उद्यमिता और लघु व्यवसाय

उद्यमिता का महत्व | उद्यमिता की भूमिका तथा आवश्यकता

उद्यमिता का महत्व | उद्यमिता की भूमिका तथा आवश्यकता | Importance of Entrepreneurship in Hindi | Role and Needs of Entrepreneurship in Hindi

उद्यमिता का महत्व, भूमिका तथा आवश्यकता

(Importance, Role and Need of Entrepreneurship)

उद्यमिता के महत्व एवं भूमिका को निम्न शीर्षकों द्वारा समझा जा सकता है-

  1. तीव्र आर्थिक विकास (Rapid Economic Growth)- उद्यमिता से व्यक्तियों में साहसी भावना (Entrepreneurial Spirit), रचनात्मक मनोवृत्तियों एवं उपलब्धि दृष्टिकोण का विकास होता है। इससे व्यक्ति व्यावसायिक अवसरों की खोज करते हैं तथा उनका विदोहन करने के लिए नये-नये उद्योग स्थापित करते हैं। इस प्रकार देश में औद्योगिक क्रियाओं को प्रोत्साहन मिलता है तथा आर्थिक विकास सम्भव होता है। प्रो० डुप्रीज (Prof. Dupriez) का कथन है कि “उद्यमिता की कमी आर्थिक विकास की एक प्रमुख बाधा है।” व्यावसायिक साहसवादिता के विकास के द्वारा एक आदर्श औद्योगिक समाज की रचना की जा सकती है।
  2. सन्तुलित विकास (Balanced Growth)- उद्यमिता विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त विकासात्मक अन्तरों (Development Gaps) व आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने में महत्वपूर्ण रूप से सहायक हो सकती है। उद्यमी पिछड़े प्रान्तों में उद्योग स्थापित करने की भारी जोखिम उठाकर आर्थिक असमानता को कम करते हैं। प्रो० नर्कसे (Prof. Nurkse) का कथन है कि “उद्यमी सन्तुलित आर्थिक विकास के मार्ग को प्रशस्त करते है।” इस प्रकार विकसित देश भी पिछड़े हुए। राष्ट्रों में औद्योगिक एवं व्यावसायिक विकास को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
  3. उद्यमी प्रवृत्तियों का विकास (Development of Entrepreneurial Tendencies) – साहस के कारण लोगों में स्वतन्त्र जीवन जीने, आत्म-निर्भर बनने तथा कुछ प्राप्त करने (Desire for achievement) की प्रवृत्तियाँ विकसित होने लगती हैं। आलस्य एवं अकर्म को छोड़कर व्यक्ति सुखी एवं सम्पन्न जीवन जीने की ललक से भर उठते हैं। उद्यमिता से व्यक्तियों में रचनात्मक मनोवृत्तियों का विकास किया जा सकता है। इससे सम्पूर्ण समाज में सक्रियता का संचार होता है तथा एक सुखी एवं सम्पन्न समाज की स्थापना की जा सकती है।
  4. नवाचरों को प्रोत्साहन (To Promote Innovations) – उद्यमिता व्यवसाय में चिन्तन एवं सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करती है। फलस्वरूप, व्यवसाय में नवीन उत्पादन विधियों, नये कच्चे माल, नये यन्त्र, नयी टेक्नोलॉजी तथा नयी-नयी वस्तुओं के उत्पादन को प्रोत्साहन मिलता है। साहसी अपने व्यवसाय में प्रबन्ध की नवीन तकनीकों का भी विकास करते हैं। वे ‘बाजार अनुसंधान के द्वारा नये बाजारों की खोज करते हैं तथा विक्रय एवं ग्राहक सन्तुष्टि के लिए नयी विधियों को अपनाते हैं। नवप्रवर्तन हेतु साहसी शोध एवं अनुसंधान पर भी बल देते हैं। पीटर ड्रकर का कथन है कि ‘नवप्रवर्तन उद्यमिता का ‘महानायक’ है।”
  5. पूँजी निर्माण में सहायक (Promotes Capital Formation) – उद्यमिता ही एक ऐसा घटक है जो देश की बचतों को उत्पादक कार्यों में विनियोजित करने में सहायक हो सकता है। पूँजी निर्माण आज प्रत्येक देश की एक महत्वपूर्ण आर्थिक समस्या है। उद्यमी व्यावसायिक क्रियाओं में वृद्धि करके पूँजी-निर्माण की दर में वृद्धि करता है। रेजन नस्कर्ट ने उचित ही लिखा है कि “विकासशील देशों में केवल साहसी ही पूँजी के अभेद्य दुर्ग को तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है तथा पूँजी निर्माण में आर्थिक शक्तियों को गति प्रदान कर सकता है।”
  6. आर्थिक-सामाजिक समस्याओं की कमी (Minimises Socio-economic Problems)- उद्यमिता के विकास से व्यावसायिक प्रवृत्तियों व उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहित करके आय, बचत एवं पूँजी-निर्माण में वृद्धि की जा सकती है। इससे अनेक आर्थिक सामाजिक समस्याओं, जैसे-गरीबी, अशिक्षा, निम्न जीवन-स्तर, सामाजिक अपराध, दहेज प्रथा, महिला अत्याचार, बाल श्रमिक गोषण आदि के उन्मूलन में सहायता मिलती है। इसके अतिरिक्त, साहस के विकास से देश के विभिन्न भागों में उपक्रमों का फैलाव करके शहरों में व्याप्त समस्याओं, जैसे- प्रदूषित वातावरण, भीड़-भाड़, गंदी बस्तियाँ, वर्ग-संघर्ष आदि को कम किया जा सकता है। रॉबर्ट एम.एडम्स (Robert M. Adams) लिखते है कि “उद्यमिता समाज के विभिन्न भागों में व्यापक आर्थिक कुसन्तुलन (Economic Maladjustment) का एकमात्र उपचार है।”
  7. आत्म-निर्भर समाज की स्थापना (Establishing Self-sufficient Society)- आत्म-निर्भर समाज की रचना में उद्यमिता का महत्वपूर्ण योगदान है। साहस के द्वारा उत्पादकता में क्रान्ति लायी जा सकती है। उद्यमियों के द्वारा राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ निर्यातों में भी वृद्धि की जा सकती है। इसके अतिरिक्त पूँजी, धन-सम्पदा, रोजगार, आय आदि में भी साहस के विकास से ही वृद्धि सम्भव है। एलबर्ट केली (Albert Kelley) का कथन है कि

“उद्यमिता आर्थिक विकास की शृंखला-प्रतिक्रिया (Chain-Reaction) के द्वारा किसी भी राष्ट्र को आत्म निर्भरता की दहलीज तक पहुँचा देती है।”

  1. तीव्र परिवर्तन एवं ‘नवाचार’ (Rapid Change in Innovation)- आज व्यावसायिक जगत में तेजी से अनेक परिवर्तन घटित हो रहे हैं। उत्पादन विधियों, मशीनों, तकनीकों, यन्त्रों, प्रौद्योगिकी, वित्त एवं वितरण प्रणालियों में नये-नये प्रयोग एवं सुधार किये जा रहे हैं। फलस्वरूप, व्यवसाय में न केवल अनेक जटिलताएँ उत्पन्न हो गई हैं, वरन् फर्म के लिए प्रतिस्पर्धा क्षमता को बनाये रखना भी आवश्यक हो गया है। पीटर डुकर (Peter Druker) लिखते हैं कि “तीव्र परिवर्तनों एवं नवप्रवर्तन के इस युग में साहसिक योग्यता (Entrepreneurial Competence) को प्राप्त किये बिना आज के व्यवसायों के लिए जीवित रहना असम्भव है।”
  2. साधनों का सर्वोत्तम उपयोग (Optimum Utilisation of Resources) – देश के प्राकृतिक एवं मानवीय साधनों, जैसे-प्राकृतिक सम्पदा, कच्ची सामग्री, खनिज, मानवीय कौशल आदि का सर्वोत्तम उपयोग साहसिकता के विकास से ही सम्भव है। उद्यमी अपने प्रबन्धकीय कौशल से अप्रयुक्त साधनों कुशल उपयोग करके राष्ट्रीय उत्पादकता में वृद्धि करते हैं। सी.डब्ल्यू. कुक (C.W. Cook) लिखते हैं कि “उद्यमिता राष्ट्र के उत्पादक संसाधनों तथा उपभोक्ताओं के मध्य एक सेतु निर्मित करती है।” जे.बी. से (J.B. Say) लिखते हैं कि “उद्यमिता आर्थिक संसाधनों को निम्न उत्पादकता क्षेत्र से उच्च उत्पादकता क्षेत्रों में हस्तान्तरित करती है।”
  3. राजकीय नीतियों के क्रियान्वयन में योगदान (Contributes to the Execution of Government Policies)- उद्यमी राजकीय नीतियों के क्रियान्वयन एवं राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश की विकास योजनाओं को पूरा करने, आयात-निर्यात में सन्तुलन स्थापित करने तथा नियोजित विकास को प्रोत्साहित करने में उद्यमी सरकार को सहयोग देते हैं। उद्यमी सरकार के साथ संयुक्त रूप से मिलकर विकास के मार्ग को प्रशस्त करते हैं।
  4. सामाजिक उत्तरदायित्व (Social Responsibility)- व्यवसाय में बढ़ रहे नवप्रवर्तन कार्यों के फलस्वरूप आज अनेक पुराने व्यासाय नष्ट हो रहे हैं तथा उनका स्थान कम्प्यूटरों एवं नवीन टेक्नोजॉली से संचालित उद्योग ग्रहण करते जा रहे हैं। शुम्पीटर ने इस स्थिति को ‘रचनात्मक विनाश’ कहा है। किन्तु, इस स्थिति ने समाज में रोजगार, आर्थिक स्थिरता, सामाजिक व्यवस्था तथा राजकीय उत्तरदायित्व की दृष्टि से एक ‘सामाजिक खतरा उत्पन्न कर दिया है। ड्रकर लिखते हैं कि “आज उद्यमिता का विकास करना स्वयं व्यवसाय के हित में नहीं है, वरन् यह उसका एक सामाजिक उत्तरदायित्व बन गया है।” साहस के विकास से समाज में आर्थिक व्यवस्था उत्पन्न की जा सकती है।
  5. सामाजिक परिवर्तनों का उपकरण (Means of Social Changes) – उद्यमिता सामाजिक परिवर्तनों का एक महत्वपूर्ण उपकरण भी है। नवीन आविष्कारों तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के फलस्वरूप समाज में अन्धविश्वास कम होता है। साहस व्यक्ति के चिन्तन एवं दृष्टिकोण में परिवर्तन लाता है। समाज कर्मठता एवं उद्यमशीलता के नये परिवेश में प्रवेश करता है। शिक्षा व ज्ञान प्रसार होता है। फलस्वरूप, समाज रूदियों व घिसी-पिटी परम्पराओं से मुक्त होता है तथा समाज में एक नयी ‘चेतनायुक्त संस्कृति’ की स्थापना होती है। डोनाल्ड बी.ट्रो (Donald B. Trow) लिखते हैं कि “उद्यमिता सामाजिक रूपान्तरण एवं ‘साहसिक संस्कृति’ की स्थापना का महत्वपूर्ण आधार है।”
  6. सफल इकाइयों की स्थापना (Establishment of Viable Units) – उद्यमिता के विकास से व्यावसायिक इकाइयों को लाभप्रद एवं कुशल बनाया जा सकता है। साहसी व्यक्ति प्रशिक्षित, कुशल एवं आधुनिक उपकरणों से सुसज्जित होने के कारण व्यावसायिक सफलता की सम्भावना को बढ़ा देते हैं। साहसी रुग्ण (Sick Units) को पुनर्जीवित करके सरकारी भार को कम करने के साथ-साथ राष्ट्रीय साधनों के सदुपयोग को सम्भव बनाते हैं। उद्यमिता ही व्यावसायिक संस्थाओं को शाधत जीवन (Perpetual Life) प्रदान करने वाला तत्व है।
  7. सामाजिक सन्तुष्टि (Social Satisfaction)- आज विश्व के अनेक देशों में ‘निजीकरण’ (Privatisation) की प्रवृत्ति जोर पकड़ रही है। सरकार अपने अनेक उद्योग निजी उद्यमियों को संचालन हेतु सौंप रही है। साथ ही ‘संयुक्त क्षेत्र’ की अवधारणा पर भी बल दिया जा रहा है। फलस्वरूप, निजी व्यवसायियों पर ‘आधुनिक’, ‘प्रगतिशील’ एवं ‘अगवर्ती’ बने रहने तथा सामाजिक हितों एवं उपयोगिता पर अधिक ध्यान देने का प्रमुख दायित्व उपन्न हो गया है। उद्यमियों के विकास के द्वारा ही नये मूल्यों, कार्यों व उपयोगिताओं का सृजन करके सामाजिक सन्तुष्टि में वृद्धि की जा सकती है।
  8. नये उपक्रमों की स्थापना (Establishment of New Start-Ups) – उद्यमी जोखिम उठाकर नये उद्यमों का प्रवर्तन करने की क्षमता रखता है। वह ‘विचारों’ को कार्यवाही (Action) में परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। उद्यमिता के विस्तार से पूरे समाज में नई-नई फर्मों का सृजन तेजी से होता है। फलतः देश में उद्योगीकरण का मार्ग प्रशस्त होता है। कोई भी बड़ा व्यवसाय एक समय में उद्यमी के ‘व्यावसायिक साहस’ के कारण ही शुरू हुआ होगा। रॉबिन्स एवं कोल्टर के अनुसार, “उद्यमी ‘साहसिक उद्यमों’ को जन्म देते हैं जो नये अवसरों की खोज करते हैं, जिनके व्यवसाय नवप्रवर्तनकारी होते हैं और जिनके मुख्य उद्देश्य विकास एवं लाभदायकता हैं।” विकसित एवं विकासशील देशों में बढ़ता उपक्रमों का जाल उद्यमिता का ही परिणाम है।
  9. रोजगार का सृजन (Creation of Jobs)- रोजगार का सृजन प्रत्येक देश, राज्य व समुदाय की आर्थिक सुदृढ़ता के लिए आवश्यक होता है। उद्यमी नये-नये उपक्रमों की स्थापना करके असंख्य व्यक्तियों के लिए रोजगार उत्पन्न करता है। नये संगठन तेजी से कार्यों का सृजन करते जा रहे हैं, यद्यपि विश्व के बड़े एवं सुप्रसिद्ध वैश्विक निगमों का आकार छोटा होता जा रहा है। अब अमेरिका जैसे सुदृद्ध देशों ने भी बड़े आकार के निगमों की अपेक्षा छोटे-छोटे अनेक नये उद्यमों के विकास पर ध्यान देना प्रारम्भ कर दिया है ताकि कार्यों व रोजगार का सृजन हो सके। जापान की अर्थव्यवस्था छोटे-छोटे उद्यमों के जरिये विश्व की सबसे अधिक मजबूत अर्थव्यवस्था बन गई है। अमेरिका में भी पाँच में से चार नये रोजगार का प्रारम्भ उद्यमिता के माध्यम से ही हो रहा है। वहाँ कुल नये कार्यों का 30 प्रतिशत हिस्सा ऐसी कम्पनियों द्वारा सृजित किया गया जिनकी आयु 5 वर्ष से अधिक नहीं है इसीलिए कहा जाता है कि”उद्यमिता रोजगार उत्पत्ति का वाहन है।”
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Pankaja Singh

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