अनुसंधान क्रियाविधि

प्रतिदर्श का अर्थ व परिभाषा | निदर्शन का अर्थ व परिभाषा | प्रतिदर्श के आधार

प्रतिदर्श का अर्थ व परिभाषा | निदर्शन का अर्थ व परिभाषा | प्रतिदर्श के आधार | Meaning and definitions of sample in Hindi |  Meaning and definitions of demonstration in Hindi | sample basis in Hindi

प्रतिदर्श या निदर्शन का अर्थ व परिभाषा

(Meaning and Definition of Sampling)

प्रतिदर्श का अनुसंधान और सर्वेक्षण में विशिष्ट महत्व है। यह अनुसंधान और सर्वेक्षण की आधारशिला है। इसकी सुदृढ़ता के आधार पर ही सर्वेक्षण और अनुसंधान के परिणामों की‌विश्वसनीयता, वैद्यता और शुद्धता बढ़ जाती है। प्रतिदर्श एक विस्तृत समूह का एक लघु अंश होता है जिसमें समूह की सभी विशेषतायें या गुण विद्यमान होते हैं। प्रतिदर्श में किसी सम्पूर्ण समूह का अध्ययन करने के स्थान पर उसके एक उपयोगी भाग का अध्ययन किया जाता है जिससे सभी आवश्यक सूचनायें प्राप्त हो जाने की सम्भावना रहती है। प्रतिदर्श समग्र या सम्पूर्ण के एक ऐसे लघु अंश को कहते हैं जो उस सम्पूर्ण या समग्र का प्रतिनिधित्व करता है। इसमें समग्र की समस्त मौलिक विशेषतायें उपस्थित रहती हैं। प्रतिदर्श की सुविधा उपलब्ध होने के कारण विस्तृत अध्ययन की समस्या से मुक्ति मिल जाती है और इससे अध्ययन की गम्भीरता पर कोई विपरीत‌ प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार प्रतिदर्श कुछ इकाइयों के अवलोकन द्वारा सम्पूर्ण इकाइयों के सम्बन्ध में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने की युक्ति है। दैनिक जीवन में जब कोई सामान अधिक मात्रा या संख्या में क्रय किया जाता है तो पहले उसका नमूना देखा जाता है। यह नमूना ही प्रतिदर्श होता है।

निदर्शन या प्रतिदर्श की कुछ परिभाषायें निम्नवत् हैं-

(1) गुडे और हाट के अनुसार- “एक प्रतिदर्श, जैसा कि इसके नाम से प्रकट है, विस्तृत समूह का लघु प्रतिनिधि है।”

(2) श्रीमती पी.वी. यंग के अनुसार- “एक सांख्यिकीय प्रतिदर्श उस समग्र या सम्पूर्ण का एक अति लघु रूप है जिसमें से इसे प्राप्त किया गया है।”

(3) बोगाईस के अनुसार-“प्रतिदर्श एक पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार इकाइयों  के समूह में से निश्चित प्रतिशत का चयन है।”

प्रतिदर्श के आधार

(Basis of Sampling)

समग्र के प्रतिनिधि के रूप में प्रतिदर्श का चयन निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

(1) समग्र के इकाइयों में एकरूपता (Homogeneity of Units) – यद्यपि सामाजिक प्रघटनायें स्वभाव से जटिल होती हैं और समान नहीं प्रतीत होतीं, किन्तु सूक्ष्म अध्ययन से यह बात प्रकट होती है कि उनमें भी किन्हीं बिन्दुओं पर एकरूपता है। इसी एकरूपता के आधार पर चयनित इकाइयाँ समग्र का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनके आधार पर निकाला गया निष्कर्ष विश्वसनीय होता है। लुण्डबर्ग ने इसे इस प्रकार व्यक्त किया है, यदि तथ्यों में अत्यधिक एकरूपता विद्यमान है अर्थात् सम्पूर्ण तथ्यों की विभिन्न इकाइयों में अन्तर बहुत कम है तो सम्पूर्ण में से कुछ या कोई इकाई समग्र का उचित प्रतिनिधित्व करेगी। “

(2) प्रतिनिध्यात्मक चयन की सम्भावना (Possibility of Representative Selection)- दूसरी मान्यता यह है कि प्रतिनिध्यात्मक प्रतिदर्श का चयन करना सम्भव है। यह सिद्ध किया जा चुका है कि यदि कुछ इकाइयाँ समूह या सम्पूर्ण में से यदृच्छया चयनित की जायें तो ऐसे प्रतिदर्श में सभी इकाइयों के सम्मिलित होने की सम्भावना होती है। इस आधार पर प्रतिदर्श सम्पूर्ण का प्रतिनिधित्व करेगा। यह सिद्धान्त सभी प्रतिदर्श अनुसंधानों का प्रमुख आधार है।

(3) पूर्ण परिशुद्धता आवश्यक नहीं (Absolute Accuracy not Essential)- सम्पूर्ण के अध्ययन के लिये पूर्ण परिशुद्धता आवश्यक नहीं है। इस प्रकार के अनुसंधानों में सामान्य शुद्धता पर ही अधिकतर निर्भर रहना पड़ता है और उसके आधार पर प्राप्त निष्कर्ष शुद्धता की दृष्टि से पर्याप्त माने जाते हैं। उदाहरण के लिये, यदि समूह के किसी व्यक्ति की मासिक आय रु0 1600 है किन्तु प्रतिदर्श के द्वारा यह रु0 1595 प्राप्त होती है तो वास्तव में दोनों में कोई प्रभावी अन्तर नहीं है। अतः वृहद् स्तर पर अवलोकन किये जाने की स्थिति में पूर्ण शुद्धता के स्थान पर सापेक्ष या आवश्यक शुद्धता ही ग्राह्य होती है। इनसे प्राप्त निष्कर्ष भले ही शत-प्रतिशत शुद्ध न हों, किन्तु वैध सामान्यीकरणों की दृष्टि से पर्याप्त शुद्ध और उपयोगी हैं।

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Pankaja Singh

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