जनसंख्या शिक्षा का अर्थ | जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य | जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता | जनसंख्या शिक्षा का महत्व
जनसंख्या शिक्षा का अर्थ (जनसंख्या शिक्षा की संकल्पना पर विचार)
जनसंख्या वृद्धि की इन परिस्थितियों में इस पर विचार करना आवश्यक हो गया। फलस्वरूप 1960 ई. में यह प्रक्रिया शुरू हुई और इस अवधारणा को व्यवस्थित और परिभाषित करने का प्रयास किया गया। इसे प्रतिक्षण प्रक्रिया से जोड़ने का कार्य शुरु हुआ।
(i) प्रो० स्लोन वेलैण्ड (Prof. Sloan Wayland) ने भारत में जनसंख्या-शिक्षा के लिए अनेक महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये। उन्होंने इस संबंध में लिखा है-“संज्ञा चाहे जो हो हमारा संबंध औपचारिक शिक्षा के अन्तर्गत निर्देश प्रणाली में परिवार नियोजन की सार्वजनिक नीति परिवार तथा राष्ट्र, परिवार नियोजन की वांछनीयता आदि को सम्मिलित किये जाने से है। साथ ही जनसंख्या का आर्थिक तथा सामाजिक विकास किया जाना चाहिए। अतः किसी विशेष समाज में भाषाशास्त्रीय प्रावधान में विद्यालय-स्तर पर विशेष शिक्षण-विधि की आवश्यकता विकसित करनी है।”
(ii) हाजर (Hauser. 1962) ने इसकी आवश्यकता का अनुभव करते हुए लिखा है-“अब समय आ गया है कि बीसवीं सदी के स्कूलों के पाठ्यक्रम में बीसवीं सदी की जनसंख्या की प्रवृत्ति तथा परिणामों का अध्ययन कराया जाये।”
(iii) भारत सरकार ने अप्रैल, 1976 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषण की । इस नीति के उद्देश्य एवं लक्ष्यों को इस प्रकार निर्धारित किया कि जनसंख्या के विस्फोट का ठीक तरह से मुकाबला किया जा सके और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण देश पर आये हुए संकट का मुकाबला किया जा सके । जनसंख्या-नीति के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए जनसंख्या-संबंधी शिक्षा पर जोर दिया गया। फलस्वरूप उच्च शिक्षा की संस्थाओं के पाठ्यक्रम में इसे शामिल किया गया। राष्ट्रीय एकता,प्रौढ़ शिक्षा,ग्राम विकास, पर्यावरण, कानूनी साक्षरता पर जोर देने का निश्चय किया गया। यह भी तय किया गया कि जनसंख्या-शिक्षा को पाठ्य सहगामी क्रियाओं में भी शामिल किया जाय।
जनसंख्या शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Population Education)
जनसंख्या-शिक्षा से अभिप्राय विद्यार्थियों को जनसंख्या संबंधी शिक्षा देना है। यह विद्यार्थियों में जनसंख्या तथा परिवार नियोजन संबंधी मौलिक चेतना उत्पन्न करने के उद्देश्य से दी जाती है। संक्षेप में, यह वह शिक्षा प्रविधि है जिसके द्वारा जनसंख्या की समस्याओं संबंधी आधारभूत चेतना तथा नियोजित परिवार के प्रति सहयोगी अभिवृत्तियों का विकास स्कूल और कॉलेजों द्वारा किया जा सकता है।
भारत में 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की संख्या बहुत अधिक है। यही बड़े होकर विवाह करके माता-पिता बनेंगे। इनको परिवार के आकार के विषय में निर्णय करना है, जिसका जनसंख्या वृद्धि से सीधा संबंध है। अत: इस वर्ग के बच्चों को बढ़ती जनसंख्या के दुष्प्रभाव से अवगत कराना आवश्यक है जिससे वे अपने भावी परिवार के आकार के विषय में निर्णय कर सकें। साथ ही इस युवा पीढ़ी को लघु परिवार के विचार के प्रति आकृष्ट करना आवश्यक है, जिससे वे प्रौढ़ावस्था में अपने परिवार को सीमित कर सकें। यही कार्य जनसंख्या-शिक्षा के माध्यम से किया जाता है। जनसंख्या-शिक्षा देकर बच्चों को बताया जा सकता है। कि संतान उत्पत्ति को नियंत्रित किया जा सकता है। इस प्रकार जनसंख्या-शिक्षा वह शिक्षा है जिसमें युवा पीढ़ी के लोगों को जनसंख्या की गति, उसकी दिशा तथा देश के सामाजिक एवं आर्थिक जीवन, उसके प्रभाव और परिवार के आकार, छोटे परिवार के लाभ आदि की जानकारी प्रदान की जाती है। विभिन्न विद्वानों ने जनसंख्या-शिक्षा को निम्न प्रकार परिभाषित किया है।
- डंकन के अनुसार, “वातावरण में परिवर्तन, जनसंख्या की संरचना में परिवर्तन, जनसंख्या की समस्या से जूझने के उपाय तथा कारकों की पारम्परिकता से परिस्थिति संकुल (Ecological Complex) बनते हैं और संकुलों का लेखा- जोखा ही जनसंख्या-शिक्षा है।”
- यूनेस्को वर्कशॉप के अनुसार, “जनसंख्या-शिक्षा एक शैक्षिक कार्यक्रम है जिसमें परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व की जनसंख्या का अध्ययन किया जाता है । इस अध्ययन का उद्देश्य-छात्रों में इस स्थिति के प्रति विवेकपूर्ण, उत्तरदायित्व पूर्ण दृष्टिकोण एवं व्यवहार का विकास करना है।”
- एम० एम० विश्वविद्यालय, बड़ौदा के जनसंख्या शिक्षा केन्द्र द्वारा प्रकाशित पत्रिका के अनुसार, “जनसंख्या-शिक्षा एक ऐसी शैक्षिक-प्रक्रिया है, जिसमें स्कूलों तथा कॉलेजों के द्वारा जनसंख्या की समस्याओं की बुनियादी जानकारी और छोटे आकार के परिवार के प्रति अभिरुचि पैदा होती है।”
जनसंख्या शिक्षा के उद्देश्य
(Objective of Population Education)
जनसंख्या-शिक्षा के उद्देश्य को लेकर विद्वानों में मत वैभिन्न्य है । विभिन्न विद्वानों ने इसके निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं-
(1) बालकों को इस तथ्य से परिचित कराना कि लघु एवं संगठित परिवार के द्वारा ही सभी सदस्यों के कल्याण एवं स्वास्थ्य की रक्षा की जा सकती है।
(2) छात्रों को इस बात की जानकारी देना कि बच्चों की संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है और परिवार को छोटा रखा जा सकता है।
(3) छात्रों को जनसंख्या तथा गुणात्मक जीवन के घनिष्ठ संबंध को स्पष्ट करना।
(4) परिवार की आर्थिक स्थिरता के लिए लघु एवं संगठित परिवार के महत्त्व से छात्रों को अवगत कराना।
(5) छात्रों को आधुनिक विश्व की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में जनसंख्या-वृद्धि की गति एवं कारणों से अवगत कराना।
(6) बालकों को ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार के महत्त्व को समझाना।
(7) बालकों को व्यक्ति, परिवार, समुदाय, देश तथा विश्व के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक जीवन पर जनसंख्या वृद्धि के पड़ने वाले कुप्रभावों की जानकारी देना।
(8) छात्रों को आर्थिक विकास के साथ जनसंख्या का संबंध, परिवार कल्याण, प्रति व्यक्ति की आय, गंदी बस्तियों में वृद्धि, खाद्य समस्या, कुपोषण आदि के बारे में ज्ञान कराना।
संक्षेप में, राष्ट्रीय सेमिनारों में जनसंख्या शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये हैं-“जनसंख्या-शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को यह समझने की योग्यता प्रदान करना होना चाहिए कि परिवार के आकार को नियंत्रित किया जा सकता है, जनसंख्या का सीमा निर्धारण राष्ट्रीय जीवन को उत्तम एवं सुविधाजनक बना सकता है और परिवार का छोटा आकार, प्रत्येक परिवार के सदस्यों के जीवन-स्तर के उन्नयन में अतिशय योग दे सकता है।”
जनसंख्या शिक्षा की आवश्यकता
(Need of Population Education)
जनसंख्या न केवल राष्ट्रीय विकास को वरन् समाज के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करती है। समाज में भिन्न आयु समूहों में तथा कुल जनसंख्या में वृद्धि की दर देश के आर्थिक विकास का सशक्त समाधान करती है। विश्व के विकसित राष्ट्र इस बात के प्रमाण हैं कि उनकी जनसंख्या नियंत्रित रूप से बढ़ी है। उनकी राष्ट्रीय विकास की गति में अबाध गति से सुधार हुआ है। फिर हमारा देश तो जनसंख्या-विस्फोट की स्थिति में है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या ने राष्ट्रीय आय और व्यय में असंतुलन पैदा किया है तथा अनेक सामाजिक समस्यायें भी उत्पन्न हुई हैं। जनसंख्या आज एक चुनौती बन गयी है ।
जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए जो उपाय अपनाये गये हैं, वे अपर्याप्त रहे हैं। इसके लिए प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से परिवार नियोजन का प्रचार और प्रसार किया गया है, परन्तु जन्म दर को कम करने के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया गया है। इसके विपरीत समाज की सांस्कृतिक संरचना ने जनसंख्या वृद्धि को स्वतः प्रोत्साहित किया है।
धर्म को सदा भाग्य का पर्यायवाची मानने के कारण बच्चे के जन्म को भगवत्कृपा ही समझा जाता है। विशेष रूप से युवा पीढ़ी में जनसंख्या की वृद्धि से राष्ट्र तथा समाज पर पड़ने वाले कुप्रभावों संबंधी चेतना का नितांत अभाव है तथा वे जनसंख्या जैसी विकराल समस्या के प्रति भी उदासीन हैं । फलस्वरूप जनसंख्या का विस्फोट हुआ है। ऐसे में छात्रों जनसंख्या शिक्षा प्रदान करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है।
जनसंख्या शिक्षा का महत्त्व
(Importance of Population Education)
जब तक जनसंख्या वृद्धि की राष्ट्रव्यापी समस्या का उपचार नहीं किया जाता तब तक देश की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का हल असम्भव है। हमारी शिक्षा प्रणाली भी ऐसी गंभीर समस्या के प्रति उदासीन रही है जो इस समस्या के हल की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में जनसंख्या शिक्षा का महत्त्व निम्न कारणों से बढ़ सकता है-
(1) निरन्तर प्रयत्न (Continuous effort)- जनसंख्या विस्फोट को रोकने के लिए पर्याप्त कार्यक्रमों की आवश्यकता है। यह अल्पकालिक प्रयल नहीं है। शिक्षा के सभी स्तरों पर इसकी शिक्षा देने की व्यवस्था करना इस दिशा में एक आवश्यक एवं महत्वपूर्ण कदम होगा।
(2) लोक सम्पर्क माध्यमों तथा संचार साधनों का प्रभाव (Impact of mass media and communication)- विश्व के विकासशील देशों में जनसंख्या नियन्त्रण सम्बन्धी प्रचार टेलीविज़न, रेडियो, फिल्मों तथा विज्ञापनों के माध्यम से पूरे जोरों से किया जा रहा है। प्रौढ़ जनता में जागृति और जनसंख्या सम्बन्धी चेतना को लाने में संचार माध्यम सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। छोटी प्रगतिशील पीढ़ी भी इन्हें समझने का प्रयास करती है। उन्हें इन प्रचलित विचारों से सम्बन्धित क्रमबद्ध ज्ञान देने का कोई साधन नहीं है। सम्भव है कि वे अल्पज्ञानी प्रौढ़ों के इन विचारों को अच्छी तरह न समझ सकें। इसलिए सुनियोजित कार्यक्रम के अन्तर्गत जनसंख्या शिक्षा के वांछित विचारों के प्रसार के लिए संचार माध्यम उपयोगी उपकरण सिद्ध हो सकते हैं।
(3) वर्तमान कार्यक्रमों का कायाकल्प (Acceleration of present programme)-
जनसंख्या नियंत्रण सम्बन्धी वर्तमान सभी कार्यक्रम अपर्याप्त हैं। इनमें यदि शिक्षा को भी शामिल किया जाये तो उत्साहजनक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक तथा प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए स्कूलों तथा कॉलेजों में जनसंख्या शिक्षा देने का कार्य अतिरिक्त प्रयत्न समझा जाना चाहिए। भावी पीढ़ी को जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणामों के प्रति जाग्रत करने तथा इसका निवारण करने के लिए तैयार किया जाना आवश्यक है।
(4) अनुकूल समय (Favourable time)- व्यक्ति में किसी भी संस्कार को पैदा करने तथा शिक्षित करने का सर्वाधिक उपयुक्त समय विद्यार्थी जीवन है । अत: छात्रों को बड़े होने पर निर्णय लेने योग्य बनाना चाहिए। उनमें जनसंख्या सम्बन्धी उचित अभिवृत्तियों का संचार विद्यालयों में करना चाहिए। विद्यालय में जनसंख्या सम्बन्धी शिक्षा इस दिशा की ओर उचित कदम होगा।
(5) विद्यालयों की पर्याप्त संख्या (Vast numbers of school) – भारत की 40 प्रतिशत जनसंख्या के अन्तर्गत 15 वर्ष की आयु तक के बालक तथा किशोर आते हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे स्कूल में जाते हैं। यदि जनसंख्या-सम्बन्धी प्रवृत्तियों का संचार स्कूलों में ही हो जाय तो यह प्रयत्न भविष्य के लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होगा। हम भावी समाज को प्रजनन-सम्बन्धी शिक्षा प्रदान करके अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि आज के बालक कल के माता-पिता हैं।
(6) नागरिकता का विकास (Developing the citizenship)-शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य छात्रों में नागरिकता की भावना का विकास करना है। एक जागरूक नागरिक राष्ट्र और समाज की समस्याओं को दमे करने की दिशा में प्रयत्न कर सकता है। जनसंख्या-विस्फोट एक घातक राष्ट्रीय समस्या है जो राष्ट्र की उन्नति में बाधक है। अच्छे छात्रों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जनसंख्या-विस्फोट ने देश की सामाजिक तथा आर्थिक उन्नति में कितना अवरोध डाला है। इसका एक लाभ यह भी होगा कि बड़े होकर वे सन्तुलित और छोटे परिवार के पक्ष में होंगे।
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