आवश्यक घटक

(Main Factors of Internal Environment)

आन्तरिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण घटक निम्नांकित हैं, जो उपक्रम की व्यूह रचना और निर्णयन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं-

(1) स्वामी/अंशधारी (Owners / Shareholders)- व्यावसायिक उपक्रम के स्वामियों अथवा अंशधारियों के दृष्टिकोणों का उपक्रम के आन्तरिक पर्यावरण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। प्रायः व्यवसाय की प्रकृति, लक्ष्य, उद्देश्य का संगठन प्रारूप के निर्धारण का दायित्व उपक्रम के स्वामियों अथवा अंशधारियों का होता है। स्वामियों या अंशधारियों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों व उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये योजनाओं व नीतियों का निर्माण किया जाता है। अतः उपक्रम में मूल्य- प्रणाली (Value System) को निर्धारित करने का दायित्व स्वामियों या अंशधारियों का है, जो उपक्रम के आन्तरिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक है।

जनतान्त्रिक उपक्रमों में अंशधारण प्रारूप (Shareholding Pattern) भी उपक्रम के आन्तरिक पर्यावरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। भारत में ऐसी अनेक कम्पनियाँ हैं जिनके प्रवर्तकों द्वारा बहुमतधारी अंशधारण किये गये हैं। ऐसी कम्पनियों में स्थिति अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है। अनेक भारतीय कम्पनियों या निगमों में वित्तीय संस्थाओं की अंशधारिता बहुमत में है, जहाँ वित्तीय संस्थाओं द्वारा नामांकित व्यक्ति निर्णयों को काफी सीमा तक प्रभावित करते हैं।

(2) प्रबन्ध ढाँचा (Management Structure)- उपक्रम या संगठनात्मक ढाँचा, संचालक मण्डल का गठन, प्रबन्ध के पेशेकरण या विशिष्टकरण की सीमा (Extent of Professionalization or Specialization) उपक्रम के निर्णयों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। प्रबन्ध ढाँचे का प्रारूप निर्णयों में विलम्बकारी भी हो सकता है तथा शीघ्र निर्णय वाला भी हो सकता है। चुनौतियों का मुकाबला करने अथवा अवसरों का लाभ उठाने में प्रबन्ध की निर्णय क्षमता महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है।

(3) लक्ष्य/उद्देश्य (Mission/Objective)- उपक्रम के लक्ष्य/उद्देश्य ही उपक्रम के लिये प्रायिकता, विकास की दिशा, दर्शन व नीतियों आदि के निर्धारण में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। जहाँ कुछ उपक्रम स्थानीय रूप से प्रभावी होते हैं, वहाँ कुछ उपक्रम सम्भाग स्तर, प्रान्तीय स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी होते हैं। अनेकों उपक्रम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी महती प्रभावशीलता बनाये हुये हैं। इनफोसिस टैक्नोलॉजी लिमिटेड सूचना तकनीक स्तर पर विश्व में छायी हुई है, तो रैनबक्सी औषधि शोध के क्षेत्र में विश्व में नाम बनाये हुये हैं। इस प्रकार उपक्रम के लक्ष्य/उद्देश्य उपक्रम के आन्तरिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होते हैं।

(4) मानवीय संसाधन (Human Resources)‍- प्रत्येक उपक्रम में मानवीय संसाधन अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं, जो उपक्रम की मानवीय-सामाजिक सम्पत्ति के रूप में होते हैं। उपक्रम का आन्तरिक पर्यावरण मानवीय संसाधन के चातुर्य एवं योग्यताओं के उच्चतम प्रयोग से सकारात्मक रूप में प्रभावित होता है। यदि उपक्रम में मानवीय संसाधनों की निजता एवं व्यक्तित्व का उचित सम्मान हो, प्रबन्ध में कर्मचारियों की भागीदारी हो, सुरक्षित व कार्यवर्धक वातावरण उपलब्ध हो, कर्मचारियों को कौशल निर्माण व उपलब्धियों के अवसर दिये जायें, तब निश्चय ही कार्य स्थल पर उत्पन्न होने वाली समस्याओं का स्वतः ही समाधान होता रहेगा तथा पर्यावरण में सुधार होगा।

(5) भौतिक संसाधन- आधुनिक युग भौतिकता का युग है। कोई भी उपक्रम भौतिक संसाधनों की अपर्याप्तता के साथ सफल नहीं हो सकता है। उपक्रम के आन्तरिक पर्यावरण के निर्माण में भौतिक संसाधनों भी अपूर्व योगदान होता है। भूमि-भवन, यंत्र-कल व मानवीय संसाधनों को गतिमान रखने के लिये भौतिक संसाधनों की पर्याप्तता आवश्यक है।

(6) तकनीकी क्षमता (Technical Capacity)- वर्तमान समय में व्यावसायिक उपक्रमों का स्वरूप अत्यन्त जटिल एवं व्यापक हो गया है। प्रौद्योगिकी व तकनीक में हो रहे नित नये परिवर्तनों ने व्यावसायिक उपक्रमों की काया पलट कर दी है। नवीन प्रौद्योगिकी ने व्यावसायिक उपक्रमों के समक्ष अनेक चुनौतियाँ भी रखी हैं तथा प्रगति के अनेकोनेक अवसर भी उपलब्ध कराये हैं। नवीन प्रौद्योगिकी का प्रयोग आन्तरिक पर्यावरण के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान करता है।

(7) विपणन क्षमता (Marketing Capacity)- आज का युग प्रतियोगिता का युग है। कुशल विपणन क्षमता के अभाव में सभी भौतिक संसाधन व नवीन प्रौद्योगिकी धरी रह जाती है। व्यवसाय नये बाजारों, नयी मांग, नये परिवर्तनों व नये आयामों की ओर अग्रसर हो रहा है जो नये भविष्य व नयी चुनौतियों की ओर संकेत करता है। उपक्रम की विपणन क्षमता उसके आन्तरिक पर्यावरण को नये आयाम प्रदान करती है।

(8) ख्याति/ब्राँड स्थिति (Image/Brand Equity)-व्यावसायिक व जनसमुदाय में उपक्रम की ख्याति वित्त प्राप्त करने में, संयुक्त उपक्रम स्थापित करने, व्यावसायिक समझौते करने, मानवीय संसाधनों को आकर्षित करने, नये उत्पादन को बाजार में लाने आदि में अत्यन्त सहायक सिद्ध होती है। उपक्रम की ब्राँड स्थिति विपणन के क्षेत्र में क्रान्ति ला सकती है। कई बार जब क्रम की पहचान उसके ब्रांड नाम से ही होती है। ‘ठण्डा मतलब कोका कोला’, ‘वाह ताज’ आदि ब्राँड स्थिति के द्योतक हैं, जो उपक्रम के आन्तरिक पर्यावरण का महत्वपूर्ण भाग सिद्ध होते हैं।

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Pankaja Singh

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