संगठनात्मक व्यवहार

समूह से आशय | समूह की संरचना एवं विशेषतायें | समूह की क्रिया | समूह निर्माण क्यों होता है?

समूह से आशय | समूह की संरचना एवं विशेषतायें | समूह की क्रिया | समूह निर्माण क्यों होता है? | Meaning of group in Hindi | Group structure and characteristics in Hindi | Group action in Hindi | Why does group formation happen in Hindi

समूह से आशय

(Meaning of Group)

समूह से आशय दो या दो से अधिक व्यक्तियों के आपसी एकत्रीकरण से है जो आपस में अन्तर्क्रिय करते हैं, एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं तथा निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये एकजुट होकर प्रयास करते हैं। सरल शब्दों में, ‘समूह’ सामान्य लक्ष्यों के लिये प्रयासरत ऐसे व्यक्तियों का संगठन है जो परस्पर अन्तर्व्यवहार करते हैं, अन्त र्निभर एवं अन्तर्क्रियाशील होते हैं तथा जिनके आपसी सम्बन्ध व्यवहार प्रतिमानों से संचालित होते हैं।

समूह की संरचना एवं विशेषतायें

(Structure and Properties of Groups)

समूह की विशेषताओं का उनकी संरचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। एक समूह की प्रमुख विशेषतायें निम्नलिखित हैं-

(1) आकार (Size)- समूह दो या अधिक व्यक्तियों से मिलकर बनते हैं। समूह का आकार संगठन की अपेक्षा छोटा होता है। प्रायः एक समूह के सदस्यों की संख्या 30 तक हो सकती है। वे साथ मिलकर समूह की सदस्यता का निर्माण करते हैं।

(2) सामूहिक क्रियायें (Collective Activities) – एक समूह के सदस्यों की क्रियायें सामूहिक होती हैं जो कार्य से सम्बन्धित या असम्बन्धित हो सकती हैं।

(3) सामान्य हित एवं उद्देश्य (Common Interest and Objectives)- समूह के सभी सदस्यों का एक सामान्य हित तथा सामान्य लक्ष्य होते हैं जिसकी प्राप्ति के लिये सभी मिलकर एक निश्चित दिशा में कार्य करते हैं।

(4) मानक व नियम (Norms and Rules)- समूह के सभी सदस्यों के कुछ आदर्श मानक एवं प्रतिमान होते हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिये वे एकीकृत होकर प्रयास करते हैं। समूह के सभी सदस्यों के व्यवहार कुछ नियमों द्वारा नियन्त्रित होते हैं। समूह, व्यवहार के मानकों एवं नियमों का पालन कराने के लिये अपने सदस्यों पर विभिन्न प्रकार से दबाव डालते हैं। मानकों के अनुरूप आचरण करने पर सदस्यों को पुरस्कृत एवं प्रतिकूल आचरण की दशा में दण्डित किया जाता है। सामान्यतः समूह-मानक मौखिक रूप से ही प्रकट किये जाते हैं।

(5) लगाव (Cohesiveness)- समूह के सदस्यों की क्रियाओं, लक्ष्यों, कार्यों, व्यवहार व हितों के बीच संसशक्तिशीलता अर्थात् एक लगाव बना रहता है। यह लगाव ही उनके एक समूह के रूप में गठित होने का परिचायक होता है। इस संक्तिशीलता के कारण समूह के सदस्यों में ‘अपनत्व’ जाप्रत होता है। वैयक्तिक भावना (मैं) के स्थान पर सामूहिक भावना (हम) का जन्म होता है।

(6) अनौपचारिक नेतृत्व (Informal Leadership)- समूह के प्रबन्ध औपचारिक नहीं होता है। समूह का नेतृत्व एवं मार्गदर्शन स्वतः उभरता है। ऐसा अनौपचारिक नेता अपने विवेक, अनुभव एवं व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर सदस्यों को दिशा निर्देश देता है। समूह में नेतृत्व का विकास व्यक्तिगत प्रधान के आधार पर होता है। इतना ही नहीं, विभिन्न दशाओं में समूह का नेतृत्वविधित व्यक्तियों द्वारा किया जाता है।

(7) सामाजिक दबाव पूर्व निशा (Social Pressure and Conformity)- समूह में जहाँ सभी सदस्यों को लाभ होता है, वहाँ समूह के सदस्यों से पूर्ण निष्ठा एवं सहयोग की अपेक्षा की जाती है। समूह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये सदस्यों में आज्ञाकारिता व समूह-निष्ठा का विकास करता है।

(8)अन्तर्क्रियाशीलता (Interaction)- समूह के सदस्स्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये अतव्यावहार करते हैं। अन्तक्रिया के निरन्तर कम के कारण समूह के सदस्य एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं और साथ ही प्रभावित होते हैं। अन्तक्रियाओं के अभाव में समूह का जीवन नहीं चल पाता है।

(9) समान विचारधारा (Common Ideology)- समूह की अभिवृत्तियों एवं विचारों में भी काफी समानता पायी जाती है। विचारधारा की एकता से समूह के मूल्यों तथा प्रतिमानों में भी समता बनी रहती है। सभी सदस्य अपने आपको एक समूह के रूप में तभी अनुभव करते हैं, जब उनके विचार एक समान हो।

(10) सम्बन्धों का आधार (Basis of Relationship)- समूह के मध्य सम्बन्धों का आधार धर्म, जाति, वंश, परिवार, लिंग, रंग, व्यवसाय या अन्य सामाजिक हित हो सकता हैं।

(11) संस्कृति (Culture)- प्रत्येक समूह की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है जिससे उसकी क्रियायें एवं जीवन संचालित होता है।

(12) अन्तनिर्भरता (Interdependency)- समूह के सदस्य अपने कार्यों एवं लक्ष्य-पूर्ति के लिये एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।

(13) सामाजिक संरचना (Social Structure)- जिस प्रकार अन्य सभी संगठनों की संरचना होती है उसी प्रकार समूह की भी निश्चित संरचना होती है। इसमें सभी सदस्यों की स्थिति, कार्य एवं अधिकार निश्चित होते हैं।

समूह की क्रिया अन्त क्रिया और मनोभाव विचारधारा

क्रिया, अन्तक्रिया और मनोभाव विचारधारा (Activity, Interaction and Sentiment Theory)-

यह विचारधारा सामीप्य विचारधारा की तुलना में अधिक व्यापक है। इस विचारणारा का प्रतिपादन जार्ज.सी. होमेन्स (George C. Homan’s) ने किया था। इस विचारधारा के अनुसार समूह निर्माण के लिए निम्न तीन तत्व आवश्यक होते हैं –(i) क्रिया, (ii) अन्तर्क्रिया तथा (iii) मनोभाव। ये तीनों ही तत्व एक दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। होमेन्स के अनुसार व्यक्तियों द्वारा मिल- जुलकर जितनी अधिक क्रियाएँ सम्पन्न की जायेगी, उनके बीच उतनी ही अन्तर्क्रियाओं में वृद्धि होगी और उनके पारस्परिक मनोभाव में दृढ़ता आयेगी। यहाँ मनोभाव से आशय है कि कोई व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कितना पसन्द अथवा नापसन्द करता है। जब व्यत्यिों के मध्य अन्तर्क्रियाओं में वृद्धि होती है तो सम्मिलित क्रियाओं तथा समान प्रकार के मनोभाव में भी वृद्धि होती है। इसी प्रकार एक दूसरे के प्रति समान मनोभावों के विकसित होने पर सम्मिलित क्रियाओं तथा अन्तर्क्रियाओं में वृद्धि होती है।

उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि इस विचारधारा का केन्द्र बिन्दु अन्तर्क्रिया है। केवल समीपता व्यक्तियों को एक दूसरे के समीप आने का अवसर प्रदान कर सकती है किन्तु इसके कारण उनके मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित हो जाय, यह आवश्यक नहीं है। उदाहरण के लिए, पड़ोसियों के मध्य सदैव घनिष्ठ सम्बन्धों का होना आवश्यक नहीं है। कभी कभी उनके मध्य एक दूसरे के प्रति नफरत एवं दुश्मनी के सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं। अतएव घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित होने के लिए अन्तर्क्रिया एक आवश्यक शर्त है। अन्तर्किया के माध्यम से ही समूह अपनी समस्याओं का समाधान खोजते हैं एवं अपने निर्धारित उद्देश्यों अथवा लक्ष्यों को पूरा करते हैं। अतएव क्रियाओं, अन्तर्क्रियाओं एवं मनोभावों में वृद्धि ही समूह का आधार है।

समूह निर्माण क्यों होता है?

(Why groups are formed?)

के मस्तिष्क में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि समूह निर्माण क्यों होता है? प्रत्युत्तर में कहा जा सकता है कि किसी संगठन में समूह निर्माण के कई कारण हो सकते हैं, उनमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

(1) निकटता (Proximity)- एक ही स्थान पर कार्य करने वाले व्यक्ति एक दूसरे के निकट आ जाते हैं। उनमें आत्मीयता की भावना जाग्रत होती है। इसी प्रकार से समान प्रकार का कार्य करने वाले व्यक्ति और जिनकी समान आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक व क्षेत्रीय पृष्ठभूमि होती है, वे एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं और परिणामस्वरूप एक दूसरे के निकट आ जाते हैं।

(2) आवश्यकताओं की सन्तुष्टि (Needs Satisfaction)- आवश्यकताएँ अनन्त होती हैं किन्तु प्रत्येक आवश्यकता की सन्तुष्टि नहीं की जा सकती है। समूह के माध्यम से लोगों की शारीरिक व मनोवैज्ञानिक सुरक्षा की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। इस कारण भी समूहों का निर्माण होता है।

(3) सदस्यों के हितों की रक्षा (Safety of Members’ Interest) – अनेक अनौपचारिक समूहों का निर्मण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सदस्यों के हितों की सुरक्षा की दृष्टि से होता है।

(4) क्रिया तथ अन्तर्किया (Activity and Interaction)- जार्ज होम्स के अनुसार एक अच्छे एवं श्रेष्ठ समूह के लिए सदस्यों की निकटता ही पर्याप्त नहीं है, निकटता के साथ-साथ क्रिया तथा अन्तर्क्रिया का होना भी आवश्यक है। क्रिया एवं अन्तर्क्रिया सदस्यों की समस्याओं के समाधान में सहायक होती है। इससे समूहों के मध्य निकटता बढ़ती है और वे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आपस में समूह बनाकर प्रयास करते हैं। इससे भी समूहों का निर्माण होता है।

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Pankaja Singh

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