संगठनात्मक व्यवहार

समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा संस्कृति का संरक्षण | Maintaining Cultures through Steps of Socialization in Hindi

समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा संस्कृति का संरक्षण | Maintaining Cultures through Steps of Socialization in Hindi

समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा संस्कृति का संरक्षण

(Maintaining Cultures through Steps of Socialization)

जब एक बार संगठनात्मक संस्कृति का विकास एवं शुरुआत हो जाती है तो समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा उसे निरन्तर बनाये रखा जाता है। समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रवेश करता है तथा समाज के विभिन्न समूहों का सदस्य बनता है जिनके द्वारा उसे समाज के मूल्यों तथा मानकों को स्वीकार करने की प्रेरणा प्राप्त होती है। वास्तव में समाजीकरण मानव द्वारा संगठन में रहने की सम्पूर्ण प्रक्रिया को सीखना है। जो भी व्यक्ति किसी संगठन में रहना चाहता है, उसकी सबसे प्राथमिक आवश्यकता समाजीकरण की है। रिचार्ड पास्कल ने समाजीकरण की प्रक्रिया के निम्नलिखित चरण बताये हैं-

(1) प्रवेश स्तर पर अभ्यर्थियों का सावधान चयन; (2) जॉब पर नियुक्ति (Placement); (3) जॉब मास्टरी (Job Mastery); (4) निष्पादन का माप एवं पुरस्कार; (5) महत्वपूर्ण मूल्यों से लगाव; (6) कहानियाँ तथा पौराणिक कथाओं का प्रतिसंभरण; (7) मान्यता एवं पदोन्नति ।

समाजीकरण प्रक्रिया में प्रथम महत्वपूर्ण चरण प्रवेश स्तर पर अभ्यर्थियों का सावधानीपूर्वक चयन करता है। प्रमापित प्रक्रियाओं एवं विशिष्ट गुणों का प्रयोग करते हुये नये अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लिया जाता है तथा उन व्यक्तियों का छांटने का प्रयास किया जाता है। जिनकी निज शैली तथा मूल्य संगठनात्मक संस्कृति से मेल नहीं खाते। तत्पश्चात् नये व्यक्ति को विभिन्न कार्यों पर लगाया जाता है। जिसका लक्ष्य यह जानना होता है कि नया व्यक्ति संगठन के मूल्यों तथा प्रतिमानों का स्वीकार कर सकता है या नहीं। उदाहरण के लिये, मजबूत संस्कृति से युक्त अधिकांश संगठन इस बिन्दु पर नये कर्मचारी को ज्यादा काम देना पसन्द करते हैं। कभी-कभी यह कार्य सीमा व्यक्ति की योग्यता सीमा से भी परे हो सकती है। इस चरण में नया व्यक्ति संगठनात्मक संस्कृति के निकट आता है। प्रायः यह अनुभव उसे घाव पहुंचाने वाले तथा समूह से लगाव उत्पन्न करने वाला होता है।

जब एक बार नया व्यक्ति संगठन की संस्कृति से परिचित हो जाता है, तो अगले चरण में वह अपने जॉब का विशेषज्ञ बनने का प्रयास करता है ऐसा व्यापक तथा सावधानीपूर्वक क्षेत्र अनुभव के संभरण द्वारा किया जाता है। अगले चरण में नये व्यक्ति के निष्पादन को मापा जाता है तथा परिणामों के अनुसार पुरस्कार प्रदान किया जाता है। यह व्यवस्था काफी व्यापक होती हैं तथा व्यवसाय के उन पहलुओं पर प्रकाश डालती है जो संगठन के मूल्यों तथा प्रतिस्पद्धी सफलता के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण होते हैं। तत्पश्चात् संगठन के महत्वपूर्ण मूल्यों के प्रति व्यक्ति का लगाव सावधानीपूर्वक देखा जाता है। इन मूल्यों की पहचान कर्मचारी की व्यक्तिगत त्याग में सहायता करती है जो कि वह संगठन के सदस्यों से सीखता है।

तत्पश्चात् संगठनात्मक कहानियों एवं पौराणिक कथाओं के द्वारा संगठनात्मक संस्कृति को जीवित रखा जाता है। ये कहानियाँ संगठनात्मक संस्कृति एवं कार्य करने के तरीकों पर प्रकाश डालती हैं। और बताती है कि संगठन कार्य को एक निश्चित तरीके से ही क्यों करता है। ये कहानियाँ इस बात को भी स्पष्ट करती हैं। कि नीतिशास्त्रीय दावे (Ethical claims) धन कमाने से ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।

समाजीकरण का अन्तिम चरण व्यक्तियों को मान्यता एवं पदोन्नति से सम्बद्ध है जिन्होंने आपने कार्य को बेहतर रूप में किया है तथा जो संगठन में नये व्यक्तियों के लिये मॉडल भूमिका का कार्य कर सकते हैं। प्रोक्टर एवं गैम्बल तथा मारगन स्टानले जैसी प्रसिद्ध अमेरिकन फर्मे भूमिका प्रतिरूप फिल्मों का अपने प्रशिक्षण कार्यक्रमों में व्यापक प्रयोग करती हैं। जिसके द्वारा वह कर्मचारियों की अभिप्रेरणात्मक चातुर्य, ऊर्जा तथा अन्य व्यक्तियों से काप लेने की योग्यता का प्रशिक्षण देती है। हमब्रिक एवं मैसन (Hambrick and Mason) का मत है कि संगठनात्मक संस्कृति को बनाये रखने में उच्च प्रबन्ध की कार्यवाही का भी महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। वे क्या कहते हैं, कैसा आचरण करते हैं, आदि का अधीनस्थ कर्मचारियों पर पप्रत्यक् प्रभाव होता है। वरिष्ठ अधिशासी जो कुछ प्रतिमान स्थापित कर देते हैं, अन्य व्यक्ति भी उन्हीं का अनुसरण करते हैं।

मैनन तथा स्चीन (Mannen and Schein ) का मत है कि समाजीकरण की प्रक्रिया की अवधारणा को तीन चरणों में व्यक्त किया जा सकता है- पूर्व आगमन (Prearrival), मुकाबला (Encounter) एवं रूपान्तर (Metamorphosis)। प्रथम चरण में सीखने की प्रक्रिया को सम्मिलित किया जाता है जो एक प्रवेश करने वाले सदस्य के सम्मुख घटित होती है। द्वितीय चरण में नया व्यक्ति देखता है कि संगठन को क्या वास्तव में पसंद किया जा सकता है तथा संगठन की प्रत्याशाओं एवं संसद के मध्य संघर्ष का मुकाबला करने का प्रयास करता है। तृतीय चरण में व्यक्ति में रूपान्तरण हो जाता है तथा नया व्यक्ति समूह के मूल्यों एवं प्रतिमानों के प्रति समायोजन के साथ अपने कर्तव्य को बेहतर रूप में करता है। फील्डमैन का मत है कि इस तीन स्तरीय प्रक्रिया का नये कर्मचारियों की कार्य उत्पादकता, संगठन के लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता तथा संगठन में उसके ठहरने के निर्णय पर प्रभाव पड़ता है।

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Pankaja Singh

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