अनुसंधान क्रियाविधि

निर्वचन से आशय | निर्वचन में त्रुटियाँ या विभ्रम | Meaning of Interpretation in Hindi | Interpretation errors or confusions in Hindi

निर्वचन से आशय | निर्वचन में त्रुटियाँ या विभ्रम | Meaning of Interpretation in Hindi | Interpretation errors or confusions in Hindi

निर्वचन से आशय

(Meaning of Interpretation)

सांख्यिकीय अनुसंधान का आरम्भ मंकों के संकलन से होता है और निर्वचन सांख्यिकीय शोध की अन्तिम अवस्था है। निर्वचन संकलित समंकों के विश्लेषणात्मक अध्ययन से निष्कर्ष निकालने की विधि है।

निर्वचन का महत्व या उपयोगिता (Utility of Important of Interpretation) :

इसका महत्व इस बात से प्रकट होता है कि सांख्यिकीय शोध की समस्त क्रियायें व्यर्थ हैं यदि निर्वचन द्वारा निष्कर्ष नहीं प्राप्त किये जाते समंकों के संग्रहण, सारणीयन, वर्गीकरण आदि समस्त क्रियाओं का अन्तिम लक्ष्य निर्वचन होता है। समंक स्वयं उपयोगी नहीं होते हैं, उपयोगिता उनसे प्राप्त निष्कर्षों में होती है जो कि निर्वचन द्वारा प्राप्त होते हैं।

निर्वचन में त्रुटियाँ या विभ्रम

(Defects in Interpretation)

निर्वचन वास्तव में आँकड़ों का खेल है जिसमें पर्याप्त सावधानी के पश्चात् भी त्रुटि रह जाती है तथा त्रुटि निष्कर्षों को भ्रमपूर्ण बना देती है। एक कुशल निर्वचनकर्ता को इस बात की जानकारी होना आवश्यक है निर्वचन में सामान्यतया त्रुटियाँ कहाँ होती हैं या विभ्रम के कारण होती हैं? निर्वचन में त्रुटियों के मुख्य कारण निम्नलिखित है।

(1) अपर्याप्त सामग्री- सामग्री की अपर्याप्तता निर्वचन को त्रुटिपूर्ण बनाकर निष्कर्षों को भ्रामक बनाती है।

(2) असमान आधार- असमान आधार पर दो समूहों के मध्य की गई तुलना और उस तुलना के आधार पर किया गया निर्वचन त्रुटिपूर्ण एवं भ्रामक होगा।

(3) अशुद्ध सामान्यीकरण-अशुद्ध सामान्यीकरण के कारण ही निर्वचन अशुद्ध एवं भ्रामक हो जाता है।

(4) अपर्याप्त सूचना- अपर्याप्त सूचना से निर्वचन त्रुटिपूर्ण हो जाता है जिससे विभ्रम उत्पन्न होता है।

(5) प्रतिशत का अशुद्ध उपयोग- प्रतिशत के गलत उपयोग से निर्वचन त्रुटिपूर्ण एवं  भ्रामक हो जाता है। जैसे-महँगाई 5% बढ़कर पुनः 5% कम हो जाने पर यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि महँगाई में कोई परिवर्तन ही नहीं हुआ।

(6) अवैज्ञानिक एवं पक्षपातपूर्ण निर्वचनकर्त्ता-अवैज्ञानिक और पक्षपातपूर्ण निर्वचन से प्राप्त निष्कर्ष त्रुटिपूर्ण और भ्रामक होंगे।

(7) अकुशल एवं अयोग्य निर्वचनकर्त्ता- यदि निर्वचनकर्ता अकुशल और अयोग्य है तो विभ्रम और त्रुटि उत्पन्न हो जाते हैं।

(8) असम्बन्धित समंक-विषय से सम्बन्धित समंकों के आधार पर किया गया निर्वचन त्रुटिपूर्ण होता है और इसके प्राप्त निष्कर्ष भ्रामक होते हैं।

अनावश्यक सावधानियाँ

(Requisite Precautions)

निर्वचन में पर्याप्त सतर्कता और सावधानी बरती जानी चाहिये जिससे कि प्राप्त निष्कर्ष यथार्थ के निकटतम हों। निष्कर्ष के अयथार्थ या भ्रामक होने पर समंकों की विश्वसनीयता घटने लगती है। निर्वचन के एक बौद्धिक एवं जटिल कार्य होने से इस सम्बन्ध में कोई निश्चित नियम नहीं बनाये जा सकते हैं, फिर भी निर्वचन के समय निम्नलिखित ससावधानियाँ रखी जानी चाहिये-

(1) कुशल एवं योग्य निर्वचनकर्त्ता- निर्वचन किसी कुशल, योग्य और अनुभवी व्यक्ति द्वारा होना चाहिये जिससे गलती होने की सम्भावना न्यूनतम रहे।

(2) सामान्य त्रुटियों की जाँच एवं सुधार- निर्वचनकर्ता को सामान्य त्रुटियों पर प्रारम्भ में ही गौर कर उन्हें ठीक कर लेना चाहिये जिससे कि बाद में त्रुटि कम से कम हो।

(3) सही और पर्याप्त समंक- निर्वचनकर्ता को यह देख लेना चाहिये जिससे कि बाद में त्रुटि कम से कम हों।

(4) सांख्यिकीय विधियाँ एवं मापदण्डों का ज्ञान- निर्वचनकर्ता को सांख्यिकीय विधियों तथा मापदण्डों का अच्छा ज्ञान होना चाहिए।

(5) सजातीयता का परीक्षण- समंकों की सजातीयता का परीक्षण कर लेना बहुत आवश्यक है।

(6) दुरुपयोग पर रोक- समंकों के दुरुपयोग से बचना चाहिये।

(7) पृष्ठभूमि की सामान्य जानकारी- निर्वचन से पूर्व समंकों की पृष्ठभूमि की सामान्य जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए।

(8) निष्पक्षता- निर्वचन निष्पक्ष होना चाहिये।

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Pankaja Singh

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