व्यक्तित्व की मनोविश्लेषक विचारधारा | व्यक्तित्व की सामाजिक मनोवैज्ञानिक विचारधारा | व्यक्तित्व के स्वविचारधारा | व्यक्तित्व के गुण विचारधारा

व्यक्तित्व की मनोविश्लेषक विचारधारा | व्यक्तित्व की सामाजिक मनोवैज्ञानिक विचारधारा | व्यक्तित्व के स्वविचारधारा | व्यक्तित्व के गुण विचारधारा | Psychoanalytical Concept of Personality in Hindi | Social Psychological Ideology of Personality in Hindi | Self-concept of personality in Hindi | personality traits ideology in Hindi

व्यक्तित्व की मनोविश्लेषक विचारधारा

मनोविश्लेषक विचारधारा (Psychoanalytic Theory)- मनोविश्लेष विचारधारक इस अवधारणा पर आधारित है कि व्यक्ति चेतन तथा विवेकात्मक विचारों की तुलना में अज्ञात शक्तियों से अधिक अभिप्रेरित होता है। यद्यपि सिंगमण्ड फ्रायड (Sigmund Freud) ने मनोविश्लेषक विचारधारा का प्रतिपादन किया था किन्तु कार्ल जुंग (karl Jung), अल्फ्रेड एडलर (Alfred Adler), करेन हार्नी (Karen Horney) तथा एरिक फ्रोम (Eric Fromm) आदि ने भी इस विचारधारा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

सिगमण्ड फ्रायड व्यक्तित्व को कामतत्व (Id), अहम् (Ego) तथा पराहम् (Super Ego) के मध्य पारस्परिक कियाशीलता (Intermlav) के रूप में दर्शाता है। फॉयड के अनुसार व्यक्तित्व  निम्न तीन शक्तियों के संघर्ष से पैदा होता है-

(i) कामतत्व (The ld)- ये शारीरिक उत्प्रेरक हैं जो व्यक्ति को किसी कार्य के लिए उत्प्रेरित करते हैं। ये व्यक्ति में जन्म से ही अचेतन के रूप में विद्यमान होते हैं। यह खौलती हुई उत्तेजनाओं का कड़ाह है। कामतत्व अपनी नैसर्गिक प्रवृत्तियों (Instincts) की सहज सन्तुष्टि चाहता है। यह सुख के सिद्धान्त का अनुसरण करता है।

(ii) अहम (The Ego)- बच्चे के विकास के साथ-साथ व्यक्ति का अहम् विकसित होता है। अहम् का कार्य कामतत्व की भूख को नियन्त्रित करके व्यक्ति को जंगत में सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है। फ्रॉयड के अनुसार अहम् तर्क एवं अच्छे बोध का प्रतीक है, जबकि कामतत्व अनियन्त्रित वासनाओं को दर्शाता है। अहम् की क्रियाएँ सचेत (Conscious) होती हैं तथा यह कामतत्व के मनोवेगों को रोकता है। अहम् वास्तविकता के सिद्धान्त पर कार्य करता है।

(iii) पराहम् (The Super Ego)- इसे ‘चेतना’ (Conscience) या ‘आत्मा की आवाज’ (Voice within) कहा जाता है। यह व्यक्ति के नैतिक मूल्यों पर बल देता है। सचेत मस्तिष्क में इसका कुछ भाग उपलब्ध रहता है। यह कामतत्व के पूर्णतः विरोध में होता है। यह ‘अभिज्ञान’ (Identification) की प्रक्रिया द्वारा किशोरावस्था से विकसित होने लगता है। पराहम् और कामतत्व के बीच उत्पन्न संघर्ष को अहम् दूर करता है।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि फ्रायड की मनोविश्लेषक विचारधारा सैद्धान्तिक अवधारणा पर आधारित है। यह वैज्ञानिक सत्यापन तथा वैधता का माप नहीं है। यही कारण है कि मनोविश्लेषक विचारधारा मानवीय व्यवहार की भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं है। फिर भी यह विचारधारा अचेतन अभिप्रेरण का विचार प्रस्तुत करती है जोकि श्रेष्ठ ढंग से मानवीय व्यवहार को समझने में सहायक है।

व्यक्तित्व की सामाजिक मनोवैज्ञानिक विचारधारा

सामाजिक मनोवैज्ञानिक विचारधारा (Socio-psychological Theory)- व्यक्ति की सामाजिक मनोवैज्ञानिक विचारधारा व्यक्ति तथा समाज की अन्तर्निर्भरता को मान्यता प्रदान करती है। व्यक्ति समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति का प्रयत्न करता है, जबकि समाज व्यक्ति को अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करता है। इन अन्तर्सम्बन्धों में ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण होता है। इस प्रकार यह विचारधारा न तो पूर्णतः सामाजिक है और न पूर्णतः मनोवैज्ञानिक ही अपितु दोनों का योग है। एडलर (Adler), हर्नी (Homey), फ्रोम (Fromm) तथा सुलीवन (Sullivan) आदि के नाम इस विचारधारा से जुड़े हुए हैं। यह विचारधारा इस तथ्य को स्वीकार करती है कि सामाजिक मनोवैज्ञानिक घटक व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण करते हैं किन्तु दोनों सापेक्षित महत्व के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं। उदाहरण के लिए, जहाँ एक ओर फ्रोम व्यक्तित्व के सामाजिक सन्दर्भ को अधिक महत्व देता है, वहीं दूसरी ओर सुलीवन तथा हार्नी अन्तर्व्यवक्तिगत व्यवहार पर जो देते हैं। एडलर ने विभिन्न चरों (Varicibles) का उपयोग किया है। हार्नी मॉडल के अनुसार मानवीय व्यवहार निम्न तीन प्रधान अन्तर्वयक्तिगत अभिस्थापनों का परिणाम है- (i) शिकायत, (ii) आक्रात्मक तथा (iii), असम्बद्धता। शिकायत करने वाले अन्य लोगों पर आश्रित हैं और उनकी ओर आकर्षित होते हैं।

व्यक्तित्व के स्वविचारधारा

‘स्व’ विचारधारा (Self Theory) – जहाँ एक ओर आलोचकों की दृष्टि में व्यक्तित्व की गुण विचारधारा, मनोविश्लेषक विचारधारा तथा सामाजिक-मनोवैज्ञानिक विचारधारा एक परम्परागत विचारधारा है, वहीं दूसरी ओर, ‘स्व’ विचारधारा है जो व्यक्तित्व संरचना के विभिन्न भागों का ‘अर्थपूर्ण सम्पूर्णता’ में एकीकृत करती है। यद्यपि इस विचारधारा के विकास में कई विद्वानों, जैसे-मैस्लों, हर्जबर्ग / लेविन आदि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है किन्तु काल सी. रोजर्स (Carl C. Rogers) का नाम इस विचारधारा के साथ विशेष रूप में जुड़ा हुआ है। रोजर्स ‘स्व’ अथवा ‘स्व अवधारणा’ को निम्न प्रकार सेपरिभाषित करते हैं- ‘स्व’ अथवा ‘स्व अवधारणा’ एक संगठित सुसंगत वैचारिक संरूपण है जो ‘मैं’ और ‘मुझे’ के लक्षणों के अवबोध एवं ‘मैं’ और ‘मुझें’ के दूसरों के एवं जीवन के अन्य पहलुओं के साथ सम्बन्धों के अवबोध तथा इन अवबोधों के साथ जुड़े मूल्यों से निर्मित होता है।

ई.इर्कसन (E.Erkson) के अनुसार ‘स्व-अवधारणा’ के निम्न चार घटक हैं-

(i) स्व-छवि (Self-image)- स्व छवि एक ऐसा मार्ग है जिसमें व्यक्ति स्वयं को देखता है। प्रकृति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अपने बारें में कुछ विचार होते हैं कि आखिर वह कौन एवं क्या है? ये विचार ही उस व्यक्ति की ‘स्व-छवि’ अथवा ‘पहचान’ है।

(ii) ‘आर्दश स्व (Ideal Self)- आर्दश-स्व यह बताता है कि व्यक्ति कैसा बनना चाहता है। ‘स्व- छवि’ और ‘आदर्श-स्व’ में मूलभूत अन्तर यह है कि जहाँ एक ‘स्व-छवि’ व्यक्ति की वास्तविकता को इंगित करती है, वहीं दूसरी ओर, ‘आदर्श-स्व’ व्यक्ति के आदर्श को इंगित करता है अथवा व्यक्ति कैसा बनना चाहता है। ‘स्व-छवि’ की तुलना में ‘आदर्श-स्व’ अधिक महत्वूपर्ण है। यह व्यक्ति को एक विशेष प्रकार से व्यवहार करने के लिए अभिप्रेरित करता है। व्यक्ति उन्हीं उत्तेजनों का चयन करेगा जोकि उसके ‘आदर्श-स्व’ में निखार लाने में सहयोग प्रदान करते हैं।

(iii) दर्पण स्व (Looking Glass-self)- ‘दर्पण-स्व’ व्यक्ति विशेष का अवबोधन है कि दूसरे लोग उसके गुणों एवं विशेषताओं का किस प्रकार से अवबोधन करते हैं। दूसरे शब्दों में, ‘दर्पण-स्व’ से आशय तक ऐसे तरीके से है जिसमें व्यक्ति यह सोचना है कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं, न कि उस तरीके से जिसमें लोग उसे वास्तव में देखते हैं। यदि देखा जाय तो ‘दर्पण-स्व’ व्यक्ति के ‘स्व’ की परिछाई है जिसका अन्य लोग अवबोधन करते हैं।

(iv) वास्तविक-स्व (Real-self)- वास्तविक-स्व’ एक वास्तविकता है कि आखिर व्यक्ति है क्या। ‘स्व-अवधारणा’ के प्रथम तीन पहलू (जिनका वर्णन किया जा चुका है) तो व्यक्ति के स्वयं के बारे में अवबोधन हैं। वे वास्तव में स्व के समान अथवा उससे भिन्न हो सकते हैं।

कार्ल रोजर्स (Karl Rogers) ने निम्न दो प्रकार की ‘स्व-अवधारणाओं’ का उल्लेख किया है-

(i) व्यक्तिगत ‘स्व’ (Personal Self)- रोजर्स कहता है कि ‘मैं’ (i) व्यक्तिगत स्व की अवधारण है। स्व वह है जो एक व्यक्ति अपने होने में विश्वास करता है तथा स्वयं होने का प्रयास करता है। यह एक व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं, जैसे- अवबोधन, सीखना एवं अभिप्रेरण आदि से निर्मित होता है जो कि संयुक्त रूप से एक अद्वितीय सम्पूर्णता में रूपान्तरित हो जाती है।

(ii) सामाजिक ‘स्व'(Social Self) – मुझे या मेरा (Me) सामाजिक ‘स्व’ को दर्शाता है और उसका प्रतिनिधित्व करता है। ‘मुझे’ या ‘मेरा’ वह ढंग है जिससे एक व्यक्ति दूसरों के प्रति प्रकट होता है या दूसरों से जुड़ता है अथवा वह ढंग है जिसमें वह व्यक्ति सोचता है कि वह दूसरों के साथ कैसे प्रकट हो रहा है।

व्यक्तित्व के गुण विचारधारा

गुण विचारधारा (Triat Theory) – गुण विचारधारा व्यक्तित्व के अध्ययन में गुणात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। इस विचारधारा के अनुसार व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान उसमें विद्यमान गुणों से होती है। सभी व्यक्तियों में समान गुण विद्यमान नहीं होते हैं अपितु अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग गुण होते हैं। प्रमुख मानवीय गुणों में शर्मीला, आक्रामक, सुस्त अभिभूत (Sumissive) महत्वाकांक्षी, निष्ठावान भीरू, चतुर आदि सम्मिलित हैं। व्यक्तिता गुणों से सम्बन्धित निम्न दो विचारधाराएँ महत्वपूर्ण हैं-

(i) आलपोर्ट की व्यक्तित्व गुण विचारधारा (Allport’s Trait Theroy)- आलपोर्ट की विचारधारा सामान्य लक्षणों तथा वैयक्तिक झुकावों (Personal Dispositions) के बीच अन्तर पर आधारित है। सामान्य लक्षणों के आधार पर व्यक्तियों की तुलना की जाती है। आलपोर्ट ने तुलना के लिए विभिन्न श्रेणियाँ, जैसे- सैद्धान्तिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक आदि बनायीं तथा मूल्य परीक्षण का पैमाना (Scale of Values Test) विकसित किया था। सामान्य लक्षणों के अतिरिक्त कुछ गुण ऐसे हैं जो पूर्णतः अद्वितीय होते हैं जिन्हें आलपोर्ट ‘वैयक्तिक झुकाव’ कहता है। ये इस प्रकार के हो सकते हैं-

(अ) आधारभूत या प्रधान (Cardinal) जो कि प्रमुख रूप से सर्वव्याप्त (Most Pervasive) होते हैं।

(ब) केन्द्रीय जो कि अद्वितीय तथा संख्या में सीमित होते हैं।

(स) द्वितीयक जो कि सतही होते हैं।

आलपोर्ट ने व्यक्तित्व गुणों की विचारधारा से दूर हटकर ‘वैयक्तिक झुकावों’ पर विशेष बल दिया है। वह मानव व्यक्तित्व की जटिलता और अद्वितीयता को स्वीकार करता है।

(ii) काटेल की व्यक्तित्व गुण विचारधारा (Cattell’s Trait Theory) – काटेल ने व्यक्तित्व गुणों का वर्णन करने के लिए 171 शब्दों का प्रयोग किया। उसने व्यक्तित्व के लिए दो प्रकार के गुणों सतद्री गुणों (Surface Traits) एवं मौलिक या स्रोत गुणों (Source Traits) का वर्णन किया है। काटेल ने जोड़े बनाते हुए 35 सतही गुण बताए जो परस्पर सम्बन्धित हैं, जैसे- बुद्धिमान मूर्ख, सामाजिक -एकान्ती, स्नेहपूर्ण-विरक्त, ईमानदार-बेईमान आदि। ये गुण व्यक्तित्व की सतह पर होते हैं तथा मुख्य रूप से आधारभूत गुणों (Source Traits) से निर्धारित होते हैं। घटक विश्लेषण का प्रयोग करते हुए काटेल ने 12 आधारभूत गुण बताइए, जैसे-

(अ) अच्छी प्रकृति एवं विश्वसनीयता (Affectothymia) बनाम क्रान्तिक एवं शंकालु अभिवृत्तियाँ (Sizothymia);

(ब) परिपक्वता एवं वास्तविकता (Ego Strength) तथा अपरिपक्वता एवं कुटिलता (emotionality and Neuroticism);

(स) प्रभुत्व (Dominance) बनाम दब्बूपन (Submissiveness) तथा

(द) प्रसन्नता व ऊर्जा (Surgency) बनाम निराशा एवं पराधीनता की भावना।

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