संगठनात्मक व्यवहार

सीखने से आशय एवं परिभाषा | सीखने की प्रकृति एवं लक्षण या विशेषतायें

सीखने से आशय एवं परिभाषा | सीखने की प्रकृति एवं लक्षण या विशेषतायें | Meaning and Definition of Learning in Hindi | Nature and characteristics of learning in Hindi

सीखने से आशय एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Learning)

सामान्य अर्थ में, ‘सीखने’ से तात्पर्य व्यवहार में होने वाले एक स्थायी परिवर्तन से है जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष अनुभव का परिणाम होता है। मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन यह बतलाता है कि उसने कुछ सीखा है। अनुभव के कारण सीखने की क्रिया चलती है। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि जब कोई व्यक्ति अपने पूर्व व्यवहार (Behaviour) से भिन्न ढंग से अपने अनुभव के फलस्वरूप कोई व्यवहार (Behaves) व प्रतिक्रिया (React) करता है अथवा प्रत्युत्तर देता (Responds) है तो यह कहा जा सकता है कि सीखने की क्रिया हो चुकी है।

विद्वानों ने ‘सीखने’ को निम्न प्रकार से परिभाषित किया है-

(1) हिलगार्ड (Hilgard) के अनुसार, “पूर्व अनुभवों के फलस्वरूप व्यवहार में तुलनात्मक रूप से जो परिवर्तन घटित होता है, उसे ‘सीखना कहते हैं।”

(2) एन0एल0मन (N.L. Munn) के अनुसार, “सीखने से तात्पर्य किसी व्यक्ति के व्यवहार को लगभग स्थायी रूप से रूपान्तरित करने की प्रक्रिया से है। यह रूपान्तरण उस व्यक्ति के कार्य करने एवं उसके कार्यों का परिणाम अथवा उसके अवलोकन का फल होता है।’’

(3) स्टियर्स एवं पोर्टर (Streers and Porter) के अनुसार, “सीखना’ व्यवहार के सम्भाव्यता में तुलनात्मक रूप से एक स्थायी परिवर्तन है जो संबलित व्यवहार अथवा अनुभव के फलस्वरूप घटित होता है।”

(4) जी०डी० बॉज (G.D. Boaz) का मत है कि, “सीखना एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति विभिन्न आदतें, ज्ञान व दृष्टिकोण, सामान्य जीवन की माँगों की पूर्ति के लिये अर्जित करता है।”

(5) मैक गोयक (Mc Goech) के अनुसार, “सीखना व्यवहार में सापेक्षिक स्थायी परिवर्तन है जो अभ्यास के फलस्वरूप घटित होता है। यह परिवर्तन दिशा-विशेष में होता है जिससे व्यक्ति की विद्यमान प्रेरक अवस्थाओं की सन्तुष्टि होती है।”

(6) प्रो0 उदय पारीक के अनुसार, “सीखना वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्राणी किसी परिस्थिति में प्रतिक्रिया के कारण, नये प्रकार के व्यवहार (Behaviour) को ग्रहण करता है जो किसी सीमा तक प्राणी के सामान्य व्यवहार को बाध्य एवं प्रभावित करता है।’’

सीखने की प्रकृति एवं लक्षण या विशेषतायें

(Nature and Characteristics of Learning)

सीखने की प्रक्रिया की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं-

(1) सीखना परिवर्तन है (learning Involves changes)-  सीखने का तात्पर्य व्यवहार में परिवर्तन होने से है। संगठन की दृष्टि से यह परिवर्तन अच्छा या बुरा हो सकता है। व्यक्ति नकारात्मक व्यवहार जैसे- पक्षपात करना अथवा उउत्पादन में बाधा डालना भी सीख सकता है। दूसरी ओर वह सहयोग, निष्ठा दायित्वों का निर्वाह, चुनौतियों का सामना करना जैसे सकारात्मक व्यवहार भी सीख सकता है। व्यक्ति नयी कार्य तकनीकें, नये विचार अथवा दायित्व टालना भी सीख सकता है।

(2) परिवर्तन स्थायी हो (Change must be Permanent)- सीखने के अन्तर्गत होने वाला परिवर्तन अपेक्षाकृत स्थायी होना चाहिये। थोड़े समय के लिये होने वाला परिवर्तन प्रतिक्रियात्मक (Reflexive) हो सकता है जो कि सीखना नहीं है। किसी चीज को रटना और कुछ समय बाद भूल जाना सीखना नहीं है। थकान, प्रतिक्रिया अथवा क्षणिक अनुकूलन या समायोजन के कारण व्यवहार में आने वाला परिवर्तन सीखने की श्रेणी में नहीं आता।

(3) परिवर्तन व्यवहार या क्रिया में हो (Change must be in Behaviour of Actions) – सीखने के फलस्वरूप व्यवहार (Behaviour) अथवा कार्य (Actions) में परिवर्तन आना चाहिये। ऐसा परिवर्तन जो केवल व्यक्ति के विचारों या अभिवृत्ति में हो तथा वह उसके व्यवहार में दिखायी न दे, सीखने की श्रेणी में नहीं आता।

(4) सीखने के लिये अनुभव आवश्यक है (Experience is Necessary for Learning) – सीखने की क्रिया के लिये किसी न किसी प्रकार का अनुभव जरूरी है जो कि प्रत्यक्ष अवलोकन अथवा अभ्यास से प्राप्त किया जा सकता है। सीखना अप्रत्यक्ष अनुभव द्वारा जैसे पढ़ने से भी सम्भव है। सीखने की असली कसौटी यह है कि इस अनुभव के फलस्वरूप ही व्यवहार में अपेक्षाकृत स्थायी परिवर्तन होना चाहिये।

(5) प्रबलीकरण (Reinforcement)- अनुभव अथवा अभ्यास का सुदृढ़ीकरण (प्रबलन) आवश्यक है। यदि अनुभव या अभ्यास का पुनर्बलन (Reinforce) नहीं हुआ तो सीखा हुआ व्यवहार अन्ततः मिट जायेगा। किसी क्रिया के प्रवलीकरण के लिये पुरस्कार, दण्ड या कार्य की आवृत्ति होना आवश्यक है।

(6) निरन्तर चलने वाली क्रिया (Continuous Process)- व्यक्ति के जीवन में, चाहे वह घर, समाज या संगठन में रहे, सीखने की क्रिया निरन्तर चलती रहती है (Learning occurs all of the time)। सीखने का कोई निश्चित समय या उम्र नहीं होती।

(7) सीखना दिखायी नहीं देता (We Shall Never Sec Someone Learning) – सीखने की क्रिया आन्तरिक एवं मनोवैज्ञानिक है जो बाद में व्यवहार (Behaviour) में बाह्य रूप से प्रकट होती है। अतः सीखना दिखायी नहीं देता। हम केवल परिवर्तन घटते देख सकते हैं, स्वयं सीखने की क्रिया को नहीं (Not the Learning itself)। वास्तव में सीखने की अवधारणा सैद्धान्तिक है, अतः यह प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन योग्य नहीं है।

(8) विभिन्न प्रारूप (Different Forms) – सीखने की क्रिया के विभिन्न स्वरूप एवं प्रकार हैं। ‘सीखना’ प्रत्यक्ष (Direct) रूप से या अपने आदर्श (Model) के अनुसार अथवा स्व- नियन्त्रण द्वारा हो सकता है। इस प्रकार सीखने के विभिन्न सैद्धान्तिक आधार हैं।

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Pankaja Singh

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