संगठनात्मक व्यवहार

मनोवृत्ति परिवर्तन का अर्थ | कर्मचारियों की मनोवृत्ति में परिवर्तन | Meaning of Attitude Change  in Hindi | Change in the Attitude of Employees in Hindi

मनोवृत्ति परिवर्तन का अर्थ | कर्मचारियों की मनोवृत्ति में परिवर्तन | Meaning of Attitude Change  in Hindi | Change in the Attitude of Employees in Hindi

मनोवृत्ति परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Attitude Change)-

मनुष्य की मनोवृत्तियों में समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप परिवर्तन होता रहता है। मनोवृत्ति एक प्रकार से मानसिक झुकाव है। जद इस झुकाव की प्रवृत्ति में परिवर्तन हो जाता है तो हम इसी को मनोवृत्ति परिवर्तन कहते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में स्वतन्त्रता के बाद से एक लम्बे समय तक मतदाताओं का कांग्रेस दल की ओर झुकाव रहा। किन्तु समय एवं परिस्थितियों के अनुरूप उक्त झुकाव में परिवर्तन होता रहा। यही मनोवृत्ति में होने वाला परिवर्ततन है। मनोवृत्ति किसी तथ्य के पक्ष या विपक्ष में होती है किन्तु कभी तटस्थ नहीं होती। मनोवृत्ति परिवर्तन कोक शृंखलाबद्ध प्रक्रिया माना जाता है जिसमें व्यक्ति विभिन्न दशाओं से उत्पन्न होने वाले सामाजिक प्रभावों पर ध्यान देता है, उन्हें समझता है, आवश्यक समायोजन करता है और तत्पश्चात् मनोवृत्ति में परिवर्तन लाता है। इसी आधार पर शैरिफ तथा शैरिफ (Sherif and Sherif) ने लिखा है, “मनोवृत्ति परिवर्तन का अर्थ प्रायः किसी विषय पर वर्तमान स्थिति के स्थान पर नई स्थिति को स्वीकार करना है।”

कर्मचारियों की मनोवृत्ति में परिवर्तन (Change in the Attitude of Employees) –

कर्मचारियों की सभी मनोवृत्तियाँ समान नहीं होती हैं। कुछ मनोवृत्तियाँ नकारात्मक होती हैं तो कुछ सकारात्मक। नकारात्मक मनोवृत्तियाँ कर्मचारी में कार्य के प्रति असन्तुष्टि उत्पन्न करती हैं, उसके मनोबल को गिराती हैं, कार्य के प्रति निष्ठा को कम करती हैं, अनुपस्थिति को बल देती हैं, उत्पादन को अवरुद्ध करती हैं, संगठन के उद्देश्यों की प्राप्ति में विभिन्न प्रकार की बाधाएँ उत्पन्न करती हैं, उत्पदान की मात्रा एवं गुणवत्ता में कमी लाती हैं, हड़तालों को प्रोत्साहित करती हैं तथा पर्यावरण में  वैमनस्य एवं मतभेद उत्पन्न करती हैं। इसके विपरीत, कर्मचारी की सकारात्मक मनोवृत्ति कर्मचारी को कार्य सन्तुष्टि प्रदान करती है, कार्य में निष्ठा, ईमानदारी एवं लगन में वृद्धि करती है, कर्मचारी में उच्च मनोबल की स्थापना करता है, कर्मचारी एवं कृत्य दोनों में स्थायित्व लाती है, कर्मचारी की अनुपस्थिति में पर्याप्त कमी लाती है, उत्पादन में निरन्तरता लाती है, संगठनों के उद्देश्यों की प्राप्ति में सहयोग करती है। बाधाओं का उन्मूलन करती है, उत्पादन की मात्रा तथा गुणवत्ता में वृद्धि करती है, पर्यावरण में विशुद्धता लाती है, कर्मचारियों में पारस्परिक सहयोग एवं प्रेम में वृद्धि करती है तथा हड़तालों में पर्याप्त कमी लाती है।

उपरोक्त स्थिति में उपक्रम का स्वामी तथा प्रबन्धक दोनों हर सम्भव विधियों से कर्मचारियों की नकारात्मक मनोवृत्तियों का उन्मूलन करने के लिए हरसम्भव प्रयास करते हैं। इसके लिए वे मनोवृत्ति के परिवर्तन की निम्न विधियों का उपयोग कर सकते हैं-

(1) सूचना अन्तर को भरना (Filling in the Information Gap)- नकारात्मक अथवा ऋणात्मक मनोवृत्तियों की उत्पत्ति का प्रमुख कारण सूचना अन्तर अथवा सूचनाओं की अपर्याप्त पूर्ति का होना है। कर्मचारियों के पास अपने कार्य, कार्य करने की विधि, प्रबन्ध नीतियों, स्वस्थ कार्य की दशाओं, सेविवर्गीय स्वस्थ सिद्धान्तों, प्रबन्ध की कर्मचारियों के प्रति स्वस्थ भावनाओं एवं मानवीय दृष्टिकोणों आदि के बारे में पर्याप्त सूचनाएँ नहीं पहुँच पाती हैं। जो कुछ सूचनाएँ पहुँचती भी हैं तो उन्हें श्रम संघ के नेताओं द्वारा तोड़ मरोड़ एवं गलत ढंग से कर्मचारियों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। प्रायः यह देखा जाता है कि कर्मचारियों को प्रबन्ध दर्शन, लक्ष्यों व प्रशासकों के दृष्टिकोण की सही जानकारी न होने के कारण वे श्रमसंघों के पक्ष में हो जाते हैं तथा प्रबन्ध नीतियों का विरोध करने लगते हैं किन्तु जैसे ही उनको यह जानकारी होती है कि प्रबन्धक श्रमिकों के हितों एवं कल्याण के लिए कितने प्रयासरत हैं, श्रमिक अपनी प्रबन्ध-विरोधी मनोवृत्ति में बदलाव ला सकते हैं। उदाहरण के लिए, विदेशों से इस्पात की भारी माँग आने के कारण प्रबन्ध ने कर्मचारियों की कार्य अवधि में दो घण्टों की वृद्धि कर दी। साथ में यह भी घोषण की कि अतिरिक्त उत्पादन से होने वाले लाभ का 35% भाग कर्मचारियों को अतिरिक्त बोनस के रूप में दिया जायेगा किन्तु श्रमिक संघ के नेताओं ने कर्मचारियों को उनके कार्य की अवधि में वृद्धि को तो सूचना दे दी किन्तु दिये जाने वाले अतिरिक्त बोनस की सूचना नहीं दी। परिणाम यह हुआ कि सूचना प्राप्त होते ही कारखाने में कर्मचारियों द्वारा तुरन्त हड़ताल की घोषणा कर दी गयी किन्तु बाद में जैसे ही उन्हें दिये जाने वाले अतिरिक्त बोनस का पता चला, कर्मचारीगण स्वेच्छा से दो अतिरिक्त घण्टों के स्थान पर चार अतिरिक्त घण्टों तक कारखाने में रहने व कार्य करने लिए तत्पर हो गये। परिणामस्वरूप कारखाने के प्रबन्ध ने निर्धारित समय से पूर्व ही विदेश आदेश की पूर्ति कर दी और कर्मचारियों को 35% के स्थान पर 50% अतिरिक्त बोनस की घोषणा कर दी एवं मजदूरी / वेतन के साथ ही उसका भी भुगतान कर दिया।

(2) भय एवं चेतावनी का उपयोग (Use of Fear and Warnings)- कर्मचारियों की मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाने के लिए प्रबन्ध को भय एवं चेतावनी का भी उपयोग करना पड़ता है। इस क्षेत्र में किये गये अनुसन्धानों से यह प्रकट होता है कि छोटी-मोटी चेतावनियाँ, धमकियाँ एवं भय तथा अत्यधिक चेतावनियाँ, धमिकयाँ एवं भय (जैसे सेवा से तुरन्त निष्कासित किया) से कर्मचारी अपनी मनोवृत्ति में परिवर्तन नहीं लाते हैं। अत्यधिक चेतावनियों, धमकियों एवं भय प्रदर्शित किये जाने से तो वे और अधिक उम्र हो जाते हैं और तुरन्त हड़ताल की घोषण कर देते हैं और कारखाने को क्षति पहुँचाने तक को उतारू हो जाते हैं, जैसे- उपक्रम में तोड़-फोड़ करना, आग लगाना आदि। अतएव प्रबन्ध को कर्मचारियों में भय उत्पन्न करने के लिए मध्यम स्तरीय तरीकों का ही उपयोग करना चाहिए, जैसे- आर्थिक दण्ड।

(3) विसंगतियों को दूर करना (Resolving discrepancies)- प्रायः व्यवहार और मनोवृत्तियों के मध्य समय-समय पर विसंगतियाँ उत्पन्न हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इन विसंगतियों को दूर करना आवश्यक है। इन्हें मनोवृत्तियों में परिवर्तन करके दूर किया जा सकता है। उदाहरण के लिए सभी प्रकार के कृत्यों के प्रति हमारी मनोवृत्ति समान नहीं होती है। कुछ कृत्यों के प्रति जिनको हम पाना चाहते हैं, हमारी मनोवृत्ति सकारात्मक होती है। इसके विपरीत, जिन कृत्यों को हम पाना नहीं चाहते उनके प्रति हमारी मनोवृत्ति नकारात्मक होती है।

(4) सहयोजनकारी दृष्टिकोण (Co-opting Approach)- सहयोजनकारी दृष्टिकोण मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने का एक महत्वपूर्ण मार्ग अथवा निधि है। सहयोजनकारी दृष्टिकोण में असन्तुष्ट कर्मचारियों को वर्तमान स्थिति से जोड़कर चीजों में सुधार लाया जाता है। यह एक प्रकार से कर्मचारियों को कार्य पर्यावरण में सहभागी बनाकर एवं उन्हें नवीन एवं परिवर्तनकारी योजनाओं में भागिता देकर उनकी विरोधी व नकारात्मक मनोवृत्ति में आवश्यक परिवर्तन लाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ओरियण्ट पेपर मिल में एक रामनाथ नाम का पर्यवेक्षक व्यक्तिगत रूप में कम्प्यूटर्स की स्थापना का विरोध कर रहा था। उस पेपर मिल के जर्नल मैनेजर ने पर्यवेक्षक की कम्प्यूटर्स के प्रति मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने के लिए कम्प्यूटर्स के क्रय करने का निर्णय लिया और यथ-शीघ्र उनको खरीदकर तुरन्त मिल में उनकी स्थापना की। पर्यवेक्षक को कम्प्यूटर्स का उपयोग करने का भी आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण देने के मात्र दो महीने के पश्चात् ही रामनाथ कम्प्यूटर्स का प्रबल समर्थक बन गया। उसने अपने साथियों से कहा, “हमने अनावश्यक रूप में काफी समय तक कम्प्यूटर्स पाने के लिए इन्तजार किया।” स्पष्ट है कि जर्नल मैनेजर कुछ ही समय में पर्यवक्षेक की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने में सफल हुआ।

(5) सह-कर्मियों का प्रभाव (Impact of Co-workers) – कार्य-स्थल पर कार्यरत सह-कर्मियों के प्रेम, स्नेह, अभिप्रेरण, प्रोत्साहन, अनुनय, विश्वासयुक्त कथन, मित्रवत् परामर्श एवं मार्गदर्शन से भी व्यक्ति अपनी मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित होता है। ऐसा अच्छा ख्याति वाले सह-कर्मियों के द्वारा ही सम्भव है, निम्न ख्याति वाले सह-कर्मियों द्वारा नहीं।

(6) शिक्षण एवं प्रशिक्षण का प्रभाव (Impact of Education and Training) – कर्मचारियों को स्वस्थ शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करके भी उनकी मनोवृत्ति में परिवर्तन लाया जा सकता है। कर्मचारियों को स्वस्थ शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करने से उनकी कुशलता में वृद्धि होती है जिसके परिणामस्वरूप उनकी असहयोगात्क मनोवृत्ति का उन्मूलन होता है और सहयोगात्मक मनोवृत्ति विकसित होती है।

(7) प्रचार (Propaganda)- मनोवृत्ति में परिवर्तन लाने में प्रचार की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रचार एक ऐसा अस्त्र है जिसके द्वारा व्यक्तियों की मनोवृत्ति में परिवर्तन लाया जा सकता है। मौखिक एवं प्रत्यक्ष प्रचार के द्वारा व्यक्तियों को इस प्रकार के मनावैज्ञानिक संकेत दिये जाते हैं जिससे वे किसी के प्रति अपनी मनपोवृत्ति बबदलकर नये ढंग से व्यवहार कर सकें। वर्तमान में व्यक्तियों की मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाने के विभिन्न प्रचार माध्यमों का उपयोग किया जाता है।

(8) नवीन अनुभव (New Experiences) – सामान्यतः किसी व्यक्ति की अधिकांश मनोवृत्तियाँ परम्परागत रूप से सुनी हुई बातों अथवा भ्रामक सूचनाओं पर आधारित होती हैं। इस दशा में जब कभी भी व्यक्ति को प्रत्यक्ष रूप से नये अनुभव होते हैं, तब उसकी पुरानी मनोवृत्तियों में भी परिवर्तन होने लगता है। उदाहरण के लिए, भारत में अंग्रेजों का एक लम्बे समय तक शासन रहने के कारण सामान्य भारतीयों की यह मनोवृत्ति बन गयी कि अंग्रेज बहुत चालाक, धूर्त तथा शोषण करने वाले व्यक्ति होते हैं किंतु जब हम स्वयं कुछ अंग्रेजों के संपर्क में आकर यह अनुभव करें कि वे मिलनसार, कुशल, परिश्रमी, स्वस्थ मस्तिष्क और सर्जन होते हैं तो अंग्रेजों के प्रति व्यक्ति की मनोवृति बदलकर प्रतिकूल के स्थान पर अनुकूल हो सकती है।

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Pankaja Singh

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