उद्यमिता और लघु व्यवसाय

उद्यम पूँजी के लिए मार्गदर्शिकायें | लघु व्यवसाय में मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्य

उद्यम पूँजी के लिए मार्गदर्शिकायें | लघु व्यवसाय में मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्य | Guidelines for Venture Capital in Hindi | Objectives of Management Human Resource in Small Scale Sector in Hindi

उद्यम पूँजी के लिये मार्गदर्शिकायें

(Guidelines for Venture Capital)

भारत में उद्यम पूँजी कोष कम्पनियों को स्थापित तथा संचालित करने के लिये 18 नवम्बर, 1988 को भारत सरकार द्वारा मार्गदर्शिकाओं का निर्गमन किया गया है। ये मार्गदर्शिकायें निम्नलिखित हैं-

(1) अखिल भारतीय लोक वित्तीय संस्थान, अनुसूचित बैंक तथा भारत में कार्यरत विदेशी बैक तथा उनके सहायक रिजर्व बैंक /भारत सरकार की पूर्व अनुमाति से उद्यम पूँजी कोष/ कम्पनियों की स्थापना कर सकते हैं।

(2) उद्यम पूँजी कोष/कम्पनियों का न्यूनतम आकार 10 करोड़ रुपये होगा। यदि वह जनता से कोषों को उगाहना चाहती है, तो उसके प्रवर्तकों को कम से कम 40% अनुदान करना होगा।

(3) न्यूनतम ऋण-समता अनुपात 1:15 होगा।

(4) उद्यम पूँजी कोषों/ कम्पनियों में अधिकतम विदेशी समता कुल समता की 25% तक होगी। अनिवासी भारतीय को 74% तक अनुदान करना होगा।

(5) इन उद्यम पूँजी कोषों/कम्पनियों द्वारा वित्तीय सहायता मुख्य रूप में उन नवीन उद्यमों के उद्यमियों को दी जायेगी जिनमें आधुनिक प्रौद्योगिकी के अपनाये जाने के कारण अधिक जोखिम विद्यमान है।

(6) प्रति इकाई अधिकतम विनियोजन की सीमा 10 करोड़ रुपये निर्धारित की गयी है।

लघु व्यवसाय में मानव संसाधन प्रबन्ध के उद्देश्य

(Objectives of Management Human Resource in Small Scale Sector)

लघु औद्योगिक इकाई में मानव संसाधन प्रबन्ध के अग्रलिखित उद्देश्य होते हैं-

  1. मानवीय साधनों के कल्याण में वृद्धि करना- सेविवर्गीय प्रबन्ध का एक प्रमुख उद्देश्य उद्योग में लगे मानवीय साधनों के कल्याण में वृद्धि करना होता है। इसके अन्तर्गत कार्य की उत्तम दशायें तथा अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों का प्रबन्ध किया जाता है, जिसमें कर्मचारियों को खेल और स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधायें प्रदान की जाती हैं।
  2. कर्मचारियों का विकास करना- सेविवर्गीय प्रबन्ध का दूसरा उद्देश्य उद्योग में लगे कर्मचारियों का विकास करना होता है। इसके अन्तर्गत कर्मचारियों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण प्रदान किये जाते हैं ताकि औद्योगिक इकाई में प्रशिक्षित कर्मचारियों की योग्यता का लाभ उठाया जा सके।
  3. पूँजीपति व श्रम के मध्य सम्बन्धों को मधुर बनाना- सेविवर्गीय प्रबन्ध का एक मुख्य उद्देश्य उद्योग में लगे पूँजी तथा श्रम के मध्य सम्बन्धों को मधुर बनाना भी होता है, क्योंकि प्रबन्ध की आधुनिक विचारधारा का मत है कि उद्योग में जितना महत्वपूर्ण घटक पूँजी है उतना ही श्रम भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना श्रम के पूंजी का मितव्ययी व सफल प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
  4. कर्मचारियों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखना- सेविवर्गीय प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य उद्योग में कार्य कर रहे कर्मचारियों से निरन्तर सम्पर्क बनाये रखना भी होता है क्योंकि सेविवर्गीय प्रबन्ध का प्रमुख कार्य कर्मचारियों का प्रबन्ध करना होता है जिसके अन्तर्गत वह कर्मचारियों की समस्याओं को सुनता है और अपने ही स्तर पर उनको निबटाने का प्रयास करता है।
  5. अन्य उद्देश्य- सेविवर्गीय प्रबन्ध के कुछ अन्य प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

(i) कर्मचारियों का मनोबल ऊँचा करना, (ii) कर्मचारियों की कार्यकुशलता में वृद्धि करना, (iii) कर्मचारियों के हितों के अनुसार सुविधायें जुटाना और कार्य की दशाओं तथा वातावरण को श्रेष्ठ बनाना, (iv) संगठन के अनुरूप उचित योग्यता वाले व्यक्तियों का चयन करना, (v) उत्पादकता में वृद्धि हेतु कर्मचारियों का विभिन्न प्रेरणायें देना आदि।

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Pankaja Singh

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