प्रवर्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ | नवीन उपक्रम की स्थापना | Meaning and definitions of enforcement in Hindi | Establishment of new venture in Hindi

प्रवर्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ | नवीन उपक्रम की स्थापना | Meaning and definitions of enforcement in Hindi | Establishment of new venture in Hindi

प्रवर्तन का अर्थ एवं परिभाषाएँ

(Meaning and Definitions of Promotion)

उद्यम के प्रवर्तन से आशय किसी उद्यम के प्रारम्भ से है। यह खोज की अवस्था है। इस अवस्था में उद्यमी के मस्तिष्क में किसी उद्यम की स्थापना का विचार उत्पन्न होता है और वह अपने विचार को साकार रूप देने के लिए उसकी व्यापक रूप में जाँच एवं अन्वेषण करता है कि क्या उक्त विचार को क्रियान्वित किया जा सकता है अर्थात् क्या यह विचार वाणिज्यिक रूप में लाभप्रद है? यदि व्यापक रूप में जाँच-पड़ताल करने के बाद वह यह निष्कर्ष निकालता है कि विचार को क्रियान्वित किया जा सकता है तो उद्यमी द्वारा उठाया जाने वाला अगला कदम उधम की स्थापना का होगा अर्थात् उद्यम की स्थापना के लिए आवश्यक संसाधनों, जैसे- भूमि, यन्त्र एवं मशीनरी, भवन, कच्चा माल, सामग्री तथा श्रम शक्ति आदि को एकत्रित करना तथा उद्यम के आकार के अनुसार आवश्यक वित्त की व्यवस्था करना है। वास्तव में यह सम्पूर्ण प्रक्रिया अर्थात् उपक्रम की स्थापना के विचार की खोज, उसका व्यापक रूप से अन्वेषण, संसाधनों का एकत्रीकरण एवं वित्तीय व्यवस्था करना प्रवर्तन (Promotion) कहलाती है। जिस व्यक्ति के द्वारा ये क्रियाएँ की जाती हैं वह प्रवर्तक (Promoter) कहलाता है।

नवीन उपक्रम की स्थापना

(Establishment of A New Venture)

एक नवीन उपक्रम की स्थापना एवं विस्तार के लिए उद्यमी को अनेक महत्वपूर्ण घटकों को ध्यान में रखना होता है एवं विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। ये मुख्य अवस्थाएँ निम्न हैं-

(1) व्यावसायिक अवसरों की खोज (Searching for Business Opportunities) –

व्यवसाय के प्रवर्तन का कार्य उपर्युक्त व्यावसायिक विचारों एवं अवसरों की खोज के साथ प्रारम्भ होता है। व्यवसाय के प्रवर्तन का विचार अपना हो सकता है अथवा विभिन्न स्रोतों जैसे-दूसरे उद्यमियों की सफलता, किसी उत्पाद की मांग, परियोजना रिपोर्ट, सरकारी एजेन्सियों के द्वारा सहायता, किसी आयातित वस्तु का स्थानापत्र उत्पन्न करने का अवसर, किसो व्यापारिक मेले अथवा प्रदर्शनी से प्रेरणा एवं औद्योगिक सर्वेक्षण आदि का अध्ययन हो सकता है। यह विचार किसी नये उपक्रम के प्रारम्भ करने का अथवा वर्तमान किसी व्यवसाय को अधिग्रहण करने का हो सकता है ध्यान रहे ऐसा विचार ठीक, तर्कसंगत एवं कार्य योग्यता होना चाहिए ताकि विनियोगों पर उचित पर्याय प्राप्त हो सके। इस उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए विचार की खोज करने हेतु प्रवर्तक को कल्पनाशील एवं दूरदर्शी होना होगा। मूलतः उपक्रम की स्थापना हेतु विचारों की खोज करने में निम्न स्रोत सहायता कर सकते हैं-

(i) बाजार अवलोकन (Market Observation) – विभिन्न उत्पादों से सम्बन्धित ज्ञान बाजार सर्वेक्षण से प्राप्त किया जा सकता है। इस जानकारी से माँग-पूर्ति का निर्धारण, भविष्य की माँग का पूर्वानुमान करने के पश्चात कीमत पैटूर्न, आय स्तर, प्रतिस्पर्धा, प्रौद्योगिकी आदि में होने वाले सम्भव बदलावों का पहले से प्रावधान किया जा सकता है।

(ii) उपभोक्ता सर्वेक्षण (Consumer Survey)- व्यवसाय की सफलता-असफलता उपभोक्ता पर निर्भर करती है इसलिए उपभोक्ता सर्वेक्षण के द्वारा ग्राहक की पसन्द-नापसन्द, फैशन, कार्य क्षमता व कब और कहाँ से क्रय करना पसन्द करेगा आदि के बारे में विस्तृत जानकारी एकत्र की जाती है। इसलिए उत्पाद की रूपरेखा तैयार करने से पहले ग्राहक की आवश्यकताओं पर ध्यान देना जरूरी होता है। अतः उपभोक्ता के प्रतिवचन को जानने के लिए टैस्ट मार्केटिंग का उपयोग किया जा सकता है।

(iii) विकास के मार्ग पर चलना (Keeping Track of Development)- एक दूरदर्शी उद्यमी को अपने आसपास होने वाली गतिविधियाँ जैसे व्यवसाय के विचार, नये उत्पाद तकनीक में होने वाले बदलाव आदि की विस्तृत जानकारी होनी चाहिए। इसके लिए अपने घरेलू व विदेशी बदलावों का अध्ययन जरूरी होता है। इसके अतिरिक्त अधिक लाभदायक जानकारी के लिए व्यापार मेलों तथा प्रदशर्नियों का भ्रमण भी करना चाहिए।

(iv) दूसरे राष्ट्रों का विकास (Development in other nations) – अविकसित देशों के लोग सामान्यतः विकसित देशों के फैशन चलन आदि का अनुसरण करते हैं, अतः एक उद्यमी एक अच्छे व्यावसायिक विचार की खोज कर सकता है यदि वह विकसित राष्ट्रों में होने वाले आधुनिक विकासों का ध्यान रखे। कभी-कभी इस हेतु उद्यमी बाहर के राष्ट्रों का भ्रमण भी करता है।

(v) सरकार (Government)- उद्यमियों को व्यावसायिक विचार की खोज करने एवं उसका मूल्यांकन करने हेतु विभिन्न संस्थाएं सहायक हैं। राज्य औद्योगिक विकास बैंक, तकनीकी सलाह संगठन, विनियोग केन्द्र, निर्यात सम्वर्द्धन समिति आदि विभिन्न संस्थाएँ उद्यमियों को तकनीकी, वित्तीय वितरण एवं अन्य व्यावसायिक सलाह एवं सहायता प्रदान करती हैं। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं तथा औद्योगिक नीतियों के माध्यम से विनियोग हेतु प्राथमिक क्षेत्र की पहचान पृथक रूप से की है। व्यापार एवं उद्योग पर प्रकाशित सरकारी प्रकाशन भी नवीन व्यावसायिक विचार खोजने में सहायक हो सकते हैं। सरकार द्वारा लघु क्षेत्रों हेतु आरक्षित वस्तुएँ भी व्यवसाय हेतु शक्तिशाली सक्रिय क्षेत्रों का सूचक है।

(vi) व्यापारिक मेले (Trade Fairs)- राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेले व्यावसायिक विचार का एक मुख्य स्रोत हैं। इन मेलों में उत्पादक एवं डीलर्स अपने उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं, जो कि अक्सर नवीन उत्पाद होते हैं। दिसम्बर 1976 में संगठित भारतीय व्यापार मेला प्राधिकरण इस सम्बन्ध में शीर्ष संस्था है, यह इन मेलों व प्रदर्शनियों का नियन्त्रण करती है। प्रगति मैदान, नई दिल्ली में समय-समय पर ऐसे मेले आयोजित होते रहते हैं। इन मेलों में उत्पादन, क्रय, सह संगठन, डीलरशिप आदि विचारों पर सौदा एवं समझौता वार्ता भी होती है।

(vii) परियोजना का सूक्ष्म निरीक्षण (Scrutinising Project Profiles)- अनेक सरकारी तथा गैर सरकारी एजेन्सियाँ विभिन्न परियोजनाओं तथा उद्योगों का विस्तार वर्णन प्रस्तुत करती हैं जिनके द्वारा दूरदर्शी उद्यमी विभिन्न परियोजनाओं की तकनीकी, प्रबन्धकीय तथा बाजार की जरूरतों का पता लगा सकता है। इस तरह वह विभिन्न परियोजनाओं का गहन अध्ययन करने के पश्चात् उपयुक्त परियोजना का चयन कर सकता है। इसके लिए वह विशेषज्ञ की सहायता भी ले सकता है।

उपर्युक्त के अतिरिक्त, व्यावसायिक विचारों को खोजने में अन्य साधन जैसे- नवीन आविष्कार, असन्तुष्ट माँग, अप्रयुक्त संसाधन एवं निम्न कोटि के उत्पादन इत्यादि सहायक हैं।

(2) विचारों का विश्लेषण एवं चयन (Idea Analysis and Selection) –

विचारों के चयन से पूर्व उसका विस्तृत विश्लेषण किया जाता है जिसको निम्न अवस्थाओं में विभाजित किया गया है-

(i) प्रारम्भिक मूल्यांकन एवं विचार परीक्षण (Preliminary Evaluation and Idea Testing) – व्यावसायिक विचारों की खोज के पश्चात् उनका विश्लेषण एवं परीक्षण किया जाता है। व्यावसायिक विचारों के मूल्यांकन परीक्षण हेतु निम्नलिखित तथ्य महत्वपूर्ण हैं-

(अ) तकनीकी सुगमता (Technical Feasibility)- तकनीकी सुगमता से आशय किसी उत्पाद का उत्पादन करने की सम्भावनाओं से है। किसी विचार की तकनीकी सुगमता का निर्णय मशीनरी एवं यन्त्र, श्रम कौशल एवं कच्चा माल तथा आवश्यक तकनीकों की उपलब्धता के आधार पर किया जाता है। विभिन्न व्यावसायिक विचारों की तकनीकी सुगमता को मापने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों की सलाह एवं सहायता भी आवश्यक हो सकती है।

(ब) वाणिज्यिक सुगमता (Commercial Viability)- विचारों की लाभदायकता को ज्ञात करने हेतु लागत लाभ विश्लेषण (Coast Benefit Analysis) की आवश्यकता होती है। प्रस्तावित परियोजना की सजीवता एवं अवसरों को आंकने के लिए बाजार दशाओं एवं प्रचलित स्थितियों का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। इसको परियोजना की सुगमता का अध्ययन कहते हैं। इस अध्ययन के अन्तर्गत संगणनाएँ करनी होती हैं जो कि अनुमानित विक्रय मात्रा, सम्भावित मांग, विक्रय कीमत तथा उत्पादन लागत आदि से सम्बन्धित होती हैं तथा बाजार विश्लेषक एवं वित्तीय विशेषज्ञों की सेवाओं की आवश्यकता भी होती है।

(ii) विस्तृत विश्लेषण (Detailed Analysis)- विचारों के प्रारम्भ मूल्यांकन के पश्चात् प्रयुक्त व आशाजनक विचार का सभी पहलुओं से सम्पूर्ण विश्लेषण किया जाता है। प्रस्तावित परियोजनाओं की तकनीकी सुगमता एवं आर्थिक सजीवता की पूर्ण जाँच-पड़ताल की जाती है एवं उस विचार की वित्तीय व प्रबन्धकीय सुगमता का परीक्षण किया जाता है। इस अवस्था पर अनेक सूचनाओं की आवश्यकता होती है। इस अवस्था पर काफी सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि इस अवस्था के पश्चात् या तो विचार को स्वीकार कर लिया जाता है या अस्वीकार, अतः यह आवश्यक है कि उद्योग को विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा सलाह लेनी चाहिए।

(iii) उच्च विचार का चयन (Idea Selection)- परियोजना प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उसका विश्लेषण कर उपयुक्त विचार का चयन कर लिया जाता है। सामान्यतः विचार को अन्तिम रूप से चयन करने के लिए निम्न तथ्य विचारणीय हैं-

(i) कौन-सा उत्पाद सरलता से निर्यात किया जा सकता है?

(ii) कौन-से उत्पाद का आयात सरकार द्वारा प्रतिबन्धित है?

(iii) कौन-से उत्पाद की माँग उसकी पूर्ति से अधिक है?

(iv) क्या उत्पाद पैरा कम्पनी के लिए उत्पादित किया जाता है?

(v) किस उत्पाद के विपणन व उत्पादन में उद्यमी अनुभव रखता है ?

(vi) कौन-सा उत्पाद कोई विशेष लाभ सुनिशित करता है? यह लाभ उद्योग के स्तर, फैक्ट्री के स्थान उत्पादन की तकनीक, आदि किसी भी कारण हो सकता है।

(vii) कौन सा उत्पादन देश की औद्योगिक / लाइसेन्सिंग भीति के अनुरूप है।

(viii) किस उत्पाद में उच्च लाभदायकता है?

(ix) कौन-से उत्पाद के लिए सरकारी प्रोत्साहन या अनुदान उपलब्ध है।

(3) व्यावसायिक अवसर की जाँच (Evaluation of Business Opportunities)-

व्यावसायिक विचार के चपन अथवा निर्धारण करने के उपरान्त व्यावसायिक परिदृश्य अथवा वातावरण का मूल्यांकन अपरिहार्य होता है। व्यवसाय स्थापना की इस अवस्था में उद्यमी को व्यावसायिक पर्यावरणीय घटकों को ध्यान में रखना पड़ता है। व्यावसायिक परिदृश्य अनेक आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक एवं शासकीय तत्वों का सम्मिश्रण होता है। वर्तमान आर्थिक उदार अर्थव्यवस्थाओं में राष्ट्रीय ही नहीं वरन् अन्तराष्ट्रीय घटक भी उपक्रम को प्रभावित करते हैं। व्यावसायिक परिदृश्य के अनेक नाहा पटक उग्रभी के नियन्त्रण में नहीं होते, अतः उद्यमी के द्वारा आज के जटिल, गतिशील प्रतिस्पर्धात्मक परिदृश्य में उपक्रम को स्थापित एवं संचालित करना एक महत्वपूर्ण कौशल है जिसके लिए उद्यमी में विभिन्न वैयक्तिक गुणों के साथ-साथ वातावरण में स्वयं को स्थापित करने के लिए एक विशिष्ट व्यूह रचना का ज्ञान होना आवश्यक है। ग्राहकों, पूर्तिकर्ताओं मध्यस्थों, प्रतिद्वन्द्रियों के मानसिक दृष्टिकोण एवं सरकारी नीतियों, आर्थिक तत्वों, संसाधनों के साथ-साथ प्राकृतिक एवं भौगोलिक घटकों के मध्य सामंजस्य भी स्थापित करना पड़ता है।

नव-प्रवर्तन एवं उपक्रम स्थापना में उद्यमी के द्वारा सामाजिक, आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक एवं शासकीय परिदृश्यों के विश्लेषण एवं गहन जाँच द्वारा मूल्यांकन किया जाता है।

(4) आवश्यक संसाधनों का एकत्रीकरण (Collection of Input Requirement) –

उद्यमी जब परियोजना (विचार) की सुगमता व लाभदायकता के प्रति आश्वस्त हो जाता है तो वह उपक्रम को प्रारम्भ करने के लिए आवश्यक संसाधनों को जुटाता है। उसे साझेदार/सहयोगी को ढूंढ़ना होता है, आवश्यक वित्त की व्यवस्था करनी होती है, भूमि, भवन, मशीनरी, संयन्त्र, फर्नीचर, पेटेंट आदि खरीदने होते हैं एवं कर्मचारी नियुक्त करने होते हैं तथा उपक्रम के आकार, स्थानीयकरण आदि से सम्बन्धित निर्णय भी लेने होते हैं। मुख्य रूप से आवश्यक आगम (संसाधन) निम्न प्रकार के हो सकते हैं-

(1) सूचनाएँ (Intelligence)- आज के जटिल व्यावसायिक वातवरण में उद्यमी को सर्वप्रथम निम्न सूचनाएं एकत्रित करनी होती हैं-

(i) उत्पाद/सेवा हेतु माँग का आकार एवं प्रकृति ।

(ii) पूर्ति की मात्रा एवं स्रोत।

(iii) कच्चे माल का स्रोत।

(iv) कीमत लागत मात्रा सम्बन्ध।

(v) आवश्यक कर्मचारियों की संख्या एवं प्रकार का स्रोत।

(vi) तकनीकी, संयन्त्र एवं मशीनरी के पूर्तिकर्ता एवं प्रकार।

(vii) उद्यम हेतु आवश्यक कोषों का स्रोत।

(viii) प्रतिस्पर्धा की प्रकृति एवं डिग्री।

प्रत्येक उद्यमी को प्रबन्ध सूचना व्यवस्था (Management information system) विकसित करना होता है। कम्प्यूटर का प्रयोग इस व्यवस्था को प्रभावी बनाने में बहुत ही सहायक है।

(ii) वित्त (Finance)- वित्त किसी भी व्यवसाय के जीवन रक्त के समान होता है एवं यही व्यवसाय को सुदृढ़ बनाता है। यह वित्त व्यवसाय में स्थायी सम्पत्तियों तथा चालू सम्पत्तियों के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार व्यवसाय में लगे वित्त को व्यवसाय की पूँजी कहते हैं। स्थायी सम्पत्तियों में लगा वित्त ‘स्थायी पूँजी’ एवं चालू सम्पत्तियों में लगा वित्त ‘कार्यशील पूँजी’ कहलाता है। व्यवसाय हेतु आवश्यक कोषों का अनुमान लगाने के बाद उद्यमी को उसके स्रोतों को ढूंढ़ना होता है एवं विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाले वित्त का अनुपात भी सुनिश्चित करना होता है जिसे ‘पूँजी संचरना’ कहते हैं, तत्पश्चात् वह वित्त को प्राप्त करता है।

(iii) सेविवर्ग (Personnel)- उपक्रम हेतु विभिन्न सूचनाओं एवं वित्त की व्यवस्था के पश्चात् परम आवश्यक कार्य संस्था हेतु कर्मचारियों का चयन है। कर्मचारी संस्था की न हसिता होने वाली सम्पत्ति होती है। इनके सम्बन्ध उद्यमी को निम्न निर्णय लेने होते हैं-

(i) प्रवन्ध, तकनीकी एवं कर्मचरियों की आवश्यक संख्या।

(ii) उनकी आवश्यकतानुसार योग्यता व अनुभव।

(iii) भर्ती के स्रोत।

(iv) चयन विधि व प्राप्तियाँ।

(v) प्रशिक्षण विधि (चयनित कर्मचारियों हेतु)।

(vi) निष्पादन मूल्यांकन हेतु व्यवस्था एवं

(vii) सुरक्षा, कल्याण, स्वास्थ्य हेतु प्रदान की जाने वाली सुविधाएँ।

(5) उपक्रम की स्थापना (Establishment of A Venture) –

उपक्रम की स्थापना के सम्बन्ध में उपर्युक्त कार्यवाही पूर्ण हो जाने व आवश्यक संसाधनों के एकत्रित हो जाने के पश्चात् उपक्रम का कार्यशील ढाँचा तैयार करने की कार्यवाही की जाती है। यह कार्यवाही दो भागों में हो सकती है-

(i)संगठन संरचना, एवं (ii) व्यावसायिक नियोजन ।

(i) संगठन संरचना (Organisation Structure)- सर्वप्रथम उपक्रम को स्थापित करने के लिए वैधानिक ढाँचे की रचना करते हैं। उद्यमी अपने द्वारा चयनित व्यावसायिक विचार आवश्यकता के अनुरूप उपक्रम का संगठन करते हैं। व्यावसायिक विचार या लक्ष्य के अनुसार उपक्रम छोटे आकार, अति छोटे आकार अथवा वृहद आकार का हो सकता है जिसको सुनिश्चित करके उपक्रम एकल स्वामित्व, साझेदारी संगठन, संयुक्त पूँजी वाली कम्पनी अथवा सहकारी संगठन के रूप में वैज्ञानिक कार्यवाही को पूर्ण कर, स्थापित किया जा सकता है।

(ii) व्यावसायिक नियोजन (Business Planning)- उपक्रम के वैधानिक रूप में स्थापित हो जाने के पश्चात् उपक्रम स्थापना के कार्य को पूर्ण करने के लिए उसका कार्यशील रूप प्रदान किया जाता है जिसके लिए उद्यमी को व्यवसाय के अनेक पहुलओं के सम्बन्ध में समग्र योजनाएं बनानी पड़ती हैं । उदाहरण के लिए उत्पाद नियोजन, उत्पादन नियोजन, वित्तीय नियोजन, फण्ड नियोजन, लाभ नियोजन, विपणन नियोजन (कीमत नियोजन एवं वितरण नियोजन) आदि।

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