शिक्षाशास्त्र

उच्च शिक्षा में अन्तर विद्या अभिगमन की धारणा | भारतीय शिक्षा पद्धति की असमर्थता | शैक्षिक असमर्थता को दूर करना | अन्तर विद्या अभिगमन का सम्प्रत्य | अन्तर विद्या अभिगमन कार्यक्रम

उच्च शिक्षा में अन्तर विद्या अभिगमन की धारणा | भारतीय शिक्षा पद्धति की असमर्थता | शैक्षिक असमर्थता को दूर करना | अन्तर विद्या अभिगमन का सम्प्रत्य | अन्तर विद्या अभिगमन कार्यक्रम

उच्च शिक्षा में अन्तर विद्या अभिगमन की धारणा

(Inter Disciplinary Approach in Higher Education)

अन्तर विद्या अभिगमन के सम्बन्ध में कोठारी आयोग (1966) के अनुसार-“शिक्षा समस्याओं का सभी जटिलताओं में अध्ययन करने के लिए शिक्षा, अर्थशास्त्र,समाजशास्त्र, मनोविज्ञान,लोक-प्रशासन,तुलनात्मक धर्म तथा कानून के विभागों में अन्तर विद्या अध्ययन आवश्यक है। विश्वविद्यालय के सभी विषय विभागों जैसे-रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, इतिहास या भूगोल स्वयं के क्षेत्र में विद्यालय पाठ्यक्रमों तथा शिक्षण विधियों की समस्याओं पर कार्य कर सकता है। स्नातक पूर्व तथा स्नातकोत्तर स्तरों पर शिक्षा के पाठ्यक्रमों को अधिकतर अन्य विषयों के पाठ्यक्रमों से सम्बन्धित किया जा सकता है।”

अन्तर विद्या अभिगमन के सम्बन्ध में बूबेकर का कथन है कि, “आधुनिक विचारधारा अध्ययन के विभिन्न विद्वानों के वास्तविक समूहों द्वारा अन्तर विषयक अध्ययन के पक्ष में हैं।”

भारतीय शिक्षा पद्धति की असमर्थता

भारतीय शिक्षा पद्धति का आधार वैसे तो बहुत उत्कृष्ट है, परन्तु यह पद्धति जीवन के साथ जुड़ी हुयी नहीं है। व्यक्ति जिस ज्ञान का अर्जन करता है, उसका प्रयोग वह जीवन के अन्य क्षेत्रों में नहीं कर पाता। इसके साथ-साथ यह शिक्षा व्यक्ति तथा राष्ट्र की महत्वाकांक्षा की भी पूर्ति नहीं कर पाती जैसे-

(1) सामाजिक, नैतिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों का पतन हो रहा है।

(2) समाज एकीकरण की जगह छोटे-छोटे वर्गों तथा सम्प्रदायों में विभाजित हो रहा है।

(3) राष्ट्र निर्माण के संकल्प की पूर्ति करने में यह शिक्षा असफल रही है।

(4) इस शिक्षा-पद्धति में जीवन आधार कृषि को महत्व नहीं दिया गया

(5) यह शिक्षा-पद्धति राष्ट्र के आथिक विकास से नहीं जुड़ी है।

शैक्षिक असमर्थता को दूर करना

भारतीय शिक्षा आयोग ने एवं राष्ट्र को विभाजित होने से बचाने के लिए एक उपाय बताया है-अन्तर विद्या अभिगमन। भारतीय शिक्षा आयोग ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि-“शिक्षा के स्वरूप को परिवर्तित करने के लिये इसे जीवन के साथ जोड़ना चाहिये। जनता की आकांक्षाओं तथ आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिये। इसे राष्ट्रीय आदर्शों की प्राप्ति के लिए सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक साधन होना चाहिये।” भारतीय शिक्षा आयोग ने अन्तर विद्या अभिगमन का मूल आधार निम्न प्रकार प्रस्तावित किया है-

(1) यह सामाजिक तथा राष्ट्रीय एकता का विकास करे, प्रजातन्त्र का संगठन करे तथा देश इसे जीवन पद्धति के रूप में स्वीकार करें।

(2) शिक्षा को उत्पादन के साथ जोड़ा जाये।

(3) सामाजिक, नैतिक, आध्यात्मिक मूल्यों के विकास के द्वारा चरित्र का निर्माण करे।

(4) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में सहयोग प्रदान करे।

अन्तर विद्या अधिगमन का प्रमुख उद्देश्य विषयों के ज्ञान को व्यावहारिक बनाना है। भारतीय शिक्षा आयोग ने ‘शिक्षा’ के विषय का उदाहरण देकर स्पष्ट किया है कि विश्वविद्यालयों में अन्तर विद्या अभिगमन के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिये।

अन्तर विद्या अभिगमन का सम्प्रत्यय

(Concept of Inter Disciplinary Approach)

अन्तर विद्या अभिगमन के अनेक रूप हैं। कुछ विद्वान् एक ही विषय में अनेक विषयों के अभिगमन को अन्तर विद्या अभिगमन मानते हैं। शिक्षा में, आर्थिक, राजनीतिक, समाजशास्त्रीय, दर्शन आदि के विचारों का अध्ययन कराना ही उनके विचार से अन्तर विद्या अभिगमन है। किन्तु कुछ विद्वानों का मत है कि यदि किसी के पास स्नातक स्तर पर शिक्षा विषय के साथ चित्रकला तथा हिन्दी है, तो उसे चित्रकला तथा हिन्दी को पढ़ाने की विधि का उचित ज्ञान शिक्षा ही दे सकती है। इस तरह से उसके द्वारा पढ़े गये विषय अधिक क्रियाशील तथा उपयोगी सिद्ध होंगे।

शिक्षा के अतिरिक्त अन्य विषयों में अन्तर विद्या-अध्ययन के लिए भी विचार किया गया है। इसके लिये भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, भू-विज्ञान और भौतिकी तथा गणित एवं अर्थशास्त्र के संश्लिष्ट पाठ्यक्रम भी उचित रहेंगे।

डॉ० चौरासिया के अनुसार, अन्तर विद्या अभिगमन की आवश्यकता निम्न प्रकार हैं-

“अन्तर विद्या अभिगमन इस धारणा पर आधारित है कि ज्ञान का प्रत्येक विषय स्वाभाविक अनुक्रम द्वारा एक व्यक्ति को दूसरे विषयों के निकट ले जाता है तथा वह एक विषय से जो ज्ञान प्राप्त करता है, उसकी पूर्ति अन्य विषयों से प्राप्त किये जाने वाले ज्ञान के द्वारा होती है।”

अन्तर विद्या अभिगमन के विषय में ही एक अन्य विद्वान् डॉ० मुजीब के अनुसार, “साधारणतः स्वीकार किये जाने वाले अर्थ में डिसिप्लिन शब्द का अभिप्रायः है-अध्ययन का एक क्षेत्र, जिसकी मान्यताओं की अनुपम व्यवस्था के साथ-साथ अपनी स्वयं की सुनिश्चित विषय-सामग्री तथा रचना प्रणाली होती है। इस अर् में विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में पढ़ाये जाने वाले विषय डिसिप्लिन होते हैं।”

अन्तर विद्या अभिगमन कार्यक्रम-

(Inter Disciplinary Programme)

अन्तर विद्या अभिगमन का मुख्य उद्देश्य ज्ञान को व्यावहारिक बनाना है। इसके लिये आयोग द्वारा निम्न कार्यक्रम प्रस्तावित हैं-

(1) पाठ्य विषयों का अधिक से अधिक प्रसार किया जाये।

(2) तुलनात्मक विषयों को बढ़ावा दिया जाये।

(3) एक विषय के व्यक्ति को दूसरे विषय में अपने मूल विषय को विकसित करने के अवसर प्रदान किये जायें।

(4) कला, विज्ञान, गृह-विज्ञान, कृषि, इन्जीनियरिंग, टेक्नोलॉजी तथा ललित कला आदि अनेक विषयो का समागम तथा संगठन होना चाहिये।

(5) विषयों के पुनर्गठन में निम्न तथ्यों का ध्यान रखना चाहिएँ-

(i) आदर्श को व्यवहार में परिवर्तित किया जाना चाहिये।

(ii) रुचि तथ योग्यता के अनुसार विद्यार्थी को विषय दिये जायें।

(i) असमायोजितों को समायोजित होने के पूर्ण अवसर प्रदान किये जायें।

इस प्रकार अन्तर विद्या अभिगमन वास्तव में उच्च शिक्षा को नई दिशा में बोध प्रदान करता है। इसीलिए भारतीय शिक्षा आयोग के अनुसार “जिन विश्वविद्यालयों में परस्पर सम्बद्ध विषयों के विभागों में पर्याप्त शिक्षक हैं, उन्हें इस अभिगमन को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए विषयों के नवीन संयोजनों,विभिन्न संस्थाओं में सहयोग की नवीन विधियों और नवीन प्रकार के अध्ययन वर्गों की आवश्यकता होगी।”

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Pankaja Singh

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