उद्यमिता और लघु व्यवसाय

भारत में उद्यमिता विकास की प्रमुख समस्याएँ | भारत में उद्यमिता के विकास को तीव्र करने के लिये सुझाव

भारत में उद्यमिता विकास की प्रमुख समस्याएँ | भारत में उद्यमिता के विकास को तीव्र करने के लिये सुझाव | Major problems of entrepreneurship development in India in Hindi | Suggestions to accelerate the growth of entrepreneurship in India in Hindi

भारत में उद्यमिता विकास की प्रमुख समस्याएँ

भारत में उद्यमिता विकास की समस्याओं का निम्न प्रकार से वर्णन किया जा सकता है-

  1. वर्ण व वंशानुगत व्यवस्था (Genealogical Statute)- प्राचीन व परम्परागत समाज की व्यवस्थाओं के अनुरूप चारों वर्णों में से वैश्य जाति वर्ण को ही व्यवसाय करने का अधिकार प्राप्त रहा है, अन्य को नहीं। साथ ही, वंशानुगत व्यवसाय परम्परा के भी आधिपत्य के कारण कुछ ही लोगों को व्यवसाय व उद्योग संचालित करने का अवसर मिल पाया। इससे समाज में अधिनायकवादिता, परम्परावादिता एवं संकीर्णता को बढ़ावा मिलता रहा है जो उद्यमिता में बाधक है।
  2. लघु एवं अलाभकारी संगठन (Small and Non-Profitable Organisation) – हमारे देश के लघु व मध्यम स्तरीय व्यावसायिक संगठन विभिन्न बुनियादी समस्याओं जैसे उत्पादन व वितरण लागतों में वृद्धि, तीव्र प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति, नवीन ज्ञान व कौशल का अभाव आदि से ग्रस्त रहे हैं। इन्हीं कारणों से अलाभकारी संगठन के रूप में उनकी छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  3. पूँजी की समस्या (Problem of Capital)- उद्यमिता विकास की प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्या पूँजीगत साधनों का अभाव व इनकी अपर्याप्तता के रूप में प्रकट होती है। साथ ही व्यावसायिक उपक्रमों में कार्यशील पूँजी की दोषपूर्ण प्रबन्ध व्यवस्था भी पूँजी सम्बन्धी समस्याओं को बढ़ावा देती है।
  4. अनुत्पादक व्यय का होना (Unproductive Expenditure)- पूंजी सम्बन्धी समस्याओं के ही क्रम में अनेक उद्यमियों को अनियोजित प्रबन्ध व्यवस्था व असन्तुलित विनियोजन के कारण अनेक अनुतपादक व्ययों का सामना करना पड़ता है। यह प्रवृत्ति ऋणगत पूँजी के समुचित उपयोग के प्रति उदासीनता की द्योतक होती है और उद्यमशील क्रियाओं में बाधक बन जाती है।
  5. उद्यमीय मनोवृत्तियों का अभाव (Lack of Entrepreneurial Tendencies) – हमारे देश में व्याप्त परम्परावादी दृष्टिकोणों एवं रूढ़िवादिता के कारण व्यक्तियों में संकीर्ण विचारों, मान्यताओं एवं उदासीनता के साथ व्यावसायिक रुचियों व रचनात्मक प्रवृत्तियों का अभाव पाया जाता है। इनसे उद्यमशील प्रवृत्तियों को प्रेरणाप्रद वातावरण नहीं मिल पाता।
  6. शोध व अनुसंधान पर कम ध्यान (Less Attention Towards Research and Invention)- व्यवसायियों व उद्यमियों द्वारा व्यवसाय व उद्योग के समुचित विकास के क्रम में शोध व अनुसंधान एवं तकनकी उन्नयनता पर कम ध्यान दिया जाता है। वे इस मद के खर्चों को अनावश्यक मान कर तकनीकी विकास को बढ़ावा नहीं देते हैं।

भारत में उद्यमिता के विकास को तीव्र करने के लिये सुझाव

सुझाव- हमारे देश में उद्यमिता के तीन विकास हेतु निम्नलिखित सुझाव दिये जा सके हैं-

  1. देश की शिक्षा पद्धति व शिक्षण संस्थाओं के पाठ्यक्रमों को रोजगार व साहस अभिमुखी बनाया जाना चाहिये।
  2. विभिन्न तकनीकी संगठनों एवं परामर्श केन्द्रों द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं एवं वातावरण के अनुकूल उद्यमिता विकास के आयोजन, परामर्श व क्रियान्वयन सम्बन्धी क्रियाओं को प्रभावी बनाया जा सकता है।
  3. युवाओं में, परिवार व समाज, के वातावरण में उद्यमीय प्रवृत्तियों को बढ़ावा देना चाहिये। समाजीकरण की प्रक्रिया में स्वावलम्बन, कर्मशीलता, दृढ़ निश्चय, कठोर परिश्रम एवं अनुशासनबद्ध क्रियाओं को प्रोत्साहित करना।
  4. ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के मध्य औद्योगिक बस्तियों की स्थापना को बढ़ावा देना चाहिये और वहाँ कच्चा माल, शक्ति के साधन, यातायात, संचार एवं अन्य सुविधाएँ उपलब्ध करवायी जानी चाहिये।
  5. उद्यमिता विकास के लिये शोधन व अनुसंधान की सुविधाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। इस हेतु वैज्ञानिकों एवं विशेषज्ञों को श्रेष्ठ कार्य परिणामों को लिये तैयार रखने का प्रयास किया जा सकता है। उन्हें उपयुक्त कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिये।
  6. तकनीकी, व्यावसायिक एवं औद्योगिक शिक्षा केन्द्रों की संख्या में वृद्धि करने व उनमें प्रदत्त सुविधाओं का भी विस्तार किया जाना चाहिये।
  7. सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक मापदण्डों व धारणाओं को प्रेरक व अनुकूल बनाया जाना चाहिये।
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Pankaja Singh

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