संगठनात्मक व्यवहार

कार्य समूह का महत्व | कार्य-समूहों का निर्माण कैसे होता है? | कार्य-समूहों का निर्माण क्यों होता है?

कार्य समूह का महत्व | कार्य-समूहों का निर्माण कैसे होता है? | कार्य-समूहों का निर्माण क्यों होता है? | Importance of Working Group in Hindi | How are working groups formed in Hindi | Why are working groups formed in Hindi

कार्य समूह का महत्व

(Importance of Work Group)

समूहों का निर्माण करने और उनको जीवित रखने के लिये निम्न छह कारक हैं-

(1) मतैक्य (Consensus)- एक समूह तब ही विद्यमान रह सकता है जब उसमें

 अन्ततः वैयक्तिक मतैक्य (Interpersonal Consensus) हो। समूह के सदस्यों में लक्ष्यों के सम्बन्ध में सामान्य सहमति होना आवश्यक होता है तथा कुछ सीमा तक उनमें लक्ष्यों की प्राप्ति के तरीकों के सम्बन्ध में सहमति होती है। मतैक्य (Consensus) से ‘हम भाव’ (We-Feeling)  अथवा समूह एकता (Group Solidarity) के भाव उत्पन्न होते हैं। वे लोग जिनके दृष्टिकोण तथा मूल्य एक से होते हैं एक-दूसरे की पारस्परिक स्वीकृति प्रदान करके समूह का निर्माण कर लेते हैं। मतैक्य समूह निर्माण के कारकों में आधारभूत कारक है परन्तु कुछ अन्य कारक भी हैं, जो मतैक्य निर्माण में सहायक होते हैं।

(2) अन्तः क्रिया (Interaction) – मतैक्य की जड़ में सामाजिक अन्तः क्रिया का मनोवैज्ञानिक आधार है अर्थात् एक मानवीय आवश्यकता (Human Need), समस्याओं का समाधान, लक्ष्यों की प्राप्ति, समन्वय को सहज, तनाव को कम तथा मानव सम्बन्धों में सन्तुलन लाने के लिये दूसरी मानवीय आवश्यकता के साथ अन्तः क्रिया करती है। लोगों में आमने-सामने का सम्पर्क (Face to face contact) आमतौर से मतैक्य को जन्म देता है। Homan’s ने अपनी पुस्तक ‘The Human Group’ में यह स्पष्ट कर दिया है कि लोगों में जितनी पारस्परिक अन्तः क्रिया अधिक होगी उतनी ही अधिक उनकी क्रियायें और भाव एक से होंगे और जितनी अधिक एक व्यक्ति की क्रियायें और भाव दूसरों की क्रियाओं तथा भावों से मेल खाने लगते हैं उतनी ही उनमें अधिक अन्तः क्रिया की सम्भावना बढ़ जाती है। बार-बार की अन्तःक्रिया से मतैक्य की स्थापना हो जाती है।

(3) सम्प्रेषण (Communication)- सामान्यतः मतैक्य समूह सदस्यों को लाभकारी होता है। इसी प्रकार से मतैक्य को लाने के तरीकों के रूप में अन्तः क्रिया और सम्प्रेषण भी लाभकारी होते हैं। लोगों के मध्य तनाव को हम सम्प्रेषण के माध्यम से कम कर लेते हैं। जब दो व्यक्ति अन्तः क्रिया के दौरान किसी वस्तु तथा मनुष्य के सम्बन्ध में सहमत नहीं हो पाते हैं तो उनके सम्बन्धों में असन्तुलन की स्थिति विद्यमान रहती है। असन्तुलन के कारण तनाव हो जाता है जो सम्प्रेषण को अभिप्रेरित करता है। दोनों पक्षकारों के मध्य होने वाले सम्प्रेषण से हो सकता है असन्तुलन का कारण दूर हो जाये और मतैक्य स्थापित हो जाये। ऐसा भी सम्भव है कि सम्प्रेषण से मामले का इतना अधिक स्पष्टीकरण हो जाये कि पक्षकारों को आभास हो जाये कि मतैक्य सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में दो विकल्प हैं। लोग अन्तःक्रिया के क्षेत्र से अपने को वापिस ले लें और दूसरे यदि वापस लेना असम्भव हो तो उनमें संघर्ष हो जाये।

(4) स्थिति (Location) – समूह व्यवहार के विश्लेषण में मिलने वाली सबसे अधिक यथार्थता यह है कि लोगों को अन्तःक्रिया तथा सम्प्रेषण करने के लिये और मतैक्य होने के लिये काफी लम्बे समय तक एक-दूसरे के निकट रहना चाहिये। एक समूह विद्यमान नहीं रह सकता है जब तक अन्तः वैयक्तिक सम्बन्ध निरन्तर कुछ लम्बे समय तक न बनाये रखे जायें। इसके लिये समय-समय पर मुलाकात होती रहनी चाहिये जिसके लिये भौगोलिक सामिप्य का होना अनिवार्य है। उदाहरण के लिये, एक व्यापारिक कार्यालय के एक बड़े कमरे में 20 लड़कियाँ काम कर रही हैं। जिनमें से 8 फाइल लिपिक हैं, 8 टाइपिस्ट हैं तथा 4 स्टैनोग्राफर हैं। इसमें स्थिति की कोई समस्या नहीं है, क्योंकि लड़कियाँ स्वतन्त्रता से एक-दूसरे से मिल सकती हैं यदि उनमें एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित करने की इच्छा है। क्योंकि भौगोलिक स्थिति कोई समस्या नहीं है अतः समूह बनाने का दूसरा आधार व्यवसाय होगा अर्थात् स्टैनोग्राफर स्टैनोग्राफर के साथ मिलेगें और लिपिक, लिपिक साथ।

यदि व्यवसाय में प्रस्थिति भेद (Status difference) स्पष्ट है और स्टैनोग्राफर अपने को ऊंची प्रस्थिति का मानते हैं तो फाइल लिपिक उनके समूह में सदस्य नहीं हो सकता है यदि व्यवसाय में कोई स्थिति भेद नहीं है तो समूहों के निर्माण का आधार व्यवसाय नहीं होगा। ऐसी स्थिति में समूह निर्माण सामान्य हितों पर आधारित होगा।

(5) सामान्य हित (Common Interest)- लोग छोटे समूहों का निर्माण कर लेते हैं चाहे वे एक व्यवसाय के न हों यदि वे एक से ही मूल्यों को महत्व देते हैं। ऐसे व्यक्तियों के साथ उनके सम्बन्ध अच्छे रहते हैं और उसे उनसे समर्थन भी मिलता रहता है। समूह एक व्यक्ति विशेष का आत्मविश्वास प्रदान करता है। एक व्यक्ति अनेकों छोटे-छोटे समूहों का सदस्य हो सकता है। अक्सर वह ऐसे दो समूहों के मध्य फँस जाता है जो विपरीत मूल्यों को महत्व देते हैं। जब मूल्य में टकराव होता है तो व्यक्ति उस समूह की ओर अग्रसर होता है जिसका उस पर सबसे अधिक प्रभाव होता है अर्थात् जो उसके लिये सबसे अधिक महत्व के होते हैं।

(6) समूह आकार (Group Size)- समूह निर्माण से सम्बन्धित एक पेचीदा प्रश्न यह है कि समूह का कौन-सा आकार प्रभावपूर्ण अन्तःक्रिया तथा स्थिरता (Stability) लाने में सबसे अधिक योग प्रदान करता है। समूह कम-से-कम दो व्यक्तियों का तो होता ही है। समूह में सदस्यों को अधिक-से-अधिक संख्या क्या होनी चाहिये? यह प्रयोगों से पता चल चुका है कि यदि समूह में सदस्यों की संख्या सात से अधिक हो जाती है तो सम्प्रेषण तथा अन्तःक्रिया कठिन हो जाती है।

कार्य-समूहों का निर्माण कैसे होता है?

(How Work Groups are Developed?)

या

समूहों का निर्माण

(Formation of Group)

प्रारम्भ में जब एक नया कर्मचारी किसी विभाग में आता है तो अपने को खोया खोया तथा अकेला पाता है। उसको पुराने कर्मचारी आत्म-सन्तुष्ट तथा कुशल प्रतीत हो सकते हैं। परन्तु नया कर्मचारी कार्य-निष्पादन करते हुये दूसरे कर्मचारियों के सम्पर्क में आता है और पुराने कर्मचारी उससे बातचीत करना प्रारम्भ कर देते हैं। वे अबकाश काल में बीड़ी-सिगरेट पीते हुये बातचीत करने लगते हैं अथवा नया कर्मचारी पुरानों के पीछे-पीछे चाय पीने के लिये होटल में चला जाता है। यदि पुराने कर्मचारी मिलनसार हैं तो वे उसको अपनी समूह कार्य-विधियों में सम्मिलित होने के लिये आमन्त्रित कर लेते हैं वे मध्याह्न भोजन अवकाश के साथ-साथ ताश खेलते हैं। धीरे-धीरे नया कर्मचारी समूह के सदस्य के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है। उनमें से कुछ उसको कार्य को शीघ्र निष्पादित करने की संक्षिप्त रीतियों से परिचित कराते हैं। वे उसको पर्यवेक्षक की मनःस्थिति के सम्बन्ध में बता सकते हैं। शीघ्र ही वह अपने को समूह के पूर्ण सदस्य के रूप में समझने लगता है। वह यह समझने लगता है कि आवश्यकता के समय दूसरे कर्मचारी उनकी सहायता करेंगे। वह कर्मचारी कुछ ऐसे लोगों से घनिष्ठ हो जाता है जिनके हित तथा दृष्टिकोण उसके हितो तथा दृष्टिकोण से मेल खाते हैं।

कार्य-समूहों का निर्माण क्यों होता है?

(Why Work Groups are Formed?)

हमें यह देखना है कि कर्मचारी कार्य-समूह क्यों बनाते हैं? हम यह कह सकते हैं कि कार्य-समूह की सदस्यता से प्राप्त होने वाले लाभों के कारण कार्य-समूहों का निर्माण किया जाता है।

(1) सुरक्षा एवं रक्षा (Security and Protection)- एक समूह की सदस्यता सदस्यों को थोड़ी सुरक्षा भी प्रदान करती है। यद्यपि सदस्यों में आपस में मतभेद हो सकता है परन्तु यदि कोई बाह्य खतरा होता है तो वे मतभेद को भुला देते हैं और मिलकर अपनी रक्षा करते हैं, यदि एक सदस्य किसी मुसीबत में फँस जाता है तो वह अपने समूह के सहयोगियों से आशा रखता है कि वे उसको बचा लेंगे।

(2) समूह की स्थिति को उन्नत करना (Advance Group’s Position)- अक्सर कर्मचारियों का समूह अपने लिये कुल लाभ प्राप्त करने की दिशा में मिलकर कदम उठाता है। सधारणतया ऐसा एक अनौपचारिक समूह नेता के माध्यम से किया जाता है। सारे सदस्य अपनी शक्ति और एकता प्रदर्शन करके अपने नेता के हाथ मजबूत करते हैं। कर्मचारी मिलकर अपने लिये अच्छी सेवा सुविधाओं तथा ऊँची मजदूरी की माँग कर सकते हैं।

(3) सहचरता एवं मित्रता (Comapnionship and Friendship )- एक समूह में शामिल होकर एक व्यक्ति को साथी मिल जाते हैं जिसके साथ वह अन्तःक्रिया कर सकता है और अपने अनुभवों का पारस्परिक आदान-प्रदान कर सकता है। समूह की सदस्यता एक व्यक्ति में उसकी परेशानियों को सहानुभूति के साथ सुनता है। बहुत कम लोग एक लम्बे समय तक अकेला रहना चाहेगे। अधिकांश व्यक्ति दूसरों के साथ कार्य करके अथवा उनके साथ खेलकर सन्तोष प्राप्त करते हैं।

(4) कार्य से सम्बद्ध सहायता (Help with the work)- प्रतिदिन ऐसी अनेकों स्थितियाँ उत्पन्न होती रहती हैं जब एक कर्मचारी को सहायता की आवश्यकता पड़ती है तथा अपने कार्य को पूरा करने के लिये अपने साथी कर्मचारियों की सलाह की आवश्यकता पड़ती है। समूह से अलग रहने वाला कर्मचारी अक्सर ऐसी छोटी-छोटी सहायताओं से वंचित रह जाता है जो उसे अपने साथियों से मिल सकती हैं।

(5) सम्प्रेषण तथा सूचना (Communication and information ) – एक कार्य समूह सूचना को सदस्यों तक पहुँचाने का अच्छा साधन होता है। समूह नवीन सूचनाओं से अपने सदस्यों को अवगत कराता रहता है। तथ्य और अफवाह जो कर्मचारी एक-दूसरे तक पहुँचाते रहते हैं बहुत शीघ्रता से पूरे समूह में फैल जाती हैं। लोगों का नवीन सूचनाओं से अवगत रहना उनके लिये लाभप्रद रहता है, क्योंकि वे अपने को परिवर्तित दशाओं में समायोजित कर लेते हैं।

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Pankaja Singh

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