संगठनात्मक व्यवहार

व्यक्तित्व से आशय एवं परिभाषा | व्यक्तित्व के लक्षण या विशेषतायें | व्यक्तित्व के प्रमुख निर्धारक तत्व | व्यक्ति विकास के निर्धारक घटक | व्यक्तित्व के सांस्कृतिक एवं परिस्थितिगत घटक

व्यक्तित्व से आशय एवं परिभाषा | व्यक्तित्व के लक्षण या विशेषतायें | व्यक्तित्व के प्रमुख निर्धारक तत्व | व्यक्ति विकास के निर्धारक घटक | व्यक्तित्व के सांस्कृतिक एवं परिस्थितिगत घटक | Meaning and definition of personality in Hindi | Characteristics or characteristics of personality in Hindi | Major Determinants of Personality in Hindi | Determinant Factors of Individual Development in Hindi | Cultural and situational components of personality in Hindi

व्यक्तित्व से आशय एवं परिभाषा

(Meaning and Definition of Personality)

‘व्यक्तित्व’ शब्द का उद्गम लैटिन भाषा के शब्द ‘Per sonare’ से हुआ है जिसका अर्थ ‘के माध्यम से बोलना’ (to speak through) है। यह शब्द प्राचीन ग्रीस एवं रोम में अभिनेताओं द्वारा पहने जाने वाले मुखौटों (Masks) के लिये प्रयोग में लाया जाता था। व्यक्ति का विश्लेषण करने में यह लैटिन अर्थ सहायक है।

‘व्यक्तित्व’ का सामान्य तात्पर्य उस ‘भूमिका’ (Role) से है जो एक व्यक्ति को दूसरे के सामने प्रदर्शित करता है (It is the role which the person displays to the public) । किन्तु दूसरी ओर ‘व्यक्तित्व’ की शैक्षणिक परिभाषायें, ‘व्यक्ति’ से अधिक सम्बन्धित हैं, उसकी भूमिका से नहीं। वस्तुतः व्यक्तित्व का सही अर्थ व्यक्ति के गुणों एवं भूमिका दोनों से जुड़ा हुआ है। व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार से व्यक्तित्व की रचना होती है। मैकक्लीलैण्ड ने व्यक्तित्व को मानवीय व्यवहारों के अति उपयुक्त अवबोधन के रूप में परिभाषित किया है। इस प्रकार के अवबोधन के अन्तर्गत व्यवहारों के सभी पक्षों को सम्मिलित किया जाता है। वेलेन्टिन (Valentine) का मत है कि, “व्यक्तित्व जन्मजात एवं अर्जित प्रवृत्तियों का योग (Sum total of innate and acquired dispositions) है।” फ्रेड लुथान्स (Fred Luthans) के अनुसार, “व्यक्तित्व ‘सम्पूर्ण व्यक्ति’ (Whole person) विचार को दर्शाता है। इसमें अवबोधन, सीखना, अभिप्ररेणा एवं अन्य मनोवैज्ञानिक तत्व शामिल होते हैं।” उनके अनुसार, व्यक्तियों के वाह्य स्वरूप एवं व्यवहार, स्व की आन्तरिक चेतना, परिभाष्य गुणों के प्रारूप तथा व्यक्ति वातावरण अन्तर्व्यवहार के व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

गोर्डन आलपोट (Gordon Allport) के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यक्ति के भीतर उन मने-भौतिक (Psychophysical) प्रणालियों का गतिशील संगठन है जो उसके वातावरण से उसके विलक्षण समायोजन को निर्धारित करती हैं।”

रोबिन्स (Robbins) के अनुसार, “व्यक्तित्व व्यवहारों का योग है जिसमें एक व्यक्ति दूसरों के साथ क्रिया तथा प्रतिक्रिया करता है।”

फ्लोयड रच (Flyed Ruch) के अनुसार, मानव व्यक्तित्व में निम्नलिखित सम्मिलित हैं-

(i) बाह्य प्रतीति (Apperance) एवं व्यवहार अथवा सामाजिक उद्दीपन मूल्य (Social Stimulus Value);

(ii) स्थायी एकीकरण शक्ति के रूप में ‘स्व’ की आन्तरिक चेतना;

(iii) आन्तरिक व बाह्य मापनीय लक्षणों का विशिष्ट प्रारूप

फ्रेड लुथान्स (Fred Luthans) के अनुसार, “व्यक्तित्व एक बहुत व्यापक एवं जटिल मनोवैज्ञानिक अवधारणा है। इसका सम्बन्ध बाह्य दर्शन (Appearance) एवं व्यवहार,’स्व’, मापनीय लक्षणों तथा परिस्थितिगत अन्तर्व्यवहारों से है।”

क्लुकोहन एवं मुरे (Kluckohn and Murray) का मत है कि, “कुछ अंश तक को व्यक्ति का व्यक्तित्व सबके समान होता है, कुछ अंश तक वह कुछ दूसरे लोगों से मिलता है तथा कुछ अंश तक किसी से भी नहीं मिलता है।”

‘व्यक्तित्व’ के लक्षण या विशेषतायें

(Features or Characteristics of Personality)

(1) व्यक्तित्व ‘सम्पूर्ण व्यक्ति’ (Whole Person) के विचार का सूक्ष्म परिप्रेक्ष्य है।

(2) व्यक्तित्व अखण्ड एवं जुड़ा हुआ होता है, यह भित्र-भिन्न भागों की शृंखला नहीं है।

(3) व्यक्तित्व विभिन्न मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं से मिलकर निर्मित होता है।

(4) व्यक्तित्व का प्रभाव विभिन्न गुणों व लक्षणों के योग से अधिक होता है। इससे एकीकृत एवं संश्लेषणात्मक (Synergistic) प्रभाव उत्पन्न होता है।

(5) यह संगठनात्मक व्यक्तित्व के विश्लेषण हेतु ‘व्यक्ति’ के व्यवहार को प्रदर्शित करता है।

(6) यह मानव की भूमिका, गुणों, लक्षणों एवं व्यवहार से जुड़ा है।

(7) यह व्यक्ति वातावरण के सामयोजन को निर्धारित करता है।

(8) यह व्यक्ति की विलक्षणता, विशिष्टता एवं विभिन्न को दर्शाता है। प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तित्व अद्वितीय होता है।

(9) व्यक्तित्व मनोवैज्ञानिक एवं शारीरिक दोनों प्रकार के तत्वों से निर्मित होता है।

(10) व्यक्तित्व एक गतिशील एवं परिवर्तनशील विचार है। व्यक्तित्व सदैव बदलते रहते है।

(11) ‘स्व’ के प्रति जागरूकता (Awarances of self) व्यक्तित्व की संयोजनकारी शक्ति होती है।

(12) यह व्यापक एवं जटिल विचार है।

(13) यह परिस्थितिगत अन्तर्व्यवहारों से भी बनता बदलता रहता है।

(14) व्यक्तित्व का कुछ भाग सामान्य, कुछ विशिष्ट एवं कुछ अद्वितीय होता है।

(15) पैतृकता (Heredity), वातावरण, परिपक्वता (Maturation), अभिप्रेरण सीखना (Learning)। ये सभी घटक मानव व्यक्तित्व के विकास में योगदान देते हैं।

व्यक्तित्व के प्रमुख निर्धारक तत्व | व्यक्ति विकास के निर्धारक घटक

(Major Determinants of Personality)

व्यक्तित्व कैसे निर्धारित होता है? वास्तव में मानवीय व्यवहार के अध्ययन में यह सबसे जटिल प्रश्न है, क्योंकि संज्ञान एवं मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के साथ अनेक घटक व्यक्तित्व के निर्माण में योगदान देते हैं। व्यक्तित्व के प्रमुख निर्धारक निम्नलिखित हैं-

(1) वंश-परम्परा (Heredity)- मनोवैज्ञानिकों का मत है कि व्यवहार में वंश परम्परा का प्रभाव कम दिखायी पड़ता है। स्कॉट के मतानुसार, “इसकी भूमिका के सम्बन्ध में वंश परम्परा पर डालने वाले तत्वों के निर्धारकों का विकास होता है। अनुकरणी शीलता इसमें पायी जाती है। वंश क्रम का समस्त ज्ञान वैयक्तिक भिन्नता को प्रकट करता है।” स्कॉट का मत है कि व्यक्ति को अपने वंशानुक्रम के द्वारा जीवित रहने और विकास करने हेतु अपेक्षित आधारभूत संरचना की प्राप्ति होती है। जेoकैली (J. kelly) के अनुसार, “वास्तव में, व्यक्तित्व के प्रारम्भिक कार्य को श्रृंखलाओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। वंशानुगत जीन्स के द्वारा रूपान्तरित होती है, जीन्स हारमोन सन्तुलन को निर्धारित करता है तथा शारीरिक रचना व्यक्ति व को आकार प्रदान करती है।” एक नवीनतम अध्ययन से जिनमें 350 जोड़ों (Pairs of twins) का चयन किया था, यह ज्ञात हुआ है कि व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुगत की अहं भूमिका होती है। विशेषतः संगठनात्मक व्यवहार के सन्दर्भ में यह ज्ञात हुआ है कि नेतृत्व, परम्परावाद तथा सत्ता की आज्ञाकारिता जैसे गुण मूलतः वंशानुगत द्वारा निर्धारित होते हैं।

(2) शारीरिक संरचना (Physique)- शरीर के स्नायु मण्डल और क्रियाओं का व्यक्तित्व के विकास पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसमें शरीर का आकार, स्नायुविक प्रणाली, प्राण प्रणाली आदि को सम्मिलित किया जाता है जिसके मध्यम से व्यक्ति को आधारभूत बौद्धिक योग्यता की प्राप्ति होती है तथा व्यक्ति स्वयं को आगे के जीवन में प्रकट करता है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि शारीरिक कमी का मनुष्य के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। मनुष्य की बुद्धि, मानसिक योग्यता, मानसिक दुर्बलता, व्यक्तित्व के विकास में प्रत्यक्षतः सहायक होती है। दुर्बल व्यक्ति का व्यक्तित्व पूर्णतः विकसित नहीं होता है।

(3) वातावरणीय प्रभाव (Environmental Effect)- वातारणीय घटकों व्यक्तित्व के विकास पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। मनुष्य एक गतिशील सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण में रहता है तथा वातावरणीय विशेषताओं के अनुसार ही उसका विकास होता है। वातावरणीय दो रूपों में प्रभाव डालता है- सामाजिक वातावरण तथा सांस्कृतिक वातावरण व्यक्तित्व के निर्धारण में परिवार तथा संस्कृति का अत्यधिक महत्व होता है। सामाजिक तथा मनोरंजन सम्बन्धी क्रियायें व्यक्तित्व के विकास में विशेष भूमिका निभाती हैं।

(4) बाल्यावस्था के अनुभव (Childhood Experiences)- बाल्यकाल के अनुभव भी स्थायी रूप से मनुष्य के व्यक्तित्व का अंग बन जाते हैं। माता-पिता तथा घर के अन्य सदस्यों का व्यवहार भी बच्चे के विकसित मस्तिष्क पर प्रभाव डालता है।

लूथांस (Luthans) के अनुसार, व्यक्तित्व के प्रमुख निर्धारक निम्नलिखित हैं-

(1) जीव विज्ञान सम्बन्धी योगदान (Biological Contributions) – व्यक्तित्व विकास में जीव विज्ञान सम्बन्धी घटकों की विशेष भूमिका होती है जिन्हें निम्न प्रकार से विभक्त किया जा सकता है-

(i) वंशानुगतता की भूमिका, (ii) जीन्स सम्बन्धी व्यवस्था एवं बुद्धि वैभव, (iii) प्रबन्धकीय चिन्तन, (iv) स्पिलिट ब्रेन चिन्तन, (v) बायोफीड बैक, (vi) शारीरिक विशेषतायें एवं परिपक्वता की दर।

(2) सांस्कृतिक योगदान (Cultural Contribution)- जीव विज्ञान सम्बन्धी घटकों की तुलना में व्यक्तित्व के निर्धारण में सांस्कृतिक घटकों का योगदान अपेक्षाकृत अधिक होता है। व्यक्तित्व विकास में सीखने की प्रक्रिया (learuing Process) महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सीखने की प्रक्रिया तथा विषय-वस्तु में संस्कृति आधारभूत अवधारणा है, क्योंकि एक व्यक्ति जो कुछ सीखता है, वही उसकी विषय-वस्तु होता है। संस्कृति स्वतन्त्रता, आक्रामकता, प्रतिस्पर्द्धा तथा सहयोग जैसे घटकों की प्रमुख निर्धारक होती है। उदाहरण के लिये, पश्चिम संस्कृति एक व्यक्ति को स्वतन्त्र एवं प्रतिस्पर्द्धा बनाने पर बल देती है, जबकि अन्य संस्कृतियां व्यक्ति को धार्मिक तथा सहनशील बनने पर जोर देती है। यही कारण है कि पश्चिम के व्यक्तियों का व्यक्तित्व अन्यों से सदैव पृथक् पाया जाता है। संगठनात्मक व्यवहार के विश्लेषण में न्याय संगत सांस्कृतिक प्रभाव को मद्देनजर रखना आवश्क होता है।

(3) परिवार से योगदान (Contributions from the Family)- व्यक्तित्व का एक अन्य प्रमुख निर्धारक परिवार है। विशेषतः माता-पिता की भूमिका पहचान प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाती है जो कि एक व्यक्ति के प्रारम्भिक विकास में महत्वपूर्ण होती है। बाद में यह समाजीकरण प्रक्रिया के रूप में परिवर्तित हो जाती है।

(4) स्थिति (Situation)- व्यक्तित्व का एक अन्य महत्वपूर्ण निर्धारक स्थिति है। सामान्यतः यह माना जाता है कि एक व्यक्ति का व्यक्तित्व स्थिर होता है तथा विभिन्न परिस्थितियों में परिवर्तित नहीं होता है। इसके विपरीत, वास्तविक जगत में विभिन्न स्थितियों में व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं की माँग होती है। इसका कारण यह है कि व्यक्तित्व शैली को अलगाव में नहीं देखा जा सकता है।

व्यक्तित्व के सांस्कृतिक एवं परिस्थितिगत घटक

(1) सांस्कृतिक घटक (Cultural Factors)- जैविक घटकों की तुलना में व्यक्तित्व के निर्माण में सांस्कृतिक घटक अपेक्षाकृत अधिक प्रभाव डालते हैं एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मानव के निर्णयन की प्रक्रिया में संस्कृति आधारभूत घटक है। व्यक्तित्व के विकास में सीखने की प्रक्रिया, समाज में प्रचलित मूल्य, परम्पराएँ, आक्रमकता, प्रतिस्पर्द्धा, सहयोग की भावना, स्वतन्त्रता आदि घटकों का विशेष प्रभाव पड़ता है। प्रत्येक संस्कृति अपने सदस्यों से आशा करती है तथा इस बात का प्रशिक्षण देती है कि वे समाज के स्वीकृत तरीकों से व्यवहार करें। इसके अतिरिक्त, समाज में प्रचलित धार्मिक एवं नैतिक मान्यतायें, दूसरी संस्कृति के प्रति सहनशीलता की प्रवृत्ति, सांस्कृतिक रूपान्तरण, न्याय एवं सुरक्षा प्रणाली आदि घटक भी मनुष्यों के व्यक्तित्व को दिशा देने में सहायक होते हैं।

(2) परिस्थतिगत घटक (Situational Factors)- जैविक घटक, परिवार एवं सामाजिक घटक तथा सांस्कृतिक घटकों के अतिरिक्त परिस्थितिगत घटक भी किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। व्यक्ति परिस्थितयों से घिरा हुआ होता है। उसकी विद्यमान परिस्थितियों का उस पर गहन प्रभाव पड़ता है। इसी कारण वह ‘परिस्थितियों का दास कहलाता है। वह जीवनोपर्यन्त परिस्थितियों से संघर्ष करता रहता है। इसी में उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। मानवीय व्यवहार का एस.ओ.बी.मॉडल (S.O.B. Model) उन परिस्थितियों का अध्ययन करता है जिनमें व्यवहार सम्पन्न होता है। माइग्राम (Migram) द्वारा किये गये अनुसन्धान के अध्ययन के अनुसार मानवीय व्यक्तित्व में परिस्थिति की बड़ी शक्तिशाली भूमिका होती है। अपने अध्ययन के आधार पर वे कहते हैं कि परिस्थिति का व्यक्ति पर गहरा दबाव पड़ता है। एक तरफ वह रुकावटें उत्पन्न करती है तो दूसरी तरफ वह धकेलती है।

कुछ परिस्थितियों में, जिस किस्म का व्यक्ति होता है एवं जैसी परिस्थितियों में वह निवास करता है उसी प्रकार की क्रियाओं का निर्धारण होता है। उदाहरण के लिए, एक ऐसा कर्मचारी जिसमें व्यक्तित्व का इतिहास यह बताता है कि उसका शक्ति व उपलब्धियों के प्रति लगाव है तो वह उस समय तनावग्रस्त एवं आक्रामक हो जाता है, जबकि उसे नौकरशाही कार्य परिस्थति में रखा जाता है। ऊपर से वह सुस्त एवं उत्पात मचाने वाला दिखायी पड़ता है यद्यपि उसके व्यक्ति का इतिहास यह बताता है कि वह कठोर परिश्रम एवं आगे बढ़ने वाला कर्मचारी है।

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Pankaja Singh

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