शिक्षाशास्त्र

जनसंख्या शिक्षा की विषय-वस्तु | Content of Population Education in Hindi

जनसंख्या शिक्षा की विषय-वस्तु | Content of Population Education in Hindi

जनसंख्या शिक्षा की विषय-वस्तु

(Content of Population Education)

जनसंख्या शिक्षा की विषय-वस्तु (कन्टेन्ट) निश्चित ही उन सब पक्षों और पार्यों को समाहित करेगी जो जनसंख्या, उसकी वृद्धि रचना,व्यक्ति और सामाजिक जीवन में उसके प्रभाव को स्पष्ट करती है। इस आधार पर व्यापक रूप से पाँच क्षेत्र विकसित होते हैं, जो निम्न हैं-

(1) जनसंख्या वृद्धि के घटक और कारक-

जनसंख्या समस्या को समझने के लिए आवश्यक है कि जनसंख्या वृद्धि के कारणों और घटकों को समझा जाये । इन घटकों और कारकों में अनेक पक्ष सम्मिलित हैं। व्यक्तियों का परिवार के स्वरूप, अर्थात् बड़ा या छोटा, लड़के और लड़कियों की संख्या आदि के सम्बन्ध में अनेक तरह की मान्यताएँ और आस्थाएँ हैं। धर्म, परम्परा, आर्थिक, सामाजिक आदि अनेक पहलू हैं जो परिवार के आकार को बनाने में प्रभावशील होते हैं। इन घटकों और कारकों को जब तक समझा न जाये तब तक व्यक्तियों के जनसंख्या सम्बन्धी व्यवहार और अभिवृति को बदलना नहीं जा सकता। जनसंख्या वृद्धि से सम्बन्धित अभिवृति और मूल्य का निर्माण करने के लिए आवश्यक होगा कि छात्रों को वस्तुनिष्ठ ढंग से जनसंख्या वृद्धि के घटकों और कारकों को समझने और तत्पश्चात् अपना दृष्टिकोण विकसित करने का आधार दिया जाये। अतः जनसंख्या शिक्षा की विषयवस्तु इस पक्ष को अनिवार्य रूप से समाहित करेगी।

(2) जनसंख्या वृद्धि और आर्थिक विकास-

जनसंख्या का सामाजिक और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अध्ययन इस पक्ष में करना होगा। जनसंख्या का भूमि, जलवायु, वन, अन्न, आवास, आर्थिक विकास के कार्यक्रम, शैक्षिक विकास, स्वास्थ्य सेवाएँ और विविध जन कल्याण के कार्यक्रमों पर क्या प्रभाव पड़ता है। राष्ट्रीय आय और प्रतिव्यक्ति आय पर जनसंख्या का प्रभाव का अध्ययन इस पक्ष का महत्वपूर्ण पद होगा।

(3) उत्तरदायित्वपूर्ण पितृत्व एवं उत्तरदायित्वपूर्ण प्रजननात्मक व्यवहार-

इसके अन्तर्गत छात्रों को यह ज्ञान दिया जाये कि प्रजननात्मक व्यवहार समाज और व्यक्तिगत परिवार पर क्या मनो-सामाजिक प्रभाव पड़ सकता है। आदर्श पितृत्व के लक्षण क्या हैं । किशोरों को मनोवैज्ञानिक तथ्य स्पष्ट किये जायें कि पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने के पहले उन्हें किस प्रकार की मनोवैज्ञानिक उथल-पुथल हो सकती है, चिन्ताएँ और कौतूहल हो सकते हैं, और वे उनका सामना किस प्रकार करें। इसका सम्बन्ध उन मूल्यों, आदर्शों और आस्थाओं से होगा जो भावी माता-पिताओं के व्यवहार और अभिवृत्तियों के निर्माण में सहायक होगा।

(4) परिवार नियोजन, नीतियाँ और कार्यक्रम-

इसके अन्तर्गत छात्रों को आबादी नियंत्रण की आवश्यकता, छोटा परिवार या नियोजित परिवार के महत्व और आवश्यकता का ज्ञान कराया जाएगा। उन्हें यह अन्तर्दृष्टि देने का प्रयास किया जाएगा कि जनसंख्या वृद्धि का किन-किन पावों और आयामों से अध्ययन हो सकता है और उसका क्या परिणाम अन्तत: व्यक्ति और समाज पर पड़ सकता है। नव शिशुओं और नव माताओं के स्वास्थय पर अधिक संतान और उनके बीच का कम अन्तर क्या प्रभाव डालता है, क्या जोखिम हो सकते हैं आदि का ज्ञान इस विषयवस्तु का उद्देश्य होगा। छात्रों को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में और विकास की योजनाओं के संदर्भ में परिवार नियोजन की नीतियों के महत्व व आवश्यकताओं को स्पष्ट करना, ताकि उनमें तार्किकतायुक्त निर्णयन विकसित हो सकें। यह ज्ञान उनमें उत्तरदायित्वपूर्ण पितृत्व और उत्तरदायित्वपूर्ण प्रजननात्मक व्यवहार के मूल्य और आस्था का विकास करेगा।

(5) जनसंख्या नियोजन एवं जनसंख्या से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान-

इस पद का उद्देश्य छात्रो को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में जनसंख्या नियोजन, मानवीय संसाधन का निर्माण प्रशिक्षण, आर्थिक और सामाजिक विकास में जनसंख्या नियोजन का महत्व और इससे सम्बन्धित विभिन्न पक्षों का ज्ञान देना है। जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवागमन, आवास, शहरीकरण, वातावरण प्रदूषण आदि-आदि अनेक समस्याओं के निराकरण के उपायों और तरीकों का ज्ञान देना है।

उपरोक्त पाँच वृहत् क्षेत्र हैं जो जनसंख्या शिक्षा की विषयवस्तु का निर्माण का आधार हो सकते हैं। जनसंख्या शिक्षा का सर्वस्वीकृत प्रतिरूप (माडल) अभी विकसित नहीं हो पाया है। सभी देशों के लिए एक-सी कोई विषयवस्तु का स्वरूप हो भी नहीं सकता, क्योंकि विषयवस्तु का चयन हर देश की विशिष्ट परिस्थितियों और आवश्यकता के अनुरूप निश्चित होगा। किन्तु यह सर्वमान्य है कि जनसंख्या शिक्षा की जो भी विषयवस्तु विकसित हो उसमें जनसंख्या वृद्धि के कारण,परिणाम, नियंत्रण के उपाय,जनसंख्या वृद्धि का सामाजिक, आर्थिक राजनैतिक व सांस्कृतिक जीवन पर प्रभाव,परिवार का स्वरूप, आधुनिक मान्यता, पितृत्व और जनसंख्या सम्बन्धी व्यवहार आदि महत्वपूर्ण पक्ष हैं, जो जनसंख्या शिक्षा की विषयवस्तु को संगठित करने में महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में स्टेफन वेडरमेन, डेमोग्राफिक डिवीजन, पॉपुलेशन कॉउन्सिल, न्यूर्याक का मत महत्वपूर्ण प्रतीत होता है। उनका मत है कि, “Population study involves introducing into the curriculum information concerning population characteristics and the causes and consequences of population change. This implies much more than simply a study of births, deaths, migration and growth rates. Among other things it includes an attempt to develop an understanding of a wide range of social phenomena that are closely linked with and affected by population such as urbanization and the role and status of women. Furthermore, since all demographic processes stem from the behaviour of individuals, population study also attempts to elucidates the social and psychological bases for this behaviour.”

यह निर्विवाद है कि जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता अनेक देशों में आबादी वृद्धि की समस्याओं के कारण उत्पन्न हुई है। हमारे ही देश में जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं के कारण हुई है। हमने यह निश्चित किया है कि परिवार नियोजन हमारे लोगों के जीवन जीने का तरीका बन जाए और यह समाज शिक्षा तथा सामान्य स्वास्थ्य शिक्षा का अंग बन जाए ताकि बच्चों को युवा जीवन के लिए स्वस्थ ढंग से तैयार किया जा सके।

शिक्षाशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

1 Comment

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!