प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम | curriculum of environmental education at primary & secondary level in Hindi
प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर पर पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम
(Curriculum of Environmental Education at Primary & Secondary Level)
एन० सी० ईआर० टी० द्वारा प्राथमिक तथा उच्च प्राथमिक अथवा माध्यमिक कक्षाओं के लिए जिन पुस्तकों की प्रस्तुति की है, उनमें व्यावहारिक ज्ञान पर जोर दिया गया है। इसमें अधिगम क्रियाओं के पाँच चरण सुझाए गए हैं (1) अवलोकन, (ii) प्रश्न, (iii) आओ पता लगाएँ (iv) क्रियाएँ तथा (५) हमने क्या सीखा? सीखा हुआ ज्ञान कहाँ तक सार्थक है ? इत्यादि।
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा उच्च प्राथमिक स्तर अथवा माध्यमिक स्तर पर जो प्रकरण तय किए गए हैं उसमें प्रायोगिक कार्यों का क्षेत्र अधिक है, पाठों की आवश्यकता के अनुरूप विधियों और सहायक सामग्री आदि का चयन किया जा सकता है। उच्च प्राथमिक कक्षाओं के लिए चुने गए कुछ प्रकरण निम्न प्रकार हैं- (i) भोजन, (ii) स्वास्थ्य, (iii) प्रकृति के साथ अनुकूलन (iv) ऊर्जा के प्रकार, (५) कृषि-क्रियाएँ, (vi) फसलें, (vii) उपयोगी पशु, (viii) उपयोगी पौधे, (ix) उन पर अन्त:निर्भरता, (x) जनसंख्या से उत्पन्न समस्याएँ, (xi) रोग और उनके निदान, (xii) कुपोषण आदि।
एन० सी० ई० आर० टी० द्वारा माध्यमिक स्तर के पाठों में कुछ अधिक विस्तार दिया गया है, लेकिन प्रायोगिक कार्य की गुंजाइश उनमें भी बराबर बनी रहती है। इसके प्रकरण निम्न प्रकार वर्गीकृत किए गए हैं-(i) पारिस्थितिकी और उसकी समस्याएँ, (ii) प्राकृतिक संसाधन और उनका संरक्षण, (iii) फसलें, (iv) कृषि-क्रियाएँ, (v) पशुपालन, (vi) विभिन्न प्रकार के प्रदूषण एवं उपचार, (vii) शिशु जन्म, (viii) जनन अंगों का परिचय, (ix) गर्भावस्था व सावधानियाँ, (x) बच्चों को होने वाले रोग, (xi) जनसंख्या का नियमन, (xii) कुपोषण, (xiii) अल्प पोषण से होने वाले रोग, (xiv) भोज्य पदार्थ एवं उनका रख-रखाव, (xv) वानिकी, सामाजिक वानिकी, (xvi) नशेबाजी जैसी बुरी आदतें आदि।
हमारा मुख्य उद्देश्य छात्र-छात्राओं की नई पीढ़ी में ऐसे संस्कार भरना है, जिससे वे अपने पर्यावरण के प्रति शुरू से ही सचेत और संवेदनशील बन सकें। प्रत्येक चरण पर छात्रों को समाज से जोड़ना भी हमारा लक्ष्य है। पर्यावरण-शिक्षा के माध्यम से ही जीवन के शाश्वत मूल्यों का पालन सम्भव हो सकता है।
किताबी ज्ञान व संस्कार अपने स्थान पर हैं और जीवन के विपुल अनुभव अपने स्थान पर। पर्यावरण-शिक्षा के कई घटक हो सकते हैं; जैसे-
(1) सांस्कृतिक कार्यक्रम-
अभिनय, मूक-अभिनय, नृत्य, समूह नृत्य, कठपुतली प्रदर्शन, विविध वेशभूषा आदि।
(2) साहित्यिक कार्यक्रम-
कहानी, कविता, वाद-विवाद, भाषण, निबन्ध प्रतियोगिता, विद्यालय, पत्रिका, विविध वेशभूषा आदि।
(3) पर्यावरण परिषद् की स्थापना-
अन्य परिषदों का गठन,जैसे वाणिज्य परिषद्, विज्ञान परिषद्, भूगोल परिषद् आदि।
(4) सामुदायिक सेवा कार्य–
एन० सी० सी० ,एन. एस. एस. स्काउट-गाइड कार्यक्रम शिविरों का आयोजन, प्रकृति-भ्रमण, वृक्षारोपण, पौधशाला, प्रौढ़ शिक्षा आदि।
(5) अन्य सह-शैक्षिक क्रियाएँ-
जैसे चित्र एल्बम, डाक टिकट संग्रह, स्क्रैप बुक्स का निर्माण, प्रदर्शनी का आयोजन आदि।
पर्यावरण शिक्षा के लिए मैप, चार्ट्स, ग्लोब, दृश्य-श्रव्य साधन, फिल्म प्रोजेक्टर, टेपरिकॉर्डर, स्लाइड्स, कैसेट्स, चलचित्र प्रदर्शन आदि का भी अत्यधिक महत्व है। विधियाँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं, परन्तु गन्तव्य स्थल एक ही रहेगा। मुख्य लक्ष्य हैं, बच्चों को पर्यावरण के प्रति सजग और संवेदनशील बनाना । उचित प्रकार से संवेदित और संस्कारित पीढ़ी के हाथों में ही निश्चित होकर भविष्य की विरासत दी जा सकती है तथा आशा की जा सकती है कि ऐसी पीढ़ी ही उस विरासत की रक्षा और संवर्धन कर सकेगी।
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